Saturday, 30 May 2015

खेल मीडिया   का
मीडिया एक इसा बाजार तंत्र सै जिसकी दिशा निर्धारित करी जावै सै अर इसकी या दिशा लाभ मतलब मुनाफा ए या दिशा तय करै सै | मीडिया का मालिक मीडिया की विषय वस्तु मतलब इसकी सामग्री नै तय करै सै | लोगां कै  कोए  बात जंचावन की खातिर यो मीडिया खास ढंग तैं प्रोपगंडा कहो या प्रचार कहो करै सै | मीडिया की तासीर समझान की खातिर कई  छालनीयाँ महँ कै छानना पडै  सै | 
पहली छालनी सै पीस्सा ------ मालिक का पीस्सा मीडिया मैं ला गै सै | उसका मकसद सै लाभ कमाना | मीडिया के मालिक घने ओन्य क्योंकी यूं बड़े धन्ना से ठों  का खेल सै   जो घने कोन्या | कम्पीटीसन माडा काम सै इस धंधे मैं | 
दूसरी छालनी सै विज्ञापन ------ आमदनी का तगड़ा साधन सै विज्ञापन | विज्ञापन पीस्सा तो कमा वै ए सै फेर और के के गुल खिलावै  सै या न्यारी बात सै | इस्पे फेर कदे सही |
तीसरी छालणी सै जानकारी अर उस पै भरोसा ---- या जानकारी , सरकार व्यवसाय और विशेषज्ञ  की तिकड़ी मिलके बनै सै | 

साथ तुम्हारा इन्कलाब नारा इस कदर भा गया 
मकसद वीरान जिन्दगी का जैसे फिर से पा गया 
मोम के घरों में बैठे लोग हमारे घर जलाने आये 
जला दिए हमारे मग़र अपने भी ना बचा पाये 
तबाह कर दिया जहान को मुनाफा हमें खा गया 
रास्ता ही गल्त पकड़ा हमें भी उसी पर चलाया है 
स्वर्ग नर्क के पचड़े में तुम्हीं ने हमको  फंसाया है  
भगवान और बाबाओं का खेल समझ में आ गया 
आशा बाबू एक  प्रवचन के कई लाख कमाते हैं 
निर्मल बाबू नकली लोग पैसे दे कर के  बुलाते हैं 
भगवान की आड़ में मुनाफा दुनिया पर छा गया 

फागन

फागन का महीना आ जता है | फ़ौजी को छुटी नहीं मिलती | तो उसकी घरवाली उसको कैसे संबोधन करती है 

मनै पाट्या कोन्या तोलक्यों करदी तनै बोल
नहीं गेरी चिठ्ठी  खोलक्यों सै छुट्टी मैं रोळ
मेरा फागण करै मखोलबाट तेरी सांझ तड़कै।।

या आई फसल पकाई पैदुनिया जावै  लाई पै
लागै दिल मेरे पै चोटक्यूकर ल्यूं  इसनै ओट
सोचूं खाट के मैं लोटतूं कित सोग्या पड़कै।।

खेतां मैं मेहनत करकैरंज फिकर यो न्यारा धरकै
लुगाइयां नै रोनक लाई_ी हो बुलावण आई
मेरी कोन्या पार बसाईतनै कसक कसूती लाई
पहली दुलहण्डी याद आईमेरा दिल कसूता धड़कै।।

इसी किसी तेरी नौकरीकुणसी अड़चन तनै रोकरी
अमीरां के त्योहार घणे सैंम्हारे तो एकाध बणे सैं
खेलैं रळकै सभी जणे सैंबाल्टी लेकै मरद ठणे सैं
मेरे रोंगटे खड़े तनै सैंआज्या अफसर तै लड़कै।।

मारैं कोलड़े आंख मीचकैखेलैं फागण जाड़ भींचकै
उड़ै आग्या था सारा गामपड़ै था थोड़ा घणा घाम
पाणी के भरे खूब ड्रामदो तीन थे जमा बेलगाम
मनै लिया कोलड़ा थाममारया आया जो जड़कै।।

पहल्यां आळी ना धाक रहीना बीरां की खुराक रही
तनै मैं नई बात बताऊंडरती सी यो जिकर चलाऊं
रणबीर पै बी लिखवाऊंहोवे पिटाई हर रोज दिखाऊं
कुण कुण सै सारी गिणवाऊंनहीं खड़ी होती अड़कै।।


हाल किसान का

हाल किसान का 
अँधेरा दीखै चारों कांही कद आवैगा म्हारा सबेरा ॥ 
तीजा अध्यादेश कहते यो खोलै किसान का घेरा ॥ 

ट्रेक्टर की बाही मारै  ट्यूबवैल का रेट  सतावै
थ्रेशर की कढ़ाई मारै  भा फसल का ना थ्यावै
फल सब्जी ढूध  सीत सब ढोलां मैं घल ज्यावै
माटी गेल्याँ माटी होकै बी सुख का साँस ना आवै
बैंक मैं सारी धरती जाली दीख्या चारों कूट अँधेरा॥ 
तीजा अध्यादेश कहते यो खोलै किसान का घेरा ॥ 
 
निहाले पै रमलू तीन रूपया सैकड़े पै ल्यावै
वो साँझ नै रमलू धोरे दारू पीवन नै आवै
निहाला कर्ज की दाब मैं बदफेली करना चाहवै
विरोध करया तो रोज पीस्याँ की दाब लगावै
बैंक अल्यां की जीप का बी रोजाना लग्या फेरा॥ 
तीजा अध्यादेश कहते यो खोलै किसान का घेरा ॥ 

बेटा बिन ब्याह हाँडै सै घर मैं बैठी बेटी कंवारी
रमली रमलू नयों बतलाये मुशीबत कट्ठी  होगी सारी 
खाद बीज नकली मिलते होगी ख़त्म सब्सिडी  म्हारी
माँ टी बी की बीमार होगी बाबू कै दमे  की बीमारी
रौशनी कितै दीखती कोन्या घर मैं टोटे का डेरा॥ 
तीजा अध्यादेश कहते यो खोलै किसान का घेरा ॥ 
 
माँ अर बाबू म्हारे  नै  यो जहर धुर की नींद सवाग्या
माहरे घर का जो हाल हुआ वो सबके साहमी आग्या  
जहर क्यूं खाया उनने यो सवाल कचौट कै खाग्या   
म्हारी कष्ट कमाई उप्पर कोए दूजा दा क्यों लाग्या
कर्जा बढ़ता गया म्हारा मरग्या रणबीर सिंह कमेरा ॥ 
 तीजा अध्यादेश कहते यो खोलै किसान का घेरा ॥