किसी ने कहा कभी किस्सा ऐ मोहब्बत भी लिखो,
कब और कैसे तुम पर हुई ये इनायत भी लिखो।
दोस्त! रूठना मनाना तो आम बात है मोहब्बत में,
जो दिल को छू गयी कभी वो शरारत भी लिखो।
टोका जिसके लिए बार बार वो आदत भी लिखो,
उसे पाने के लिए कब कब की इबादत भी लिखो।
ऐ दोस्त! मोहब्बत का दुश्मन तो सारा ज़माना है,
ज़माने की नजरों से कैसे की हिफाजत भी लिखो।
कितने लिखे मोहब्बत में उनको वो खत भी लिखो,
कितने जतन से मिला, खुदा की रहमत भी लिखो।
लाख पहरे तुम पर भी बिठाए गए होंगे उस वक़्त,
मिलने के लिए कितनी उठाई वो जहमत भी लिखो।
सुलक्षणा के लिए कौन कौन सी तोड़ी हद भी लिखो,
कैसे लांघी रिश्तों और मर्यादाओं की सरहद भी लिखो।
किसने साथ दिया और किसने साथ छोड़ा तुम्हारा,
कैसा रहा वो दौर ऐ मोहब्बत का तुम वक़्त भी लिखो।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
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