Tuesday, 26 April 2016

तुम क्या जानो क्या क्या देखा है मैंने,

तुम क्या जानो क्या क्या देखा है मैंने, भूख से बिलखते बच्चे को देखा है मैंने, पल पल तड़पते बच्चे को देखा है मैंने। पानी पिलाकर बहलाती हुई माँ देखी है, यहाँ भूख से मरते बच्चे को देखा है मैंने। चंद सिक्कों में ज़मीर बिकते देखे हैं मैंने, छोटी बातों पर अमीर बिकते देखे हैं मैंने। रात के अँधेरों में क्या दिन के उजालों में, आत्मा मार कर शरीर बिकते देखे हैं मैंने। रोड़ पर भीख माँगते हुए बच्चे देखे हैं मैंने, गरीब, अमीरों से ज्यादा सच्चे देखे हैं मैंने। जो करते हैं बड़ी बड़ी बातें दिखावे के लिए, अक्सर उनके ही इरादे कच्चे देखे हैं मैंने। धर्म के ठेकेदारों को लूटते हुए देखा है मैंने, नेताओं को वादों से हटते हुए देखा है मैंने। जाति के ठेकेदारों को दँगे भड़काते देखा, आम जनता को यहाँ पिटते हुए देखा है मैंने। न्याय की जगह पर अन्याय होते देखा है मैंने, दोषी को हँसते, निर्दोष को रोते देखा है मैंने। ऐ दोस्त! पैसे का बोलबाला है पूरी दुनिया में, यहाँ घोड़ों को भी वजन ढ़ोते देखा है मैंने। पल पल रिश्तों को दागदार होते देखा है मैंने, यहाँ इंसानियत को शर्मसार होते देखा है मैंने। स्वार्थ से बढ़कर कुछ नहीं अहमियत रखता, बात बात पर यहाँ व्यापार होते देखा है मैंने। हर रोज आँखों से गायब होती शर्म देखी है मैंने, दौलत के लिए बेवफ़ा होती सनम देखी है मैंने। बेपरवाह होकर सच को सामने लाने के लिए, आग उगलती सुलक्षणा की कलम देखी है मैंने। ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

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