Monday, 6 February 2023

Chander sekhar

 


**आजाद के  शहादत दिवस के मौके पर **
किस्सा चन्द्र शेखर आजाद
1
अठारह सौ सतावण की आजादी की पहली जंग में लाखों लोगों ने कुर्बानियां दीं। उसके बाद अंग्रेजों का दमन का दौर और तेज हो जाता है। देश में पनपी हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के कुप्रयास किये जाते हैं। किसानों पर उत्पीड़न बेइन्तहा किया जाता है। ऐसे समय में भावरा गांव में चन्द्रशेखर आजाद का जन्म होता है। क्या बताया भला:

तर्ज: चौकलिया

दूर दराज का गाम भावरा, पैदा चन्द्रशेखर आजाद हुया॥
दुपले पतले बालक तै घर, तेईस जुलाई नै आबाद हुया॥

मुगलां के पिट्ठू यूरोप के, सारे कै व्यौपारी छाये फेर दखे
ईस्ट इन्डिया कम्पनी नै चारों, कान्हीं पैर फैलाये फेर दखे
अंग्रेजां नै भारत उपर शाम, दाम, दण्ड भेद चलाये फेर दखे
देश के नवाबां नै फिरंगी साहमी, गोड्डे टिकाये फेर दखे
किसानां नै करया मुकाबला उनका तै न्यारा अन्दाज हुया॥
ठारा सौ सत्तावण मैं आजादी की पहली जंग आई फेर
आजादी के मतवाले वीरां नै कुर्बानी मैं नहीं लाई देर
फिरंगी शासक हुया चौकन्ना गद्दारां की थी कटाई मेर
हटकै म्हारे भारत देश पै घणी कसूती छाई अन्धेर
भारत की जनता नहीं मानी चाहे सब कुछ बरबाद हुया॥
भुखमरी आवै थी तो भूख तै कदे लोग मरे नहीं थे
अंग्रेजां के राज मैं अकाल खेत बचे हरे भरे नहीं थे
टैक्स वसूल्या गाम उजाड़े लोग फेर बी डरे नहीं थे
कुछ हुये गुलाम कई नै जमीर गिरवी धरे नहीं थे
विद्रोह की राही पकड़ी कुछ नै क्रान्ति का आगाज हुया॥
युगान्तर अनुशीलन संगठन उभर कै आये बंगाल मैं
कांग्रेस मैं गान्धी का स्वदेशी सहज सहज आया उफान मैं
चोरा चोरी मैं गोली चाली चौकी जलाई इसे घमसान मैं
गान्धी नै वापिस लिया निराशा छाई थी नौजवान मैं
रणबीर चन्द्रशेखर इसे बख्त क्रान्ति की बुनियाद हुया॥

2
गांव के हालात काफी खराब थे। चन्द्रशेखर का परिवार भी आर्थिक स्तर पर कमजोर था। चन्द्रशेखर गांव से चलकर शहर में आ जाता है और छोटा-मोटा काम ढूंढ लेता है। एक कमरा रहने वाले कई। क्या बताया भला:

तर्ज: चौकलिया
गाम तै चाल चन्द्र शेखर शहर कै मैं आया फेर॥
छोटा मोटा काम मिल्या रैहण का जुगाड़ बनाया फेर॥

एक कमरे मैं कई रहवैं मुश्किल सोना होज्या था
आधी बारियां भूखे प्यासे भीतरला सबका रोज्या था
आजाद देखकै हालत नै वो अपणा आप्पा खोज्या था
बीड़ी पी पी कै धुमा भरज्या कौन नींद चैन की सोज्या था
देख हालत मित्रा प्यारयां की आजाद दुख पाया फेर॥
दिल मैं सोची शहर मैं खामखा आकै ज्यान फंसाई
उल्टा जांगा गाम मैं तो कसूती होवैगी जग हंसाई
आड़े क्यूकर रहूं घुट कै कोन्या बात समझ मैं आई
तिरूं डूबूं जी होग्या उसका हुई मन तै खूब लड़ाई
न्यों तो बात बणैगी क्यूकर उसनै दिल समझाया फेर॥
गरीबी के के काम करवादे इसका बेरा पाट गया
फिरंगी की लूट का अहसास उंका कालजा चाट गया
सोच सोच इन बातां नै वो दिल अपणे नै डाट गया
जी हजूरी उनकी करने तै आजाद जमा नाट गया
क्रान्ति का झन्डा आजाद नै पूरे मन तै ठाया फेर॥
भगतसिंह राजगुरु तै उसनै तार भिड़ाये फेर
सुखदेव शिव वर्मा हर बी उनकी गेल्यां आये फेर
कई महिला साथ आई इन्कलाब के नारे लाये फेर
जनून छाया सबमैं घणा मुड़कै नहीं लखाये फेर
रणबीर मरने तक उसनै था वचन निभाया फेर॥

3
वहां शहर में चन्द्रशेखर सहज सहज क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ जाता है। सुखदेव, राजगुरु, शिव वर्मा, भगतसिंह के साथ उसका तालमेल बनता है। वह आजादी की लड़ाई का एक बहादुर सिपाही का सपना देखने लगता है। वह अपनी जिन्दगी दांव पर लगाने की ठान लेता है। क्या बताया फिर-

तर्ज: चौकलिया

चन्द्रशेखर आजाद नै अपणी जिन्दगी दा पै लादी रै॥
फिरंगी गेल्या लड़ी लड़ाई उनकी जमा भ्यां बुलादी रै॥

फिरंगी राज करैं देश पै घणा जुलम कमावैं थे
म्हारे देश का माल कच्चा अपणे देश ले ज्यावैं थे
पक्का माल बना कै उड़ै उल्टा इस देश मैं ल्यावैं थे
कच्चा सस्ता पक्का म्हंगा हमनै लूट लूट कै खावैं थे
भारत की फिरंगी लूट नै आजाद की नींद उड़ादी रै॥
किसानां पै फिरंगी नै बहोत घणे जुलम ढाये थे
खेती उजाड़ दई सूखे नै फेर बी लगान बढ़ाये थे
जो लगान ना दे पाये उनके घर कुड़क कराये थे
किसानी जमा मार दई नये नये कानून बनाये थे
क्रान्तिकारियां नै मिलकै नौजवान सभा बना दी रै॥
जात पात का जहर देश मैं इसका फायदा ठाया था
आपस मैं लोग लड़ाये राज्यां का साथ निभाया था
व्हाइट कालर आली शिक्षा मैकाले लेकै आया था
साइमन कमीशन गो बैक नारा चारों कान्हीं छाया था
म्हारी पुलिस फिरंगी नै म्हारी जनता पै चढ़ा दी रै॥
जलियां आला बाग कान्ड पापी डायर नै करवाया था
गोली चलवा मासूमां उपर आतंक खूब फैलाया था
मनमानी करी फिरंगी नै अपना राज जमाया था
जुल्म के खिलाफ आजाद नै अपना जीवन लाया था
रणबीर नै तहे दिल तै अपणी कलम चलादी रै॥
4
1921 में असहयोग आन्दोलन की लहर उठती है पूरे देश में। जगह-जगह पर प्रदर्शन, धरने किये जाते हैं। महात्मा गान्धी इस आन्दोलन के अग्रणी नेता थे। उधर ज्योतिबा फुले अपने ढंग से समाज सुधार आन्दोलन में सक्रिय थे। पुर्नुत्थान के साथ साथ नवजागरण का एक माहौल पूरे देश में बन रहा था। क्या बताया भला:

उन्नीस सौ इक्कीस मैं असहयोग आन्दोलन की जंग छिड़ी॥
सारे हिन्दुस्तान की जनता फिरंगी गेल्या आण भिड़ी॥

जलूस काढ़ते जगां जगा पै गांधी की सब जय बोलैं
भारत के नर नारी जेल गये जेल के भय तै ना डोलैं
कहैं जंजीर गुलामी की खोलैं आई संघर्ष की आज घड़ी॥
नौजवान युवक युवती चाहवैं देश आजाद कराया रै
कल्पना दत्त नै कलकत्ता मैं चला गोली सबको बतलाया रै
आजादी की उमंग उनमैं भरी नौजवान सभा बनी कड़ी॥
ज्योतिबा फुले का चिंतन दलितां नै बार बार पुकारै था
मनु नै जो बात लिख दी उन बातां नै जड़ तै नकारै था
नवजागरण की चिंगारी देश मैं सुलगी कई जगां बड़ी॥
एक माहौल आजादी का चारों कान्हीं जन जन मैं छाया रै
गांधी और भगतसिंह का विचार आपस मैं टकराया रै
रणबीर सिंह नै सोच समझ कै नये ढंग की कली घड़ी॥

5

चन्द्रशेखर आजाद अपना रहने का स्थान बदलता रहता था। पुलिस क्रान्तिकारियों के पीछे लगी रहती। सातार नदी के किनारे आजाद एक कुटिया में साधु के भेष में रहने लगता है। पास के गांव में कत्ल हो जाता है। पुलिस की आवाजाही बढ़ जाती है। चन्द्रशेखर कैसे बचाता है अपने आपको:

सातार नदी के काठै आजाद एक कुटिया मैं आया॥
साधु भेष धार लिया नहीं पता किसे ताहिं बताया॥

जिब बी कोए साथी पुलिस की पकड़ मैं आज्या था
आजाद ठिकाना थोड़ी वार मैं कितै और बणाज्या था
इसे सूझबूझ के कारण पुलिस तै ओ बच पाया॥
पास के गाम मैं एक बै किसे माणस का कत्ल हुया
चरचा होगी सारे कै फेर पुलिस का पूरा दखल हुया
पुलिस दरोगा तफतीस करी कुटी मैं फेरा लाया॥
दरोगा नै देख कै आजाद बिल्कुल ही शान्त रहया
ध्यान तै सुण्या सब कुछ जो दरोगा नै उंतै कहया
बोल्या धन्यवाद दरोगा जी आगै फेर जिकर चलाया॥
6
बाबा जी की मढ़ी में पुलिस अपना डेरा डाल देती है। क्रान्तिकारी मढ़ी का निरीक्षण करने पहुंचते हैं कि पुलिस वालों को क्या ठिकाने लगाया जा सकता है। क्या बताया भला:

क्रान्तिकारी टोली आई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
दोनूआं नै शीश नवाई रे बाबा जी की मढ़ी मैं॥

भगतां की टोली मैं उननै पूरी सेंध लगाई फेर
चीलम की उनकी बी थोड़ी वार मैं बारी आई फेर
आजाद तै चीलम पकड़ाई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
कदे बीड़ी बी पी कोन्या चीलम हाथ मैं आई
घूंट मारकै चीलम फेर राजगुरु तै पकड़ाई
राजगुरु नै दम लगाई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
मढ़ी का पूरा पूरा उसनै हिसाब लगाया फेर
माणस घणे मारे जांगे उनकी समझ आया फेर
आंख तै आंख मिलाई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
प्रणाम करकै बाबा जी नै दोनूं उल्टे आये थे
बाकी टोली आल्यां तै मढ़ी के हालात बताये थे
रणबीर करै कविताई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥

7
दो पुलिस वालों से आजाद व राजगुरु का आमना सामना मढ़ी में हो जाता है। साधु को अपनी चिन्ता होती है। पुलिस वाले अपने अपने ढंग से इनाम पाने की सोचते हैं। वहां कैसे क्या होता है। क्या बताया भला:

आहमी साहमी होगे चारों एक पल तक आंख मिली॥
न्यारे न्यारे दिमागां मैं न्यारे ढाल की बात चली॥

साधु सोचै फंसे खामखा यो आजाद मनै मरवावैगा
आजाद सोचै दोनूं पुलिसिया क्यूकर इनतै टकरावैगा
एक सिपाही सोचै आजाद पै इनाम तै थ्यावैगा
दूजा सोचै नाम हो मेरा इनाम सारा मेरे बांटै आवैगा
के तूं आजाद सै सुण कै बी चेहरे पै उसके हंसी खिली॥
नहीं चौंक्या आजाद जमा सादा भोला चेहरा बनाया
साधु तो हमेशा आजाद हो सै कोए भाव नहीं दिखाया
पुलिसिया कै शक होग्या पुलिस थाने का राह बताया
हनुमान की पूजा करनी हमनै वार हो बहाना बनाया
दरोगा तै हनुमान बडडा कैहकै उसकी थी दाल गली॥आं का ठोर ठिकाना यू सारा संसार दरोगा जी
छोड़ दिया बरसां पहलम यू घर परिवार दरोगा जी
रणबीर आजाद नै न्यों दरोगा तै पीछा छटवाया॥

8
आगरा शहर क्रान्तिकारियों के शहर की तरह जाना जाने लगा था। आजाद कभी आगरा कभी कानपुर अपने डेरे बदलता रहता था। दूसरों को भी चौकन्ना रहने को कहता था। एक बार एक जगह आजाद फंस जाता है तो कैसे निकलता है। क्या बताया भला:

तर्ज: चौकलिया

आगरा शहर एक बख्त क्रान्तिकारियां का शहर बताया॥
फरारी जीवन बिता रहे चाहते अपणा आप छिपाया॥

कदे झांसी और कदे आगरा मैं आकै रहवै आजाद
जितने दिन रहै आगरा रहो चौकन्ने कहवै आजाद
बारी बारी सब पहरा देते ढील नहीं सहवै आजाद
साथी रात पहरे पै सोग्ये उठकै सब लहवै आजाद
पहरा देने आला साथी फेर बहोत करड़ा धमकाया॥
साथी सुणकै चुप रैहग्या उसकी आंख्या पानी आग्या रै
देख कै रोवन्ता उस साथी नै आजाद घणा दुख पाग्या रै
ड्यूटी पहलम खत्म करादी खुद पै बेरा ना के छाग्या रै
कोली भरली प्यार जताया उसनै अपनी छाती लाग्या रै
अनुशासन और प्यार का आजाद नै जज्बा दिखाया॥
कानपुर मैं दोस्त धेारै आजाद नै कुछ दिन बिताये
कांग्रेसी माणस व्यापारी लेन देन करते बतलाये
सलूनो का दिन पत्नी नै बूंदी के लड्डू बनवाये
परांत मैं भरकै चाल पड़ी पुलिस दरोगा घर मैं आये
पुलिस आले कै बांध राखी उसनै भाई तत्काल बनाया॥
बोली माड़ा झुकज्या नै च्यार लाड्डू उसतै थमा दिये
परांत सिर पै आजाद कै दरोगा जी बेवकूफ बना दिये
इसा बर्ताव देख दरोगा नै सब भेद बता दिये
फिरंगी नजर राखता जिनपै नाम सबके गिना दिये
रणबीर बरोने आले नै यो आजाद घणा कसूता भाया॥

9

झांसी के पास राजा का पिछलग्गू एक सरदार था। उसके यहां रहकर आजाद ने कुछ वक्त बिताया। यहां कई लोगों को निशानेबाज बनाया। राजा के बैरी क्रान्तिकारियों को उकसाते थे कि राजा को मारकर धन लूट लो। मगर आजाद इसे ठीक नहीं मानता - क्या बताया भला:

तर्ज: चौकलिया

झांसी धौरे एक राजा का चमचा सरदार बताया रै॥
आजाद नै थोड़े दिन उड़ै अपणा बख्त बिताया रै॥

झांसी के क्रान्तिकारी निशाना लाणा सिखा दिये
अचूक निशाना साधन मैं पारंगत सभी बना दिये
राजा मार कै धन जुटाओ रास्ते कुछ नै बता दिये
बैरी राजा के सलाह देवैं अन्दाजे आजाद लगा लिये
टाल मटौल कर आजाद नै मौका टाल्या चाहया रै॥
राजा के बैरी बोले के पाप जुल्मी नै मारण का
कंस मारण खातर के पाप कृष्ण रूप धारण का
के हरजा खोल बता मौत के घाट तारण का
आजाद बोल्या मसला सै गहराई तै विचारण का
हिंसा म्हारी मजबूरी सै आजाद नै समझाया रै॥
या मजबूरी म्हारे पै शासक आज के थोंप रहे
झूठ भकावैं और लूटैं चाकू कसूते घोंप रहे
सच्चाई का लाग्या बेरा माणस सारे चोंक रहे
हम चटनी गेल्यां खाते ये लगा घीके छोंक रहे
हत्यारे कोन्या हम दोस्तो चाहते देश आजाद कराया रै॥
नेक इरादा नेक काम का ध्येय सै म्हारा यो
नेक तौर तरीके अपणावां सार बात का सारा यो
आजादी म्हारी मंजिल सै फरज म्हारा थारा यो
रणबीर सिंह की कविताई सही लिखै नजारा यो
नरहत्या का आजाद विरोधी उसनै इसा जज्बा दिखाया रै॥

10

साधु बाबा के पास अमूल्य रतन था। उसे बाबा से हथिया कर क्रान्तिकारी हथियार खरीदना चाहते थे। सलाह की। बाबा की कुटी देखने गये। मगर कई आदमी मारे जाने के भय से उन्होंने यह योजना नहीं बनाई। आजाद और क्रान्तिकारी किसी के जीवन से खिलवाड़ नहीं करते थे। क्या बताया भला:

तर्ज: चौकलिया

अमूल्य रतन उसके धौरे साधू का बेरा पाड़ लिया॥
गंगा जी के घाट कुटिया राह गोन्डा ताड़ लिया॥

बैठ कै बतलाये सारे बाबा जी पै रतन ल्यावां
बेच कै उसनै हथियारां का हम भण्डार खूब बढ़ावां
योजना बना घणी पुख्ता रात अन्धेरों मैं जावां
डरा धमका बाबा जी नै योजना सिरै चढ़ावां
सोच हथियारां का फेर थोड़ा घणा जुगाड़ लिया॥
गुलाबी ठण्ड का मौसम रात जमा अन्धेरी थी
अन्ध्ेारे बीच चसै दीवा छटा न्यारी बखेरी थी
रात नौ बजे भगतां की संख्या उड़ै भतेरी थी
चरस की चीलम चालैं दुनिया तै आंख फेरी थी
गांजा पीवैं जोर लगाकै कर घर कसूता बिगाड़ लिया॥
राजगुरु आजाद नै तुरत स्कीम एक बनाई थी
शामिल होगे साधुआं मैं चीलम की बारी आई थी
मारी घूंट अपणी बारी पै देर कति ना लाई थी
चीलम पीगे जिननै कदे बीड़ी ना सुलगाई थी
सारी बात निगाह लई देख कुटी का कबाड़ लिया॥
वापिस आकै न्यों बोले काम नहीं सै होवण का
माणस घणे मारे जावैंगे माहौल बणैगा रोवण का
रतन बदले इतने माणस तुक नहीं सै खोवण का
चालो उल्टे चालांगे समों नहीं जंग झोवण का
रणबीर नहीं आजाद नै जीवन से खिलवाड़ किया॥

11

साइमन कमीशन भारत में आता है। उसका विरोध पूरे भारत में होता है। पंजाब में भी विरोध किया जाता है। अंग्रेजों की पुलिस अत्याचार करती है। लाला लाजपतराय पर लाठियां बरसाई जाती हैं। वे शहीद हो गये। बदला लेने को क्रान्तिकारियों ने साइमन को मारने का प्रण किया। साण्डरस मारा जाता है। चानन सिपाही क्रान्तिकारियों के पीछे भागता है भगतसिंह और राजगुरु के पीछे। आजाद गोली चलाता है चानन सिंह को गोली ठीक निशाने पर लगती है। आजाद को बहुत दुख होता है चानन सिंह की मौत का। क्या बताया भला:

तर्ज: चौकलिया

साइमन कमीशन गो बैक नारा गूंज्या आकाश मैं॥
साण्डर्स कै गोली मारकै पहोंचा दिया इतिहास मैं॥

राजगुरु की पहली गोली साण्डर्स मैं समा गई थी
भगतसिंह की पिस्तौल निशाना उनै बना गई थी
चानन सिंह सिपाही कै लाग इनकी हवा गई थी
पाछै भाज लिया चानन बन्दूक उसनै तना दई थी
दोनूआं के बीच कै लाया अचूक निशाना खास मैं॥
थोड़ी सी चूक निशाने की घणा पवाड़ा धर जाती
भगतसिंह कै राजगुरु का सीना छलनी कर जाती
आजाद जीवन्ता मरता क्रान्तिकारी भावना मर जाती
आजादी के परवान्यां के दुर्घटना पंख कतर जाती
आजाद गरक हो ज्याता आत्मग्लानि के अहसास मैं॥
चानन सिंह के मारे जाने का अफसोस हुया भारी था
आजाद नै जीवन प्यारा था वो असल क्रान्तिकारी था
खून के प्यासे आतंकवादी प्रचार यो सरकारी था
सूट एट साइट का उड़ै फरमान हुया जारी था
विचलित कदे हुया कोन्या भरया हुआ विश्वास मैं॥
कठिन काम तै घबराया ना चन्द्रशेखर की तासीर थी
आजाद भारत की उसकै साहमी रहवै तसबीर थी
इसकी खातर दिमाग मैं कई ढाल की तदबीर थी
आजाद नै चौबीस घन्टे दीखैं गुलामी की जंजीर थी
रणबीर आजाद कैहरया फायदा म्हारे इकलास मैं॥

12

एक दिन राजगुरु एक महिला की तसवीर वाला एक कैलेंडर लाकर कमरे में टांग देता है। आजाद कैलेंडर देखकर नाराज होता है और उतार कर फैंक देता है। दोनों में कहासुनी होती है। क्या बताया भला:

आगरा मैं थे क्रान्तिकारी उस बख्त की बात सुणाउं मैं॥
आजाद और राजगुरु बीच छिड़या यो जंग दिखलाउं मैं॥

राजगुरु नै फोटो आला कलैण्डर ल्याकै टांग दिया
आजाद नै टंग्या देख्या अखाड़ बाढ़ै वो छांग दिया
बोल्या उलझ तसबीरां मैं फिसलैंगे न्यों समझाउं मैं॥
राजगुरु आया तो बूझया कलैंडर क्यों पाड़ बगाया
आजाद बोल्या क्रान्ति का क्यों तनै बुखार चढ़ाया
क्यों सुन्दर तसबीर पाड़ी यो सवाल बूझणा चाहूं मैं॥
सुन्दर महिला की थी ज्यांतै पाड़ी सै तसबीर मनै
दोनूं काम साथ ना चालैं पाई अलग तासीर मनै
राजगुरु भाई गुस्सा थूक दे कोन्या झूठ भकाउं मैं॥
एक गाडडी के दो पहिये बीर मरद बतलाये सैं
सुन्दरता बिना संसार किसा सवाल सही ठाये सैं
आजाद मुलायम हो बोल्या आ बैठ तनै समझाउं मैं॥

13

सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन बड़े पैमाने पर शुरू हो जाता है। नवजागरण की लौ शहर गाम हर जगह पहोंचने लगती है। गांधी और भगतसिंह के विचार लोगों के सामने आते हैं। उनके बीच टकराव भी सामने आता है। क्या बताया भला:

उन्नीस सौ इक्कीस मैं असहयोग आन्दोलन की जंग छिड़ी॥
पूरे भारत की जनता फिरंगियां गेल्यां फेर आण भिड़ी॥

जलूस काढ़ते जगां जगां पै गांधी की सब जय बोलैं
भारत के नर नारी जेल गये जेल के भय तैं ना डोलैं
कहैं जंजीर गुलामी की खोलैं आई संघर्ष की आज घड़ी॥
नौजवान युवक युवती चाहवैं देश आजाद कराया
कल्पना दत्त नै कलकत्ता मैं चला गोली सबको बताया
आजादी की उमंग सबमैं भरी नौजवान सभा बनी कड़ी॥
ज्योतिबा फुले का चिंतन दलितां नै बार बार पुकौर था
मनु नै जो बात लिख दी उन बातां नै जड़तै नकारै था
नवजागरण की चिंगारी देश मैं सुलगै जगां जगां पड़ी॥
एक माहौल आजादी का चारों कान्ही जन जन मैं छाया फेर
गांधी भगतसिंह का विचार आपस मैं टकराया फेर
कहै रणबीर बरोने आला ढीली होई फिरंगी की तड़ी॥

14

एक हिस्सा क्रान्तिकारियों को आतंकवादी के रूप में देखता है। फिरंगी भी क्रांतिकारियों के बारे में आतंकवाइी कर इस्तेमाल करके तरह तरह की भ्रान्तियां फैलाने का पुरजोर प्रयास करते हैं। खूनी संघर्ष और अहिंसा के बीच बहस तेज होती है। क्या बताया भला:

क्रान्किारी हत्यारे कोन्या सन्देश दुनिया मैं पहोंचाया रै॥
जीवन तै प्यार घणा सै परचे मैं लिख कै बतलाया रै॥

जीवन तै प्यार ना होतै बढ़िया जीवन ताहिं क्यों लड़ैं
अत्याचार और जुलम के साहमी हम क्रान्तिकारी क्यों अड़ैं
फिरंगी साथ जरूर भिड़ैं आजादी का सपना भाया रै॥
शोषणकारी चालाक घणा पुलिस फौज के बेड़े लेरया
म्हारे साथी कर कर भरती भारत देश नै गेड़े देरया
खूनी संघर्ष कमेड़े लेरया फिरंगी समझ पाया रै॥
तख्ता पलट करने नै हथियार उठाने पड़ ज्यावैं
घणा नरक हुया जीवन सब घुट घुट कैनै मर ज्यावैं
नींव जरूरी धरज्यावैं समाज बराबरी का चाहया रै॥
समतावादी समाज होगा ये शोषण भारी रहै नहीं
बिना ताले के घर होंगे कितै चोरी जारी रहै नहीं
लूट खसोट म्हारी रहै नहीं रणबीर छन्द बनाया रै॥

15

फिरंगी सरकार गूंगी तै अपणी बात सुणाणी चाही॥
असैम्बली मैं बम फैंकण की फेर पुख्ता स्कीम बनाई॥

आठ अप्रैल का दिन छांट्या थोड़ा खुड़का करने का
अहिंसा के ढंग तै फिरंगी सोच्या नहीं सै डरने का
जनता मैं जोश भरने का सही रास्ता टोहया भाई॥
दमनकारी कानून देश पै वे लगाया चाहवैं थे
क्रान्तिकारी बात अपणी उड़ै पहोंचाया चाहतैं थे
फिरंगी नै बताया चाहवैं थे तूं सै जुलमी अन्याई॥
बम फैंक्या उसकी गेल्यां बांट्या एक परचा था
पूरी दुनिया मैं उस दिन हुया गजब चरचा था
कुर्बानी का भारया दरजा था भगतसिंह नै फांसी खाई॥
परचे मैं लिख राख्या था किसा भारत हम बणावांगे
सबनै शिक्षा काम सबनै हिन्द की श्यान बढ़ावांगे
जात पात नै मिटावांगे रणबीर की या कविताई।।

13

 रागनी-13

               कौण किसे की गेल्यां आया कौण किसे की गैल्यां जावै।।
               ऊधम सिंह के सपन्यां का यो भारत ईब कौण रचावै।।
               किसनै सै संसार बनाया किसनै रच्या समाज यो
               म्हारा भाग तै भूख बताया बाधैं कामचोर कै ताज यो
               मानवता का रूखाला आज पाई-पाई का मोहताज यो
               अंग्रेज क्यों लूट रहया सै मेहनत कश की लाज यो
               क्यों ना समझां बात मोटी अंग्रेज म्हारा भूत बणावै।।
               कौण पहाड़ तोड़ कै करता धरती समतल मैदाल ये
               हल चला खेंती उपजावै उसे का नाम किसान ये
               कौन धरा नै चीर कै खोदै चांदी सोने की खान ये
               ओहे क्यों कंगला घूम रहया गोरा बण्या धनवान ये
               म्हारे करम सैं माड़े कहकै अंग्रेज हमनै यो बहकावै।।
               हम आजादी चाहवां अक अनपढ़ता का मिटै अन्धकार
               हम आजादी चाहवां अक जोर जुल्म का मिटै संसार
               हम आजादी चाहवां अक ऊंच नीच का मिटै व्यवहार
               हम आजादी चाहवां अक लूट पाट का मिटै कारोबार
               जात पात और भाग भरोसै या कोन्या पार बसावै।।
               झूठ्यां पै ना यकीन करां म्हारी ताकत सै भरपूर
               म्हारी छाती तै टकराकै गोली होज्या चकना-चूर
               जागते रहियो सोइयो मतना ना म्हारी मंजिल दूर
               सिंरजन हारे हाथ म्हारे सै घणे अजब रणसूर
               देश की आजादी खातर ऊधम सिंह राह दिखावै।।

Udham singh

 किस्सा उधम सिंह

               वार्ताः शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 में हुआ था। देश पर अंग्रेजों का कब्जा था। पूरे ही देश में अंग्रेज भारत वासियों पर जुल्म ढा रहे थे। आजादी की पहली जंग जो 1857 में लड़ी गई थी। इसके बाद अंग्रेजों ने जनता पर और भी ज्यादा कहर ढाया था। शहीद ऊधम सिंह की मां सारे माहौल को देखकर दुखी हो जाती है और क्या सोचती हैं भलाः
               रागनी-1
               यो घर खावण नै आवै, रहवै दिल मेरा उदास
               नहीं दिखै कोए राही।।
               देही रंज फिकर ने खाली
               या उड़गी चेहरे की लाली
               कंगाली या बढ़ती जावै, नहीं बची जिन्दगी मैं आस
               गोरयां नै लूट मचाई।।
               यो अंग्रेज गिरकाणा सै
               हर बात मैं धिंगताणा सै
               पिछताणा सै धमकावै ना लेवण दे सुख की सांस
               ईज्जत तारणी चाही।।
               मैं सिर पाकड़ कै रोती
               सहन ये बात नहीं होती
               मोती ये चोरया चाहवै गेर दी म्हारे बीच मैं फांस
               बहोत घणा अन्याई।।
               रणबीर नै अंग्रेज दबाता
               गाम थो चुप रैह जाता
               सताता अर यो गुर्रावै नहीं बात आवै या रास
               दिल की बात बताई।।

             

शहीद ऊधम सिंह एक बहुत ही गरीब परिवार का बच्चा था, जब पूरे देश में अंग्रेजो का जोर जुल्म चल रहा था तो पंजाब में भी जलियां वाला बाग जैसा हत्या काण्ड 1919 में वैशाखी के दिन होता है। इसका ऊधम सिंह के दिलो दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। एक दिन वह बैठा-बैठा सोचने लगता है। क्या बताया भलाः
               रागनी-2
               भारत देश पै जिसनै भी अत्याचार भूल कै था ढाया।।
               जुल्म ढावणिया का वीरों नै था नामों निशान मिटाया।।
               हिर्णा कुश दुर्योधन कंस नै जुल्म घणा ढाया था
               म्हारे वीरां नै बढ़ आगै इनको सबक सिखाया था
               जालिम खत्म करने खातर अपना खून बहाया था
               ठारा सौ सतावण की जंग मैं होसला खूब दिखाया था
               सिख हिंदू मुस्लिम सबनै हंस-हंस वैफ शीश कटाया।।
               ईस्ट इंडिया आई देश मैं अपणे पैर पसार लिये
               राज पै करकै कब्जा बहोत घणे अत्याचार किये
               गूंठे कटाये कारीगरां के मौत के घाट उतार दिये
               मल-मल ढाका आली थी उसपै कसूते वार किये
               बिगाड़ कै शिक्षा म्हारी यो राह गुलामी का दिखाया।।
               यो वीर लाडला देश कातै ना अपणे प्रण तै भटकै
               कोए करै प्राण न्यौछावर हंस-हंस फांसी पै लटकै
               कई खेलगे खून की होली छाती खोल दी बेखटकै
               पिठू अंग्रेजा की झोली मैं बहोत घणा यो मटकै
               अंग्रेजां की पींड़ी कापी थी जिब जनता नै नारा लाया।।
               भारत देश यो निराला बिरले घणे इसके माली
               किस्म-किस्म के फूल खिले कई ढंग के पत्ते डाली
               खड़ी फसल जब लूटी म्हारी तो खड़या रोया हाली
               जलियां वाले बाग के अन्दर ये बही खून की नाली
               रणबीर सिंह बरोने आले नै सुण कै छन्द बनाया।।

               वार्ताः 21 जुलाई 1940 को भारत के इस महाल शहीद को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी। सन 1974 में जाकर इस शहीद की अस्थियां भारत आ पाई। ऊधम सिंह पंजाब में सुनाम गांव का रहने वाला था। उसके पिता टहल सिंह कम्बोज थे। तीन साल की उमर में माता का साया सिर से उठ जाता है। क्या बताया भलाः
               रागनी-3
               ऊधम सिंह हुआ शूरवीर भारत का अजब सिपाही।।
               सुनाम शहर पंजाब मैं श्यान जिनकी गजब बताई।।
               टहल सिंह कम्बोज बाबू था करकै मेहनत पाल्या था
               गरीबी क्यूकर तोड़ै माणस नै उसका देख्या भाल्या था
               भारत का जनमाणस गोरयां नै अपणै संग ढाल्या था
               चपड़ासी की करै नौकरी अपणा सब कुछ गाल्या था
               देश प्रेम की टहल सिंह नै पकड़ी नबज बताई।।
               चारों कान्ही देश प्रेम की पंजाब मैं थी लहर चली
               गाम-गाम मैं चर्चा होगी हर गली और शहर चली
   ईन्कलाब जिन्दाबाद की घणे गजब की बहर चली
               सन ठारा सौ सतावण मैं हांसी मैं खूनी नहर चली
               इस आजादी की चिन्गारी तै गोरयां कै दी कब्ज दिखाई।।
               तीन साल का बालक था जिब माता हो बिमार गई रै
               इलाज का कोए प्रबन्ध ना था बीमारी कर मार गई रै
               याणे से की बिन आई मैं माता स्वर्ग सिधार गई रै
               फेर खमोशी सारे घर मैं बिना बुलाएं पधार गई रै
               बिन माता याणा बालक इसतै भूंडी ना मरज सुणाई।।
               छह साल की उम्र हुई जिब पिताजी नै मुंह मोड़ लिया
               तावले से नै लिया सम्भाला देशप्रेम तै नाता जोड़ लिया
               रणबीर बरोने आले नै आज बणा सही यो तोड़ लिया
               गरीबी मैं रैहकै बी ओ कदे भूल्या नहीं था फरज भाई।।

               वार्ताः ऊधम सिंह जलियां वाले बाग के घायलों की सेवा के लिए अस्पताल में जाता है। वहां उसकी एक नर्स से मुलाकात होती है। घायलों के मुुुंह से सुन-सुन कर उस नर्स के पास बहुत सी बाते थी। एक दिन वह नर्स ऊधम सिंह को जलियां वाले बाग के बारे में क्या बताती है भलाः
               रागनी-4
               निशान काला जुलम कुढाला यो जलियां आला बाग हुया।।
               अंग्रेज हकुमत के चेहरे पै घणा बड्डा काला दाग हुया।।
               देश की आजादी की खातर बाग मैं तोड़ होग्या
               इतिहास के अन्दर बाग एक खास मोड़ होग्या
               देश खड़या एक औड़ होग्या जिब यो खूनी फाग हुया।।
               इसतै पहलम बी देश भक्ति का था पूरा जोर हुया
               मुठ्ठी भर थे क्रान्तिकारी सुधार वादियों का शोर हुया
               दंग फिरंगी चोर हुया बुलन्द आजादी का राग हुया।।
               शहरी बंगले गाम के कंगले सबको ही झकझोर दिया
               कांप उठी मानवता सारी जुलम घणा महाघोर किया
               एकता को कमजोर किया इसा फिरंगी जहरी नाग हुया।।
               कुर्बानी दी उड़ै वीरों नै वा जावै कदे बी खाली ना
               जिब जनता ले मार मंडासा फेर पार किसे की चाली ना
               जीतों बैठैगी ठाली ना रणबीर सिंह चाहे निर्भाग हुया।।

               वार्ताः ऊधम सिंह और नर्स की बात बढ़ती है। ऊधम सिंह कहता है कि ज्यादातर लोगों की राय में नर्से ज्यादा काम नहीं करती। सामाजिक स्तर पर इस काम को हेय समझा जाता है। कोई नर्स से शादी करने को तैयार नहीं। यह सुनकर नर्स ऊधम सिंह को क्या बताती है नर्सिंग प्रोफैशन के बारे मेंः
               रागनी-5
               माणस की ज्यान बचावैं अपणी ज्यान की बाजी लाकै।।
               फिर बी सम्मान ना मिलता देख म्हारे राम जी आकै।।
               मरते माणस की सेवा मैं हम दिन और रात एक करैं
               भुलाकै दुख और दरद हंसती हंसती काम अनेक करैं
               लोग क्यों चरित्रहीन का तगमा म्हारे सिर पर टेक धरैं
               घरआली नै छोड़ भाजज्यां देखै बांट वा एड्डी ठाकै।।
               फलोरैंस नाइटिगेल नै नर्सों की इज्जत आसमान चढ़ाई
               लालटेन ले कै करी सेवा महायुद्ध मैं थी छिड़ी लड़ाई
               कौण के कहवैगा उस ताहिं वा बिल्कुल भी नहीं घबराई
               फेर दुनिया मैं नर्सों नै थी मानवता की अलग जगाई
               बाट देखते नाइटिंगेेल की फौजी सारे मुंह नै बांकै।।
               करती पूरा ख्यालबिमारां का फेर घर का सारा काम होज्या
               डाक्टर बिना बात डाट मारदे जल भुन काला चाम होज्या
               कहवैं नर्सें काम नहीं करती चाहवैं उसकी गुलाम होज्या
               मरीज बी खोटी नजर गेर दे खतम खुशी तमाम होज्या
               दुख अपणा ऊधम सिंह रोवां किसके धोरै जाकै।।
               काम घणा तनखा थोड़ी म्हारा सबका शोषण होवै क्यों
               सब भारत वासी मिल रोवैं जीतों अकेली रोवै क्यों
               बिना एकता नहीं गुजारा न्यारा-न्यारा बोझा ढोवैं क्यों
               गोरयां की चाल समझल्यां ईब झूठा झगड़ा झोवै क्यों
               रणबीर सिंह साथ देवैगा आज न्यारे छन्द बणाकै।।

               वार्ताः नर्स से बातचीत में ऊधम सिंह कहता है कि आजादी की लड़ाई तो हम नौजवान लड़ रहे है। महिलाओं को घर का मोर्चा सम्भालना चाहिये। महिलाओं की आजादी की जंग में हिस्सेदारी को लेकर काफी बहस होती है। जीतो ऊधम सिंह को इस बारे में क्या कहती है कवि के शब्दों मेंः
               रागनी-6
               बिन म्हारी हिस्सेदारी के क्यूकर देश आजाद करावैगा।।,
               करकै घरां मैं कैद हमनै किसा भारत नया बणावैगा।।
               जनता नै सुथरा सा सपना देख्या भारत नया बणावै
               आजाद होकै अपणी बगिया मैं लाल गुलाब खिलावै
               गोल मटोल से बालक होंगे हांगा लाकै खूब पढ़ावै
               इन्सानी जज्बा मरण लागरया सोचै कैसे उल्टा ल्यावै
               औरत की जंजीर तोड़कै देश सही आजादी पावैगा।।
               माणस हिंदू मुस्लिम होंगे ना इन्सान की जात मिलै
               विश्वास कति खत्म हो लिया माणस करता घात मिलै
               जीत कौर बरगी महिला का मुश्किल तनै साथ मिलै
               महिला साथ लड़ी जड़ै उड़ै न्यारी ढाल की बात मिलै
               जीत कौर का ना साथ लिया तै पीछे फेर पछतावैगा।।
               शहीद होणा हम भी जाणैं तनै साची बात बताउं मैं
               दिल म्हारे मैं जो तुफान उठ्या किसनै आज दिखाउं मैं
               मुठ्ठी भर चाहो आजादी ल्याणा थारी कमी जत़ाउं मैं
               महिला आधी भारत सैं इनकी पूरी शिरकत चाहूं मैं
               मेरी बात गांठ मार लिये बख्त मनै ठीक ठहरावैगा।।
               म्हारी आजादी बिना इस आजादी का अधूरा सार रहै
               मार काट मची रहवैगी यो नहीं सुखी घर बार रहै
               मेरी बात गौर करिये कदे चढ़या योहे बुखार रहै
               बेरा ना मेरी बात नै रणबीर सिंह क्यूंकर समझावैगा।।

               वार्ताः ऊधम सिंह एक दिन जीत कौर के पास आता है। बहुत परेशान था। जीत कौर परेशानी का कारण पूछती है। ऊधम सिंह कहता है कि मुझे लोग समझाते है कि अंग्रेजों के राज में तो सूरज नहीं छिपता। ये भारत देश को छोड़ कर नहीं जाने वालें मुझे बड़ी परेशानी होती है यह सुनकर। क्या बताया भलाः
               रागनी-7
               हाल देख कै जनता का कोए बाकी रही कसर कोन्या।।
               अंग्रेजां का जुलम बढ़या ईब बिल्कुल बच्या सबर कोन्या।।
               सोने की चिड़िया भारत जमा लूट कै गेर दिया
               किसान और मजदूर बिचारा जमा चूट कै गेर दिया
               क्यों खसूट कै गेर दिया आवै जमा सबर कोन्या।।
               सिर बी म्हारा जूती म्हारी म्हारे सिर पै मारैं सै
               बोलैं जो उनके साहमी यो उसके सिर नै तारैं सै
               कंस का रूप धारैं सै छोडया कोए नगर कोन्या।।
               म्हारी कमाई मौज उनकी म्हारी समझ ना आई
               देश की तरक्की के ना पै आड़ै जमकै लूट मचाई
               या बन्दर बांट मचाई आसान रही बसर कोन्या।।
               उनके पिठ्ठु कहते सुने राज मैं ना सूरज छिपता
               क्यूकर काढ़ो देश तै रणबीर सिंह कुछ ना दिखता
               हुक्म बिना ना पत्ता हिलता कहते तनै खबर कोन्या।।
               वार्ताः ऊधम सिंह या उसके साथी बातचीत के बाद ऊधम सिंह को लन्दन भेजने की तैयारी करते हैं। वह नाम बदल कर लन्दन जाने की तैयारी करता है उसकी आंखों के सामने डायर घूमता रहता था। क्या बताया भलाः
               रागनी-7
               ऊधम ंिसंह नै सोच समझ कै करी लन्दन की जाने की तैयारी।।
               राम मुहम्मद नाम धरया और पास पोर्ट लिया सरकारी।।
               किस तरियां जालिम डायर थ्यावै चिन्ता थी दिन रात यही
               बिना बदला लिये ना उल्टा आऊं हरदम सोची बात यही
               उनै मौके की थी बाट सही मिलकै उंच नीच सब बिचारी।।
               चैबीस घण्टे उसकै लाग्या पाछै यो मौका असली थ्याया ना     
               जितने दिन भी रहया टोह मैं उनै दाणा तक भी भाया ना
               लन्दन मैं भी भय खाया ना था ऊधम क्रान्तिकारी।।,
               दिन रात और सबेरी डायर उनै खड़ा दिखाई दे था
               हाथ गौज में पिस्तोल उपर हमेशा पड़या दिखाई दे था
               भगत सिंह भिड़या दिखाई दे भर आंख्यां के मां चिन्गारी।।
               होई कदे समाई कोन्या उसकै लगी बदन मैं आग भाई
               न्यों सोचें जाया करता हमनै हो खेलना खूनी फाग भाई
               रणबीर का सफल राग भाई जिब या जनता उठै सारी।।
               वार्ताःऊधम सिंह और डायर आमने-सामने होते हैं तो डायर कांप उठता है। वह अपने जीवन की भीख मांगता है तो ऊधम सिंह क्या जवाब देता है और क्या कहता हैः
               रागनी-8
               आहमी साहमी खड़े दोनों डायर का चेहरा पीला पड़ग्या।।
               आसंग रही ना बोलण की जणो जहरी नाग आण कै लड़ग्या।।
               थर-थर पींडी कांप उठी भय चेहरे कै उपर छाया था
               मारै मतना मनै ऊधम सिंह डायर न्यों मिमयाया था
               उसनै भाजना चाहया था ऊधम सिंह झट आग्गै अड़ग्या।
               ऊधम सिंह की आंख्यां आग्गै वो बाग नाजारा घूम गया
               डायर नै मरवाये हजारा्रं भारतवासी बिचारा घूम गया
               यो पंजाब सारा घूम गया उसकै़ नाग बम्बी मैं बड़ग्या।।
               पापी डायर कित भाजै सै करना मनै तुं माफ नहीं
               भीख मांगता जीवन की उस दिन करया इंसाफ नहीं
               काला दिल सै जमा साफ नहीं तेरा ईबक्यों चेहरा झड़ग्या।।
               बणकै मौत खड़या साहमी उनै बिल्कुल भी भय खाया ना
               ईन्कलाब कहया जिन्दाबाद कति भाजण का डा ठाया ना
               ऊधम सिंह पिछताया ना रणबीर सिंह सही छन्द घड़ग्या।।
               वार्ताः हाल के अन्दर सभा हो रही थी। आमना सामना हुआ। आंखों में आंखें मिली। आंखों ही आंखों में  कुछ कहा एक दूसरे को ।मौका पाते ही ऊधम सिंह ने निशाना साध दिया। कवि ने क्या बताया भलाः
               रागनी-9
               धांय धांय धांय होई उड़ै दनादन गोली चाली थी।।
               कांपग्या क्रैक्सटन हाल सब दरवाजे खिड़की हाली थी।।
               पहली दो गोली दागी उस डायर की छाती के म्हां
               मंच तै नीचै पड़ग्या ज्यान ना रही खुरापाती के म्हां
               काढ़ी गोली हिम्माती के म्हां खतरे की बाजी टाली थी।।
               लार्ड जैट कै लागी जाकै दूजी  गोली दागी थी
               लुई डेन हेन हुया घायल मेम ज्यान बचाकै भागी थी
               चीख पुकार होण लागी थी सब कुर्सी होगी खाली थी।।
               बीस बरस ग्यारा म्हीने मै जुलम का बदला तार लिया
               तेरह मार्च चैबीस मैं माइकल ओ डायर मार दिया
                अचम्भित कर संसार दिया उनै कोन्या मानी काली थी।।
               जलियां आले बाग का बदला लिया लन्दन मैं जाकै
               अंग्रेजां नै हुई भिड़ी धरती भाग लिये वे घबराकै
               रणबीर नै कलम उठाकै नै झट चार कली ये घाली थी।।
               वार्ताः 31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह को फांसी दे दी जाती है खबर उसके शहर सुनाम पहुंचती है। एक बुजुर्ग ऊधम सिंह को बहुत चाहता था। अनाथ घर में भी उसकी सम्भाल किया करता था। वह बहुत दुखी होता है और क्या कहता है भलाः
               रागनी-10
               बेटा उधम सिंह चला गया तो के सै मेरे लाल भतेरे।। 
               उस वीर बहादुर बरगे देश मैं न्यूंए ठोकैंगे ताल कमेरे।।             
               उसका कसूर था इतना देश प्रेम की लौ लगाई थी
               देश नै आजाद करावां मिलकै नै अलाख जगाई थी
               बढ़ता गया आगै बेटा आजादी की लड़ी लड़ाई थी
               अंग्रेजां नै कदे बी ना कोए उसकी बात सुहाई थी
               पूत पालनै मैं पिछणै सै यो करगे ख्याल बडेरे।।
               मैं न्यों बोल्या उसतै अपणा बख्त बरबाद करै सै
               उम्र्र सै खेलण खावण की राजनीति की बात करै सै
               न्यों बोल्या ज्यांए करकै अंग्रेज हमपै राज करै सै
               बिना शान के जीणा चाचा मनमैं दिन रात फिरै सै
               सारी उम्र हम करां कमाई क्यों लूटैं माल लुटेरे।।
               गैर कैंडै नहीं चलूंगा बोल्या मेरा विश्वास करिये
               आर्शीवाद देदे अपणा ना मनै आज निराश करिये
               भारत मां की आजादी की  दिल तै ख्यास करिये
               पलहम परिक्षा लेले पाछै फेल और पास करिये
               देश आजाद कराणा लाजमी ये ठारे ढाल पथेरे।।
               मैं सूं भारत देश का सच्चा ताबेदार सिपाही
               गोरयां नै वैशाखी आले दिन ढाई घणी तबाही
               म्हारी बहू बेटी नै तकते होती ना जमा समाई
               रणबीर मार गोली छाती मैं उसनै कसम पुगाई
               फसल असली थे भारत की वे ना थे ंघास पटेरे।।
               वार्ताः ऊधम सिंह ने देश के मान सम्मान और आजादी के लिए अपनी ज्यान न्यौछावर कर दी। लन्दन में जाकर माइकल ओ डायर को गोलियों से भून दिया और-और हंसते हंसते फांसी का पफंदा चूम गया। उसनै भारत के सपूतों को ललकार दी। क्या बताया कवि नेः
               रागनी-11
               ऊधम सिंह नै ललकार दी थी, भारत मैं पुकार गई थी,
               जंजीर गुलामी की तोड़ दियो।।
               न्यूं बोलियो सब कठ्ठे होकै भारत माता जिन्दाबाद
               शहर सुनाम देश हमारा, गोरयां नै कर दिया बरबाद
               फिरंगी सैं घणे सत्यानाशी, करकै अपनी दूर उदासी
                                               मुंह तोपा का मोड़ दियो।।
               म्हारा होंसला करदे खुन्डा उनके दमन के इथियार
               लक्ष्मी सहगल साथ मैं म्हारै ठाकै खड़ी हुई तलवार
               हिन्दुस्तान नै दी किलकारी, देश प्रेम की ला चिन्गारी
               कुर्बानी की लगा होड़ दियो।।
               हर भारतवासी नै देश प्रेम का यो झंण्डा ठाया था
               पत्थर मतना पूजो भाई न्यूं यो आसमान गूजाया था
               लाया था सारे कै नारा, जुणसा लाग्गै हमनै प्यारा
                                               इन पत्थरां नै फोड़ दियो।।
               देश मैं छाग्या सबकै ऊधम सिंह की बातां का रंग
               इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा अंग्रेज सुण होग्या दंग
               रणबीर ने जंग तसबीर बनाई, गुलाब सिंह नै गाकै सुनाई
                                               दखे सुर मैं सुर जोड़ दियो।।
               वार्ताः देश में आन्दोलन पहले चल रहा था। किसान मजदूर डाक्टर वकील सब देश के मुक्ति आन्दोलन में सक्रिय हो रहे थे। ऊधम सिंह की शहादत ने भारत वर्ष में तहलका मचा दिया। उसकी कुर्बानी के चरचे लोगों की जुबान पर थे। कवि ने क्या बताया भलाः
               रागनी-12
               ऊधम सिंह मेरे ग्यान मैं, भारत देश की श्यान मैं
               इस सारे विश्व महान मैं, यो तेरा नाम अमर हो गया।।
               असूलां की जो चली लड़ाई, उसमैं खूब लड़या था तूं
               स्याहमी अंग्रेजां के भाई, डटकै हुया खड़या था तूं
               बबर शेर की मांद के म्हां, अकेला जा बड़या था तूं
               अव्वल था तु ध्यान मैं, रस था तेरी जुबान मैं
               सारे ही हिंदुस्तान मैं, यो तेरा पैगाम अमर हो गया।।
               देख इरादा पक्का तुम्हारा, हो गया मैं निहाल जमा
               भारत मां की सेवा में दे दिया सब धन माल जमा
               एक बै मरकै देश की खातर जीवै हजारौ साल जमा
               डायर नै सबक चखान मैं, इस लड़ाई के दौरान मैं
               निशाना सही बिठान मैं, यो तेरा काम अमर होग्या।।
               पक्के इरादे के साहमी अंग्रेजां की पार बसाई ना
               जलियां आला बाग देखकै फेर तेरै हुई समाई ना
               धार लई अपने मन मैं किसे और तै बताई ना
               तू अपने इस इम्तिहान मैं, अपनी ही ज्यान खपान मैं
               देश की आन बचान मैं, तू डेरा थाम अमर होग्या।।
               जो लड़ी-लड़ाई तनै साथी वा लड़ाई थी असूला पै
               वुर्बानी तेरी रंग ल्यावैगी जग थूकै ऊल जलूलां पै
               जिस बाग का फूल हुया नाज करंै उसके फूलां पै
               ईब आग्या सही पहचान मैं, भूले थे हम अनजान मैं
               तूं सफल हुया मैदान मैं, यो तेरा सलाम अमर होग्या।।
               वार्ताः जीत कौर को सुनाम के शहर में सूचना मिलती है ऊधम सिंह की शहादत की। वह मन ही मन रो पड़ती है पुरानी मुलाकातों को याद करके। समझ नहीं आता उसे कि वह ऊधम सिंह के साथ अपने रिश्ते को कैसे समझे। ऊधम सिंह का आजादी का सपना ही उसे सही रिश्ता लगता है उसके साथ। क्या सोचती है भला।
               रागनी-13
               कौण किसे की गेल्यां आया कौण किसे की गैल्यां जावै।।
               ऊधम सिंह के सपन्यां का यो भारत ईब कौण रचावै।।
               किसनै सै संसार बनाया किसनै रच्या समाज यो
               म्हारा भाग तै भूख बताया बाधैं कामचोर क

सोच सोच कर घबरा जाता हूँ मैं

 सोच सोच कर

सोच सोच कर घबरा जाता हूँ मैं

सोच सोच कर
सोच सोच कर घबरा जाता हूँ मैं
अपने आप को अकेला पाता हूँ मैं
एक  नयी दुनिया का सपना मेरा है
यहाँ क्या मेरा है और क्या तेरा है
इंसानियत  पैदा की है समाज ने
हैवानियत  पैदा की है दगा बाज ने
हैवानियत ख़त्म हो है यही सपना
इंसानियत बढे यही लक्ष्य अपना
मनकी शान्ति की खोज में धर्मात्मा
खोजते खोजते खोज लिया परमात्मा
अपनी शान्ति पाई हमारी लूट पर
हमारी शांति भगवन की छूट पर
भगवान भी इंसान की खोज कहते
हम तो भुगतें वो करते मौज रहते
जिस दिन ये चालबाजी भगवान की
समझ आयेगी तो मुक्ति इन्सान की
सोचता हूँ जितना उतना ही भगवान
नजर आता है मुझको तो बस शैतान
मेरे लिए तो मेहनत इमानदारी
उनको लूट की दी उसने थानेदारी
सबसे पहले होगी बगावत मेरी
सामने  लायेगी उसकी हेरा फेरी
जग नहीं है सोता उसकी हाँ के बिना
घोटाला कैसे होता उसकी हाँ के बिना
मंदिरों में हजारों टन सोना जमा है
यहाँ भूख से मौतों का लगा मजमा है
लोगो ने चढ़ावा चढ़ाया है मंदिरों में
चढ़ावे तेन मौज उड़ाया है मंदिरों में
महिला को दासी बनाया है मंदिरों में
गरीबों को गया भरमाया है मंदिरों में
मन की  शांति नहीं मिली है मंदिरों में
इंसानियत आज हिली है मन्दिरों में
बुद्ध ने नया रास्ता खोजा मन शांति का
भगवान को नाकारा दर तोडा भ्रान्ति का
मार्क्स ने धर्म को अफीम बताया था
गरीब किया आदि हमें समझाया था
पूंजी का खेल सारा है पूंजीवाद में
इसका जवाब तो है समाजवाद में
सोचता समाजवाद कैसा हो आज का
क्या रिश्ता होगा चिड़िया और बाज का
कई सवाल हैं जिनके ढूँढने जवाब
महात्मा ने नहीं हमें ढूँढने जनाब
रंग भरने हैं समाजवादी समाज में
सब की हिस्सेदारी के सही अंदाज में 
"रणबीर "

छोटूराम नै राह दिखाया बोलना

 


चारों कांहीं लुट पिट लिया अपणा ठिकाना पाज्या रै।।
जात पात और इलाके पै के थ्याया मनै बताज्या रै।।
1
छोटूराम नै राह दिखाया बोलना तूँ सीख किसान दुश्मन की पहचान सही तोलना तूँ दीख किसान
तीस साल मैं हीर फिर कै कर्जा हट हटकै नै खाज्या रै।।
जात पात और इलाके पै के थ्याया मनै बताज्या रै।।
2
जात गोत इलाके पर किसान कसूते बांट दिए रै
किसान की कमाई लूट ली सबतैं न्यारे छांट दिए रै
अन्नदाता क्यों सै भूखा मनै मतलब समझाज्या रै।।
जात पात और इलाके पै के थ्याया मनै बताज्या रै।।
3
दो किले धरती बची बीस लाख किले के लगवाए
धरती गई चालीस लाख फेर तनै खा पड़काए
चकाचौंध मचारे सैं कसूती आंख जमा चुंधियाज्या रै।।
जात पात और इलाके पै के थ्याया मनै बताज्या रै।।
4
पीसे आले तेरी कौम के तनै तड़पता छोड़ गए रै
किमैं दलाल बने ठेकेदार तेरे तैं नाता तोड़ गए रै
रणबीर किसान सभा मैं सोच समझ कै आज्या रै।।
जात पात और इलाके पै के थ्याया मनै बताज्या रै।।

शहीद ए आजम भगत सिंह

 

माता जी मनै आज्ञा देदे देश नै आजाद कराऊँ मैं
री माता दूध तेरा यो करकै सफल दिखाऊं मैं ।।
1
माता तनै लाड प्यार तैं देश भक्ति का पाठ पढ़ाया
जिसकी खातर तैयार किया सुण माता बख्त वो आया
अपनी छाती का दूध पिलाया नहीं कोख लजाऊं मैं।।
री माता दूध तेरा यो करकै सफल दिखाऊं मैं ।।
2
शेर बबर की तरियां सीना खोल चलैं क्रांतिकारी
गाजर मूली समझैँ गोरे क्यों उनकी अक्कल मारी
बढ़ती जागी ताकत म्हारी साची साच बताऊँ मैं।।
री माता दूध तेरा यो करकै सफल दिखाऊं मैं ।।
3
देश मैं अलख जगावैं क्रांतिकारी देकै नै क़ुरबानी
कई बरस हो लिए माता गोरी ताकत नहीं मानी
नहीं डरते हम हिंदुस्तानी कोण्या झूठ भकाऊं मैं।।
री माता दूध तेरा यो करकै सफल दिखाऊं मैं ।।
4
अंग्रेज गोरे फुट गेरै अपणा राज बचावण नै रै
देश की जनता मिलकै लड़ैगी देश छुडावण नै रै
रणबीर छंद बणावण नै रै या कलम घिसाऊं मैं ।।
री माता दूध तेरा यो करकै सफल दिखाऊं मैं ।।

धरम के सै माणस का 

 धरम के सै माणस का मनै कोये बतादयो नै।

माणस मारो लिख्या कड़ै मनै कोये दिखादयो नै।।
1
माणस तै मत प्यार करो कौणसा धरम सिखावै
सरेआम अत्याचार  करो कौणसा धरम सिखावै
तम दारू का ब्यौपार करो कौणसा धरम सिखावै
रोजाना नर संहार करो कौणसा धरम सिखावै
धरम क्यों खून के प्यासे मनै कोण समझादयो नै।।
माणस मारो लिख्या कड़ै मनै कोये दिखादयो नै।।
2
ईसरा राम और अल्लाह जिब एक बताये सारे रै
इनके चाहवण आले बन्दे क्यूं खार कसूती खारे रै
क्यों एक दूजे नै मारण नै एके जी हाथां ठारे रै
अमीर देस हथियार बेच कै खूबै मौज उड़ारे रै
बैर करो मारो काटो लिखै वो ग्रंथ भुलादयो नै।।
माणस मारो लिख्या कड़ै मनै कोये दिखादयो नै।।
3
मानवता का तत कहैं सब धरमां की जड़ मैं सै
प्रेम कुदरत का सारा सब धरमां की लड़ मैं सै
कदे कदीमी प्रेम का रिस्ता माणस की धड़ मैं सै
कट्टरवाद नै घेर लिया यो धरम जकड़ मैं सै
लोगां तै अरदास मेरी क्यूकरै इनै छटवादयो नै।।
माणस मारो लिख्या कड़ै मनै कोये दिखादयो नै।।
4
यो जहर तत्ववाद का सब धरमां मैं फैला दिया
कट्टरवाद घोल प्याली मैं सब तांहि पिला दिया
स्कीम बणा दंगे करे इन्सान खड़या जला दिया
बड़ मानवता का आज सब धर्मां नै हिला दिया
रणबीर रोवै सै खड़या इसनै चुप करवादयो नै।।
माणस मारो लिख्या कड़ै मनै कोये दिखादयो नै।।

देश विकास पटरी से उतार दिया

 


दो हजार पन्दरा के मैं रफाल सौदा करया बतावैं।।
एक सौ छब्बीस बदले छत्तीस दुगने दाम दिए छिपावैं ।।
1
दो हजार सौलां मैं नोटबन्दी तैं घर घर मैं लूट मचाई
बैंकरपसी ऐंड इंसोलवैंसी एक्ट तैं बैंकां की लूट कराई
दो हजार सतरां मैं जीएसटी तैं छोटे व्यापारी कै सांस चढ़ावैं।।
2
विदेशी पूंजी खातर दरवाजे हरेक क्षेत्र के खोल दिये
पूरी अर्थव्यवस्था के सांचे कर जमा डामा डोल दिये
पड़ौसी देशां तैं सम्बन्ध बिगाड़े झूठे साचे दोष लगावैं।।
3
फेर अमरीका के हथियार खरीदे यो देश खजाना लुटवाया
साम्राज्यवादियों और उनके दलाल पूंजीपतियों को बढ़ाया
पूरे देश मैं साम्प्रदायिक हिंसा जनता नै बाँटन नै फैलावैं।।
4
कृषि क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र इनकी झलां तैं बचरे थे
इनके साहरै गरीब जनता के किसे तरां दिन कटरे थे
तीन कृषि कानून ल्याकै काबू करने की नीत दिखावैं।।
5
देश के किसानों नै संघर्ष का यो बिगुल बजाया फेर
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई भाई भाई का नारा लाया फेर
किसान देश के लूट मुक्ति का रणबीर सही राह सुझावैं।।

रोहतक शहर

 रोहतक शहर का इतिहास बहुत घना पुराना बताया।।

ठारा सौ चौबीस में अंग्रेजों ने हेडक्वार्टर था बनाया।।
1
ठारा सौ सड़सठ के मैं वाल्ड सिटी की आकार बताई
म्युनिसिपेलिटी रोहतक शहर की इस साल मैं बनाई
ग्यारा गेट थे रोहतक के दिल्ली गेट मेन गेट चमकाया।।
2
दो हिस्से थे रोहतक के एक नै रोहतक प्रॉपर कहते थे
दूसरा हिस्सा बाबरा का था घणे लोग उसमैं रहते थे
पन्दरा हजार सात सौ जनसंख्या का अंदाज लगाया ।।
3
आठ हजार हिंदू बताते सात हजार मुस्लिम रहया करते
पांच सौ जैन भाई बासठ सिख दुख सुख सहया करते  
बीस तीस ईसाई का भी हिस्सा रोहटक मैं जताया।।
4
उन बख्तों मैं रोहतक दो ढाल की पगड़ी
बनावै था
प्लेन अर कशीदाकारी पगड़ी दूर-दूर जाण्या जावै था
सहज सहज आगै बढ़ग्या रणबीर नै कलम चलाया।।

त्राहि-त्राहि माच 

 त्राहि-त्राहि माच रही दुनिया मरै सै तिसाई देखो

पाणी बिना विकास किसा चाले उल्टी राही देखो
1
बीस करोड़ तैं फलटी पै साफ पाणी ना पीवण खातर
पाणी दूसरी जरूरत बताई आड़ै जीवन की खातर
बिना पाणी के ताल सूने गामां की रूसवाई देखो
2
दो सौ एम ए एफ पाणी हरियाणे मैं लगभग बताया
चार सौ एम ए एफ चाहिए नहीं कदे  ज़िकर चलाया
एस वाई एल देगी सतरा मची सै लड़ाई देखो
3
यो एक सौ तिरासी एम ए एफ कित तैं आवै म्हारै
इसे विकास की आज साच्ची कौन तस्वीर तारै
रणबीर बात बिचारै बिचार कै बहन अर भाई देखो

26 जनवरी

 रागनी जींद रैली

नई अनाज मंडी के मां किसान मजदूर आये भाई।।

संयुक्त किसान मोर्चे के किसान जींद मैं छाये भाई।।

1

पूरी भरी भरी बस ये चारों तरफ तैं आवण लागी रै

ट्रैक्टर ट्राली भरी लोगां तैं सड़कों पै छावण लागी रै

पीला ओढ़ना पीली पगड़ी हरी टोपी नै नारे लाये भाई।।

2

ग्यारां बजते बजते उड़ै महिला पुरुष थे आण लगे 

किसान मजदूर एकता के वे मिलकै नारे लाण लगे 

बीस पच्चीस हजार पहोंचे  बारा बजे ताहिं बताये भाई।।

3

आस पास के गामां तैं कई कई मण रोटी आई भाई

किसे गाम तैं टनों दूध के ये ड्राम किसानी ल्याई भाई

खाण पीन के लंगर लागे सबनै परांठे उड़ै खाये भाई।।

4

सात सौ किसान भाईयों की शहादत सबनै याद करी थी

उनके सम्मान मैं खड़े होकै सबनै दो मिंट मौन धरी थी

इसके बाद उग्राहा जी नै माइक पै आकै हालात बताये भाई।।

5

जोगिंदर सिंह उग्राहा के भाषण पै सबनै ताली बजाई थी

राकेश टिकैत नै भी सभा मैं जोर की हुंकार लगाई थी

युद्धवीर सिंह अतुल अंजान नै अपने ख्याल सुनाए भाई।।

6

दर्शन पाल नै वायदा खिलाफी सरकार की बताई थी

हन्नान मोल्ला नै विस्तार तैं वे सारी बात याद दिवाई थी

रलदू सिंह आशीष मित्तल नै सरकार पै सवाल उठाए भाई।।

7

न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की बात उठाई

बिजली संशोधन विधेयक दो हजार बाइस पै बात चलाई

लखीमपुर खीरी कांड के मुद्दे महा पंचायत मैं ल्याये भाई।।

8

कर्ज मुक्ति का सवाल भी आगै संयुक्त किसान मोर्चा ठावैगा

राष्ट्रीय स्तर पै बड्डा संघर्ष सोच विचार कै नै मोर्चा ल्यावैगा

रणबीर सिंह नै भी टूटे फूटे आज अपने विचार जताये भाई।।

868..877

 [30/01, 5:53 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 868

जाकै देखां गामां के हम रंग बदलते जावैं ।।

ताश खेलते पावैं पुराने ढंग बदलते जावैं।।

1

धरती बंटती बंटती या एक किल्ले पै जाली 

चौपाड़ों की हाल बुरी पड़ी रहैं सैं खाली

नलक्यां की टूटी ना भरी गंदगी तैं नाली

बिना धरती आले आज घूमें जावैं ठाली

जोहड़ रहे ना बणी रही सब बंग बदलते जावैं।।

ताश खेलते पावैं पुराने ढंग बदलते जावैं।।

2

टेप रेकॉर्ड खत्म हुए यो मोबाइल आग्या रै

पुराणी धुन भूल रहे डी जे सबनै भाग्या रै

नौजवानों के म्हें मोह बाइक का छाग्या रै

कई जगां खुली अकेडमी उनमें बैठण लाग्या रै

म्हारे रहण की शर्त आज दबंग बदलते जावैं ।।

ताश खेलते पावैं पुराने ढंग बदलते जावैं।।

3

भैंस नै गाम ये थामे दूध बेच गुजारा होवै 

महिला सारे काम करै न्यार सिर पै ढोवै

कितै महफूज कोण्या गैंग रेप रोजाना होवै 

स्कूलों के हाल बुरे सैं देख कै नै मन रोवै

रिश्ते परिवारों के ये सब संग बदलते जावैं।।

ताश खेलते पावैं पुराने ढंग बदलते जावैं।।

4

अन्धविश्वाशों का यो बढ़ता आवै सै घेरा

कई ढाल की कावड़ कहैं करैं दूर अँधेरा

गणेश आये घर घर मैं कहैं ल्यावै नया सबेरा

हारी और बीमारी का घर घर हुया बसेरा

रणबीर शहर गाम होकै तंग बदलते जावैं।।

ताश खेलते पावैं पुराने ढंग बदलते जावैं।।

[30/01, 5:56 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 869

दुनिया की वित्त पूंजी नै कसूता अंधेर मचाया।।

सारे देशों मैं घुसगी मेहनतकश लूट कै खाया।।

जोंक बनकै लहू चूसै आज कारपोरेट साहूकार

कदेतैं हुक्म बजाती आयी सै केंद्र की सरकार 

देश भक्त जो असली उनको बताते आज गद्दार

नकली देश भक्त आज बनगे देश के   पहरेदार

राष्ट्रभक्ति के नाम पै तो अंध विश्वास फैलाया।।

सारे देशों मैं घुसगी मेहनतकश लूट कै खाया।।

2

कोटे परमट आले भेड़िए आज बनें सैं हितकारी

मजदूर किसान लूट लिए सबकी अक्कल मारी

मीठी मीठी बात करें पर भीतर तैं पूरे अत्याचारी

बकरी भेड़ समझैं हमनै आज के ये न्याकारी

कारपोरेट और वित्तपूंजी नै देश मैं धुम्मा ठाया।।

सारे देशों मैं घुसगी मेहनतकश लूट कै खाया।।

3

रिश्वतखोर मगरमच्छ पूरे हिन्दुस्तान मैं छागे

मजदूर किसान की कमाई चूट चूट कै नै खागे

अरबों के बने मालिक औधे घणे चौखे पागे

किसानी संकट के चलते ये किसान फांसी लागे

नये नये जुमले छोड़ कै यो हिन्दुस्तान भकाया।।

सारे देशों मैं घुसगी मेहनतकश लूट कै खाया।।

4

तीन मुंही नाग जहरी एकफन पै बड़ा व्यापारी

दूजे फन पै बैठी मारै भ्रष्टाचार की या थानेदारी

तीजे फन पै पूंजीपति करता कसूती मारा मारी

तीनों मिलकै देखो ये लूट घणी मचारे अत्याचारी

रणबीर सिंह नै यो टूटया फुटया छन्द बनाया।।

सारे देशों मैं घुसगी मेहनतकश लूट कै खाया।।

[30/01, 5:59 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 870

बुलेट ट्रेन 

काफी चर्चा में है बुलेट ट्रेन। एक ट्रेक पर सवा लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं जबकि काकोदकर कमेटी ने कहा था कि मौजूदा रेल पटरियों के पूरे ढांचे को ठीक करने के लिए एक लाख करोड़ चाहिए । क्या बताया भला -----

बुलेट ट्रेन चलावैगा जरूर, कसूता चढ़रया इंके शरूर 

खड़या देखै किसान मजदूर,पूरे सवा लाख करोड़  गालैगा

1

इसकी जरूरत कति कोण्या, फेरबी बता क्यों ल्यावै सै 

झूठे साच्चे फायदे बताकै जनता नै खामखा भकावै सै

बाकि रेलां का हाल बताऊँ, बुरी हालत इनकी दिखाऊं

जनता का मैं दुखड़ा सुनाऊं,भक्कड़ घणा कसूता बालैगा

बुलेट ट्रेन चलावैगा जरूर.....

2

दुसरे देशां मैं बुलेट ट्रेन या फेल होली बतावैं देखो 

किराया आम नागरिक नहीं जमा बी दे पावैं देखो

जापान का हाल देखियो भाई, दूजे देशां मैं तबाही मचाई, फेरबी भारत मैं जागी चलाई, अडाणी अम्बानी नै पालैगा

बुलेट ट्रेन चलावैगा जरूर......

3

अस्सी हजार करोड़ खर्च इस एक ट्रेन पै होवैगा रै

बाकी ट्रेन जाओ धाड़ कै रेल यात्री बैठया रोवैगा रै

विकास नहीं विनाश राही चाले, गरीबों कै आज पूरे घर घाले, इनै कालजे म्हारे कसूते साले,आंदोलन के बिना नहीं टालैगा

बुलेट ट्रेन चलावैगा जरूर......

4

बेरोजगारी पै ध्यान कोण्या नौजवान मारे मारे फिरते 

शिक्षा सेहत बाजार हवाले महिलावां के ये चीर चिरते

कलम चलाई रणबीर देखो, नहीं झूठी दिखाई तस्वीर देखो , स्थिति बताई घणी गंभीर देखो,हमनै यो  डोबै बीच बिचालैगा।।

बुलेट ट्रेन चलावैगा जरूर.....

[30/01, 6:37 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 871

जनता की जनवादी क्रांति हम बदल जरूर ल्यावाँगे रै ॥  

भगतसिंह राजगुरु सुखदेव का यो देश बणावांगे रै ॥ 

जनतन्त्र का मुखौटा पहर कै राज करै सरमायेदारी या 

जल जंगल जमीन धरोहर बाजार के मैं बेचै म्हारी या 

हम लोगां का लोगां की खातर लोगां का राज चलावांगे रै ॥ 

भगतसिंह राजगुरु सुखदेव का यो देश बणावांगे रै ॥ 

कौन लूटै जनता नै इब सहज सहज पहचान रहे 

आज घोटाले पर घोटाले कर ये कारपोरेट बेईमान रहे 

एक दिन मिलकै इन सबनै हम जेल मैं पहोंचावांगे रै  ॥ 

भगतसिंह राजगुरु सुखदेव का यो देश बणावांगे रै ॥ 

जनता जाओ चाहे भाड़ मैं बिदेशी पूंजी तैं हाथ  मिलाया 

दरवाजे खोल दिए उन ताहिं गरीबाँ का सै भूत बनाया 

जमा बी हिम्मत नहीं हारां मिलकै नै सबक सिखावांगे रै ॥

भगतसिंह राजगुरु सुखदेव का यो देश बणावांगे रै ॥ 

बढ़ा जनता मैं  बेरोजगारी ये नौजवान भटकाये देखो  

जात पात गोत नात मैं बांटे आपस मैं भिड़वाये देखो 

किसान मजदूर के दम पै करकै संघर्ष दिखावांगे रै ॥

[31/01, 6:13 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 872

RANBIRDAHIYARAGNI

आज का माणस

आज का माणस किसा होग्या सारे सुणियो ध्यान लगाकै 

स्वार्थ का कोए उनमान नहीं देख्या ज़िब नजर घुमाकै

चाट बिना भैंस हरियाणे की दूध जमा ना देवै देखो

इसका दूध पी हरियाणवी खुबै ए रिश्वत लेवै देखो

भगवान इणनै सेहवै देखो यो बैठया घर मैं आकै।

और किसे की परवाह कोण्या अपने आप्पे मैं खोया

दूज्यां की खोज खबर ना हमेशा अपना रोना रोया

कमजोर कै ताकू चभोया बैठै ठाड्डे की गोदी जाकै।

दूसरयाँ नै ख़त्म करकै अपना व्यापर बढ़ावै देखो

चुगली चाटी डांडी मारै सारे हथकण्डे अपनावै देखो

दगाबाज मौज उड़ावै देखो चौड़ै सट्टे की बाजी लाकै।

मारो खाओ मौज उड़ाओ इस लाइन पै चाल पड़या

हाथ ना आवै जै आवै तो होवै रिश्वत कै तान खड़या

रणबीर सिंह नै छंद घड़या सच्चाई का पाळा पाकै।

[31/01, 6:25 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 873

किसान के शोषण के बारे एक गीत (रागनी )


मौलड़ कहकै तनै तेरा शोषण साहूकार करै ॥ 

मौलड़ कोन्या करम तेरे तैं तूँ ना इंकार करै ॥

 

भैंस खरीदी तनै जिब धार काढ़ कै  देखी  थी 

बुलद खरीदया तनै जिब खूड बाह कै देखी थी 

वैज्ञानिक ढंग अपनाये कौन नहीं स्वीकार करै ॥ 


हल की फाली तनै अपने सहमी तयार करायी 

पिछवा बाल की महत्व तनै ध्यान मैं ल्याई 

पूरी खेती बाड़ी मैं तर्क विवेक तैं सब कार करै ॥ 


एक  क्वींटल गंडे की तनै कितनी कीमत थ्यायी 

इसकी बैठ कै तनै  कद  विवेक तैं हिस्साब लगाई 

शीरा अर खोही कितनी थी नहीं खाता तैयार करै ॥ 


तनै मौलड़ कह्वानीया ना चाह्ता हिस्साब सीखाना \

हमनै तो चाहिए कमेरे म्हारी लूट का खाता बनाना 

रणबीर बरोने  आला लिखकै तनै होशियार करै ॥

[01/02, 5:46 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 874

**साथी प्रभात के जन्म दिन के मौके पर**

जनता की जनवादी क्रांति की अलख जगाई प्रभात तनै ।।

यूनियन बनाकै मजदूरां की जी लाकै करी खुभात तनै ।

1

किसान मजदूर करे लामबंद गई मांग उनकी ठाई

कमेरे की लूट करैं लूटेरे जा जाकै गामां मैं बात बताई 

भट्ठे मालिकां की खोल दईं मजदूरां बीच खुराफात तनै।

यूनियन बनाकै मजदूरां की जी लाकै करी खुभात तनै ।

2

पत्थेरे और कमेरे भठ्यां पै सहज सहज साथ मैं आगे 

बहोत से भठ्यां के ऊपर फेर ये लाल झंडे लहरागे 

जागरूक करी हाँगा लाकै खेत मजदूरां की जमात तनै।

3

 इनकी जिंदगी गेल्याँ कहते नजदीक का रिश्ता बनाया था 

इनके जीवन के बारे में अपना घना ए टेम लगाया था 

मजदूरों की खड़ी करदी एक घणी लड़ाकू जमात तनै ।

यूनियन बनाकै मजदूरां की जी लाकै करी खुभात तनै ।

4

मजदूरों के जीवन पै लिखी कई कहानी लगा जोर तनै 

भट्ठे मालिकों की धमकी भी नहीं कर पाई कमजोर तनै 

रणबीर पढ़कै लेनिन मार्क्स कर दिखाई करामात  तनै ।

यूनियन बनाकै मजदूरां की जी लाकै करी खुभात तनै ।

[01/02, 5:46 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 875

**सलाम आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के संघर्ष को**

आंगनवाड़ी की आत्म कथा 

आंगनवाड़ी मैं काम क रूं आप बीती बताऊं बेबे ।।

काम घणा करना होसै  तंनखा नाम की पाऊं बेबे ।।

1

मां और बच्चों की सेवा का केंद्र आंगनवाड़ी बताया 

कुपोषण तैं निपटने का यो ग्रामीण केंद्र बनाया

 उन्नीस सौ पिचासी मैं सरकार ने प्रोग्राम चलाया 

आंगन आश्रय भी कहदें यो हिंदुस्तान में फैलाया 

सार्वजनिक स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा सुनाऊं बेबे ।।

काम घणा करना होसै  तंनखा नाम की पाऊं बेबे ।।

2

गांव की महिला नै गर्भ निरोधक परामर्श देती 

इनकी सप्लाई करने का जिम्मा अपने जीमै लेती 

सेफ पीरियड के बारे मैं बैठ बात करैं मेरे सेती 

कई सुना कै अपना दुखड़ा रो रो के आंख भेती

 जी करड़ा कर कै नै उन ताहिं सारी समझाऊं बेबे ।।

काम घणा करना होसै  तंनखा नाम की पाऊं बेबे ।।

3

और कामां की गेल्यां सै यो पोषण शिक्षा का जिम्मा मेरा 

खून की कमी कइया मैं चालती हाण आवै अंधेरा

खाने पीने मैं के खाना कईयां नै ना इसका बेरा 

बाल कुपोषित मां का पीला पड़ता आवै चेहरा

के खाना पीना चाहिए कई कई घंटे लाऊं बेबे ।।

काम घणा करना होसै  तंनखा नाम की पाऊं बेबे ।।

4

सतरां रजिस्टर मेरे पास बात जरे कोन्या थारे

 बुनियादी दवाई भी देना कई काम जिम्मे म्हारे 

टीकाकरण की जिम्मेदारी घर-घर घूमैं सारे

छोटे बालकां नै पढ़ाऊं कामां का बोझ मनै मारे 

रणबीर और भी काम घने ये किसनै बताऊं बेबे।।

काम घणा करना होसै  तंनखा नाम की पाऊं बेबे ।।

[01/02, 11:47 am] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 876

हरियाणा नै खो दिया वो जो आर्थिक जगत मैं कमा राख्या ।।

सामाजिक स्तर पर रूढिवाद वो आज भी क्यों ब्याह राख्या।।

1

पुराने परम्परावादी बीज छोड़ नये बीज अपनाये

हल छोड़ बुलधां आला थाम ट्रैक्टर तावले से ल्याये

गोबर खाद सदियां की छोड़ कैमिकल खाद बिखराये

छोड़ घाघरा सलवार पहरी खंडवे एक औड़ धरवाये

ब्याह शादी के मामले मैं रूढ़ का रुख क्यों अपना राख्या।।

सामाजिक स्तर पर रूढिवाद वो आज भी क्यों ब्याह राख्या।।

2

महिला नै हरेक काम मैं तेरा पूरा साथ निभाया देख

माट्टी गेल्या हो माट्टी तेरा घर इसनै खूब बसाया देख

खेलों मैं नहीं रही पाछै ये स्वर्ण पदक भी दिवाया देख

पेट मैं मर मार कै तनै बता कौणसा पुन कमाया देख

गैंग रेप की संख्या नै सम्मान यो धरती ऊपर टिका राख्या।।

सामाजिक स्तर पर रूढिवाद वो आज भी क्यों ब्याह राख्या।।

3

अंध उपभोक्तावाद  की या बाजार व्यवस्था हिम्मत करै

लड़के लड़की के अंदर पितृसत्ता खुल कै नै दुभान्त करै

पितृसत्ता की संस्कृति की पूरी यरफदरी खाप पंचायत करै

हाथ जोड़ के अर्ज मेरी समझो जै कोये समझाँने की बात करै

समतावादी समाज बनावां इसका बीड़ा आज ठा राख्या।।

सामाजिक स्तर पर रूढिवाद वो आज भी क्यों ब्याह राख्या।।

4

वंचित तबके और महिला साथ नौजवान भी आवैंगे

उत्तम शिक्षा सबको काम यो नारा चौगिरदें गुंजावेंगे

अत्याचार भ्रष्टाचार तैं लड़कै नया इतिहास बणावैंगे

जात पात और धर्मान्धता नै मिलजुल कै नै मिटावैंगे

सोच समझकै नए  हरियाणे का रणबीर यो राह बता राख्या ।।

सामाजिक स्तर पर रूढिवाद वो आज भी क्यों ब्याह राख्या।।

[01/02, 6:05 pm] Dr. Ranbir Singh Dahiya: 877

2086-87 के वक्त लिखी रागनी 


*दसमीं ताहिं का स्कूल आगै क्युकर करूं पढ़ाई मैं।।*

*माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।*

1

माँ बोली आज जमाने मैं बिना पढ़ाई कोये बूझै ना

शहर मैं क्युकर खंदाऊँ बाबू कहै मनै राही सूझै ना

*बोल्या हाथ पीले करने होंगे सुनकै घणी घबराई मैं।।*

माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।

2

बाबू बोल्या बुरा जमाना शहर ठीक नहीं सै जाणा 

ऊंच नीच कोये होज्यागी तै यो होज्या मोटा उल्हाणा

*क्युकर मनाऊं मेरे बाबू नै हे इस चिंता नै खाई मैं।।*

माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।

3

माँ बोली माहौल गाम का शहर तैं आज न्यारा कोण्या

डर कै घर मैं दुबके तो होवै कति आज गुजारा कोण्या

*मैं बोली मत ठाओ पढ़ण तैं मरज्यांगी बिन आई मैं।।*

माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।

4

पांच सात दिन पाछै बाबू नै मुँह अपना खोल्या 

डर लागै बेटी मनै रणबीर आंख्या पानी ल्या बोल्या

*साच्ची बूझै तो ईब करना चाहूं बेटी तेरी सगाई मैं।।*

माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।