गेर रै गेर पत्ता गेर
महिला को सदियों से दबा कर रखा गया है परम्परा के नाम पर और तथाकथित घर की इज्जत के नाम पर । उसके साथ गैरबराबरी का व्यवहार किया जाता रहा है । हमारी कथाओं में ,सांगों में भी महिला को बराबरी का इंसान कभी नहीं दिखाया गया। पितृसत्ता की मानसिकता के चलते परिवार में मर्द हमेशा औरत को दबा कर रखता आया है। एक रागनी के माध्यम से कोशिश है हमारी परम्पराओं को खंगालने की---
धुर तैं धोखा करते आये परम्परा उघाड़ कै देख लियो
गरज गरज के प्यारे दिखाऊँ यो बेरा पाड़ कै देख लियो
द्रोपदी जुए कै म्हं हार दई युधिष्ठर नै पासे डारे देखो
शादी रचाई भोला जी नै पार्वती कै धक्के मारे देखो
सत की सीता घर तैँ ताहदी राम चन्द्र हद तारे देखो
डायन बता पद्मावत भी हरिश्चंद्र बचण तैँ हारे देखो
ब्याही का भी तरस करैं ना ये पोथी पत्रे फाड़ कै देख लियो ।
अंगूठी देकै शकुंतला तैँ दुष्यंत बख्त पै भूल गया रै
पवन कुमार भी अंजना मैं काढ़ दोष फिजूल गया रै
नल काट साड़ी दमयंती की गेर फर्ज पै धूल गया रै
इसी इसी बातां का मामला पकड़ हमेश तूल गया रै
मौका आवै तो आँख बदलैं कितना ए चिंघाड़ कै देख लियो ।
जोधनाथ नै रूपाणी भी बण कै बीच खन्दाई देखो
धक्के खा खाकै बण मैं जिंदगी सहम गंवाई देखो
चाप सिंह नै सोमवती भी पतिव्रता जार दिखाई देखो
मदन सेन नै भी सोयी होई दई काट नानदे बाई देखो
बीर कदे कुछ नहीं बोलेंगी या बांधी किवाड़ कै देख लियो
किट ताहिं गिनाऊं परम्परा महिला हमेश थी साफ़ देखो
हमेशा महिला दयावान होसै मर्द करते डोलें पाप देखो
कार चोरी जारी ठगी की कदे क़दीमी इनकी माफ़ देखो
बीर मर्द का झगड़ा कोन्या सै या पितृसत्ता की छाप देखो
बराबरी का विचार रणबीर आज लिकाड़ कै देख लियो ।
रणबीर
1.3.2015