Tuesday, 26 April 2016

राँझे तू साचा वा झूठी

राँझे तू साचा वा झूठी, काणे की पहरैगी गुठी, हीर नै काणे की गेल्याँ जाना स। इतना मन्नै तेरे ताहीं समझाना स।। बारा साल तन्नै उसकी भैंस चरा ली, सारी मोहब्बत हीर पै तन्नै लूटा ली, फेर बी उसनै वरा अक्खण काणा स। छुटण आला तेरा यू थोड़ ठिकाना स।। राँझे मेरी बात म्ह फर्क हरगज ना पावैगा, जाणु थी साच सुनदे कालजा हाल जावैगा, उस काणे के कर्मा म्ह मौज उड़ाना स। अर तेरे कर्मा म्ह राँझे धक्के खाना स।। के सोचै हीर तन्नै सारै जहान तै खोगी, भूल तेरी मोहब्बत वा अक्खण की होगी, धोखा करया उसकै आगै आना स। झूठ नहीं थूकै उसनै सारा ज़माना स।। मन म्ह शीलक हो बड़वासनी म्ह जा कै, गुरु रणबीर सिंह तेरा दर्द सुना दें गा कै, सुलक्षणा का काम राह बताना स। दूसरे की गेल्याँ के होवै धिंगताना स।। ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

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