लूटण खसोटण नै घर घर खुल री दूकान।
सब कुछ जाणदे होये माँ बाप बने अनजान।।
माँ बापाँ नै लूटण खातर इन नै दुकान सजा राखी स।
कोय बी बोलनिया कोण्या न्यू खुली लूट मचा राखी स।
चौगरदे कै झूठी वाहवाही आपणी इननै करवा राखी स।
असल म्ह ऊँची स दुकान पर फीका स पकवान।।
मास्टरां का बी ये शोषण करैं इनका काम देख ल्यो।
तीन तीन हजार म्ह मास्टर राखैं सरेआम देख ल्यो।
खुद खेलें नोटां म्ह दूसरां का तार लें चाम देख ल्यो।
पढ़ाई होती कोण्या दिखावै की स इनकी शान।।
खोल कै बतावैं कोणी बालकां प रटे खूब मरवावैं सं।
बालकां नै पास करवान खातर ये नकल करवावैं सं।
नए नए बहाने करकै रपिये ये बालकां प मंगवावैं सं।
खाली तामझाम स इनका ना देते ये सच्चा ज्ञान।।
सरकार की गलतियां तै इनकी संख्या बढ़ती जा री स।
फ़ीस दिन दूणी रात चौगनी ऊपर नै चढ़ती जा री स।
सच्चाई खातर सुलक्षणा दिन ब दिन लड़ती जा री स।
गुरु रणबीर सिंह के आशीर्वाद तै बणगी वा विद्वान।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
No comments:
Post a Comment