Tuesday, 26 April 2016

ऐ वक़्त जरा धीरे धीरे चल




ऐ वक़्त जरा धीरे धीरे चल, क्यों रहा है लोगों को छल, कुछ पता नहीं चलता है तेरा, कब आया कब गया निकल, तेरी ये एक अदा अखरती है, बड़े बड़ों को दे जाता है अक्ल, बहुत से लोग पछताते रहते हैं, उनके हाथों से तू गया फिसल, तेरी ताकत का पता है सबको, बड़े बड़ों का निकालता है बल, जब वक़्त का पहिया घूमता है, सब कुछ जाता है यहाँ बदल, एक ही गति से चलता रहता है, रुक नहीं सकता सत्य है अटल, हर एक है तेरे हाथों खिलौना, हर समस्या का है तेरे पास हल, तेरी नब्ज को पकड़ लेता है जो, वो होता नहीं जिंदगी में विफल, तेरी गति से चलने वाला यहाँ, हर एक इंसान हुआ है सफल, तेरे साथ साथ यहाँ चलने को, सुलक्षणा की कलम रही मचल, ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

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