**आजाद के शहादत दिवस के मौके पर **
किस्सा चन्द्र शेखर आजाद
1
अठारह सौ सतावण की आजादी की पहली जंग में लाखों लोगों ने कुर्बानियां दीं। उसके बाद अंग्रेजों का दमन का दौर और तेज हो जाता है। देश में पनपी हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के कुप्रयास किये जाते हैं। किसानों पर उत्पीड़न बेइन्तहा किया जाता है। ऐसे समय में भावरा गांव में चन्द्रशेखर आजाद का जन्म होता है। क्या बताया भला:
तर्ज: चौकलिया
दूर दराज का गाम भावरा, पैदा चन्द्रशेखर आजाद हुया॥
दुपले पतले बालक तै घर, तेईस जुलाई नै आबाद हुया॥
मुगलां के पिट्ठू यूरोप के, सारे कै व्यौपारी छाये फेर दखे
ईस्ट इन्डिया कम्पनी नै चारों, कान्हीं पैर फैलाये फेर दखे
अंग्रेजां नै भारत उपर शाम, दाम, दण्ड भेद चलाये फेर दखे
देश के नवाबां नै फिरंगी साहमी, गोड्डे टिकाये फेर दखे
किसानां नै करया मुकाबला उनका तै न्यारा अन्दाज हुया॥
ठारा सौ सत्तावण मैं आजादी की पहली जंग आई फेर
आजादी के मतवाले वीरां नै कुर्बानी मैं नहीं लाई देर
फिरंगी शासक हुया चौकन्ना गद्दारां की थी कटाई मेर
हटकै म्हारे भारत देश पै घणी कसूती छाई अन्धेर
भारत की जनता नहीं मानी चाहे सब कुछ बरबाद हुया॥
भुखमरी आवै थी तो भूख तै कदे लोग मरे नहीं थे
अंग्रेजां के राज मैं अकाल खेत बचे हरे भरे नहीं थे
टैक्स वसूल्या गाम उजाड़े लोग फेर बी डरे नहीं थे
कुछ हुये गुलाम कई नै जमीर गिरवी धरे नहीं थे
विद्रोह की राही पकड़ी कुछ नै क्रान्ति का आगाज हुया॥
युगान्तर अनुशीलन संगठन उभर कै आये बंगाल मैं
कांग्रेस मैं गान्धी का स्वदेशी सहज सहज आया उफान मैं
चोरा चोरी मैं गोली चाली चौकी जलाई इसे घमसान मैं
गान्धी नै वापिस लिया निराशा छाई थी नौजवान मैं
रणबीर चन्द्रशेखर इसे बख्त क्रान्ति की बुनियाद हुया॥
2
गांव के हालात काफी खराब थे। चन्द्रशेखर का परिवार भी आर्थिक स्तर पर कमजोर था। चन्द्रशेखर गांव से चलकर शहर में आ जाता है और छोटा-मोटा काम ढूंढ लेता है। एक कमरा रहने वाले कई। क्या बताया भला:
तर्ज: चौकलिया
गाम तै चाल चन्द्र शेखर शहर कै मैं आया फेर॥
छोटा मोटा काम मिल्या रैहण का जुगाड़ बनाया फेर॥
एक कमरे मैं कई रहवैं मुश्किल सोना होज्या था
आधी बारियां भूखे प्यासे भीतरला सबका रोज्या था
आजाद देखकै हालत नै वो अपणा आप्पा खोज्या था
बीड़ी पी पी कै धुमा भरज्या कौन नींद चैन की सोज्या था
देख हालत मित्रा प्यारयां की आजाद दुख पाया फेर॥
दिल मैं सोची शहर मैं खामखा आकै ज्यान फंसाई
उल्टा जांगा गाम मैं तो कसूती होवैगी जग हंसाई
आड़े क्यूकर रहूं घुट कै कोन्या बात समझ मैं आई
तिरूं डूबूं जी होग्या उसका हुई मन तै खूब लड़ाई
न्यों तो बात बणैगी क्यूकर उसनै दिल समझाया फेर॥
गरीबी के के काम करवादे इसका बेरा पाट गया
फिरंगी की लूट का अहसास उंका कालजा चाट गया
सोच सोच इन बातां नै वो दिल अपणे नै डाट गया
जी हजूरी उनकी करने तै आजाद जमा नाट गया
क्रान्ति का झन्डा आजाद नै पूरे मन तै ठाया फेर॥
भगतसिंह राजगुरु तै उसनै तार भिड़ाये फेर
सुखदेव शिव वर्मा हर बी उनकी गेल्यां आये फेर
कई महिला साथ आई इन्कलाब के नारे लाये फेर
जनून छाया सबमैं घणा मुड़कै नहीं लखाये फेर
रणबीर मरने तक उसनै था वचन निभाया फेर॥
3
वहां शहर में चन्द्रशेखर सहज सहज क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ जाता है। सुखदेव, राजगुरु, शिव वर्मा, भगतसिंह के साथ उसका तालमेल बनता है। वह आजादी की लड़ाई का एक बहादुर सिपाही का सपना देखने लगता है। वह अपनी जिन्दगी दांव पर लगाने की ठान लेता है। क्या बताया फिर-
तर्ज: चौकलिया
चन्द्रशेखर आजाद नै अपणी जिन्दगी दा पै लादी रै॥
फिरंगी गेल्या लड़ी लड़ाई उनकी जमा भ्यां बुलादी रै॥
फिरंगी राज करैं देश पै घणा जुलम कमावैं थे
म्हारे देश का माल कच्चा अपणे देश ले ज्यावैं थे
पक्का माल बना कै उड़ै उल्टा इस देश मैं ल्यावैं थे
कच्चा सस्ता पक्का म्हंगा हमनै लूट लूट कै खावैं थे
भारत की फिरंगी लूट नै आजाद की नींद उड़ादी रै॥
किसानां पै फिरंगी नै बहोत घणे जुलम ढाये थे
खेती उजाड़ दई सूखे नै फेर बी लगान बढ़ाये थे
जो लगान ना दे पाये उनके घर कुड़क कराये थे
किसानी जमा मार दई नये नये कानून बनाये थे
क्रान्तिकारियां नै मिलकै नौजवान सभा बना दी रै॥
जात पात का जहर देश मैं इसका फायदा ठाया था
आपस मैं लोग लड़ाये राज्यां का साथ निभाया था
व्हाइट कालर आली शिक्षा मैकाले लेकै आया था
साइमन कमीशन गो बैक नारा चारों कान्हीं छाया था
म्हारी पुलिस फिरंगी नै म्हारी जनता पै चढ़ा दी रै॥
जलियां आला बाग कान्ड पापी डायर नै करवाया था
गोली चलवा मासूमां उपर आतंक खूब फैलाया था
मनमानी करी फिरंगी नै अपना राज जमाया था
जुल्म के खिलाफ आजाद नै अपना जीवन लाया था
रणबीर नै तहे दिल तै अपणी कलम चलादी रै॥
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1921 में असहयोग आन्दोलन की लहर उठती है पूरे देश में। जगह-जगह पर प्रदर्शन, धरने किये जाते हैं। महात्मा गान्धी इस आन्दोलन के अग्रणी नेता थे। उधर ज्योतिबा फुले अपने ढंग से समाज सुधार आन्दोलन में सक्रिय थे। पुर्नुत्थान के साथ साथ नवजागरण का एक माहौल पूरे देश में बन रहा था। क्या बताया भला:
उन्नीस सौ इक्कीस मैं असहयोग आन्दोलन की जंग छिड़ी॥
सारे हिन्दुस्तान की जनता फिरंगी गेल्या आण भिड़ी॥
जलूस काढ़ते जगां जगा पै गांधी की सब जय बोलैं
भारत के नर नारी जेल गये जेल के भय तै ना डोलैं
कहैं जंजीर गुलामी की खोलैं आई संघर्ष की आज घड़ी॥
नौजवान युवक युवती चाहवैं देश आजाद कराया रै
कल्पना दत्त नै कलकत्ता मैं चला गोली सबको बतलाया रै
आजादी की उमंग उनमैं भरी नौजवान सभा बनी कड़ी॥
ज्योतिबा फुले का चिंतन दलितां नै बार बार पुकारै था
मनु नै जो बात लिख दी उन बातां नै जड़ तै नकारै था
नवजागरण की चिंगारी देश मैं सुलगी कई जगां बड़ी॥
एक माहौल आजादी का चारों कान्हीं जन जन मैं छाया रै
गांधी और भगतसिंह का विचार आपस मैं टकराया रै
रणबीर सिंह नै सोच समझ कै नये ढंग की कली घड़ी॥
5
चन्द्रशेखर आजाद अपना रहने का स्थान बदलता रहता था। पुलिस क्रान्तिकारियों के पीछे लगी रहती। सातार नदी के किनारे आजाद एक कुटिया में साधु के भेष में रहने लगता है। पास के गांव में कत्ल हो जाता है। पुलिस की आवाजाही बढ़ जाती है। चन्द्रशेखर कैसे बचाता है अपने आपको:
सातार नदी के काठै आजाद एक कुटिया मैं आया॥
साधु भेष धार लिया नहीं पता किसे ताहिं बताया॥
जिब बी कोए साथी पुलिस की पकड़ मैं आज्या था
आजाद ठिकाना थोड़ी वार मैं कितै और बणाज्या था
इसे सूझबूझ के कारण पुलिस तै ओ बच पाया॥
पास के गाम मैं एक बै किसे माणस का कत्ल हुया
चरचा होगी सारे कै फेर पुलिस का पूरा दखल हुया
पुलिस दरोगा तफतीस करी कुटी मैं फेरा लाया॥
दरोगा नै देख कै आजाद बिल्कुल ही शान्त रहया
ध्यान तै सुण्या सब कुछ जो दरोगा नै उंतै कहया
बोल्या धन्यवाद दरोगा जी आगै फेर जिकर चलाया॥
6
बाबा जी की मढ़ी में पुलिस अपना डेरा डाल देती है। क्रान्तिकारी मढ़ी का निरीक्षण करने पहुंचते हैं कि पुलिस वालों को क्या ठिकाने लगाया जा सकता है। क्या बताया भला:
क्रान्तिकारी टोली आई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
दोनूआं नै शीश नवाई रे बाबा जी की मढ़ी मैं॥
भगतां की टोली मैं उननै पूरी सेंध लगाई फेर
चीलम की उनकी बी थोड़ी वार मैं बारी आई फेर
आजाद तै चीलम पकड़ाई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
कदे बीड़ी बी पी कोन्या चीलम हाथ मैं आई
घूंट मारकै चीलम फेर राजगुरु तै पकड़ाई
राजगुरु नै दम लगाई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
मढ़ी का पूरा पूरा उसनै हिसाब लगाया फेर
माणस घणे मारे जांगे उनकी समझ आया फेर
आंख तै आंख मिलाई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
प्रणाम करकै बाबा जी नै दोनूं उल्टे आये थे
बाकी टोली आल्यां तै मढ़ी के हालात बताये थे
रणबीर करै कविताई रै बाबा जी की मढ़ी मैं॥
7
दो पुलिस वालों से आजाद व राजगुरु का आमना सामना मढ़ी में हो जाता है। साधु को अपनी चिन्ता होती है। पुलिस वाले अपने अपने ढंग से इनाम पाने की सोचते हैं। वहां कैसे क्या होता है। क्या बताया भला:
आहमी साहमी होगे चारों एक पल तक आंख मिली॥
न्यारे न्यारे दिमागां मैं न्यारे ढाल की बात चली॥
साधु सोचै फंसे खामखा यो आजाद मनै मरवावैगा
आजाद सोचै दोनूं पुलिसिया क्यूकर इनतै टकरावैगा
एक सिपाही सोचै आजाद पै इनाम तै थ्यावैगा
दूजा सोचै नाम हो मेरा इनाम सारा मेरे बांटै आवैगा
के तूं आजाद सै सुण कै बी चेहरे पै उसके हंसी खिली॥
नहीं चौंक्या आजाद जमा सादा भोला चेहरा बनाया
साधु तो हमेशा आजाद हो सै कोए भाव नहीं दिखाया
पुलिसिया कै शक होग्या पुलिस थाने का राह बताया
हनुमान की पूजा करनी हमनै वार हो बहाना बनाया
दरोगा तै हनुमान बडडा कैहकै उसकी थी दाल गली॥आं का ठोर ठिकाना यू सारा संसार दरोगा जी
छोड़ दिया बरसां पहलम यू घर परिवार दरोगा जी
रणबीर आजाद नै न्यों दरोगा तै पीछा छटवाया॥
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आगरा शहर क्रान्तिकारियों के शहर की तरह जाना जाने लगा था। आजाद कभी आगरा कभी कानपुर अपने डेरे बदलता रहता था। दूसरों को भी चौकन्ना रहने को कहता था। एक बार एक जगह आजाद फंस जाता है तो कैसे निकलता है। क्या बताया भला:
तर्ज: चौकलिया
आगरा शहर एक बख्त क्रान्तिकारियां का शहर बताया॥
फरारी जीवन बिता रहे चाहते अपणा आप छिपाया॥
कदे झांसी और कदे आगरा मैं आकै रहवै आजाद
जितने दिन रहै आगरा रहो चौकन्ने कहवै आजाद
बारी बारी सब पहरा देते ढील नहीं सहवै आजाद
साथी रात पहरे पै सोग्ये उठकै सब लहवै आजाद
पहरा देने आला साथी फेर बहोत करड़ा धमकाया॥
साथी सुणकै चुप रैहग्या उसकी आंख्या पानी आग्या रै
देख कै रोवन्ता उस साथी नै आजाद घणा दुख पाग्या रै
ड्यूटी पहलम खत्म करादी खुद पै बेरा ना के छाग्या रै
कोली भरली प्यार जताया उसनै अपनी छाती लाग्या रै
अनुशासन और प्यार का आजाद नै जज्बा दिखाया॥
कानपुर मैं दोस्त धेारै आजाद नै कुछ दिन बिताये
कांग्रेसी माणस व्यापारी लेन देन करते बतलाये
सलूनो का दिन पत्नी नै बूंदी के लड्डू बनवाये
परांत मैं भरकै चाल पड़ी पुलिस दरोगा घर मैं आये
पुलिस आले कै बांध राखी उसनै भाई तत्काल बनाया॥
बोली माड़ा झुकज्या नै च्यार लाड्डू उसतै थमा दिये
परांत सिर पै आजाद कै दरोगा जी बेवकूफ बना दिये
इसा बर्ताव देख दरोगा नै सब भेद बता दिये
फिरंगी नजर राखता जिनपै नाम सबके गिना दिये
रणबीर बरोने आले नै यो आजाद घणा कसूता भाया॥
9
झांसी के पास राजा का पिछलग्गू एक सरदार था। उसके यहां रहकर आजाद ने कुछ वक्त बिताया। यहां कई लोगों को निशानेबाज बनाया। राजा के बैरी क्रान्तिकारियों को उकसाते थे कि राजा को मारकर धन लूट लो। मगर आजाद इसे ठीक नहीं मानता - क्या बताया भला:
तर्ज: चौकलिया
झांसी धौरे एक राजा का चमचा सरदार बताया रै॥
आजाद नै थोड़े दिन उड़ै अपणा बख्त बिताया रै॥
झांसी के क्रान्तिकारी निशाना लाणा सिखा दिये
अचूक निशाना साधन मैं पारंगत सभी बना दिये
राजा मार कै धन जुटाओ रास्ते कुछ नै बता दिये
बैरी राजा के सलाह देवैं अन्दाजे आजाद लगा लिये
टाल मटौल कर आजाद नै मौका टाल्या चाहया रै॥
राजा के बैरी बोले के पाप जुल्मी नै मारण का
कंस मारण खातर के पाप कृष्ण रूप धारण का
के हरजा खोल बता मौत के घाट तारण का
आजाद बोल्या मसला सै गहराई तै विचारण का
हिंसा म्हारी मजबूरी सै आजाद नै समझाया रै॥
या मजबूरी म्हारे पै शासक आज के थोंप रहे
झूठ भकावैं और लूटैं चाकू कसूते घोंप रहे
सच्चाई का लाग्या बेरा माणस सारे चोंक रहे
हम चटनी गेल्यां खाते ये लगा घीके छोंक रहे
हत्यारे कोन्या हम दोस्तो चाहते देश आजाद कराया रै॥
नेक इरादा नेक काम का ध्येय सै म्हारा यो
नेक तौर तरीके अपणावां सार बात का सारा यो
आजादी म्हारी मंजिल सै फरज म्हारा थारा यो
रणबीर सिंह की कविताई सही लिखै नजारा यो
नरहत्या का आजाद विरोधी उसनै इसा जज्बा दिखाया रै॥
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साधु बाबा के पास अमूल्य रतन था। उसे बाबा से हथिया कर क्रान्तिकारी हथियार खरीदना चाहते थे। सलाह की। बाबा की कुटी देखने गये। मगर कई आदमी मारे जाने के भय से उन्होंने यह योजना नहीं बनाई। आजाद और क्रान्तिकारी किसी के जीवन से खिलवाड़ नहीं करते थे। क्या बताया भला:
तर्ज: चौकलिया
अमूल्य रतन उसके धौरे साधू का बेरा पाड़ लिया॥
गंगा जी के घाट कुटिया राह गोन्डा ताड़ लिया॥
बैठ कै बतलाये सारे बाबा जी पै रतन ल्यावां
बेच कै उसनै हथियारां का हम भण्डार खूब बढ़ावां
योजना बना घणी पुख्ता रात अन्धेरों मैं जावां
डरा धमका बाबा जी नै योजना सिरै चढ़ावां
सोच हथियारां का फेर थोड़ा घणा जुगाड़ लिया॥
गुलाबी ठण्ड का मौसम रात जमा अन्धेरी थी
अन्ध्ेारे बीच चसै दीवा छटा न्यारी बखेरी थी
रात नौ बजे भगतां की संख्या उड़ै भतेरी थी
चरस की चीलम चालैं दुनिया तै आंख फेरी थी
गांजा पीवैं जोर लगाकै कर घर कसूता बिगाड़ लिया॥
राजगुरु आजाद नै तुरत स्कीम एक बनाई थी
शामिल होगे साधुआं मैं चीलम की बारी आई थी
मारी घूंट अपणी बारी पै देर कति ना लाई थी
चीलम पीगे जिननै कदे बीड़ी ना सुलगाई थी
सारी बात निगाह लई देख कुटी का कबाड़ लिया॥
वापिस आकै न्यों बोले काम नहीं सै होवण का
माणस घणे मारे जावैंगे माहौल बणैगा रोवण का
रतन बदले इतने माणस तुक नहीं सै खोवण का
चालो उल्टे चालांगे समों नहीं जंग झोवण का
रणबीर नहीं आजाद नै जीवन से खिलवाड़ किया॥
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साइमन कमीशन भारत में आता है। उसका विरोध पूरे भारत में होता है। पंजाब में भी विरोध किया जाता है। अंग्रेजों की पुलिस अत्याचार करती है। लाला लाजपतराय पर लाठियां बरसाई जाती हैं। वे शहीद हो गये। बदला लेने को क्रान्तिकारियों ने साइमन को मारने का प्रण किया। साण्डरस मारा जाता है। चानन सिपाही क्रान्तिकारियों के पीछे भागता है भगतसिंह और राजगुरु के पीछे। आजाद गोली चलाता है चानन सिंह को गोली ठीक निशाने पर लगती है। आजाद को बहुत दुख होता है चानन सिंह की मौत का। क्या बताया भला:
तर्ज: चौकलिया
साइमन कमीशन गो बैक नारा गूंज्या आकाश मैं॥
साण्डर्स कै गोली मारकै पहोंचा दिया इतिहास मैं॥
राजगुरु की पहली गोली साण्डर्स मैं समा गई थी
भगतसिंह की पिस्तौल निशाना उनै बना गई थी
चानन सिंह सिपाही कै लाग इनकी हवा गई थी
पाछै भाज लिया चानन बन्दूक उसनै तना दई थी
दोनूआं के बीच कै लाया अचूक निशाना खास मैं॥
थोड़ी सी चूक निशाने की घणा पवाड़ा धर जाती
भगतसिंह कै राजगुरु का सीना छलनी कर जाती
आजाद जीवन्ता मरता क्रान्तिकारी भावना मर जाती
आजादी के परवान्यां के दुर्घटना पंख कतर जाती
आजाद गरक हो ज्याता आत्मग्लानि के अहसास मैं॥
चानन सिंह के मारे जाने का अफसोस हुया भारी था
आजाद नै जीवन प्यारा था वो असल क्रान्तिकारी था
खून के प्यासे आतंकवादी प्रचार यो सरकारी था
सूट एट साइट का उड़ै फरमान हुया जारी था
विचलित कदे हुया कोन्या भरया हुआ विश्वास मैं॥
कठिन काम तै घबराया ना चन्द्रशेखर की तासीर थी
आजाद भारत की उसकै साहमी रहवै तसबीर थी
इसकी खातर दिमाग मैं कई ढाल की तदबीर थी
आजाद नै चौबीस घन्टे दीखैं गुलामी की जंजीर थी
रणबीर आजाद कैहरया फायदा म्हारे इकलास मैं॥
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एक दिन राजगुरु एक महिला की तसवीर वाला एक कैलेंडर लाकर कमरे में टांग देता है। आजाद कैलेंडर देखकर नाराज होता है और उतार कर फैंक देता है। दोनों में कहासुनी होती है। क्या बताया भला:
आगरा मैं थे क्रान्तिकारी उस बख्त की बात सुणाउं मैं॥
आजाद और राजगुरु बीच छिड़या यो जंग दिखलाउं मैं॥
राजगुरु नै फोटो आला कलैण्डर ल्याकै टांग दिया
आजाद नै टंग्या देख्या अखाड़ बाढ़ै वो छांग दिया
बोल्या उलझ तसबीरां मैं फिसलैंगे न्यों समझाउं मैं॥
राजगुरु आया तो बूझया कलैंडर क्यों पाड़ बगाया
आजाद बोल्या क्रान्ति का क्यों तनै बुखार चढ़ाया
क्यों सुन्दर तसबीर पाड़ी यो सवाल बूझणा चाहूं मैं॥
सुन्दर महिला की थी ज्यांतै पाड़ी सै तसबीर मनै
दोनूं काम साथ ना चालैं पाई अलग तासीर मनै
राजगुरु भाई गुस्सा थूक दे कोन्या झूठ भकाउं मैं॥
एक गाडडी के दो पहिये बीर मरद बतलाये सैं
सुन्दरता बिना संसार किसा सवाल सही ठाये सैं
आजाद मुलायम हो बोल्या आ बैठ तनै समझाउं मैं॥
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सन् 1921 में असहयोग आन्दोलन बड़े पैमाने पर शुरू हो जाता है। नवजागरण की लौ शहर गाम हर जगह पहोंचने लगती है। गांधी और भगतसिंह के विचार लोगों के सामने आते हैं। उनके बीच टकराव भी सामने आता है। क्या बताया भला:
उन्नीस सौ इक्कीस मैं असहयोग आन्दोलन की जंग छिड़ी॥
पूरे भारत की जनता फिरंगियां गेल्यां फेर आण भिड़ी॥
जलूस काढ़ते जगां जगां पै गांधी की सब जय बोलैं
भारत के नर नारी जेल गये जेल के भय तैं ना डोलैं
कहैं जंजीर गुलामी की खोलैं आई संघर्ष की आज घड़ी॥
नौजवान युवक युवती चाहवैं देश आजाद कराया
कल्पना दत्त नै कलकत्ता मैं चला गोली सबको बताया
आजादी की उमंग सबमैं भरी नौजवान सभा बनी कड़ी॥
ज्योतिबा फुले का चिंतन दलितां नै बार बार पुकौर था
मनु नै जो बात लिख दी उन बातां नै जड़तै नकारै था
नवजागरण की चिंगारी देश मैं सुलगै जगां जगां पड़ी॥
एक माहौल आजादी का चारों कान्ही जन जन मैं छाया फेर
गांधी भगतसिंह का विचार आपस मैं टकराया फेर
कहै रणबीर बरोने आला ढीली होई फिरंगी की तड़ी॥
14
एक हिस्सा क्रान्तिकारियों को आतंकवादी के रूप में देखता है। फिरंगी भी क्रांतिकारियों के बारे में आतंकवाइी कर इस्तेमाल करके तरह तरह की भ्रान्तियां फैलाने का पुरजोर प्रयास करते हैं। खूनी संघर्ष और अहिंसा के बीच बहस तेज होती है। क्या बताया भला:
क्रान्किारी हत्यारे कोन्या सन्देश दुनिया मैं पहोंचाया रै॥
जीवन तै प्यार घणा सै परचे मैं लिख कै बतलाया रै॥
जीवन तै प्यार ना होतै बढ़िया जीवन ताहिं क्यों लड़ैं
अत्याचार और जुलम के साहमी हम क्रान्तिकारी क्यों अड़ैं
फिरंगी साथ जरूर भिड़ैं आजादी का सपना भाया रै॥
शोषणकारी चालाक घणा पुलिस फौज के बेड़े लेरया
म्हारे साथी कर कर भरती भारत देश नै गेड़े देरया
खूनी संघर्ष कमेड़े लेरया फिरंगी समझ पाया रै॥
तख्ता पलट करने नै हथियार उठाने पड़ ज्यावैं
घणा नरक हुया जीवन सब घुट घुट कैनै मर ज्यावैं
नींव जरूरी धरज्यावैं समाज बराबरी का चाहया रै॥
समतावादी समाज होगा ये शोषण भारी रहै नहीं
बिना ताले के घर होंगे कितै चोरी जारी रहै नहीं
लूट खसोट म्हारी रहै नहीं रणबीर छन्द बनाया रै॥
15
फिरंगी सरकार गूंगी तै अपणी बात सुणाणी चाही॥
असैम्बली मैं बम फैंकण की फेर पुख्ता स्कीम बनाई॥
आठ अप्रैल का दिन छांट्या थोड़ा खुड़का करने का
अहिंसा के ढंग तै फिरंगी सोच्या नहीं सै डरने का
जनता मैं जोश भरने का सही रास्ता टोहया भाई॥
दमनकारी कानून देश पै वे लगाया चाहवैं थे
क्रान्तिकारी बात अपणी उड़ै पहोंचाया चाहतैं थे
फिरंगी नै बताया चाहवैं थे तूं सै जुलमी अन्याई॥
बम फैंक्या उसकी गेल्यां बांट्या एक परचा था
पूरी दुनिया मैं उस दिन हुया गजब चरचा था
कुर्बानी का भारया दरजा था भगतसिंह नै फांसी खाई॥
परचे मैं लिख राख्या था किसा भारत हम बणावांगे
सबनै शिक्षा काम सबनै हिन्द की श्यान बढ़ावांगे
जात पात नै मिटावांगे रणबीर की या कविताई।।