आल्हा: अन्नदाता की पीड़ा
सहीराम
खल्क खुदा है, सबसे पहले, हम रहे उसको शीश नवाय।
उसी खल्क का पेट जो भरता, जग का अनदाता कहलाय।
कथा उसीकी व्यथा भरी यह, सुनियो सजनो ध्यान लगाय।
रोज वो झूल रहा फांसी पर, जहर की गोली रहा चबाय।
पर राजाजी की बात न पूछो, खुदा खुदी को रहा बताय।
अंबानी हो चाहे अडानी, वो सेठों के संग रास रचाय।
जय,जयकार करें सब मिलकर, टेलीविजन रहा दिखलाय।
अखबारों में उसके किस्से, जैसे कोई चमत्कार कर जाय।
शाखाओं में छवि गढ़ैं वो, रहे अवतारी मानुष बतलाय।
उसको कहां पड़ी फुरसत वो सत्ता के मद में इतराय।
देश से ज्यादा रहे विदेश, जय,जयकार रहा करवाय।
हर नेता की कोली भरता,पर सेठों को वो रहा लुभाय।
आओ,आओ देश में मेरे लूटो,खाओ जो मन भाय।
देश में रहकर भी सजनों वो अपना बस दरबार सजाय।
चारण पड़े रहे चरणों में, सेठ,ब्यौपारी आशिष पांय।
बात गरीब,किसान की करता, काम अमीरों के कर जाय।
रोज नयी ये साजिश रचते, नया जाल हर रोज बिछाय।
न फसलों की कीमत मिलती, मांगों तो गोली चलवाय।
पहले बोले गेंहू,धान में क्यों रहे अपने हाड़ तुड़ाय।
सब्जी बोओ,नकदी पाओ, खेती उन्नत लेओ बनाय।
फिर बोले तुम फूल उगाओ, लाखों तो बस यूं बन जाय।
औषधियों की बात करी फिर, धन की तो बारिश हो जाय।
कभी लोभ ये, कभी लोभ वो, ऐसा दिया हमें भरमाय।
पीछे से सब्सीडी काटी, महंगा खाद,बीज हो जाय।
बिजली महंगी, डीजल महंगा,बैंक कर्ज फिर देता नाय।
कर्ज मिले तो कारों खातिर, सस्ता उसका ब्याज कहाय।
खेती खातिर ब्याज भी मंहगा, धरती गिरवी लें धरवाय।
न कर्ज चुके तो इज्जत जाए, धरती तेरी कुर्क हो जाय।
सेठों खातिर खुले खजाने, उनके कर्ज माफ हो जाएं।
पर धरती के बेटों से पूछैं, तुम हो कौन, कहां से आय।
हार के बेचारा किसान फिर सूदखोर की ड्यौढ़ी जाय।
करे बंदगी वो लाला की, चरणों को रहा हाथ लगाय।
मनमाना वो ब्याज लगाए,रहा ब्याज पे ब्याज चढ़ाय।
न सोने सा गेहूं बिकता, न धान किसी को रहा सुहाय।
खेतों की धानी चूनर की, प्रपंची रहे लूट मचाए।
गन्ना धू,धू जले खेत में, मिल का पैसा मिलता नाय।
न कोई आलू को पूछै औ प्याज पड़ा,पड़ा सड़ जाय।
उपभोगी को सब महंगा,किसान को कीमत मिलती नाय।
उधर लुटैं वो, इधर लुटैं ये, कौन बीच में लूटे जाय।
शोर मचै महंगाई का, किसान को धेला मिलता नाय।
न बच्चों की फीस चुके और न बेटी का ब्याह हो पाय।
सिर पर सूदखोर का डंडा ठक,ठक नित वो रहा बजाय।
गहना,गूंठी सब हड़पै वो, उसका पेट भरै है नाय।
रहम करै न रत्ती भर भी, कहता धरती देओ लिखाय।
वोट की खातिर मीठी बातें, जो नेताजी थे रहे बनाय।
कुर्सी पाकर भूल गया सब, आंखें हमको रहा दिखाय।
जुमला था वो, जुमला बस, क्या वादों की याद दिलाय।
मर जाओ तो कायर कहता, लड़ो तो गुंडे रहा बताय।
पेट की खातिर लडऩे उतरो, यह तो उसको नहीं सुहाय।
धमकावै और आँख दिखावै,लाठी१गोली दे चलवाय।
पेट भरे वो सब जग का जो, अपनी किस्मत कोसे जाय।
इक,इक पैसे को तरसे वो दर,दर की वो ठोकर खाय।
क्या रखा है अब खेती में, कुछ भी तो अब बचता नाय।
जिसको देखो यही बोलता, उसको सभी रहे भरमाय।
धरती बेच देओ सेठों को, मुफ़्त में क्यों रहे हाड़ तुड़ाय।
राजा बोला चिंता क्या है, तनिक भी मुश्किल होगी नाय।
मुझ पर करो भरोसा पूरा, मैं दूं चुटकी में कानून बनाय।
लखटकिया वो सूट पहनकर, सूटकेस हमको दिखलाय।
बस धरती मेरी, पैसा तेरा,लालच हमको रहा दिखाय।
माया से कोठे भर दूं मैं, चिंता,फिकर करो तुम नाय।
पग,पग फिर मॉल बनैं और जगमग शहर खड़े हो जांय।
एक्सप्रेस सब रोड बनैं, जहां सरपट गाड़ी दौड़ी जांय।
मैं अगल,बगल में पटरी के दूं गोदामों की लैन लगाय।
रच दूं मायावी दुनिया मैं, आंखें चकाचौंध हो जाय।
तुम तो पहनो सूट-बूट, अब फिकर तुम्हें कुछ करनी नाय।
राजाजी का देख डिरामा, सेठ सभी पुलकित हो जांय।
अब पूरे होंगे सपने सब, अब कुछ कमी रहेगी नाय।
सोना उगलेगी मिट्टी ये अब तक जो थी भूख उगाय।
मन में लड्डू लगे फूटने, अब वारे-न्यारे हो जांय।
धन्य,धन्य हो राजाजी तुम, चमत्कार हो रहे दिखाय।
पोल खुली फिर जल्दी उसकी,मन का मैल सामने आय।
हमदर्दी का हटा मुखौटा,चेहरा असली दिया दिखाय।
दल्ला है सेठों का ये तो अब तक था रहा ढ़ोंग रचाय।
न चिंता है इसे देश की, न परजा की है परवाय।
पल्टी मार गया फौरन वो, कह मेरा इससे नाता नाय।
शातिरपन में अब तक उसका कोई जोड़ मिला है नाय।
ठग विद्या ठहरा माहिर, साजिश नयी रचायी जाय।
जमीन हड़पनी है हर हालत, सूबेदार सब दिए लगाय।
लूटते फिरते है जमीन वो,कानूनों को धता बताय।
चाल नयी देखो अब उसकी,अब तक ये था होता नाय।
सरकारी आडर निकला है, कोई कोताही बरतो नाय।
न मंडी में, न मेलों में, पशु कहीं बिक सकते नाय।
धरती मां के बाद किसान का, पशुधन ही तो बने सहाय।
ए टी एम वहीं है उसका, वही डिपोजिट है कहलाय।
बच्चों की शादी हो चाहे, बात पढ़ाई की आ जाय।
हारी और बीमारी में भी सदा सहारा वो बन जाय।
पर किसान का यह सुख भी तो, राजाजी को कहां सुहाय।
चढ़ा धर्म का रंग बैरी ने,बस वार घिनौना दिया चलाय।
बेच न पाओगे तुम कुछ भी न गैया, न भैंस कहाय।
न बछड़ा-बछड़ी बेचो तुम,ऊंट,बैल बिक सकते नाय।
मेले में न लाना उनको, हाट में वो बिक सकते नाय।
सात लगी पाबंदी देखो,कहीं जेल ही न हो जाय।
ऐसे में कोई क्यों पालै, गैया-भैंस बताओ भाय।
क्या जाने कब गौरक्षक सब अपना दें प्रपंच रचाय।
पीटैं भी और लूटैं भी और थाने में दें बंद कराय।
लाश बिछा दें सड़कों पर वो, उनको पूरी छूट बताय।
गुंडे छोड़ दिए सब उननै, गोरक्षक वो रहे कहाय।
धर्म के नाम पर वो धमकावै, रंगदारी वो रहे चलाय।
रोज उगाही, चौथ वसूली जेब वो अपनी भरते जांय।
गोशाला में गाएं मरती, उनको फिकर जरा भी नाय।
चाहे चारा हो या चंदा हो, हजम वो सारा करते जांय।
वही चलाए गोरक्षा दल और बूचडख़ाने वही चलांय।
गऊ कभी ना पाली उनने, धर्म का वो बस ढ़ोंग रचाय।
माता,माता जाप करैं वो, भक्ति ऐसी दें दिखलाय।
चौराहों पर रोटी दे बस अपनी फोटो रहे खींचाय।
बीफ का हल्ला रोज मचावैं, सड़कों पर दें लाश बिछाय।
गुंडागर्दी सरेआम है, उनकी रोक-टोक कोई नाय।
वोट बनैं और नोट बनैं, बस उनका धंधा चलता जाय।
जात,धर्म के नाम पे लोगो, जनता को ये रहे लड़ाय।
कभी लड़ाएं हिंदू-मुस्लिम, दंगे दें वो रोज करवाय।
कभी लड़ाय गूजर-मीणा, जाट से सैनी दे लड़वाय।
फूट डाल कर राज करै वो, हक सारे वो रहे दबाय।
मजदूरों को बंधुआ कर दे, किसान को चाकर रहे बनाय।
न फसलों की कीमत दें वो, कर्जा माफ करेंगे नाय।
सभी रियायत हैं सेठों को, किसान को माफी कोई नाय।
या तो झूलै वो फांसी या पुलिस की गोली खा मर जाय।
भाई-बेटे उसके देखो बॉडर पर रहे जान लड़ाय।
इनका,उनका नैन मट्टका, इनकी जान मुफ्त में जाय।
देशभक्ति इनकी झूठी है, झूठा ये प्रपंच रचाय।
पहचानों इनकी करतूतें, एका अपना लेओ बनाय।
पाला मांड दिया बैरी ने,अब हमको पीछे हटना नाय।
राजाजी संग सेठ-ब्यौपारी,परजा इधर जुटी है आय।
जीत हमारी होगी निश्चित, अब देओ ललकार लगाय।
सहीराम
खल्क खुदा है, सबसे पहले, हम रहे उसको शीश नवाय।
उसी खल्क का पेट जो भरता, जग का अनदाता कहलाय।
कथा उसीकी व्यथा भरी यह, सुनियो सजनो ध्यान लगाय।
रोज वो झूल रहा फांसी पर, जहर की गोली रहा चबाय।
पर राजाजी की बात न पूछो, खुदा खुदी को रहा बताय।
अंबानी हो चाहे अडानी, वो सेठों के संग रास रचाय।
जय,जयकार करें सब मिलकर, टेलीविजन रहा दिखलाय।
अखबारों में उसके किस्से, जैसे कोई चमत्कार कर जाय।
शाखाओं में छवि गढ़ैं वो, रहे अवतारी मानुष बतलाय।
उसको कहां पड़ी फुरसत वो सत्ता के मद में इतराय।
देश से ज्यादा रहे विदेश, जय,जयकार रहा करवाय।
हर नेता की कोली भरता,पर सेठों को वो रहा लुभाय।
आओ,आओ देश में मेरे लूटो,खाओ जो मन भाय।
देश में रहकर भी सजनों वो अपना बस दरबार सजाय।
चारण पड़े रहे चरणों में, सेठ,ब्यौपारी आशिष पांय।
बात गरीब,किसान की करता, काम अमीरों के कर जाय।
रोज नयी ये साजिश रचते, नया जाल हर रोज बिछाय।
न फसलों की कीमत मिलती, मांगों तो गोली चलवाय।
पहले बोले गेंहू,धान में क्यों रहे अपने हाड़ तुड़ाय।
सब्जी बोओ,नकदी पाओ, खेती उन्नत लेओ बनाय।
फिर बोले तुम फूल उगाओ, लाखों तो बस यूं बन जाय।
औषधियों की बात करी फिर, धन की तो बारिश हो जाय।
कभी लोभ ये, कभी लोभ वो, ऐसा दिया हमें भरमाय।
पीछे से सब्सीडी काटी, महंगा खाद,बीज हो जाय।
बिजली महंगी, डीजल महंगा,बैंक कर्ज फिर देता नाय।
कर्ज मिले तो कारों खातिर, सस्ता उसका ब्याज कहाय।
खेती खातिर ब्याज भी मंहगा, धरती गिरवी लें धरवाय।
न कर्ज चुके तो इज्जत जाए, धरती तेरी कुर्क हो जाय।
सेठों खातिर खुले खजाने, उनके कर्ज माफ हो जाएं।
पर धरती के बेटों से पूछैं, तुम हो कौन, कहां से आय।
हार के बेचारा किसान फिर सूदखोर की ड्यौढ़ी जाय।
करे बंदगी वो लाला की, चरणों को रहा हाथ लगाय।
मनमाना वो ब्याज लगाए,रहा ब्याज पे ब्याज चढ़ाय।
न सोने सा गेहूं बिकता, न धान किसी को रहा सुहाय।
खेतों की धानी चूनर की, प्रपंची रहे लूट मचाए।
गन्ना धू,धू जले खेत में, मिल का पैसा मिलता नाय।
न कोई आलू को पूछै औ प्याज पड़ा,पड़ा सड़ जाय।
उपभोगी को सब महंगा,किसान को कीमत मिलती नाय।
उधर लुटैं वो, इधर लुटैं ये, कौन बीच में लूटे जाय।
शोर मचै महंगाई का, किसान को धेला मिलता नाय।
न बच्चों की फीस चुके और न बेटी का ब्याह हो पाय।
सिर पर सूदखोर का डंडा ठक,ठक नित वो रहा बजाय।
गहना,गूंठी सब हड़पै वो, उसका पेट भरै है नाय।
रहम करै न रत्ती भर भी, कहता धरती देओ लिखाय।
वोट की खातिर मीठी बातें, जो नेताजी थे रहे बनाय।
कुर्सी पाकर भूल गया सब, आंखें हमको रहा दिखाय।
जुमला था वो, जुमला बस, क्या वादों की याद दिलाय।
मर जाओ तो कायर कहता, लड़ो तो गुंडे रहा बताय।
पेट की खातिर लडऩे उतरो, यह तो उसको नहीं सुहाय।
धमकावै और आँख दिखावै,लाठी१गोली दे चलवाय।
पेट भरे वो सब जग का जो, अपनी किस्मत कोसे जाय।
इक,इक पैसे को तरसे वो दर,दर की वो ठोकर खाय।
क्या रखा है अब खेती में, कुछ भी तो अब बचता नाय।
जिसको देखो यही बोलता, उसको सभी रहे भरमाय।
धरती बेच देओ सेठों को, मुफ़्त में क्यों रहे हाड़ तुड़ाय।
राजा बोला चिंता क्या है, तनिक भी मुश्किल होगी नाय।
मुझ पर करो भरोसा पूरा, मैं दूं चुटकी में कानून बनाय।
लखटकिया वो सूट पहनकर, सूटकेस हमको दिखलाय।
बस धरती मेरी, पैसा तेरा,लालच हमको रहा दिखाय।
माया से कोठे भर दूं मैं, चिंता,फिकर करो तुम नाय।
पग,पग फिर मॉल बनैं और जगमग शहर खड़े हो जांय।
एक्सप्रेस सब रोड बनैं, जहां सरपट गाड़ी दौड़ी जांय।
मैं अगल,बगल में पटरी के दूं गोदामों की लैन लगाय।
रच दूं मायावी दुनिया मैं, आंखें चकाचौंध हो जाय।
तुम तो पहनो सूट-बूट, अब फिकर तुम्हें कुछ करनी नाय।
राजाजी का देख डिरामा, सेठ सभी पुलकित हो जांय।
अब पूरे होंगे सपने सब, अब कुछ कमी रहेगी नाय।
सोना उगलेगी मिट्टी ये अब तक जो थी भूख उगाय।
मन में लड्डू लगे फूटने, अब वारे-न्यारे हो जांय।
धन्य,धन्य हो राजाजी तुम, चमत्कार हो रहे दिखाय।
पोल खुली फिर जल्दी उसकी,मन का मैल सामने आय।
हमदर्दी का हटा मुखौटा,चेहरा असली दिया दिखाय।
दल्ला है सेठों का ये तो अब तक था रहा ढ़ोंग रचाय।
न चिंता है इसे देश की, न परजा की है परवाय।
पल्टी मार गया फौरन वो, कह मेरा इससे नाता नाय।
शातिरपन में अब तक उसका कोई जोड़ मिला है नाय।
ठग विद्या ठहरा माहिर, साजिश नयी रचायी जाय।
जमीन हड़पनी है हर हालत, सूबेदार सब दिए लगाय।
लूटते फिरते है जमीन वो,कानूनों को धता बताय।
चाल नयी देखो अब उसकी,अब तक ये था होता नाय।
सरकारी आडर निकला है, कोई कोताही बरतो नाय।
न मंडी में, न मेलों में, पशु कहीं बिक सकते नाय।
धरती मां के बाद किसान का, पशुधन ही तो बने सहाय।
ए टी एम वहीं है उसका, वही डिपोजिट है कहलाय।
बच्चों की शादी हो चाहे, बात पढ़ाई की आ जाय।
हारी और बीमारी में भी सदा सहारा वो बन जाय।
पर किसान का यह सुख भी तो, राजाजी को कहां सुहाय।
चढ़ा धर्म का रंग बैरी ने,बस वार घिनौना दिया चलाय।
बेच न पाओगे तुम कुछ भी न गैया, न भैंस कहाय।
न बछड़ा-बछड़ी बेचो तुम,ऊंट,बैल बिक सकते नाय।
मेले में न लाना उनको, हाट में वो बिक सकते नाय।
सात लगी पाबंदी देखो,कहीं जेल ही न हो जाय।
ऐसे में कोई क्यों पालै, गैया-भैंस बताओ भाय।
क्या जाने कब गौरक्षक सब अपना दें प्रपंच रचाय।
पीटैं भी और लूटैं भी और थाने में दें बंद कराय।
लाश बिछा दें सड़कों पर वो, उनको पूरी छूट बताय।
गुंडे छोड़ दिए सब उननै, गोरक्षक वो रहे कहाय।
धर्म के नाम पर वो धमकावै, रंगदारी वो रहे चलाय।
रोज उगाही, चौथ वसूली जेब वो अपनी भरते जांय।
गोशाला में गाएं मरती, उनको फिकर जरा भी नाय।
चाहे चारा हो या चंदा हो, हजम वो सारा करते जांय।
वही चलाए गोरक्षा दल और बूचडख़ाने वही चलांय।
गऊ कभी ना पाली उनने, धर्म का वो बस ढ़ोंग रचाय।
माता,माता जाप करैं वो, भक्ति ऐसी दें दिखलाय।
चौराहों पर रोटी दे बस अपनी फोटो रहे खींचाय।
बीफ का हल्ला रोज मचावैं, सड़कों पर दें लाश बिछाय।
गुंडागर्दी सरेआम है, उनकी रोक-टोक कोई नाय।
वोट बनैं और नोट बनैं, बस उनका धंधा चलता जाय।
जात,धर्म के नाम पे लोगो, जनता को ये रहे लड़ाय।
कभी लड़ाएं हिंदू-मुस्लिम, दंगे दें वो रोज करवाय।
कभी लड़ाय गूजर-मीणा, जाट से सैनी दे लड़वाय।
फूट डाल कर राज करै वो, हक सारे वो रहे दबाय।
मजदूरों को बंधुआ कर दे, किसान को चाकर रहे बनाय।
न फसलों की कीमत दें वो, कर्जा माफ करेंगे नाय।
सभी रियायत हैं सेठों को, किसान को माफी कोई नाय।
या तो झूलै वो फांसी या पुलिस की गोली खा मर जाय।
भाई-बेटे उसके देखो बॉडर पर रहे जान लड़ाय।
इनका,उनका नैन मट्टका, इनकी जान मुफ्त में जाय।
देशभक्ति इनकी झूठी है, झूठा ये प्रपंच रचाय।
पहचानों इनकी करतूतें, एका अपना लेओ बनाय।
पाला मांड दिया बैरी ने,अब हमको पीछे हटना नाय।
राजाजी संग सेठ-ब्यौपारी,परजा इधर जुटी है आय।
जीत हमारी होगी निश्चित, अब देओ ललकार लगाय।