Sunday, 10 April 2011

गलत विज्ञानं /


ANTHEEN SANSAR

ठेकेदारों की आप्पा धाप्पी

किसे और की कहानी कोन्या

बैठ्या सोचूँ


विज्ञानं का पैगाम


MESSAGE OF SCIENCE

टैक्शों की भरमार

टैक्शों की भरमार
देख लिया थारा राम राज माफ़ करो हम तंग होगे ||
टैक्स लगा कै कमर तोड़ दी पहले तै भी नंग होगे ||
दूनी तीग्नी और चौगनी म्हारी उगाही होगी रै
बड़े बड़े धनवानों की तो मन की चाही होगी रै
म्हारी जेब पडी सै खाली कतई सफाई होगी रै
क्यूकर कुनबा चालैगा या घनी तबाही होगी रै
जीना मुश्किल होरया देखो कति मरण के ढंग होगे ||
चूल्हा टैक्स यो दूल्हा टैक्स लाया टैक्स पानी पै
शिक्षा टैक्स यो रक्षा टैक्स लाग्या टैक्स थाली पै
जेल टैक्स यो खेल टैक्स लाग्या टैक्स हाली पै
आन पै टैक्स जान पै टैक्स टैक्स लाया घरआली पै
टैक्शों की भरमार देख्ल्यो ये मोट्टे उत मलंग होगे ||
बिजली टैक्स बटन टैक्स मीटरों पै चाला होग्या
माल पै टैक्स बढाया दूना ज्यान का गाला होग्या
बीज पै टैक्स खाद पै टैक्स बख्त यो निराला होग्या
रजिस्टरीयों पै टैक्स बढ़ाये यो ढंग कुढाला होग्या
सुखा बाढ़ अर राज नै मारे देख देख कै दंग होगे ||
किते साईकिल टैक्स मोटर टैक्स लागे टैक्स सगाई पै
जीन टैक्स यो मरण टैक्स लागे टैक्स कष्ट कमाई पै
चाह पै टैक्स ब्याह पै टैक्स यो लागे टैक्स मिठाई पै
तेल पै टैक्स रेल पै टैक्स लागे टैक्स जहाज हवाई पै
सतबीर सिंह ये टैक्स नहीं सें म्हारी ज्यान पै जंग होगे ||

baad khet nai khavai

बाड़ खेत नै खावै आज सुभाष बोस थारे सपने सब धराशायी कर दिए
समाज के ठेकेदारों ने |  क्या बताया भला ---
सोने का दिया रांग बना यो मोट्टा चाला होग्या ||
पतासे की खांड बनादी यो गुड़ का राल्ला होग्या||
आज पीतल कै ऊपर सोने का घोल चढ़ावें सें
साच का गल घोट कै झूठ का ढोल बजावें सें
ठग चोर घने शरीफ बनें रपट रोल मचावें सें
कैह अमृत का प्याला जहर का मोल बढ़ावें सें
चारों कूट बदमाशी फ़ैली मरण का ढाला होग्या ||
सच्चाई छोड़ कै क्यूं झूठ तै नाता जोड़ लिया
मेहनत करने आले का जमा खून निचौड़ लिया
देश बेच दिया सारा कमीशन कई करोड़ लिया
पीस्सा आज भगवान होग्या घरबार तोड़ दिया
औरत बीच बाजार बिठादी यो ढंग कुढाला होग्या ||
ये दिन देखण नै के गाँधी जी नै गोली खाई थी
ये दिन देखण नै के भगत सिंह नै फांसी परनायी थी
ये दिन देखण नै के रानी झाँसी नै लड़ी लडाई थी
ये दिन देखण नै के सुभाष बोस नै फ़ौज बनाई थी
इसी आजादी आई सै यो ज्यान का गाला होग्या ||
कट्टर पंथ का जहर फैलाया बाग़ बगीचे सूक गये
भाई का बैरी भाई आज हुया कडे पुराने रसूख गये
इब्बी साच्ची बात जानलयां कौन बधा या भूख गये
लिखी रणबीर बात असली खुस क्यूं म्हारे टूक गये
हमपे जाल यो गेर दिया बैरी महरा रूखाला होग्या ||

आठ मार्च

किस्सा 1857