अंदर से टूटे हुए को सहारे की जरूरत होती है।
डूबते हुए इंसान को किनारे की जरूरत होती है।
ऐसा कोई नहीं है जिसे किसी की जरूरत ना हो,
भगवान को भी भक्त न्यारे की जरूरत होती है।
माता पिता को संतान की, संतान को माता पिता की,
संकट आने पर हमें अपने हमारे की जरूरत होती है।
अमीर को सुकून भरी नींद की, भूखे को अन्न की,
सर्दी में गर्म दूध, शहद व छुआरे की जरूरत होती है।
बेटा बेटी के लिए सुथरी बहू और अच्छे दामाद की,
शादी के वक़्त दहेज़ ढ़ेर सारे की जरूरत होती है।
जन्म से लेकर मृत्यु तक जरूरतें खत्म नहीं होती,
किस्मत बदलने के लिए भी इशारे की जरूरत होती है।
जरूरतें कम कर के देखिये खुशियाँ दौड़ी आएँगी,
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे में भी जयकारे की जरूरत होती है।
ख़ुशी बांटने से बढ़ती है, गम बांटने से घटता है,
इसीलिए सुलक्षणा जीवन में बंटवारे की जरूरत होती है।
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