Tuesday, 13 September 2016

देखियो के होगा

वार्ता : एक दिन चाँदकौर खरखौदे से बच्चों के लिए कुछ सामान
लेने गई तो वहाँ पर चर्चा थी डब्ल्यू टी ओ की। एक थ्री व्हीलर में
 माइक पर कहा जा रहा था - किसान सभा की तरफ से जलसा
 होगा जिसमें डब्ल्यू टी ओ पर बातचीत रखी जायेगी। वहां माइक
 पर चांदकौर ने एक गीत भी सुना जिसके बोल थे:
डब्ल्यू टी ओ नै म्हारे देश के कति बिगाड़े हाल,
देखियो के होगा।।
म्हारे खेत उजाड़ दिए और किसान मार दिया धरती कै
बिकवा खिड़की किवाड़ दिए दिवाला पिटग्या सरती कै
किसान छोडे ना किसे दीन के इसी बिगाड़ी चाल
देखियो के होगा।।
कमाँ कमाँ कै खेतां मैं मर लिए लूट कै पैप्सी कोला लेग्या
पलंग  निवारी देऊँगा कैहकै यो खोस म्हारा खटोला लेग्या
दो किल्ले आला जकड़ दिया बिछाकै इसनै जाल
देखियो के होगा ।।
भारत की सरकार पसार रही अमरीका आगै झोली देखो
इसे चश्में चढ़ाये अमरीका नै ना दीखै उसकी रोली देखो
डब्ल्यू टी ओ नै पाड़ लिए म्हारे सिर के सारे बाल
देखियो के होगा।।
कपास पीटी धान पीट दिया गेहूं पिटण की बारी सै
नौकरी खोसी धंधे चौपट हमला इसका भारी सै
रणबीर सरकार नै गोड्डे टेके बणगी जमा दलाल
देखियो के होगा ।।

ईब मैं खेलूं खूनी फाग।।

चोट
या चोट मनै ,गई घोट मनै,गई फिरते जी पै लाग
ईब खेलूं मैं खूनी फाग।।
चाला होग्या गाला होग्या क्यूकर बात बताऊँ बेबे
इज्जत गंवाई चिंता लाई क्यूकर ज्यान बचाऊँ बेबे
डाकू लुटेरे फिरैं घनेरे क्यूकर गात छिपाऊं बेबे
देख अकेली करी बदफेली क्यूकर हालात बताऊँ बेबे
ना पार बसाई नहीं रोटी भाई मेरै सुलगै बदन मैं आग
ईब मैं खेलूं खूनी फ़ाग ।।
के बुझेगी भाण राहन्दे काटूँ दिन मर पड़कै हे
दिन रात परेशान हुई मैं रोऊं कोठे मैं बड़कै हे
बात बणी घणी कसूती मेरे भीतर मैं रड़कै हे
रामजी किसा खेल रचाया सोचूँ खाट मैं पड़कै हे
ये उल्टा धमकावैं मनै कुलटा बतावैं उसनै कहैं ये बेदाग
ईब मैं खेलूं खूनी फ़ाग ।।
जिस देश मैं नहीं करते सही सम्मान लुगाई का
उस देश का नाश लाजमी जड़ै अपमान लुगाई का
सारी उम्र भज्या रामजी नहीं भुगतान दुहाई का
घणा अष्टा बना दिया सै यो इम्तिहान लुगाई का
मैं तो मरली दिल मैं जरली ल्याऊं नाश जले कै झाग
ईब मैं खेलूं खूनी फाग।।
राम गाम सुनता होतै हम कति ज्यान तैं मरली
औरत ईब्बे और सताई जा या मेरे दिल मैं जरली
सबला लूटी अबला लूटी बना दासी घर मैं धरली
इबै तो और सहना होवैगा रणबीर के इतने मैं सरली
होंठ सीऊं कोण्या चुप जीऊँ कोण्या तेरा करूं सामना निर्भाग
ईब मैं खेलूं खूनी फ़ाग ।।

शहीद भगत सिंह

आज ही शहीद भगत सिंह पर रचित एक रागनी::
भगतसिंह नै अपनी निभाई ईब हम अपनी निभावांगे ।।
इंसानियत का विचार उनका पूरी दुनिया मैं पहोंचावांगे।।
इंसानियत भूलकै समाज हैवानियत कान्ही चाल पड़या
शोषण रहित समाज का सपना चौराहे पै बेहाल खड़या
थारा संगठन जिस खातर लड़या उस विचार का परचम फैहरावांगे।।
तेईस साल की कुल उम्र चरों कान्ही तैं इतना ज्ञान लिया
बराबर हों इंसान दुनिया के मिलकै तमनै ब्यान दिया
मांग महिला का सम्मान लिया थारी क्रांति का झंडा लैहरावांगे।।
हंसते हंसते फांसी चूमगे इंकलाब जिंदाबाद का नारा लाया
बम्ब गैर कै एसैम्बली मैं नारा अंग्रेजां कै था याद दिलवाया
मिलकै सबनै प्रण उठाया गोरयां नै हम बाहर भजावांगे।।
जेल मैं पढी किताब के थोड़ी नोट किया सब डायरी मैं
आतंकवादी का मतलब समझां फर्क समझां क्रांतिकारी मैं
कहै रणबीर बरोने आला घर घर थारा सन्देश लेज्यावांगे।।
11.9.2016

हिटलर के तम्बू में नागार्जुन


अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून ।
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून।
छाँट रहे थे अब तक बस वे बड़े बड़े कानून ।
नहीं किसी को दीखता था दूधिया वस्त्र पर खून।
अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून।
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून।
मायावी हैं,बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मन्द।
तक्षक ने सिलाए उनको 'सर्प नृत्य' के  के छंद।
अजी ,समझ लो उनका अपना नेता था जयचन्द।
हिटलर के तम्बू में अब वे लगा रहे पैबंद।
मायावी हैं, घाघ हैं, उन्हें न समझो मन्द।

हमेशा

हमने तो सहारा ही दिया हमेशा
तुमने तो उल्हाणा ही दिया हमेशा
कोई बात नहीं फितरत है आपकी
हमने तो किनारा ही दिया हमेशा

हमको मारके

हमको मारके तुम भी जिन्दा रह नहीं सकते
मगर यह सच तुम कभी कह नहीं सकते
यह मालूम तो है तुमको भी हमको भी
तुम इंसानियत के रास्ते कभी सह नहीं सकते

पैर की जूती बताई महिला ----------

सारे मिलकै सोचां बैठके या सती प्रथा गल्त बताई क्यों ।।
पैर की जूती बताई महिला इंसान नहीं या दिखाई क्यों ।।
सती नहीं होंति आज कोय बी धर्म तो डूब्या कोण्या भाई
महिला के पढ़ने पर रोक सदियों से थी कहैं लगाई
राष्ट्रपति बी बनी औरत ना धर्म पै संकट छाई क्यों।।
पैर की जूती बताई महिला ----------
शुद्र पढ़ाई कै नेड़ै नहीं जावैगा ऐसा म्हारे ग्रन्थ लिखते
घर आना कूंए पै चढ़ना मना गल्ती करते तो पिटते
शुद्र की शिक्षा पर पाबन्दी धर्म ठेकेदारां नै लाई क्यों।।
पैर की जूती बताई महिला ----------
मकान मन्दिर तैं ऊंचा बनाना रिवाजों खिलाफ बताया
बड़े बड़े टावरां के मालिक आज धर्म का बीड़ा ठाया
बदलाव आये धर्मों मैं बदल की रीत बिसराई क्यों।।
पैर की जूती बताई महिला ----------
धार्मिकता और धर्मान्धता मैं फर्क समझना होगा भाई
धर्म व्यक्तिगत मसला सै तर्क समझना होगा भाई
धर्मान्धता विकास की बैरी धार्मिकता गयी दबाई क्यों ।।
पैर की जूती बताई महिला ----------

रोबसन


वो हमारे गीत क्यों रोकना
चाहते हैं
नीग्रो भाई हमारे पौल रोबसन
हम अपनी आवाज उठा रहे हैं
वो नाराज क्यों
नीग्रो भाई हमारे पौल रोबसन
वो डरते हैं जिंदगी से
वो डरते हैं मौत से
वो डरते हैं इतिहास से
वो डरते हैं रोबसन से
वो हमारे कदमों से डरते हैं
वो हमारी आँखों से डरते हैं
जनता की चेतना से डरते हैं रोबसन
वो क्रान्ति की गर्जना से डरते हैं
रोबसन, रोबसन ,नीग्रो भाई हमारे

धरती जागी चिंता खागी

रणसिंह और कमला की बातचीत 1986 -87 , के दौर में -----
रणसिंह : कुड़की आगी जर्दी छागी नाश हों मैं कसर नहीं ।।
कमला  : धरती जागी चिंता खागी डले ढोंण मैं बिसर  नहीं।।
रणसिंह : कोए मखौल उड़ावै म्हारा कसूता मारै कोए तान्ना
कोए घणी दया दिखावै कहै मत दे कोए आन्ना
दारू मैं क्यूँ पीग्या धरती सोध्या नहीं कोए रकान्ना
उल्टी सीधी चर्चा चालै नहीं ख़ाली कोए खान्ना
सुणले कमला आया हमला आज मरण मैं कसर नहीं।।
कमला :
चालीस बरस तैं देखूँ म्हारी खाल उतारी जा सै
मण्डी फेर होज्या ठंडी न्यों कमाई सारी जा सै
म्हारी कीमत दूजा लावै म्हारी अक्कल मारी जा सै
कुआँ झेरा टोहना होज्या कोण्या पार हमारी जा सै
फटे  हालां टुटी चालां होवै दिल मैं सबर नहीं ।।
रणसिंह :
 कारखाने मैं आवै टोट्टा नहीं सरकार नीलम करै
चलावैं दूनी पूंजी लाकै न्यों पूरा इंतजाम करै
चालें पाछै उल्टा देवै मालिक के गोदाम भरै
भा बी थोड़ा कुड़क धरती गेल डिफाल्टर नाम धरै
जीते कोण्या मरते कोण्या यो तो किमै बसर नहीं।।
कमला :
 क्यों माड़ा मन कररया धरती अपनी बचाणी सै
आड़ै हम ऐकले कोण्या मिलकै अलख जगाणी सै
गाम गाम कुड़की आरी सै सही गलजोट बनाणी सै
आप्पा मारें पार पड़ैगी साच्ची बात समझाणी सै
हों किसान करजवान कट्ठे और कोए तो डगर नहीं।।
रणसिंह:
आंसू आरे धीर बंधावै ईब तक हिम्मत हारी ना
कुड़की  नहीं होण दयूं कहै सस्ती लाश हमारी ना
क्यों खामखा पागल होरी जावै आज पार हमारी ना
रणबीरसिंह खड़े  लखावां बरोणा बूझै जात हमारी ना
कित सैं लाल हरियाणे के कानां गई के खबर नहीं ।।

मार महंगाई की

रणबीर एक गरीब किसान परिवार से है । दो एकड़ जमीन है। गुजारा मुश्किल से कर पाते हैं । चंदकौर वैसे तो बी ए पास है और समझदार भी  बहुत है मग़र विवाह के बाद परिवार की जिम्मेदारियों ने उसे जवान उम्र में भी ढली उम्र की महिला बना दिया है ।चारों तरफ महंगाई ने तबाही मचाई है । बच्चों की पढ़ाई महंगी , बीमारी की दवाई महंगी ।एक दिन वह बुग्गी पर खेत जाते जाते सोचने लगती है :-
टेक:  म्हारे ऊपर पड़न लागरी कसूती मार महंगाई की ।।
म्हारे सिर कै  ऊपर लटकै तलवार महंगाई की ।।
1  गरीब आदमी कित जावै क्यूकर करै गुजारा यो
गरीबों को बास्टर्ड  कहते हमतैं करैं किनारा यो
लूट लिया धन म्हारा यो बधा कै रफ़्तार महंगाई की।।
2  म्हारे देश पै पड़री सै मार अमरीका की
करनी होगी मिलकै हमनै अर्थी त्यार  अमरीका की
होज्या हार अमरीका की नहीं जावै पार महंगाई की ।।
3  राज के भूखयां नै बेच दिया सब सम्मान दखे
सिर कटवा कै भी राखां हम देश की श्यान दखे
आड़ै बढ़िया इंसान दखे रोकेंगे सरकर  महंगाई की।।
4   इस महंगाई मैं देखो यो सारा संसार करहावै सै
म्हारी किस्मत मैं लिख राख्या झूठ बहकावै सै
रणबीर सिंह समझावै सै भूंडी कार महंगाई की ।।

चूट चूट कै खागे हमनै.........

बारा बाट
 ईब होगे बारा बाट कसूते होती कितै सुनाई ना।
चूट चूट कै खागे हमनै मिलती कितै दवाई ना।
1 जिन सरमायेदारां नै गौरे झूठी चा पिलाया करते
जी हजूरी फितरत उनकी जमकै टहल बजाया करते
बड्डे चौधरी साँझ सबेरै ललकै पैर दबाया करते
राय साहब कोय सर की न्यों पदवी पाया करते
आज मालिक बने देश के समझी हमनै चतराई ना।।
चूट चूट कै खागे हमनै.........
कुल सौ बालक म्हारे देश के दो कालेज पढ़ण जावैं सैं
पेट भराई मिलै तीस नै सत्तर भूखे क्यों सो जावैं सैं
बिना नौकरी ये छोरे गाभरू आपस मैं नाड़ कटावैं सैं
काले जबर कानून बनाकै म्हारे होंठ सीमणा चाहवैं सैं
नब्बै की रेह रेह माटी देखी इसी तबाही ना।।
चूट चूट कै खागे हमनै.........
बेकारी महंगाई गरीबी तो कई गुणा बढ़ती जावैं रै
जब हक मांगें कट्ठे होकै वे तान बन्दूक दिखावैं रै
साहूकार हमनै बाँटण नै नई नई अटकल ल्यावैं रै
म्हारी जूती सिर भी म्हारा न्यों म्हारा बेकूफ बणावैं रै
थोथा थोथा पिछोड़ दे सारा छाज इसी अपनाई ना ।।
चूट चूट कै खागे हमनै.........
इतनी मैं नहीं पार पड़ी दस नै जुल्मी खेल रचाया यो
नब्बै की कड़ तोड़न खातर तीनमुहा नाग बिठाया यो
निरा देसी साहूकारा लूटै एक फण इसा बनाया यो
दूजा फन सै थोड़ा छोटा उसपै बड्डा जमींदार टिकाया यो
तीजे फन फिरंगी बैठ्या जिसकी कोय लम्बाई ना।।
चूट चूट कै खागे हमनै.........
इस तरियां इन लुटेरयां नै नब्बै हाथ न्यों बाँट दिए
लालच देकै सब जात्यां मैं अपने हिम्माती छांट लिए
उडारी क्यूकर भरै मैना धर्म की कैंची तैं पर काट दिए
हीर अर राँझयां बिचाळै देखो अखन्न काने डाट दिए
नब्बै आगै दस के करले इसकी नापी गहराई ना ।।
चूट चूट कै खागे हमनै.........
हजार भुजा की या व्यवस्था नहीं म्हारी समझ मैं आवै
एक हाथ तैं कड़ थेपड़ दे दूजे तैं गल घोटना चाहवै
करनी होगी जमकै पाले बंदी रणबीर बरोने मैं समझावै
नब्बै का जब डंका बाजै दस की ज्याण मरण मैं जावै
दस की पिछाण करे पाछै मुश्किल कति लड़ाई ना।।
1988 में छपी
1986 में लिखी थी
पेट को रोटी नहीं हाथ को काम नहीं
नयी नीतियों के आ तहे परिणाम यही
न्यों कहते पिस्से आले दखे यो कररया सै घणी अंघाई........
भा घणे चढ़ा दिए तो यो गरीब के खावैगा सुनिए भाई ..........
काम न करता ताश खेलै या दारू उसके घर मैं छाई ..........
कर्म कर फल की चिंता ना कर कमेरे तैं गीता पढ़ाई..........

द्रोपदी चीर हरण


द्रोपदी चीर हरण  पै महा भारत संग्राम हुया सुनाया।।
आज लाखां द्रोपदी लूटी जां कृृष्णजी नहीं टोहया पाया।।
द्रोपदी को जुए पै लाणे की हमनै या संस्कृृति सिखावै सै
पांचां की एक बहू होगी या महाभारत हमनै समझावै सै
महाभारत महाकाव्य मैं द्रोपदी को न्याय नहीं दिलवाया।।
द्रोपदी चीर हरण  पै ........................
महा भारत मैं द्रोपदी गेल्यां बहोत बुरा व्यवहार हुया
आज घणे अत्याचार बढ़े महिला विरोधी संसार हुया
धुर तैं महिला निशाने पै मनुवाद नै कहर घणा ढाया।।
द्रोपदी चीर हरण पै..........................
महिला विरोधी माहौल तैं आज लड़ना घणा जरुरी सै
मिलै बरोबर का दरजा कैसे क्यों सताई जावै नूरी सै
संघर्ष करकै हक पावांगे दूर करां अंधविश्वासी छाया।।
द्रोपदी चीर हरण  पै .......................
सामाजिक न्याय का मसला आज पूरे भारत मैं उठावांगे
किसान मजदूर को सम्मान मिलै इसा राज हम ल्यावांगे
महाकाव्य महाभारत आज किसनै यो सै इतिहास बताया।।
द्रोपदी चीर हरण  पै........................
कौनसी परम्परा रुढिवादी सै कौनसी सै जन हितकारी
इसपै बहस चलानी होगी ना तो नुकसान होवैगा भारी
रणबीर सिंह सोच समझ कै द्रोपदी का प्रसंग ल्याया।।
द्रोपदी चीर हरण  पै......................

दो सितम्बर

दो सितम्बर की हड़ताल होगी सुण मोदी नम्बरदार दखे।
जन विरोधी नीतियों का मतना बन मोदी थानेदार दखे।
साँझा संघर्ष कामयाब होगा नारा इंकलाब जिंदाबाद का
दो तारीख नै लाखों कर्मचारी लावें नारा मोदी मुर्दाबाद का
कितना समझाया मत बन कॉर्पोरेट का मोदी ताबेदार दखे।
जन विरोधी नीतियों का मतना..............
आकै बदेशी कम्पनी खातर पूरे दरवाजे खोल दिए
मजदूरों का ख्याल नहीं तन्खा म्हारी पै हमले बोल दिए
उनके लाखां करोड़ माफ़ म्हारै देवै क्यों मोदी बुहार दखे।
जन विरोधी नीतियों का मतना............
विकास के नाम पै विनाश करण का पूरा ठेका ठाया
असली बातां तैं ध्यान हटा गऊ गीता धर्म उन्माद ल्याया
लफ्फाजी की हद बेक़सूर नै बतावै मोदी गुनहगार दखे।
जन विरोधी नीतियों का मतना..........
न्यूनतम वेतन ठारा हजार मांग सभी मजदूरों की है
बेरोजगारी भत्ता की मांग बेरोजगार  मजबूरों की है
घोषणा पत्र वायदे भूल बण्या उनका मोदी मददगार दखे।
जन विरोधी नीतियों का मतना...........

कण कण मैं बसै ......

त्याग तपस्या जनसेवा हरेक धर्म का सार बताया रै।।
कण कण मैं बसै रामजी किसनै पत्थर पूजवाया रै।।
कौनसे धर्म मैं लिख दिया दूजे धर्म तैं लोगो घृणा करो
अपने नै महान बताओ दूजे धर्म के ऊपर नाम धरो
उसको ढूंढ़ो अपने अंदर  मुक्ति का यो राह दिखाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
समाज सुधरै जीवन सुधरै है धर्मों का अंजाम यही
फेर क्यों मारकाट धर्मों पै कबीर नै दी  पैगाम यही
सूफी संतों नै अंधभक्तों को यो रास्ता सही समझाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
प्यार से सब रहते आये हैं गंगा जमुनी संस्कृति म्हारी
अंग्रेजों नै बांटो राज करो करी सोच समझ कै त्यारी
धार्मिक कट्टरता नै मानस दुनिया का आज कँपाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
धार्मिकता के सिद्धान्त सारे  धर्मों के कुछ लोग भूले
एक दूजे तैं नफरत करो की मारा मारी मैं क्यों झूले
धर्म व्यक्तिगत मसला सै पां क्यों राजनीति मैं फंसाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
इंसान पैदा हुया फेर सहज सहज जीवणा सिख्या
आग वायु देवता बनाये जब राह कोए  नहिं दिख्या
कुदरत का खेल यो सारा धर्मां नै अपना खेल रचाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
धर्मान्धता और रूढ़िवाद नै कब्जा आज जमा लिया
सहज सहज इसे करकै कुलदीप नास्तिक बना दिया
साम्प्रदायिक दंगो मैं जो मरे उनका ना हिसाब लगाया रै।।

जो रुकै नहीं

जो रुकै नहीं, जो झुकै नहीं ,जो दबै नहीं, जो मिटै नहीं
हम वो इंकलाब रै, जुल्म का जवाब रै
हर शहीद का, हर रकीब का,हर गरीब का, हर मुरीद का
हम बनैं ख्वाब रै, हम खुली किताब रै
लड़ते हम इसके लिए प्यार जग मैं जी सकै
आदमी का खून कोय शैतान नहीं पी सकै
मालिक मंजूर के,नौकर हजूर के, रिश्ते गरूर के,जलवे शरूर के
ईब छोडै नवाब रै,शरूर और शराब रै
हम मानैं नहीं हुक्म जुल्मी हुक्मरान का
युद्ध छिड़ लिया आज आदमी शैतान का
सच की ढाल , ले कै मशाल,हों ऊंचे ख्याल, करैं कमाल
खिलै लाल गुलाब रै,सीधा हो जनाब रै
मानते नहीं हम फर्क हिन्दू मुस्लमान का
जानते हम तो रिश्ता इंसान से इंसान का
जो टूटै नहीं, जो छूटे नहीं, जो रुठै नहीं,जो चूकै नहीं
ना चाहवै ख़िताब रै, बरोबर का हिसाब रै।।

जो रुकै नहीं

जो रुकै नहीं, जो झुकै नहीं ,जो दबै नहीं, जो मिटै नहीं
हम वो इंकलाब रै, जुल्म का जवाब रै
हर शहीद का, हर रकीब का,हर गरीब का, हर मुरीद का
हम बनैं ख्वाब रै, हम खुली किताब रै
लड़ते हम इसके लिए प्यार जग मैं जी सकै
आदमी का खून कोय शैतान नहीं पी सकै
मालिक मंजूर के,नौकर हजूर के, रिश्ते गरूर के,जलवे शरूर के
ईब छोडै नवाब रै,शरूर और शराब रै
हम मानैं नहीं हुक्म जुल्मी हुक्मरान का
युद्ध छिड़ लिया आज आदमी शैतान का
सच की ढाल , ले कै मशाल,हों ऊंचे ख्याल, करैं कमाल
खिलै लाल गुलाब रै,सीधा हो जनाब रै
मानते नहीं हम फर्क हिन्दू मुस्लमान का
जानते हम तो रिश्ता इंसान से इंसान का
जो टूटै नहीं, जो छूटे नहीं, जो रुठै नहीं,जो चूकै नहीं
ना चाहवै ख़िताब रै, बरोबर का हिसाब रै।।

कोन्या दूर सवेरा


कुछ लोग बातां की खावैं , भूखा मरै कमेरा।
बाँध जूड़ कै लछमी गेरी, दिया चौगिरदें घेरा।।
शहीदां नै लहू बहा, आजादी की राह बनाई,
गद्दी पै गद्दारां नै,ईब आण जमा लिया डेरा।
पहचान अंधेरों म्हां अपणी, खोती जारी सै,
नेता जी दावा कर रे, सब मेट दिया अँधेरा।
अपणी अक्ल लड़ाई ना, चले सदा इशारों म्हां,
अंधविश्वासों नै घर म्हां , घोट दिया दम तेरा।
थोड़ी दूर तक होर चाल , मंजिल आगी नेड़ा,
पूर्व म्हां लाली दीखै सै, कोन्या दूर सवेरा।
रामेश्वर की बातां पै, यकीन कर ना भाई रै,
क्यूँ झाँके दर पीर का , क्यूँ झाँके तू डेरा ।

के लेज्यागा


जो आया दुनिया के म्हां उनै पड़ै लाजमी जाणा हो।
सुरग नरक किसनै देख्या बस होसै फर्ज पुगाणा हो।
बीर मर्द तै हो उत्पत्ति या जानै दुनिया सारी सै
पांच भूत के योग तैं या बणी सृष्टि म्हारी सै
या तासीर खास योग की जीव मैं होवै न्यारी सै
मिजाज जिब बिगड़ै योग का जीव नै हो लाचारी सै
इस गड़बड़ नै मौत कहैं हो सांस बन्द जब आणा हो।1।
पहले जन्म मैं जिसे करे कहैं इस जन्म मैं भुक्तै
इस जन्म मैं जिसे करै कहैं अगले कै म्हां निबटै
दोनों बात गल्त लागैं क्यों ना इसका इसमैं सिमटै
साहमी हुये की चिंता ना क्यों बिना हुये कै चिपटै
इसे जन्म का रोल्ला सारा बाक़ी लागै झूठा ताणा हो।2।
मनुष्य सामाजिक जीव कहैं बिन समाज डांगर होज्या
लेकै समाज पै चाहिए देना बिन इसके बांदर होज्या
माली बिना बाग़ और खेती बिन पानी बांगर होज्या
मरकै कोए ना उल्टा आया जलकै पूरा कांगर होज्या
साइंस नै बेरा पाड़ लिया इब छोडां ढंग पुराणा हो।3।
आच्छे भूंडे करमां करकै या दुनिया हमनै याद करै
या गुणी के गुण गावै आड़ै पापी कन्स की याद तिरै
यो शरीर जलकै बनै कार्बन प्यारा कर कर याद मरै
मेहर सिंह फौजी बरोने का रणबीर करता याद फिरै
करमां आला ना कदे मरै ना पाले राम का गाणा हो।4।
किसान धरती कई मारया पूंजी नै चौपड़ सार बिछाई ............
कई लाख फाँसी खागे या सरकार बहरी हुई बताई .............
खेती करना काम करड़ा यो नहीं सबके बसका भाई...........
किसान घणी मेहनत करै मण्डी कोण्या काबू आई...........

किरण

किरण -- एक प्रवाशी परिवार के बारे एक रागनी। क्या बताया भला--
बिहार तैं चालकै आये साँ हरियाणा मैं काम बताया रै।।
किरण साथ दो बालक छोटे गरीबी का सिर पै छाया रै।।
पाँच छह दिन रहे टेशन पै रहने की जागां पाई ना
बात करी दो चार जागां कई दिन दिहाड़ी थ्याई ना
कई रात नींद जमा आई ना बालकां नै जमा हिलाया रै।।
पंचवटी कालोनी मैं एक टूट्या फुटया सा मकान मिल्या
पानी ल्यावां दूर सड़क पर तैं जोड़ जोड़ दोनों का हिल्या
किरण नै खाना बनाने का काम एक कोठी मैं थ्याया रै।।
एक दुकान पर तैं रेहड़ी पै सब्जी बेचन का मिल्या काम
दो तीन मोहळ्यां मैं जाना सुबह दोपहरी और शाम
चार सौ पांच सौ की बिकै  इसमें कुछ ना बच पाया रै।।
चार मिहने पीछै मिस्त्री का दिया काम दिवा ठेकेदार नै
आठ मिहने काम चल्या उड़ै या सांस आई घरबार नै
पेट पालण का इस ढालाँ रणबीर जुगाड़ बिठाया रै।।
13,08,2016