अपने सुख का निर्माण दूसरे लोगों की तकलीफों के ऊपर करने वाला आदमी इंसान नहीं हो सकता।
क्या हमारी नैतिकता का यही तकाजा है और महानता है कि गिने-चुने लोगों के लिए विशेष सुविधाएं और विशेष सुख आराम जुटाने के लिए पूरी मानव समाज अथवा जनता के विशाल बहुमत के सुख आराम का खून करके उनको भूखा तथा वस्त्र हीन रखा जाए।यही हमारे समाज के उच्च चरित्र का आधार है । जो इसे मानने से इनकार करेगा वह देशद्रोही करार दे दिया जाएगा।
अपने सुख का निर्माण अपने सुख को सब के साथ बांटने के आधार पर करना चाहिए। मुट्ठी भर लोगों के विशेष अधिकारों का खात्मा तो होना ही चाहिए ना ।
समानता, विनम्रता और शराफत का बर्ताव, सत्य की तलाश, सत्य की रक्षा और उसके लिए संघर्ष । सामूहिक सच्ची दृढ़ एकता, सच्ची पारस्परिक सहायता और सच्ची मानवीय सहानुभूति के माध्यम से।
1990