पाँच चार दिन पहल्याँ की बात स,
बैठक कै म्हा महफ़िल जम री थी।
दो चार बूढ़े पाँच चार गाभरू थे,
ना होक्के की गुड़गुड़ थम री थी।
बैठे बैठे देश के बारे म्ह चर्चा चालगी,
सारै आपणी आपणी बात कहण लागै।
एक जणा बोल्या र मेरी बात सुन ल्यो,
सुणकै उसकी काना के कीड़े झड़ण लागै।
वो बोल्या ध्यान तै सुनियो मेरी बात नै,
आज देश चाल रहा स कोरट कै सहारे।
एक ताऊ बोल्या र या के बात कही स,
सरकार चला री स तू क्यूँ धस्से मारै।
वो बोल्या ताऊ हर काम कोरट करवावै,
चोगरदे नै एक ब नजर मार के देख।
अर्जी प अर्जी दे लेवां सुनवाई कोणी,
ताऊ भरम का चश्मा तू तार के देख।
सारे मामलां म्ह कोरट राह घाट घालै,
कोरट के आदेशां तै सरकार काम करै स।
छोटी तै छोटी बात आज कोरट सुझावै स,
सुनवाई कोणी होती न्यू आदमी डरै स।
सरकार सुनती ना आम आदमी की,
कोरट म्ह जाण का ब्योंत ना बेचारे का।
बस या हे बात मार दे स आम आदमी नै,
आड़े कोय हिमाती ना बनता दुखियारे का।
सारी भरती सारी बदली कोरट करै स,
सरकार ना सुनती आदमी जद कोरट जावै।
सरकार के सारे काम कोरट करण लागी,
इब आदमी सरकार की जगांह कोरट नै चाहवै।
ताऊ बोल्या बात तो या तेरी साची स बेटा,
पर के करां चालदा कोय चारा कोण्या।
ताऊ की सुन बोल्या सुलक्षणा नै देख ले,
लड़े स ऐकली साहस उसनै हारा कोण्या।
ताऊ बोल्या बेटा वा बेटी घणी ढ़ेठी स,
हक की लड़ाई कसूती ढ़ाल लड़न लाग री स।
रणबीर सिंह बड़वासनी आले प ले ज्ञान
वा लोगाँ नै जगान ताहीं बात रोज घड़ण लाग री स।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत