Tuesday, 6 December 2016

बहुविविधता

बहुविविधता म्हारे देश की सुनियो आज सुणाऊं मैं ॥ 
जिस पत्थर की मूर्ती के पाहयों के मां पड़ते देख 
उन मूर्तियों को मुसलमान कारीगर ही घड़ते देख 
किस कारण फेर ये दोनूं क्यों आपस मैं भिड़ते देख 
हिन्दू देवी देवताओं का मुसलमान ही व्यापर करते 
हर सिंगार मूर्तियों का सब मुसलमान तैयार करते 
ताजा ताजा फूल तोड़कै तैयार गले का हार करते 
कदे कदीमी चलती आयी या कारोबार दिखाऊं मैं ॥ 
बहुविविधता म्हारे देश की सुनियो आज सुणाऊं मैं ॥ 
देवी देवताओं उप्पर  हिन्दू जो प्रसाद चढ़ाते देखो 
खील पतासे बूरा मखाने मुस्लिम भाई बनाते देखो 
 भोग लगाकै देवता का इणनै सारे हिन्दू खाते देखो 
साधु जी जो खड़ाऊँ पहरे मन्दिर के मैं फिरता देख 
भगवा कपडे मुस्लिम रंगता रँगरेज ही करता देख 
दूकान लगाते मुस्लिम भाई जिब  मेला भरता देख 
कोए भावना नहीं सै द्वेष की कोन्या झूठ भकाऊँ मैं ॥ 
कदे यात्रा करी सै  तमनै कैलाश मानसरोवर जाकै 
हिन्दू यात्रियों का बोझा मुस्लिम ढोता सिर पै ठाकै 
हिन्दू मुस्लिम रहे सैं मिलकै देखल्यो पाछे नै लखाकै 
हिन्दू नारी के हाथों मैं चूड़ी  सुहाग की पहचान कहैं 
मांग मैं सिन्दूर  भरणा महिला का होता सम्मान कहैं 
इन दोनों का बनाने आला उसे भाई मुसलमान कहैं 
इस विविधता का आड़ै  हुया खूब आदर समझाऊँ मैं ॥ 

स्मार्ट सिटी

                स्मार्ट सिटी
सम्राट सिटी बण्या तो कौन बसै कौन उजड़ज्यागा ॥
किसकी पांचों घी मैं होंगी किसका खेल बिगड़ज्यागा ॥
म्हारे गाम की धरती नै सरकार कब्जाना चाहवै सै
बिकै तीस लाख मैं किल्ला किसान बाधु पाया चाहवै सै
बिन किल्ले आले लोगों का यो पीतलिया लिकड़ज्यागा ॥
किसकी पांचों घी मैं होंगी किसका खेल बिगड़ज्यागा ॥
राजस्थान मैं जाकै खरीदैं चौधरी बीस किल्ले धरती के
बिना बिसवे आला भटकै हाल बुरे होये सैं सरती के
किसा बुरा जमाना आया यो गरीब जमा पिछड़ज्यागा ॥
किसकी पांचों घी मैं होंगी किसका खेल बिगड़ज्यागा॥
पुराने गाम मैं म्हारे पै थोड़ा ए घणा सै रोजगार देखो
हाल बढ़िया नहीं सैं मुश्किल मैं जीवै परिवार देखो
नए शहर मैं कून बड़न दे यो असल उड़ै उघड़ज्यागा ॥
किसकी पांचों घी मैं होंगी किसका खेल बिगड़ज्यागा॥
खेत मजूरी बचै नहीं नए शहर मैं काम मिलै ना भाई
घरबार रूल ज्यांगे म्हारे यो चेहरा कदे खिलै ना भाई
रणबीर सिंह की कविताई यो घेरा घणा जकड़ ज्यागा ॥
किसकी पांचों घी मैं होंगी किसका खेल बिगड़ज्यागा॥