मैं छोरी सूं जमीदारां की
तेरे लैन लाग री कारां की
मैं खुश सूं जिंदगी मेरी म्ह
मन्नै चाहणा कोण्या याराँ की
इब शुरू होगी लामणी गाम म्ह
सारी दोपाहरी जलूँगी मैं घाम म्ह
उलटे तवे बरगी हो ज्यांगी इब मैं
दिन रात का फर्क आज्या चाम म्ह
तेरे बरगे मजनुआं नै खूब पिछाणु सूं
के रह स मन म्ह थारे सब जाणू सूं
दो चार दिन आगे पाछै हांड कै
लव यू लव यू थाम बांड कै
छोरियाँ नै जाल में फ़ंसाओं सो
शुरू शुरू म्ह खूब हंसाओं सो
पाछै सारी उम्र थम रुवाओ सो
आपणी यादां म्ह तड़पाओ सो
तेरे चक्करां म्ह छोरे आऊँ कोण्या
घर आल्याँ की हवा उड़ाऊँ कोण्या
जा कै आपणा जाल किते और बिछा ले
मैं पडूँ ना इन चक्करां म्ह और नै पटा ले
जिन नै पिछोड़े उन तिलां म्ह तेल कोण्या
बावलीबूच ऊँ बी तेरा मेरा मेल कोण्या
तन्नै खान नै चाहिए रोज पिज्जा बर्गर
आड़े खावाँ बासी रोटी गंठा धर धर
तू बाप की कमाई प मौज उड़ावै स
आड़े खुद कमाते हाणी मजा आवै स
क्यूँ जिंदगी नै खोवै स खोल बता दी सारी
क्यूँ ना माण्दा सुलक्षणा समझा समझा हारी
वे और होंगी जो इन चक्करां म्ह आज्यां सं
माँ बाप की इज्जत नै बेच कै खाज्यां सं
रोज रोज यार बदलें छोरा नै उल्लू बना कै
कदे गिफ्ट लेवैं कदे फोन रिचार्ज कराज्यां सं
छोरे मान ज्या ना इन चक्करां म्ह पड़ती
तेरे जिसे के काना प सुलक्षणा जड़ती
गुरु रणबीर सिंह नै दी सीख आछै बुरे की
सुन सुन कै मजा आज्या इसे छंद घड़ती
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
Tuesday, 26 April 2016
ना टोपी से बैर है, ना रुद्राक्ष से दुश्मनी है,
ना टोपी से बैर है, ना रुद्राक्ष से दुश्मनी है,
ना भगवे से प्यार है, ना हरे से मेरी तनी है।
मंदिर में चालीसा, मस्जिद में कुरान पढ़ती हूँ,
सबसे अजीज मुझे भारत माता व जननी है।
इस धर्म मजहब ने ही ये नफरत यहाँ जनी है,
लड़ते हैं बिना सोचे समझे ये गलती अपनी है।
अपनी इस दुश्मनी को देश को क्या मिला है,
अपने ही खून से ये धरती बार बार सनी है।
इसी मिट्टी की खुशबु से पहचान मेरी बनी है,
ऐ सखी! सिर्फ देश के गद्दारों से मेरी ठनी है।
देश के काम आऊँ इससे बड़ा सौभाग्य क्या,
देश पर शहीद होने वाला किस्मत का धनी है।
देख हालत मेरे देश की सीना हुआ छलनी है,
मेरी कलम की धार पैदा करती सनसनी है।
पोल खुलती देख खूब कोशिश करी डराने की,
पर जानते नहीं हैं वो सुलक्षणा भूखी शेरनी है।
डॉ सुलक्षणा अहलावत
लूटण खसोटण नै घर घर खुल री दूकान।
लूटण खसोटण नै घर घर खुल री दूकान।
सब कुछ जाणदे होये माँ बाप बने अनजान।।
माँ बापाँ नै लूटण खातर इन नै दुकान सजा राखी स।
कोय बी बोलनिया कोण्या न्यू खुली लूट मचा राखी स।
चौगरदे कै झूठी वाहवाही आपणी इननै करवा राखी स।
असल म्ह ऊँची स दुकान पर फीका स पकवान।।
मास्टरां का बी ये शोषण करैं इनका काम देख ल्यो।
तीन तीन हजार म्ह मास्टर राखैं सरेआम देख ल्यो।
खुद खेलें नोटां म्ह दूसरां का तार लें चाम देख ल्यो।
पढ़ाई होती कोण्या दिखावै की स इनकी शान।।
खोल कै बतावैं कोणी बालकां प रटे खूब मरवावैं सं।
बालकां नै पास करवान खातर ये नकल करवावैं सं।
नए नए बहाने करकै रपिये ये बालकां प मंगवावैं सं।
खाली तामझाम स इनका ना देते ये सच्चा ज्ञान।।
सरकार की गलतियां तै इनकी संख्या बढ़ती जा री स।
फ़ीस दिन दूणी रात चौगनी ऊपर नै चढ़ती जा री स।
सच्चाई खातर सुलक्षणा दिन ब दिन लड़ती जा री स।
गुरु रणबीर सिंह के आशीर्वाद तै बणगी वा विद्वान।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
हम सब मिलकर एक प्रयास करेंगे,
हम सब मिलकर एक प्रयास करेंगे,
अपना खोया मान सम्मान पाने को।
हम सब मिलकर एक हुँकार भरेंगे,
साथियों को फर्ज याद दिलवाने को।
शिक्षक धर्म अपना कभी नहीं भूलेंगे,
कभी आ जाना तुम हमें आजमाने को।
सच्ची शिक्षा देने को द्वार अब खुलेंगे,
करेंगे मेहनत उनको विद्वान बनाने को।
विद्यालय से अब हम फरलो नहीं मारेंगे,
समय पर आएंगे बच्चों को पढ़ाने को।
मार्ग में आने वाली बाधाओं से नहीं हारेंगे,
अतिरिक्त भी पढ़ाएंगे शिक्षा स्तर उठाने को।
अक्षर अक्षर का ज्ञान देंगे हर बच्चे को,
कभी मना नहीं करेंगे बार बार समझाने को।
कामयाब बनाएंगे अपने मनसूबे सच्चे को,
हो गए हैं तैयार फर्ज अपना निभाने को।
शिक्षार्थ आइये सेवार्थ जाइये को करने साकार,
निकल पड़ना है शिक्षा की अलख जगाने को।
शिक्षा से बढ़कर नहीं है कोई दूजा हथियार,
सुलक्षणा कब से है तैयार सबक सिखाने को।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
सुणो तो सुना दयूं क्यूँ ये सरकारी स्कूल पिछड़ रे सं।
सुणो तो सुना दयूं क्यूँ ये सरकारी स्कूल पिछड़ रे सं।
बालक पढ़ाने छोड़ कै मास्टर आपस म्ह झगड़ रे सं।।
कुछ लोह खोटा कुछ लुहार खोटा वाहे बात हो री स।
कुछ तै मास्टर पढ़ा कै राजी ना कुछ सरकार खो री स।
बालक ना पढ़ा दें मास्टर ज्याहें तै बहाने नए टोह री स।
मास्टरां प दोष धर कै सरकार आपणा खोट लको री स।
ये ए सी कमरां म्ह बैठ बैठ अफसर घणे अकड़ रे सं।।
मास्टरां नै बी बालक पढाण म्ह कीमे ज्ञान ना आता।
समझावण की करकै टाला मास्टर खूब रटे मरवाता।
कदे फरलो मारै कदे क्लास म्ह ठाली बैठ चला जाता।
कदे बालकां का आपणै ऐ धोरै ट्यूशन मास्टर लगवाता।
पास करवाण खातर ये नकल की राही पकड़ रे सं।।
माँ बाप बालकां नै संभालते कोण्या न्यू नाश जा लिया।
बालक आपणा धमकाया कोणी मास्टर धमका लिया।
पढ़ाई की पूछैं कोण्या वज़ीफ़ा खातर सर फुड़वा लिया।
स्कूलां की दशा सुधरवाण खातर ना कदम ठा लिया।
माँ बाप पढ़ाई कै ना पैसे अर खाने के पाछै पड़ रे सं।।
ना सरकार भड़क लेरी ना माँ बाप कदम ठाण लाग रे।
ना ऐ मास्टर जी ला कै बालकां नै आड़े पढ़ाण लाग रे।
होणी जाणी कीमे ना सब थोथे गाल बजाण लाग रे।
बुराई मिलेगी तन्नै गुरु रणबीर सिंह समझाण लाग रे।
साच बात लिखै स सुलक्षणा न्यू सारै रासे छड़ रे सं।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
ऐ दोस्त! जरा देखो तो ये कैसी विडंबना है,
ऐ दोस्त! जरा देखो तो ये कैसी विडंबना है,
सब कुछ दिया फिर भी देश नहीं अपना है।
इसी देश में जन्म लिया, यहीं पले बढ़े वो,
फिर भी देश का मान उन्हें नहीं रखना है।
इसी देश का अन्न खाया भूख मिटाने को,
पर उन्हें देश का शुक्रिया अदा नहीं करना है।
यहीं धन दौलत, रुतबा, नाम कमाया उन्होंने,
पर फिर भी देशहित के कामों से उन्हें बचना है।
देश और देशवासी उनकी भलाई सोचते हैं,
पर उन्हें तो दिलों में नफरत पालते रहना है।
अपने मजहब को बताते हैं नफरत की वजह,
मजहब नहीं सिखाता बैर ये ही मुझे कहना है।
नफरत के होते हुए भी देश को छोड़ना नहीं है,
पर नफरतों के साये में ही उन्हें मारना मरना है।
जयकारे तो दूर वो मुर्दाबाद के नारे लगाते हैं,
पर शांति बनाये को ये दर्द भी हमें सहना है।
बहत्तर हूरें और जन्नत मरे बिना किसे मिली हैं,
बस ये ही एक सवाल मुझे सरेआम पूछना है।
जिंदगी अपनी जहन्नुम क्यों बना रहे हैं वो,
बस ये ही समझ नहीं पा रही सुलक्षणा है।
©® सुलक्षणा अहलावत
किसी ने कहा कभी किस्सा ऐ मोहब्बत भी लिखो,
किसी ने कहा कभी किस्सा ऐ मोहब्बत भी लिखो,
कब और कैसे तुम पर हुई ये इनायत भी लिखो।
दोस्त! रूठना मनाना तो आम बात है मोहब्बत में,
जो दिल को छू गयी कभी वो शरारत भी लिखो।
टोका जिसके लिए बार बार वो आदत भी लिखो,
उसे पाने के लिए कब कब की इबादत भी लिखो।
ऐ दोस्त! मोहब्बत का दुश्मन तो सारा ज़माना है,
ज़माने की नजरों से कैसे की हिफाजत भी लिखो।
कितने लिखे मोहब्बत में उनको वो खत भी लिखो,
कितने जतन से मिला, खुदा की रहमत भी लिखो।
लाख पहरे तुम पर भी बिठाए गए होंगे उस वक़्त,
मिलने के लिए कितनी उठाई वो जहमत भी लिखो।
सुलक्षणा के लिए कौन कौन सी तोड़ी हद भी लिखो,
कैसे लांघी रिश्तों और मर्यादाओं की सरहद भी लिखो।
किसने साथ दिया और किसने साथ छोड़ा तुम्हारा,
कैसा रहा वो दौर ऐ मोहब्बत का तुम वक़्त भी लिखो।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
हर कोई तैयार बैठा है कलम को खरीदने को
हर कोई तैयार बैठा है कलम को खरीदने को,
कलम तैयार नहीं है चंद सिक्कों में बिकने को।
कलम मेरी नहीं लिखती झूठी तारीफ सुनने को,
कलम मेरी नहीं लिखती है यहाँ ऊपर उठने को।
दुश्मनी मोल लेती है सच की लड़ाई लड़ने को,
खोने को कुछ नहीं, सारी दुनिया है जीतने को।
जानी जाती है कलम मेरी यहाँ आग उगलने को,
मशहूर है ये झूठ को सरे बाजार नंगा करने को।
तैयार रहती है असहायों की बैशाखी बनने को,
ना नहीं करती है दुःखियों के पक्ष में चलने को।
देशहित में चलती है ये लोगों में जोश भरने को,
मचलती है ये भारत माता की जय लिखने को।
लिखती नहीं कविता ये केवल लोगों के पढ़ने को,
सुलक्षणा की कलम लिखती है दिल में उतरने को।
क्यों मैं दूसरी भाषा का गुणगान करूँ,
क्यों मैं दूसरी भाषा का गुणगान करूँ,
मैं मातृ भाषा हिंदी पर अभिमान करूँ।
एकता के सूत्र में बाँधती है ये देश को,
इसीलिए हिंदी पर न्यौछावर प्राण करूँ।
दिल को सुकून मिलता है हिंदी बोलकर,
इसी अपनेपन के लिए मैं सम्मान करूँ।
सारी दुनिया जानती है इसकी विशेषता,
शब्द नहीं मिल रहे कैसे मैं बखान करूँ।
प्रेम की भाषा है हिंदी हर कोई मानता है,
हिंदी के बिना कैसे संपूर्ण हिंदुस्तान करूँ।
अ अनार से शुरु कर ज्ञ ज्ञानी बनाती है ये,
बोलो फिर क्यों ना मैं हिंदी का ध्यान करूँ।
दिल ओ दिमाग में बस एक ही सवाल है,
दुनिया में कैसे हिंदी को प्रकाशमान करूँ।
हिंदी का झंडा अब सुलक्षणा को लहराना है,
हिंदी में कर कविताई खुद पर अहसान करूँ।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
उघाड़ैपण नै कहन लागै फैशन भई यू बी तै चाला स।
उघाड़ैपण नै कहन लागै फैशन भई यू बी तै चाला स।
बेशर्मी का औड़ रहा ना न्यू होया जान का घाला स।।
आजकाल की ये बहु छोरी कति नहीं शर्मावैं सं।
सारा गात चमकै जा इतने पतले सूट सिमावैं सं।
आधी छाती दिखै जा इतने बड़े गले करवावैं सं।
सारा गात ढ़का रह इसे पहरावै का करया टाला स।।
शर्म लिहाज तार कै गालाँ म्ह कै गिरकाती चालैं।
करके आछे भूण्डे इशारे छोरां नै पाछै लाती चालैं।
आई लव यू जान न्यू कह फोनां प बतलाती चालैं।
ये हे हाल रहे तो इस दुनिया का राम रुखाला स।।
छोरियाँ नै के कहूँ ये छोरे बी घणे चाले कर रे सं।
ट्यूशन की फ़ीस तै अय्याशियाँ का बिल भर रे सं।
पढाई की चिंता कोण्या छोरियाँ म्ह ध्यान धर रे सं।
इनकै शौकाँ नै माँ बाप का काढ्या दिवाला स।।
छोरियाँ आला बाणा पहरैं मूँछ साफ़ करवाये हांडे।
कह गुरु रणबीर सिंह ऐबी घणे होगे पी खाये हांडे।
खानदानी बी माँ बाप की इज्जत कै बट्टा लाये हांडे।
साच बात कहण का सुलक्षणा का ढंग निराला स।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
वो दूध दही का खाणा छुटग्या
वो दूध दही का खाणा छुटग्या,
गाम म्ह आना जाणा छुटग्या,
सवेरे साँझ मन्दिर में जा कै,
पूजा म्ह शंख बजाणा छुटग्या,
खेताँ म्ह घूमना घूमाणा छुटग्या,
नहर के म्हा वो नहाणा छुटग्या,
बड़े बूढ़ाँ ताहीं राम राम करकै,
भाइयों सर का झुकाणा छुटग्या,
खेताँ म्ह डांगर चराणा छुटग्या,
वो सर प न्यार ल्याणा छुटग्या,
सवेरे सांझ नै जोहड़ प जा कै,
वो भैंसां नै पानी प्याणा छुटग्या,
पोली म्ह भाइयाँ का आणा छुटग्या,
वो होक्के का गुड़गुड़ाणा छुटग्या,
सारी रौनक चली गयी पोलियाँ की,
मूँज आला पलँग बिछाणा छुटग्या,
ब्याह के टैम बान बिठाणा छुटग्या,
ब्याहँदड़ के मटना लगाणा छुटग्या,
राखड़ी, काँगना कोय कोय बाँधे,
ब्याह कै टैम तेल चढ़ाणा छुटग्या,
रीत रिवाज ब्यौहार पुराणा छुटग्या,
हँसी ख़ुशी त्यौहार मनाणा छुटग्या,
वो कुटुंब कबीले वो भाईचारे रहे ना,
दो घड़ी कट्ठे बैठ बतलाणा छुटग्या,
बड़े बूढ़ाँ का वो समझाणा छुटग्या,
माड़ी कार प वो धमकाणा छुटग्या,
लुगाइयाँ की चौधर होगी घर घर म्ह,
पंचायतां का फैसला करवाणा छुटग्या,
फागण सामण म्ह गिरकाणा छुटग्या,
साँगी भजनियाँ का इब गाणा छुटग्या,
गाम तै बाहर बाबा का धुणा तपणा,
वो घर घर अलख जगाणा छुटग्या,
कह गुरु रणबीर सिंह शर्माणा छुटग्या,
पाप कर्म करैं सब, धर्म कमाणा छुटग्या,
साची रोवै सुलक्षणा फैशन के दौर म्ह
पाछै सीधा साधा हरियाणा छुटग्या,
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
गुरु जी बैठ तेरे चरणां म्ह हर नै ध्याना चाहूँ सूं
गुरु जी बैठ तेरे चरणां म्ह हर नै ध्याना चाहूँ सूं।
आवागमन तै मिले छुटकारा मोक्ष पाना चाहूँ सूं।।
इस दुनिया के म्हा गुरु तै बड़ा ना किसे का औहदा।
ज्ञान रूपी जल के बिना बढ़े ना मानस रूपी पौधा।
दुनियादारी का किम्मे ना सौदा सबनै बताना चाहूँ सूं।।
नारियल किसै हों सं गुरु जी न्यू सारी दुनिया कहवै।
सच्चा ज्ञान वो पाज्या जो चरणां के म्हा हाजर रहवै।
पार उतरे जो गुरु की मार सहवै न्यू दिखाना चाहूँ सूं।।
गुरु बिना संपूर्णता मिले ना न्यू खुद वो भगवान कहगे।
गुरु के बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना सब दुखां म्ह फहगे।
गुरु बिना वेद शास्त्र धरे रहगे न्यू समझाना चाहूँ सुं।।
गुरु रणबीर सिंह नै गुरु जगन्नाथ टोहै जा समचाणे म्ह।
गुरु की दया तै सुलक्षणा का रुक्का पाटया हरियाणे म्ह।
गुरु की दया तै नाम कमाणे म्ह ना वार लाना चाहूँ सुं।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
तुम क्या जानो क्या क्या देखा है मैंने,
तुम क्या जानो क्या क्या देखा है मैंने,
भूख से बिलखते बच्चे को देखा है मैंने,
पल पल तड़पते बच्चे को देखा है मैंने।
पानी पिलाकर बहलाती हुई माँ देखी है,
यहाँ भूख से मरते बच्चे को देखा है मैंने।
चंद सिक्कों में ज़मीर बिकते देखे हैं मैंने,
छोटी बातों पर अमीर बिकते देखे हैं मैंने।
रात के अँधेरों में क्या दिन के उजालों में,
आत्मा मार कर शरीर बिकते देखे हैं मैंने।
रोड़ पर भीख माँगते हुए बच्चे देखे हैं मैंने,
गरीब, अमीरों से ज्यादा सच्चे देखे हैं मैंने।
जो करते हैं बड़ी बड़ी बातें दिखावे के लिए,
अक्सर उनके ही इरादे कच्चे देखे हैं मैंने।
धर्म के ठेकेदारों को लूटते हुए देखा है मैंने,
नेताओं को वादों से हटते हुए देखा है मैंने।
जाति के ठेकेदारों को दँगे भड़काते देखा,
आम जनता को यहाँ पिटते हुए देखा है मैंने।
न्याय की जगह पर अन्याय होते देखा है मैंने,
दोषी को हँसते, निर्दोष को रोते देखा है मैंने।
ऐ दोस्त! पैसे का बोलबाला है पूरी दुनिया में,
यहाँ घोड़ों को भी वजन ढ़ोते देखा है मैंने।
पल पल रिश्तों को दागदार होते देखा है मैंने,
यहाँ इंसानियत को शर्मसार होते देखा है मैंने।
स्वार्थ से बढ़कर कुछ नहीं अहमियत रखता,
बात बात पर यहाँ व्यापार होते देखा है मैंने।
हर रोज आँखों से गायब होती शर्म देखी है मैंने,
दौलत के लिए बेवफ़ा होती सनम देखी है मैंने।
बेपरवाह होकर सच को सामने लाने के लिए,
आग उगलती सुलक्षणा की कलम देखी है मैंने।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
मजबूरी में तन बिकते
शौक में मन बिकते
मंदिरों में दर्शन बिकते
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
भूख में इंसान बिकता
धन में ईमान बिकता
मौके पर अहसान बिकता
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
गरीबी में घर बिकता
दहेज में वर बिकता
काम में नर बिकता
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
शराब में वोट बिकते
रसूख में खोट बिकते
राजनीति में कोट बिकते
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
कुर्सी खातिर खादी बिकती
सुर्खियों में बर्बादी बिकती
लालच में आजादी बिकती
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
पुरस्कार में कलम बिकती
फैशन में शर्म बिकती
वक़्त पर मरहम बिकती
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
नाम से धर्म के ठेकेदार बिकते
हालात से व्यवहार बिकते
चंद नोटों में विचार बिकते
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
सारे रिश्ते नाते भी बिकते
कसमें वादे भी बिकते
सुलक्षणा इरादे भी बिकते
हर चीज बिकाऊ है दुनिया में
शिक्षा आले महकमे म्ह पढ़े लिखे अनपढ़ भतेरे सं।
शिक्षा आले महकमे म्ह पढ़े लिखे अनपढ़ भतेरे सं।
महकमे का भट्ठा बिठाण का मन म्ह इरादा ले रे सं।।
नीचे तै ऊपर ताहीं सारै मुर्ख कट्ठे हो रे सं।
आपणे हाथां महकमे की साख खो रे सं।
गलती इनकी स अर बालक म्हारै रो रे सं।
करना धरना किम्मे कोण्या बस मीठी गोली दे रे सं।।
नियम ये जाणै कोण्या मन की मर्जी करैं सं।
गलती का दोष ये आपणे तै छोटै प धरैं सं।
सूखी बड़ाई लेवण खातर कट कट कै मरैं सं।
सबनै बेरा पाट रहया स ये सारै कितने कमेरे सं।।
आपणै तै स्याणा किसै नै बी समझते कोण्या।
चिट्ठी पत्रियाँ प बी कोय कारवाई करते कोण्या।
एक कोर्ट के अलावा ये किसै तै डरते कोण्या।
छोटे तै छोटे काम खातर बी लगवावैं घणे फेरे सं।।
बुरा हाल स महकमे का सजा मिलै बिना गलती।
रपियाँ अर सिफारिश बिना फ़ाइल ना चलती।
सुलक्षणा ना महकमे के झूठी कालस मलती।
किते सुनवाई ना होई तै कोर्ट म्ह सारै इसने घेरे सं।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
आज मत रोको मुझे बहक जाने दो,
आज मत रोको मुझे बहक जाने दो,
मोहब्बत में तेरी मुझे महक जाने दो।
ऐ सनम! चार दिन की है जिंदगानी,
दिल के पँछी को भी चहक जाने दो।
दिल की गहराइयों से मोहब्बत की है,
दिन रात उस खुदा की इबादत की है।
लाख सितम गुजारे तुमने भी दिल पर,
पर बोलो कब मैंने कोई शिकायत की है।
बड़ा तरसा था हाल ऐ दिल बताने को,
हर इम्तेहान पास किया तुम्हें पाने को।
तुमने कबूल कर ली मोहब्बत मेरी,
वरना कब से तैयार बैठा मर जाने को।
तेरी ही तस्वीर बसा रखी है निगाहों में,
चाहता हूँ जिंदगी गुजरे तेरी पनाहों में।
बाद मुद्दत के सुलक्षणा ये घड़ी आई है,
मत देर करो अब सिमट जाओ बाहों में।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
ऐ दोस्तों ! गर्मी आ गयी हैं, जरा बचकर रहना,
ऐ दोस्तों ! गर्मी आ गयी हैं, जरा बचकर रहना,
घर से बाहर जब रहो धूप में, सर ढ़ककर रहना।
मरिंडा, पेप्सी, थंबस अप का सेवन ना करना,
माउंटेन ड्यू, कोक, लिम्का से सदा ही डरना।
गर्मी से है बचना तो निम्बू पानी तुम खूब पीना,
खरबूजे पर पानी मत पीना यदि स्वस्थ है जीना।
तरबूज अधिक से अधिक खाना हर हाल में,
प्याज खाने से तुम नहीं फंसोगे लू के जाल में।
अमृत समान है गन्ने का रस व मौसमी का जूस,
नारियल पानी पीकर रहना तुम गर्मियों में खुश।
भयंकर गर्मी में दही, लस्सी है बड़ी गुणकारी,
खाना पुदीने की चटनी, घिया,तौरी की तरकारी।
ककड़ी, खीरा भी है फायदेमंद इन्हें भी खाना,
बेलगिरी का रस गर्मियों में खूब पीना पिलाना।
इन बातों को अपनाकर गर्मी से बच जाओगे,
वरना डॉक्टरों की जेबें गर्म कर के आओगे।
सुलक्षणा की हाथ जोड़कर ये विनती मान लो,
पसीने में ठंडा पानी पीकर ना खुद की जान लो।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
अंदर से टूटे हुए को सहारे की जरूरत होती है।
अंदर से टूटे हुए को सहारे की जरूरत होती है।
डूबते हुए इंसान को किनारे की जरूरत होती है।
ऐसा कोई नहीं है जिसे किसी की जरूरत ना हो,
भगवान को भी भक्त न्यारे की जरूरत होती है।
माता पिता को संतान की, संतान को माता पिता की,
संकट आने पर हमें अपने हमारे की जरूरत होती है।
अमीर को सुकून भरी नींद की, भूखे को अन्न की,
सर्दी में गर्म दूध, शहद व छुआरे की जरूरत होती है।
बेटा बेटी के लिए सुथरी बहू और अच्छे दामाद की,
शादी के वक़्त दहेज़ ढ़ेर सारे की जरूरत होती है।
जन्म से लेकर मृत्यु तक जरूरतें खत्म नहीं होती,
किस्मत बदलने के लिए भी इशारे की जरूरत होती है।
जरूरतें कम कर के देखिये खुशियाँ दौड़ी आएँगी,
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में भी जयकारे की जरूरत होती है।
ख़ुशी बांटने से बढ़ती है, गम बांटने से घटता है,
इसीलिए सुलक्षणा जीवन में बंटवारे की जरूरत होती है।
छोड़ कर जातिगत आरक्षण की बैशाखी
छोड़ कर जातिगत आरक्षण की बैशाखी,
एक बार शिक्षा का दामन पकड़ कर देखो।
निजी स्वार्थों के इस टकराव को भूला कर,
स्वंय को तुम देश प्रेम में जकड़ कर देखो।
मानो तुम कहना धरती स्वर्ग सी बन जायेगी,
दिलों से नफरत का ये ज़हर मिटा कर देखो।
जातिगत आरक्षण समानता में रोड़ा बना है,
अपने उन्नति के मार्ग से इसे हटा कर देखो।
एक समान शिक्षा पद्धति को लागु करवाओ,
सबको मिले मुफ़्त शिक्षा बस ये माँग करो।
समाज में फैली ये असमानताएँ हैं मिटानी,
जातिगत आरक्षण के खिलाफ हुँकार भरो।
छियासठ साल में जो खाई पट नहीं सकी है,
शिक्षा की अलख उस खाई को पाट देगी।
जिन रूढ़िवादी बेड़ियों में जकड़े हुए हैं हम,
शिक्षा उन बेड़ियों को आसानी से काट देगी।
आने वाली पीढ़ी को क्या देना चाहते हो तुम,
यह फैसला सोच समझकर तुम्हें करना होगा।
सुलक्षणा क्या दिया आरक्षण ने जरा सोचना,
तुम्हारे गलत फैसले का दंड उन्हें भरना होगा।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
भाई संतोष तै बड़ी कमाई और कोण्या जगत म्ह।
भाई संतोष तै बड़ी कमाई और कोण्या जगत म्ह।
तेरा क्यूकर होज्या भला र तेरी नित रह ठगत म्ह।।
संतोष करणीया मानस भई कदे ना दुःख पाता।
जिसी बी परिस्थिति आज्या वो कदे ना घबराता।
हर हाल मै चौबीस घण्टे वो ईश्वर के गुण गाता।
रट उस ईश्वर नै जौं बोज्या वो आपणी अगत म्ह।।
जितनी धन माया जोड़ैगा उतना ऐ दुःखी पावैगा।
मन म्ह संतोष करकै देख न्यारा ऐ आनंद आवैगा।
संतोष बिना व्यर्था जिंदगी पाछै तै घना पछतावैगा।
इब नहीं तै समझैगा तू आपणे आखरी बखत म्ह।।
भला इसा कौन जगत म्ह जिसनै ना संतोष करा।
उसनै बी संतोष करा जिसका ऐकला लाल मरा।
कहगै बड़े बूढ़े घणी हाय हाय म्ह कीमे ना धरा।
गृहस्थ म्ह रह संतोष कर ले, के कसर स भगत म्ह।।
गुरु रणबीर सिंह प लिया ज्ञान झोली पसार कै।
जगत म्ह रहना पड़ै स कदे ना कदे मन मार कै।
ऋषि मुनि बी करैं तपस्या मन म्ह संतोष धार कै।
ज्ञान की बात पावैंगी सुलक्षणा की लिखत म्ह।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
साची बात कहै बिना मेरे प डटा जाता कोण्या।
साची बात कहै बिना मेरे प डटा जाता कोण्या।
के राह होगा स्कूलां का समझ म्ह आता कोण्या।।
सरकारी स्कूलां म्ह पहल्याँ ऐ मास्टरां का टोटा स।
ऊपर तै ये मास्टर पढ़ाते कोण्या यू दुःख मोटा स।
ध्यान देवै ना स्कूलां प सरकार का काम खोटा स।
मास्टरां प ले के दूसरे काम पढ़ाई का गल घोटा स।
स्कूलां के हित मै कोय बी आवाज उठाता कोण्या।।
ऐकले मास्टरां का दोष कोण्या सरकार बी दोषी स।
मास्टर तै क्लर्क अर चपड़ासी बना चौधर खोसी स।
सारै ढ़ाल कै काम ले के आत्मा मास्टरां की मोसी स।
सरकार कीमे ना करे जब तक छाई या ख़ामोशी स।
सब थूक बिलोवैं कोय राह की बतलाता कोण्या।।
पहली तै आठमी ताहीं रोज न्यारै व्यंजन बटैं सं।
कापी किताब, वर्दी, वजीफा मिलै न्यू साँटै सटैं सं।
नयी नयी स्कीम चला राखी फेर बी बालक घटैं सं।
कोय बता दयो सरकारी स्कूलां तै क्यूँ लोग कटैं सं।
क्यूँ कोय सरकार नै यू सारा हाल बताता कोण्या।।
सरकार नै ज़मीनी स्तर पै इब काम करना होगा।
पहल्याँ खाली पड़ै मास्टरां के पदां नै भरना होगा।
दूसरे काम ना ले के पढ़ाई का ऐ बोझ धरना होगा।
सरकार की गेल्याँ म्हारै मास्टरां नै बी सुधरना होगा।
सुलक्षणा तेरी ढालाँ खोल कै कोय सुनाता कोण्या।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
राँझे तू साचा वा झूठी
राँझे तू साचा वा झूठी,
काणे की पहरैगी गुठी,
हीर नै काणे की गेल्याँ जाना स।
इतना मन्नै तेरे ताहीं समझाना स।।
बारा साल तन्नै उसकी भैंस चरा ली,
सारी मोहब्बत हीर पै तन्नै लूटा ली,
फेर बी उसनै वरा अक्खण काणा स।
छुटण आला तेरा यू थोड़ ठिकाना स।।
राँझे मेरी बात म्ह फर्क हरगज ना पावैगा,
जाणु थी साच सुनदे कालजा हाल जावैगा,
उस काणे के कर्मा म्ह मौज उड़ाना स।
अर तेरे कर्मा म्ह राँझे धक्के खाना स।।
के सोचै हीर तन्नै सारै जहान तै खोगी,
भूल तेरी मोहब्बत वा अक्खण की होगी,
धोखा करया उसकै आगै आना स।
झूठ नहीं थूकै उसनै सारा ज़माना स।।
मन म्ह शीलक हो बड़वासनी म्ह जा कै,
गुरु रणबीर सिंह तेरा दर्द सुना दें गा कै,
सुलक्षणा का काम राह बताना स।
दूसरे की गेल्याँ के होवै धिंगताना स।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
ऐ वक़्त जरा धीरे धीरे चल
ऐ वक़्त जरा धीरे धीरे चल,
क्यों रहा है लोगों को छल,
कुछ पता नहीं चलता है तेरा,
कब आया कब गया निकल,
तेरी ये एक अदा अखरती है,
बड़े बड़ों को दे जाता है अक्ल,
बहुत से लोग पछताते रहते हैं,
उनके हाथों से तू गया फिसल,
तेरी ताकत का पता है सबको,
बड़े बड़ों का निकालता है बल,
जब वक़्त का पहिया घूमता है,
सब कुछ जाता है यहाँ बदल,
एक ही गति से चलता रहता है,
रुक नहीं सकता सत्य है अटल,
हर एक है तेरे हाथों खिलौना,
हर समस्या का है तेरे पास हल,
तेरी नब्ज को पकड़ लेता है जो,
वो होता नहीं जिंदगी में विफल,
तेरी गति से चलने वाला यहाँ,
हर एक इंसान हुआ है सफल,
तेरे साथ साथ यहाँ चलने को,
सुलक्षणा की कलम रही मचल,
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
tang
ला तेरा यू थोड़ ठिकाना स।।
राँझे मेरी बात म्ह फर्क हरगज ना पावैगा,
जाणु थी साच सुनदे कालजा हाल जावैगा,
उस काणे के कर्मा म्ह मौज उड़ाना स।
अर तेरे कर्मा म्ह राँझे धक्के खाना स।।
के सोचै हीर तन्नै सारै जहान तै खोगी,
भूल तेरी मोहब्बत वा अक्खण की होगी,
धोखा करया उसकै आगै आना स।
झूठ नहीं थूकै उसनै सारा ज़माना स।।
मन म्ह शीलक हो बड़वासनी म्ह जा कै,
गुरु रणबीर सिंह तेरा दर्द सुना दें गा कै,
सुलक्षणा का काम राह बताना स।
दूसरे की गेल्याँ के होवै धिंगताना स।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
ऐ वक़्त जरा धीरे धीरे चल,
क्यों रहा है लोगों को छल,
कुछ पता नहीं चलता है तेरा,
कब आया कब गया निकल,
तेरी ये एक अदा अखरती है,
बड़े बड़ों को दे जाता है अक्ल,
बहुत से लोग पछताते रहते हैं,
उनके हाथों से तू गया फिसल,
तेरी ताकत का पता है सबको,
बड़े बड़ों का निकालता है बल,
जब वक़्त का पहिया घूमता है,
सब कुछ जाता है यहाँ बदल,
एक ही गति से चलता रहता है,
रुक नहीं सकता सत्य है अटल,
हर एक है तेरे हाथों खिलौना,
हर समस्या का है तेरे पास हल,
तेरी नब्ज को पकड़ लेता है जो,
वो होता नहीं जिंदगी में विफल,
तेरी गति से चलने वाला यहाँ,
हर एक इंसान हुआ है सफल,
तेरे साथ साथ यहाँ चलने को,
सुलक्षणा की कलम रही मचल,
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
बाकी रही ना गात म्ह आग लागी अंग अंग मै।
जब तै सुनी तू जावैगी ब्याही काणे के संग मै।।
मेरे तै मुँह मोड़ लिया बता के खता हुई मेरी,
हीर बता मन्नै कौन सी बात ना पुगाई तेरी,
डांगर चराये थारे मन्नै अर सही गाल भतेरी,
काणा भाई बता बनाया साजन करी डूबाढ़ेरी,
कितनी तौली बदल गयी देख कै रहग्या दंग मै।।
आँसू बी ना लिकड़ते गया सुख नैन नीर मेरा,
रह रह कै याद आवैगा वो खुवाणा खीर तेरा,
कितै का ना रहा मैं, बता के बिगड़ा हीर तेरा,
बुली की बात साची होई रोता रहग्या पीर तेरा,
हाथ काँगना पैर राखड़ी बाँध भरी तू उमंग मै।।
जिसी तन्नै करी हीरे र सारी तेरे आगै आवैगी,
अक्खण के संग म्ह तू बी सुख तै ना रह पावैगी,
दुनिया नै शक्ल आपणी किस ढालाँ दिखावैगी,
दुनिया ताने मार कै हीरे तन्नै बेवफा बतावैगी,
मैं तै चाल्या जाऊँगा गेरुं ना भंग तेरे रंग मै।।
छोड़ कै तेरा ढारा इब बड़वासनी नै जाऊँगा,
गुरु रणबीर सिंह नै जा कै सारा हाल बताऊंगा,
के बीती दिल मेरे प उन नै सारा दर्द सुनाऊँगा,
हीरे तेरी बेवफ़ाई मैं सुलक्षणा प लिखवाऊँगा,
हीरे तू बी जाणै स कितना पा रहा सूं तंग मै।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
डॉ सुलक्षणा अहलावत
नेता जी म्हारा छोटा सा काम करवा दयो।
सरकारी स्कूलां कै थम तालै लगवा दयो।।
मास्टरां का यू टोटा तै थारै प दूर होता कोण्या।
बालकां की पढ़ाई की चिंता म्ह मैं सोता कोण्या।
थमनै चिंता क्यूँ होवै थी थारा कोय रोता कोण्या।
रोज रोज की लड़ाई म्ह होवै समझौता कोण्या।
राड़ तै बाड़ आछी हो यू कहण पुगवा दयो।।
मास्टरां प पढ़ाई तै न्यारे सारे काम करवाओ सो।
मिड डे मील का चार्ज दे सब्जी खरीदवाओ सो।
बना नौकर खाना खुवाये पाछै हाथ धुलवाओ सो।
सौंप कै ग्रांट मास्टरां प सारा भवन बनवाओ सो।
मास्टर बेचारां नै थम कोल्हू म्ह कै पिड़वा दयो।।
पहल्याँ तै बीएलओ बन घर घर जा वोट बनावैं।
फेर दोबारा घर घर जा कै पहचान पत्र पहोंचावैं।
इलेक्शना म्ह लागै ड्यूटी मास्टर दूर दूर जावैं।
फेर इलेक्शन होये पाछै मास्टर गिनती करवावैं।
इन बेचारे मास्टरां नै थम फाँसी तुड़वा दयो।।
सत्तर ढ़ाल के काम बेचारे मास्टर दिन रात करैं सं।
कदे क्लर्क बन अधिकारियाँ धोरै मास्टर फिरैं सं।
आरटीआई, डाक तैयार कर कर कागज भरैं सं।
आँख मीच कै सारै फरमान मानै ये इतने डरैं सं।
मास्टरां तै चपड़ासी इन नै थम बनवा दयो।।
जितनै प्रयोग करने हो सं मास्टरां प करो सो।
आपणी गलत नीतियाँ का दोष इन प धरो सो।
कदे गरीबाँ के बालक पढ़ जावैं थम न्यू डरो सो।
नीति समझ म्ह आगी क्यूँ ना खाली पद भरो सो।
सच्चाई महकमे की सुलक्षणा प लिखवा दयो।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
स्वागत है तुम्हारा मेरी दोस्ती के संसार में, कभी कमी नहीं मिलेगी यहाँ तुम्हें प्यार में। कभी तन्हा नहीं पाओगे तुम खुद को यहाँ, तड़फ उठोगे तुम अकेलेपन के इंतजार में। दुनिया को भुला दोगे तुम आज के बाद, बदलाव महसूस करोगे अपने व्यवहार में। प्यार मोहब्बत की बातें करोगे हर पल तुम, जिंदगी का मजा है एक दूसरे के ऐतबार में। नफरत के लिए कोई जगह नहीं है यहाँ पर, पर देखना आनंद आएगा तुम्हें तकरार में। हर ख़ुशी हर गम को मिलकर बाँट लेंगे, एक दूजे का साथ नहीं छोड़ेंगे मझधार में। ना कसमें खानी होंगी, ना वादे करने होंगे, बस मोल ना लगा देना दोस्ती का बाजार में। कभी भी इम्तेहान ले लेना मेरी दोस्ती का, फर्क नहीं मिलेगा सुलक्षणा के विचार में। ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
राँझे क्यूँ जुल्म गुजारै, क्यूँ जीते जी मन्नै मारै, के ख़ता होई मेरे प क्यूँ तू बोलै ना। बाहर खड़ी मैं क्यूँ फाटक खोलै ना।। भावज मेरी नै राह रोकी फेर बी मैं आई, रोज की तरियां तेरी खातर दूध मैं ल्याई, खा ले दूध मलाई, जिगर मेरा छोलै ना।। के बात हुई राँझे तू खोल मन्नै बताता ना, औरां दिन की ढालाँ भीतर मन्नै बुलाता ना, लाड़ मेरे लड़ाता ना, क्यूँ आज सर नै रोलै ना।। किसने फुक मारी तेरे जो छो म्ह होरया स, बता दे राँझे मन आपणै म्ह के लकोरया स, के साच म्ह सोरया स, जो मेरी बात गोलै ना।। ना बोल्या तै रणबीर सिंह तै शिक़ात करूंगी, ईबे टोहुँ कुआँ जोहड़ राँझे डूब कै मैं मरूँगी, किसे तै ना डरूँगी, सुलक्षणा का मन डोलै ना।। ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
स्वागत है तुम्हारा मेरी दोस्ती के संसार में, कभी कमी नहीं मिलेगी यहाँ तुम्हें प्यार में। कभी तन्हा नहीं पाओगे तुम खुद को यहाँ, तड़फ उठोगे तुम अकेलेपन के इंतजार में। दुनिया को भुला दोगे तुम आज के बाद, बदलाव महसूस करोगे अपने व्यवहार में। प्यार मोहब्बत की बातें करोगे हर पल तुम, जिंदगी का मजा है एक दूसरे के ऐतबार में। नफरत के लिए कोई जगह नहीं है यहाँ पर, पर देखना आनंद आएगा तुम्हें तकरार में। हर ख़ुशी हर गम को मिलकर बाँट लेंगे, एक दूजे का साथ नहीं छोड़ेंगे मझधार में। ना कसमें खानी होंगी, ना वादे करने होंगे, बस मोल ना लगा देना दोस्ती का बाजार में। कभी भी इम्तेहान ले लेना मेरी दोस्ती का, फर्क नहीं मिलेगा सुलक्षणा के विचार में। ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
राँझे क्यूँ जुल्म गुजारै, क्यूँ जीते जी मन्नै मारै, के ख़ता होई मेरे प क्यूँ तू बोलै ना। बाहर खड़ी मैं क्यूँ फाटक खोलै ना।। भावज मेरी नै राह रोकी फेर बी मैं आई, रोज की तरियां तेरी खातर दूध मैं ल्याई, खा ले दूध मलाई, जिगर मेरा छोलै ना।। के बात हुई राँझे तू खोल मन्नै बताता ना, औरां दिन की ढालाँ भीतर मन्नै बुलाता ना, लाड़ मेरे लड़ाता ना, क्यूँ आज सर नै रोलै ना।। किसने फुक मारी तेरे जो छो म्ह होरया स, बता दे राँझे मन आपणै म्ह के लकोरया स, के साच म्ह सोरया स, जो मेरी बात गोलै ना।। ना बोल्या तै रणबीर सिंह तै शिक़ात करूंगी, ईबे टोहुँ कुआँ जोहड़ राँझे डूब कै मैं मरूँगी, किसे तै ना डरूँगी, सुलक्षणा का मन डोलै ना।। ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
ला तेरा यू थोड़ ठिकाना स।।
राँझे मेरी बात म्ह फर्क हरगज ना पावैगा,
जाणु थी साच सुनदे कालजा हाल जावैगा,
उस काणे के कर्मा म्ह मौज उड़ाना स।
अर तेरे कर्मा म्ह राँझे धक्के खाना स।।
के सोचै हीर तन्नै सारै जहान तै खोगी,
भूल तेरी मोहब्बत वा अक्खण की होगी,
धोखा करया उसकै आगै आना स।
झूठ नहीं थूकै उसनै सारा ज़माना स।।
मन म्ह शीलक हो बड़वासनी म्ह जा कै,
गुरु रणबीर सिंह तेरा दर्द सुना दें गा कै,
सुलक्षणा का काम राह बताना स।
दूसरे की गेल्याँ के होवै धिंगताना स।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
ऐ वक़्त जरा धीरे धीरे चल,
क्यों रहा है लोगों को छल,
कुछ पता नहीं चलता है तेरा,
कब आया कब गया निकल,
तेरी ये एक अदा अखरती है,
बड़े बड़ों को दे जाता है अक्ल,
बहुत से लोग पछताते रहते हैं,
उनके हाथों से तू गया फिसल,
तेरी ताकत का पता है सबको,
बड़े बड़ों का निकालता है बल,
जब वक़्त का पहिया घूमता है,
सब कुछ जाता है यहाँ बदल,
एक ही गति से चलता रहता है,
रुक नहीं सकता सत्य है अटल,
हर एक है तेरे हाथों खिलौना,
हर समस्या का है तेरे पास हल,
तेरी नब्ज को पकड़ लेता है जो,
वो होता नहीं जिंदगी में विफल,
तेरी गति से चलने वाला यहाँ,
हर एक इंसान हुआ है सफल,
तेरे साथ साथ यहाँ चलने को,
सुलक्षणा की कलम रही मचल,
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
बाकी रही ना गात म्ह आग लागी अंग अंग मै।
जब तै सुनी तू जावैगी ब्याही काणे के संग मै।।
मेरे तै मुँह मोड़ लिया बता के खता हुई मेरी,
हीर बता मन्नै कौन सी बात ना पुगाई तेरी,
डांगर चराये थारे मन्नै अर सही गाल भतेरी,
काणा भाई बता बनाया साजन करी डूबाढ़ेरी,
कितनी तौली बदल गयी देख कै रहग्या दंग मै।।
आँसू बी ना लिकड़ते गया सुख नैन नीर मेरा,
रह रह कै याद आवैगा वो खुवाणा खीर तेरा,
कितै का ना रहा मैं, बता के बिगड़ा हीर तेरा,
बुली की बात साची होई रोता रहग्या पीर तेरा,
हाथ काँगना पैर राखड़ी बाँध भरी तू उमंग मै।।
जिसी तन्नै करी हीरे र सारी तेरे आगै आवैगी,
अक्खण के संग म्ह तू बी सुख तै ना रह पावैगी,
दुनिया नै शक्ल आपणी किस ढालाँ दिखावैगी,
दुनिया ताने मार कै हीरे तन्नै बेवफा बतावैगी,
मैं तै चाल्या जाऊँगा गेरुं ना भंग तेरे रंग मै।।
छोड़ कै तेरा ढारा इब बड़वासनी नै जाऊँगा,
गुरु रणबीर सिंह नै जा कै सारा हाल बताऊंगा,
के बीती दिल मेरे प उन नै सारा दर्द सुनाऊँगा,
हीरे तेरी बेवफ़ाई मैं सुलक्षणा प लिखवाऊँगा,
हीरे तू बी जाणै स कितना पा रहा सूं तंग मै।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
जुल्मी घूँघट
देवर भाभी की बहस
देवर- के होग्या दो दिन मैं क्यों घणा उप्पर नै मुह ठाया तनै।।
भाभी-दुनिया मैं एक इन्सान मैं भी ढंग तैं जीवणा चाहया मनै।।
देवर
बता भाभी गाम की इज्जत यो घूंघट नहीं सुहावै क्यों
रिवाज नीची नजर तैं जीने का आंख तैं आंख मिलावै क्यों
उघाड़े सिर चालै गाम मैं सरेआम म्हारी नाक कटावै क्यों
सीटी मारैं कुबध करैं हाथ भिरड़ां के छते तों लगावै क्यों
बहू सजै ना घूंघट के बिना बिन बूझें तार बगाया तनै।।
भाभी
रिवाजां की घाल कै बेड़ी क्यों बिठा करड़ा डर राख्या
दुभान्त जिन रिवाजां मैं उनका भरोटा सिर पै धर राख्या
घूंघट का रिवाज घणा बैरी ईनै पंख म्हारा कुतर राख्या
कान आंख नाक मुह बांधे ज्ञान दरवाजा बन्द कर राख्या
घूंघट ज्ञान का दुश्मन होसै पढ़ लिख कै बेरा लाया मनै।।
देवर
क्यूकर ज्ञान का दुश्मन सै तूं किसनै घणी भका राखी सै
तेरै अपनी बुद्धि सै कोन्या चाबी और किसे नै ला राखी सै
घंूघट तार कै पूरे गाम मैं ईज्जत धूल मैं खिंडा राखी सै
सारा गााम थू थू करता घर घर तेरी बात चला राखी सै
उल्टे रिवाज चला गाम मैं यो कसूता तूफान मचाया तनै।।
भाभी
ब्याह तैं पहलम तेरे भाई तैं घूंघट की खोल करी थी
कही और सोच समझल्यां उनै ब्याह की तोल करी थी
मनै सारी बात साफ बताई इनै ल्हको कै रोल करी थी
रणबीर सिंह गवाह म्हारा मनै कति नहीं मखौल करी थी
साची साच बताई सारी देवर कति ना झूठ भकाया मनै।।
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