किस्सा म्हारा थारा
– आषा
रणसिंह रिटायर्ड फौजी है।
उसकी पत्नी ष्यामकौर पढ़ी लिखि नहीं है। इनके दो लड़के हैं देवेन्द्र और सुरेन्द्र।
एक छोटी लड़की है भोली। देवेन्द्र छटी तक पढ़ा। फिर खेती करने लगा। सुरेन्द्र कालेज
में है। देवेन्द्र की षादी बरसेड़ा गांव में हुई। पांच साल हो गये षादी को, कोई बच्चा नहीं हुआ। घरवाले सुषमा को तरह-तरह
के ताने देने लगते हैं। सुषमा एक दिन देवेन्द्र को दिल की बात बताती है। क्या कहती
है भला:
रागनी-1
सात फेरे लिए जिब तनै वचन
भरे अक ना
दुख सुख का साथी तेरा ओम
सुआह करे अक ना
समझ सुभाव एक दूजे का
जिन्दगी राह चढ़ाई फेर
जिन्दगी में सुख थोड़े दुख
तै लड़ी खूब लड़ाई फेर
साथ मैं खड़ी पाई फेर खेत
कर दिये हरे अक ना।।
अपना घर छोड़ कै सासरा मनै
दिल तै अपनाया
घर का काम करया जी लाकै
खेत क्यार कमाया
यो पस्सीना हमनै बहाया
कोठे नाज के भरे अक ना
दोनुआं नै बोल बतला कै ये
चार साल गुजार दिये
बालक ना होते सारे घरके
एक सुर मैं पुकार दिये
दारू नै खत्म घर बार किये
तीन चार तो मरे अक ना।।
औरत की खातर दुनिया मैं
ये किसे दस्तूर हुये
ब्याह करवाकै वंष चलाना
धुरतै ही मंजूर हुये
रणबीर सिंह मजबूर हुये
घरके सारे डरे अक ना।।
वार्ता – देवेन्द्र और सुषमा की षादी को पांच साल हो
जाते हैं।ष्याम कौर को पता लगता है कि कई बहुएं होष्यारपुर के किसी गांव में कड़ा
पहन कर आई और कुछ दिनों बाद गर्भवती हो गई। वह सुषमा को वहां चलने के लिए मना लेती
है। सुषमा मजबूरी में चल पड़ती है। वहां जाकर वह क्या देखती है तो बड़ी परेषान होती
है। बाबा को भला बुरा सुनाती है। क्या बताया भलाः
रागनी – 2
होष्यारपुर धोरै गाम का
रंगा नाम बताया देख।।
कइयां के घर बसगे जिब कड़ा
गया पहराया देख।।
बहु छकबर पुर मैं तीन कड़ा
पहर कै आई थी
दो कै तो छोरा होग्या
तीजी कै छोरी हुई बताई थी
धणी दाब सुषमा पै आई थी
एक बै कड़ा अजमाया देख।।
तिरूं डूबूं जी उसका नहीं
कुछ समझ मैं आवै
बिना देवेन्द्र के भला
गर्भवती कैसे हो ज्यावै
सास मनै न्यों समझावै कड़े
नै घर बसाया देख।।
सुषमा सास और सीमा गैल
दोनुआं के घर आले
होष्यारपुर मैं बाबाजी के
देखे धणे कसूते चाले
सासू बोली तों लखाले कई
सौ जोडा़ आया देख।।
एक एक कर बहुआं नै भीतर
बुलावै बाबा जी
रणबीर ना बात कैहण की खेल
रचावै बाबाजी
रेप करवावै बाबा जी ओ
भीतरै धमकाया देख।।
वर्ता – सुषमा बाबाजी को अन्दर ही धमकाती है और कहती है
कि षोर मचा कर यहां बवाल खड़ा करूंगी। बाबा जी
सुषमा के पैर पकड़ लेता है। बाबा जी के व्याभिचारी अड्डे का खेल देख कर वे
सब वापिस चल पड़ते हैं तो सुषमा क्या सोचती हैः
रागनी – 3
वापिस चाल पड़े हम मन
होग्या मेरा धणा भारी।।
के के पाखण्ड होरे देष
मैं सफर मैं बात बिचारी।।
कै तो बाब जी जोड़ै रिष्ता
कै घर मैं बिघन रचावैं
कितै रिवाज कड़ा पहरण का
कुकरम इसतैं छिपावैं
कड़े में प्रताप बतावैं
देबी अपने ये रंग दिखारी।।
ये गन्डे ताबीज पहरैं कई
धोक मारते माता की
ज्येठ पै पैदा करवा बालक
दया कहते दाता की
बात नहीं पांच सातां की
धणी कसूत फैली बीमारी।।
बहू मैं खोट होवै कोए तो
ब्याही दूजी आज्या फेर
सांप सूंघज्या जिब खोट अपने बेटे में पाज्या फेर
देेवर की गैल बिठाज्या
फेर कहकै वंष की लाचारी।।
क्यूकर मानूं बात कुन्बे
की समझ नहीं पाई मैं
किसी संस्कृति सै म्हारी
इसे चिन्ता नै खाई मैं
चारों तरफ लखाई मैं चुप
क्यों रणबीर लिखारी।।
वर्ता – कड़े का वार खाली जाता देख कर ष्यामकौर ने कुछ
और टोटके करने चाहे। एक दिन ज्ञान विज्ञान वाले आये गांव में चमत्कारों का
पर्दाफाष लेकर। सुषमा ने उनसे बात की। सुषमा और देवेन्द्र को मैडीकल बुलाकर टैस्ट
करवाये गये। टैस्टों में पता चला कि देवेन्द्र में षुक्राणु नहीं हैं। देवेन्द्र
को बड़ा झटका लगता है। मन ही मन वह सोचने लगता है। क्या बताया भला:
रागनी – 4
डाक्टर नै कमी बतादी ईब
नहीं जीना चाहूं मैं।।
दिल मैं मलाल भरया जाकै
किसनै दिखाउं मैं।।
बच्चा पैदा ना कर सकता या
लगी किसी बीमारी
कैसे वंष चलैगा म्हारा
मनै रोजाना चिन्ता खारी
यो संकट पड़ग्या भारी सोच
सोचकै घबराउं मैं।।
मधुर सम्बन्ध सुषमा तै इन
पर दाब आवैगी
गाम गुहांड़ मैं चर्चा हो
मुंह ठा कैसे लखावैगी
परेषान घणी हो ज्यावैगी
कैसे धीर बंधाउं मैं।।
आत्म ग्लानि का बोध मेरे
अन्दर बढ़ता जावै
ठीक ठ्याक गुजर होरी एक
दिन संकट छावै
जो म्हारा परिवार बचावै
उसके गुण गाउं मैं।।
सुषमा का और मेरा आज ठीक
गुजारा होरया
रणबीर सिंह अजीब क्यों घर
का नजारा होरया
संकट धणा भारया होरया
कैसे वंष बधाउं मैं।।
वार्ता – सुषमा की सास को जब पता
लगता है कि देवेन्द्र में कमी बताई है डाक्टर ने तो सुरेन्द्र को वह इषारों ही
इषारों में उकसाती है। एक दो बार सुरेन्द्र सुषमा पर डोरे डालने का प्रयास करता है
तो वह झिड़क देती है। एक दिन सुरेन्द्र उसे सोते हुए दबोचना चाहता है मगर कामयाब
नहीं होता। सुषमा इन सारी बातों के बारे में अपने हिसाब से सोचती है। क्या बताया
भला:
रागनी – 5
सास बी चुप चाप रैहगी चुप
रैहग्या यो मेरा घरबारी।।
गात मैं बहोत बेचैनी होगी
नहीं बात समझ में आरी।।
सास के आगै मनै देवर की
सब कुबध खोल बताई
ऊपर तै तो खड़ी साथ मैं दे
भीतरले मैं रोल दिखाई
रहवै डावां डोल मुरझाई
नहीं मेरे तै आंख मिलारी।।
देवेन्द्र नै जिब बेरा
लाग्या एक बर तो तिमिलाया
सुरेन्द्र तै दे गाली
बोल्या क्यों गलत कदम उठाया
पिया देवर गेल्यां बतलाया
कुछ दिन बन्द हुई खंगारी।।
कुछ दिन पाछै देवर नै
सोवन्ती हुई दबोचनी चाही
आंख खुली तो हिम्मत करकै
बाहर घक्का दे कै आई
बोली क्यों षर्म बेचकै
खाई साथ मैं बणै समाज सुधारी।।
हटकै सास मेरी तै मनै ये
सारी बात सुनाई फेर
देवेन्द्र सुणकै चुप रहया
रणबीर चिन्ता बधाई फेर
किसे नै ना मेर कटाई फेर
मिली भगत उजागर सारी।।
वर्ता – सुषमा की बात सुण कर ष्याम कौर उसे अपने पास
बैठा लेती है और पूछती है कि यदि सुषमा उसकी जगह होती तो क्या करती? सुषमा कहती है – मैं बच्चा गोद दिलवा देती। ष्याम कौर को यह सुझाव अच्छा
नहीं लगता। वह सुषमा को समझाती है और क्या कहती है भला:
रागनी – 6
के समझावै बहू मनै मैं
समझूं सारी बात तेरी।।
वंष बढ़ाने की मजबूरी नींद
उड़ी दिन रात मेरी।।
पांच साल होगे ब्याह नै
मनै सुनी नहीं किलकारी
छोरा कोए जन्म्या कोन्या
खाली कोख सै या थारी
सास कहै समझ लाचारी क्यों
दाब बनावै मात तेरी।।
अस्पताल मैं लेकै गई
टैस्ट थारे सब करवाये
देवेन्द्र मैं कमी बताई
मेरै पस्सीने कसूते आये
तेरे तै ये भेद छिपाये
कदे काया मारै सन्पात तेरी।।
गली की महिला मारैं
तान्ने रोज षाम और सबेरी
बिन पोते के घर मैं चारों
कान्ही दीखै सै अन्धेरी
भय छाग्या मेरे मैं
क्यूकर बचाउं हे जात तेरी।।
सारी बांझ बतावै तनै चाहे
सरतो चाहे भतेरी
कहैं हटकै ब्याहले छोरा
क्यो बोझ छाती पै लेरी
दिखाई ना कमी देरी रणबीर
पांच दो सात तेरीं।।
वार्ता – एक दिन सास के साथ इन्ही बातों को लेकर तनातनी
हो जाती है। सुषमा भी कुछ जवाब दे देती है तो सासू कहती है, ‘‘आच्छी खागड़ी पाक्की’’। सुषमा रोने लगती है। उसके पड़ौस की एक बहू देख लेती है,
उसे रोते हुए। वह सुषमा से बातचीत करती है।
क्या बताया भलाः
रागनी – 7
सुषमा मनै बतादे क्यों
रोवै खड़ी खड़ी।।
के सास नै बोली मारी,
के सुसरे नै करदी न्यारी
के नन्द तेरै खोआ लारी,
वा करती तेरा मखौल
तूं सोचें जावै पड़ी पड़ी।।
के देवर तेरा गिरकााणा री,
के हुया किमै धिंगताणा री
मतना कोए बात छिपाणा री,
दिल की घुंडी खोल
के नागन तेरै खड़ी लड़ी।।
दीखै ध्यान राम मैं लाया,
उड़ै काम झूठ का पाया
नहीं किमै समझमैं आया,
मन होग्या डामाडोल
या गुत्थी दीखै पड़ी अड़ी।।
तनै और के चिन्ता खावै री
क्यों ना खोल कै बतावै री
क्यों खड़ी आंसू बहावै री,
डाट ले गात की झोल
रणबीर नै छन्द बड़ी घड़ी।।
वर्ता – एक दिन गांव में एक नाटक मण्डली आई हुई है। वह
एक नई षुरूआत नाटक दिखाती है। और एक गीत के माध्यम से अपनी बात कहती है। क्या
बताया भलाः
रागनी – 8
लोक लाज और लोक राज का
फूट्या ढारा देख लिया।।
गुन्डागरदी और पुलिस राज
का भाईचारा देख लिया।।
भगत सिंह से फांसी खागे
जिब हक वोटां का पाया रै
डायर भी आज सरमाया रै
गोरयां नै जुलम कमाया रै
मासूम जवान गाभरू कितने
मौत के घाट उतार दिये
दिन धोली सुषीला मारी सी
बी आई नै इन्कार किये
झूठे बता सब अखबार दिये
कुण्बा प्यारा देख लिया।।
भक्षक बणकै रक्षक आये
माणस यो बिक रहया
चलवा गोली मासूमां उपर
कति नहीं हिचक रहया
यो हरियाणा सिसक रहया घूम
कै सारा देख लिया।।
कितै बिजली ना कितै पाणी
धान बैठे बाजारां मैं
कोए मरै जल कै कोए फांसी
खा ये खबर अखबारा मैं
आड़े के इन बदकारां मैं
रणबीर न्यारा देख लिया।।
वार्ता – देवेन्द्र को सुषमा सारी हकीकत बता देती है। सास अभी भी
चाहती है कि किसी बाबाजी का आर्षीवाद लेलूं या फिर सुरेन्द्र के साथ सहवास करूं।
दोनों ही बातें मैं नहीं करूंगी। सुषमा देवेन्द्र को क्या कहती है भलाः
रागनी – 9
हम बिन बालक रैहल्यागें
जै चाहवै देना साथ पिया।।
धुर तांहि सुषमा साथ
निभावै कहती साची साच पिया।।
बांझ औरत की कोए बूझ नहीं
बहोत दुख ठावैं पिया
औरत बांझ पाज्या तो ये
मर्द दूजा ब्याह रचावैं पिया
बच्चे बनाने की मषीन कदे
कदीमी कहते आवैं पिया
के के दुख ये सहने
होज्यां कैसे सारे गिनवावैं पिया
समाज नै मिलकै समझावां
करकै पूरी खुभात पिया।।
ईब अपने बांझपन कारण देवर
पास खंदावै मतना
देवर गेल्यां सहवास करले
यो पाठ पढ़ावै मतना
उस ताहिं तूं षह देकै
पिया उल्टे खेल रचावै मतना
सास अर तूं मिलकै नै उनै
तलै तलै उकसावै मतना
हलीमी बरत रही सूं पर
मेरा बजर केसा गात पिया।।
समाज मैं करोड़ां बालक दर
दर की ठोकर खावैं सैं
उनकी खातर सोचां किमैं
वंष क्यों बीच में ल्यावै सैं
हीनता का षिकार हो मतना
तनै तान्ने मार सतावैं सैं
ऊंच नीच की सोचियो ना मनै
सपने डरावने आवैं सैं
न्यारी सोच और नया रास्ता
तूं बढ़ादे अपने हाथ पिया।।
पर पुरूष की जगहां नहीं
सै सुषमा साच्ची तनै बतावै
देेवर नै समझा दिये ना तो
सुषमा उसनै सही समझावै
जूत मारूंगी खींच खींच कै
गैल षिकायत थाने मैं जावै
बात जमा साफ होली या
क्यों इसनै ओरे तूं उलझावै
रणबीर सिंह बरोने आला यो
कहवै सारी साफ पिया।।
वार्ता – एक दिन उसकी एक सहेली लन्दन गई हुई है उसकी चिट्ठी आती है।
वह सुषमा का हाल चाल पूछती है। तो जवाब में सुषमा चिट्ठी में क्या लिख कर भेजती
है। अपनी दास्तान ब्यां करती हैः
रागनी – 10
जीणा होग्या भरी बेबे,
तबीयत होगी खारी बेबे
सबनै खाल उतारी बेबे,
फेर बी जीवण की आस मनै।।
पुराना घेरा तोड़ बगाया,
ढंग तै जीवन चाहया
कमाया मनै जमा डटकै,
उनकै याहे बात खटकै
मेरी हर बात अटकै,
पूरा हुआ अहसास मनै।।
मुंह मैं धालण नै होरे,
चाहे बूढे हों चाहे छोरे
डोरे डालैं शाम सबेरी,
कहते मनै गुस्सैल बछेरी
कई बै मेरी राह घेरी,
गैल बतावै ये बदमास मनै।।
सम्भल सम्भल मैं कदम धरूं,
आण बाण पै सही मरूं
करूं संघर्ष मिल जुल कै,
हंसू बोलूं सबतै खुल कै
ना जीउं घुट घुट कै,
बात बतादी या खास मनै।।
चरित्र हीन ये बतादें,
यों कोए तोहमद लादें
खिंडादें ये इज्जत म्हारी,
खुद करते ये चोरी जारी
ये समाज सेवक बलात्कारी,
रणबीर कोसैं खास मनै।।
वार्ता – देवेन्द्र सुषमा की बात सुनकर कहता है बात सुषमा तेरी ठीक
है। मगर घर कुन्बे का दबाव नहीं उटता मेरे से। मैं भी यही चाहता हूं परन्तु मेरी
कौन सुनता है। देवेन्द्र की बात सुनकर सुषमा कुछ देर सोचती है। यह चुप्पी बहुत कुछ
कह जाती है। फिर एक बात के द्वारा सुषमा क्या कहती है भलाः
रागनी – 11
ध्यान लगाकै सुण बात मेरी
बख्त संकट का आया सै।।
माथा पकड़े ना काम चलै
कुन्बे नै उधम मचाया सै।।
बिना बिचारें काम करै जो
बहुत घणे दुख ठाणे होंसै
दुनियादारी कहया करै सै
दूर के ढोल सुहाणे हांेसैं
दिल्ली मैं इलाज होवै आर
आर अस्पताल बताया सै।।
ओहे जाणै जिस तन लागै
ठोकर खाकै स्याणे होंसैं
सारा जगत हथेली पीटै सिर
पै लाख उल्हाणे होंसैं
संकट का हम करां सामना
मनै दिल समझाया सै।।
लगते दूर तै ज्यादा
प्यारे जो मेहमान बिराणे होंसैं
ये घर के दूर पड़ौसी नेड़ै
जूत बिगाणे खाणे होंसैं
रंग काला हुया जमा यो
तेरा क्यों चेहरा मुरझाया सै।।
सदा कोए एक सार रहया ना
ये दिन आने जाने होंसैं
पाट्टे लत्ते सिमाणे
पड़ज्यां रूस गये वे मनाने होंसैं
रणबीर यो बरोने आला नया
छन्द बनाकै ल्याया सै।।
वार्ता – सुषमा और देवेन्द्र दिल्ली आर आर अस्पताल में दिखाने के लिए
जाते हैं। वहां पिछली रिपोर्ट देख कर कहते हैं कुछ और टैस्ट करके ही बताया जा सकता
है कि इलाज सम्भव होगा कि नहीं। क्यास बताया भलाः
रागनी – 12
आर आर में गये दिखाण
डाक्टरां नै हौंसला बढ़ाया।।
बोले घबराओ मतना करकै
टैस्ट जा पता लगाया।।
दो ढाल की बीमारी जिसमैं
ये षुक्राणु जीरो बतावैं
कारखाने मैं बणकै ये नली द्वारा वीर्य में आज्यावैं
कारखाने मैं ना बनने का
विज्ञान इलाज ढूंढ नहीं पाया।।
कारखाने मैं बणकै बी नाली
बन्द करकै जीरो होज्यां
कई जोड़यां की जिन्दगी मैं
ये बीच बिधन के बोज्यां
बन्द नाली खुल ज्यावै तो
आपरेषन सफल बताया।।
सारे टैस्ट ले लिये
रिपोर्ट या अगले हफते आवैगी
रिपोर्ट देख भाल कै आग की
प्लान बनाई जावैगी
पांच दिन मुष्किल होगे
बेराना के के मन मैं आया।।
हटकै गये डाक्टर पै तो
नली बन्द बताई उसनै
इलाज इसका होज्यागा बताकै
ढ़ांढ़स बंधाई उसनै
रणबीर सिंह बरोने आला सही
छन्द घड़कै ल्याया।।
वार्ता – डाक्टर की बात सुन कर दोनों की आंखों में चमक आ जाती है।
सुषमा देवेन्द्र का हाथ पकड़ कर जोर से भींच देती है। उमंगें अंगड़ाई लेने लगती है।
सुषमा कहती है भला हो डाक्टर का। क्या बताया भलाः
रागनी – 13
सुणकै बात डाक्टर की हटकै
रूजनाष गात मैं आगी।।
सौ सौ मन की उठैं झााल
मेरे जण नई जिन्दगी पागी।।
हम बैठ डीटीसी की बस मैं
बस स्टैंड कान्ही जाण लगे
देवर के कारनामे एक एक
करकै मन आण लगे
घरके बी थे धमकाण लगे
पड़ौसन बी तोहमद लागी।।
देवेन्द्र बोल्या के सोच
रही क्यों ईबी चेहरा उदास यो
इतनी बात समझ गया नया रचा
तनैं इतिहास यो
डाक्टर की बात सुणी जब
मेरे मन मैं बी खुषी छागी।।
सही कहवै देवेन्द्र तूं
हाल ब्यां करया जान्ता कोन्या
हरेक ख्याल जो उठै मन मैं
बोल कहया जान्ता कोन्या
कोली भरल्यूं जमकै तेरी
इसी ललक गात मैं जागी
खुषी खुषी घर नै आगै घरां
कोए बात बताई कोन्या
चेहरे की खुषी दोनूआं की
सास नै जमा भाई कोन्या
कहै रणबीर बरोनिया लिखि
रागनी सबनै सुहागी।।
वार्ता – घर से आर आर जाते समय रास्ते में श्हर का विकास देख कर तरह
तरह के सवाल दोनों के दिल में उठते हैं। चैड़ी सड़कें, बड़ी बड़ी इमारतें और फिर गांव की सड़ती गलियां। कया बताया भला
देवेन्द्र क्या सोचता है?
रागनी – 14
फौर लेन औ मालां नै चेहरा
म्हारा चमकाया रै
लिंग अनुपात और एनिमिया
म्हारे कालस लाया रै
दो छोर म्हारे हरियाणे के
नहीं मेरी समझ मैं आवैं
एक कान्ही सबतै बाधू कार
हरियाणा वासी बनावैं
महिला भ्रुण हत्या करकै
सबतै धणा पाप कमावैं
गर्भवती महिला कमी खून की
जापे मैं मर ज्यावैं
सोच सोच इन छोरां पै
दिमाग मेरा चकराया रै।।
आर्थिक विकास धणा सामाजिक
विकास थोड़ा बताते
विकास माडल मैं कमी नहीं
खोलकै कदे दिखाते
सच्चाई नै आंकड़यां बीच कई
बुद्धिजीवी छिपाते
म्हारे नेता बी सच्चाई तै
बहोत धणा देखे धबराते
पांचों घी मैं जिसकी सैं
हरियाणा नम्बर वन भाया रै।।
नम्बर वन हरियाणा का
माचग्या चारों कान्हीं षोर
धरती बिकती जावै म्हारी
ओरां के बिके डांगर ढोर
शाह नै मात देवैं सैं
समाज सेवी बणकै ठग चोर
सांझ नै जाम खड़कै फेर
बहुआं पै जमावैं जोर
चोरां द्वारा शाह चोड़े
मैं जाता धकमाया रै।।
कई बै साचूं लोट खाट मैं
हुया सै किसा विकास यो
दिमाग भन्नावै सै मेरा
सोच्चै कदे होरया हो विकास यो
ठेकेदारी का रूतबा आज
उडावै गरीब का उपहास यो
विकास हुआ अब विनास रहता
पूरा अहसास यो
रणबीर सिंह बरोने आला ना
इनकी बहका मैं आया रै।।
वार्ता – अगले हफ्ते दोनों सुषमा और देवेन्द्र पूरी तैयारी के साथ आर
आर अस्पताल में पहुंचते हैं। वहां डाक्टर के आने में एक घण्टा था। दोनों अस्पताल
देखने निकल जाते हैं। क्या बताया भलाः
रागनी – 15
देवेन्द्र सुषमा जा
पहोंचे अगले हफ्ते तैयारी करकै
देखैं बाट डाक्टर आने की
देवेन्द्र के कान्धै सिर धरकै
आर आर अस्पताल इतना बड्डा
सही ढाल देख वे पाये
साफ सफाई देख उड़े की सिर
दोनूआं के थे चकराये
कई मंजिला लिफ्ट लागरी
चढ़े थे लिफ्ट मैं डर डरकै।।
न्यारे न्यारे विभाग
खुलरे दें नई नई मषीन दिखाई
सब किमै अपने आप चालै ना
कितै देवै षोर सुनाई
कई चीज ना समझ आई गई
दोनूआं के सिर पै कै।।
गुर्दे फेल हुए मरीजां का
होन्ता इलाज उड़ै देख लिया
आपरेषन कक्ष बहौतै बढ़िया
खुष होग्या देख जिया
सारा घूम कै दैख्या आर आर
दोनूआं नै जी भरकै।।
बदेषा मैं इसे अस्पताल हो
सैं आजताहिं सुण्या करते
आज अपने देष मैं देख लिया
बस आहं भरया करते
ठीक होन्ते देख रणबीर जो
मरीज आये जमा मरकै।।
वार्ता – पूरा आर आर देखने के बाद दोनों अपने डाक्टर के पास आ जाते
हैं। पूरी रिपोर्ट वहंा से लेकर डाक्टर को दिखाते हैं। डाक्टर ध्यान से सारी
रिपोर्ट देखता है और पूरी बात देवेन्द्र को बताता है क्या बताया भलाः
रागनी – 16
दोनूं डाक्टर धोरै आये
लेकै अपनी रिपोर्ट सारी
डाक्टर रिपोर्ट देख
बोल्या ठीक हो सकै बीमारी
रास्ते मैं रूकावट लागै
कारखाना षुक्राणु बणावै
बाई पास करां या रूकावट
लागै बात बणज्यावै
ना धबराओ सबर करो चिन्ता
मिटती लागै थारी।।
दाखिल करैं आज परसों ईंका
परेषन हा ज्यावै
दो दिन रहना होगा फेर
छुट्टी देवेन्द्र पा ज्यावै
खर्चे की कोए चिन्ता ना
पूरी अस्पताल की जिम्मेदारी।।
पांच दिन रहे आर आर मैं
फेर छुट्टी मिलगी थी
मुरझाई कली उनके दिल की
हटकै नै लिखगी थी
बतलाये दोनूं ईब तेा खत्म
हो रात अन्धेरी म्हारी।।
इलाज सफल हुया मारा डाक्टर
फुल्या ना समाया
छोटे मोटे सवाल जो भी सही
तै जवाब बताया
रणबीर उल्टी आगी सुषमा
मौत के मुंह मैं जारी।।
वार्ता- एक दिन रणसिंह की
और सुषमा की बातचीत हो जाती है इस विषय पर। क्या बताया भलाः
17.
रणसिंह:- एक छोरा तो होणा
चाहिये ना तो क्यूकर वंश् चलैगा
सुषमा:- बेटी मार कै बेटा
पाए तै ना धणे दिन वंश चलैगा
सुषमा
पुत्र लालसा के पाछै जो
सै बोतै कदे देख्या कान्या
बेटी के खून मैं तकपथ वो
सै कदे देख्या कोन्या
बेटी पेट मैं मारें गये
तो यो बिपदा बीच वंष छलैगा।।
पुत्र देवै अग्नि अर्थी
नै छोरी के उड़ै जायां खोह सै
केपेबलिटि का मसला ना
बालण मैं महिर वेसै
दोयम दर्जा दे राख्या सै
संकट समाज का नहीं टलैगा।।
रणसिंह
बिना पुत्र के जीणा सै इस
बिना ना मुक्ति होवै
छोरा फालतू सम्भाल करै
छोरी सासरे मैं बैठी रोवै
पष्चिमी संस्कृति छोड़ दयो
ना तो भक्कड् सा बलैगा।।
दहेज हत्या के कानून
कुन्बयां का गल घोट रहे
कदम कदम पै झूठे मामले कर
म्हारे पै चोट रहे
रणबीर महिला ने कद ताहिं
पुरूष वादी वंष छलैगा।।
वार्ता – छह महीने बाद सुषमा गर्भवती हो जाती है। घर में खुषी भी
होती है और बहस भी चल पड़ती है कि छोरा होना चाहिए। सुषमा की सास लड़का होने की दवाई
ले कर आती है और सुषमा पर दबाव बनाती है दवाई लेने का। आर आर के डाक्टरों ने मना
किया है पहल तीन महीने कोई भी दवा खाने के लिए।
रागनी – 18
वंष चलाना धणा जरूरी,
बेटी या सै मेरी मजबूरी
बेटे की आस हो ज्यागी
पूरी, न्यों सुषमा को समझाया।।
इतने जतन करे जिब बालक की
आस हुई बेटी
इवाई खाले बात मान ले
मतना करै निरास बेटी
षर्तिया छोरा कहता बाबा,
झूठ ना भोरा कहता बाबा
दूध कटोरा कहता बाबा,
कईयां का सै वंष चलाया।।
छोरी पैदा होगी तो सारी
खुभात बरबाद हो ज्यागी
खा ले दवाई सुषमा तूं
तेरी सास चैन तै सो ज्यागी
सुसरा तेरा चाहवै बेटा,
वंष परम्परा बधावै बेटा
दुख मैं साथ निभावै बेटा,
परमपरा का पाठ पढ़ाया।।
हाथ जोड़ करूं विनती आज
मेरी बात मान लिये
नहीं मानैगी मेरी तो
बिरान हो जात मान लिये
कईयां नै दवाई खाई सै,
छोरा हुया खुषी मनाई सै
परम्परा चलती आई सै,
सुषमा मान ले मेरी माया।।
वार्ता- एक दिन सुषमा अखबार पढ़ रही थी।
उसमें उसने एक रागनी पढ़ी जो उसे बहुत हट कर लगी। उसने अपनी कापी में वह लिख ली।
कया बताया भलाः
19..
हरियाणा के समाज में औरत
कै धली जंजीर
क्यों हमनै दीखती नहीं।।
पहलम भी दुभान्त हुआ करती
दुुखी सुखी हम जिया करती
पीया करती इलाज मैं,
यो परम्परा का नीर
चिता तै उठती नहीं।।
आज पेरै मैं मारण की
तैयारी
धणखरी दुनिया हुई हत्यारी
गान्धारी आज बी लिहाज मैं,
पीटती जा वाहे लकीर
नई राही सूझती नहीं।।
बचावणिया और मारणिया के
धलगे पाले खेत करणिया के
लिखणिया के मिजाज मैं यो
मामला सै गम्भीर।।
क्यों हमनै सूझती नहीं।।
समाज करना चाहवै सफाया
सैक्स सलैक्षन औजार
पिनाया
बताया सही अन्दाज मैं,
झूठा नहीं सै रणबीर
कलम जमा चूकती नहीं।।
वार्ता – सुषमा सास की सारी बातें सुनती है। बहुत दुख होता है उसे कि
पुत्र लालसा कितनी प्रर्बल है। इसी के कारण लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है
हरियाणा में। यह भी कोई बात हुई। यषोदा कह रही थी कि पहले तीन महीने में दवाई खाने
से जमनू बीमारियां ज्यादा हो जाती है। सुषमा मन में प्रण करती है कि न तो दवाई
खाउंगी और न अल्ट्रासाउंड से सैक्स का पता लगाउंगी। क्या बताया भलाः
रागनी – 20
बैठी बैठी मन मैं सोचे या
दवाई जमा ना खाऊं मैं।।
छोरी हो चाहे छोरा उसनै
इस दुनिया मैं ल्याऊं मैं।।
ईब कहते खाले दवाई फेर
कहवैंगे फलां कराले
सारी दुनिया करण लागरी
परम्परा सै तूं भी निभाले
इसी परम्परा की साच थारी
पुरी नहीं कर पाऊं मैं।।
मार मार कै छोरी पेट मैं
नाष करया हरियाणे का
खरीदैं बहू कम रेट मैं
नाष करया हरियाणे का
मेरे दिल मैं घा जितने
सैं किसनै जाकै दिखाऊं मैं।।
वंष की बात करते सड़दादा
का नाम भूल रहे
चैदहवीं षादी की परम्परा
ठा सिर पै झूम रहे
पुत्र लालसा नै नाष करे
कैसे सबको समझाऊं मैं।।
बहोत धणी मेरे बरगी झेलैं
कष्ट हरियाणे मैं
भूंडी बनैगी मेरै बरगी
झेलैं कष्ट हरियाणे मैं
दुखिया सारी कट्ठी होल्यो
एकली आवाज लगाऊं मैं।।
वार्ता – सुषमा की सास लड़का होने की दवाई खिलाने में नाकामयाब हो
जाती है। वह सुषमा को डाक्टरनी से जांच करवा कर सलाह करने की सलाह देती है। सुषमा
मान जाती है डाक्टरनी को दिखाने के लिए। ष्याम कौर और उसकी बेटी की बातें सुषमा
सुन लेती है। ष्याम कौर बेटी को बता रही थी कि वह डाक्टरनी से बच्चे की हालत जानने
के लिए अल्ट्रासाउंड करने की बात करेगी। लड़का है या लड़की इसका भी पता लग जाएगा।
सुषमा कहती है वह आर आर की डाक्टरनी को दिखा कर आयेगी। पूरे घर के माहौल में खास
तरह का तनाव आ जाता है। क्या बताया भलाः
रागनी – 21
तीन म्हिने का बालक
अल्ट्रासाउंड की दाब बढ़ाई।।
लिकड़ती बड़ती सास कहै छोरी
हो तै कराले सफाई।।
सास सुसरा बैठ सांझनै
न्यों आपस मैं बतलावैं
क्यूकर बहू जांच कराले
किस ढालां उसनै मनावैं
छह साल मैं कोख भरी सै हम
छोरे की आस लगावैं
सास कान मैं कहती घरके
पहलां छोरा चाहवैं
म्हारी बहू के दिन चढ़रे
पड़ौसन तै बतलाई
पड़ौसन बोली छोरी पालना आज
आसान कड़ै सै
या पैदा होवै उसे दिन तै
करनी रूखाल पड़ै सै
बिना दहेज पस ब्याही जा
गोतां की बात अड़ै सै
बिन भाई की बाहण हो तै
सुण कै नाग लड़ै सै
सारे करवावैं जांच सुषमा
तूं इतनी क्यों धबराई।।
पूरे समाज नै तय किया
छोरी तै पहलम छोरा हो
छोरा ही तो वंष चलावै वो
थाम्बै घर का डेरा सै
पुत्र लालसा इतनी गहरी ना
छोडै छोरी का भोरा हो
एकली मां का दोष कड़ै पूरे
समाज नै मारी चाही।।
इसका अहसास नहीं हर घर
मैं होवै हत्यारा सै
छोरी लागती बोझ धणी छोरा
बहोतै प्यारा सै
ना महिला महिला की बैरी
भेद खोल दिया सारा सै
पूरा समाज दोषी इसका चलै
जो छोरी पै आरा सै
रणबीर बरोने आले नै दिल
तै करी कविताई।।
वार्ता – नौ महीने कषमो कष के बाद घर के उतार चढ़ावों से गुजरते हुए
सुषमा एक सुन्दर सी लड़की को जन्म देती है। क्या बताया भलाः
रागनी – 22
नौ महीने राख कै पेट मैं
मां बनगी जो बोझ बताई।।
फूल सी एक छोरी जन्मी
सुषमा फूली नहीं समाई
सास के हाथा मैं थाली
नहीं बजावण वा पाई थी
छोरी हुई सुण कै चेहरे पै
उदासी छाई थी
ठीकरा फोड़ मनाया मातम
मुसीबत घर मैं आई।।
सारा कुणबा मुहं लटका
रयहा दिल खुष भरतार का
दिल दिल मैं सोची उसनै के
करूं घर बार का
कितनी यातना सही सोच कै
नै काया घबराई
आषा नाम धरूं बेटी का
रोषन नाम करैगी म्हारा
पढ़ा लिखा इंसान बनावां
देखता रैहज्या गाम सारा
प्रण करया अपने मन मैं ठा
कै माट्टी माथै लाई।।
इसे तना तनी मैं घर मैं
कर गुजर बसर रहें सां
चारों कान्ही तै दबाव पड़ै
कर धणा सबर रहे सां
रणबीर बरोने आले नै करी
म्हारी पूरी कविताई।।
वार्ता – सुषमा पर दिनों दिन दबाव बढ़ाया जाता है कि जांच करवाले
जाकर। पता नहीं किस किस तरह की बात की जाती है परम्पराओं की दुहाई दी जाती है। घर
की षान्ति का वास्ता दिया जाता है। धमकाई भी जाती है। मगर सुषमा का मन नहीं मानता।
वह मन ही मन क्या सोचती है भलाः
रागनी – 23
साथ देऊंगी बालक का अपणी
ज्यान की बाजी लाकै
यो कुणबा पाछै पड़रया सै
कहवै जांच करवाले जाकै
पहले गरभ ऊपर या धणी
कसूती नजर जमाई
कहते छोरा चाहिए ना तै
करवाणी पड़ै सफाई
घरक्यां नै दाब बणाई लगा
पता जांच करा कै।।
देेवर जेठ मेरे न्यूं
कहते हमनैं बेटा चाहिए
जांच करा ले छोरी होतै
तुरन्त सफाई कराईये
सीधी डाला मान जाईये के
काढ़ैगी सिर फुड़वा कै।।
एक तरफ तो गरभ पै यो
परिवार प्यार जतावै
दूजी तरफ जांच करा कै बस
छोरा पाया चाहै
हरेक मनैं समझावै बात मान
ले सिर झुका कै।।
दोगले समाज का चेहरा
आच्छी ढालां साहमी आया
जमा नहीं जांच कराऊं मनैं
भी मन समझाया
रणबीर साथ मैं पाया जब
देख्या नजर उठाकै।।