Saturday, 2 August 2014

बीज पर कब्जा बदेशी कंपनी का

बीज पर कब्जा बदेशी कंपनी का
अपना बीज क्यूकर बनावां सोचां मिलकै सारे रै ॥
कार्पोरेट  नै करया कब्जा धरती पै दे कै मारे रै ॥
देशी बीज पुराने म्हारे हटकै ढूंढ कै ल्याने होवैंगे
कसम खावैं मोन्सैन्टो के बीज हम नहीं बोवैंगे
सब्जी मैं कार्पोरेट छाया ईब दूजे बीजां पै छारे रै ॥
हर साल नया बीज ल्यो इसा कम्पनी का प्रचार रै
बीज की कीमत बढाकै लूटैं किसान घणा लाचार रै
कीटनाशक अन्तोले बरते चोए के पाणी खारे रै ॥
खेती म्हारी जहर बनादी लगत इसकी बढ़ती जा
बदेशी कम्पनी रोजाना या म्हारे सिर पै चढ़ती जा
खेती बाड़ी खून चूसरी आज कर्जे नै पैर पसारे रै ॥
भाईयो गाम म्हारा रै यो बीज बी हो म्हारे गाम का
बदेशी की लूट घटैगी यो  मान बढ़ैगा सारे गाम का
रणबीर बीज अपना हो बचैं फेर नफ़े करतारे रै ॥ 

रेप कांड जो दबा दिया गया

रेप कांड जो दबा दिया गया 

हम खेताँ मैं न्यार लेवण तीन जणी चली गई ॥ 
पांच मस्टण्डे आये हे हम घेर कै नै दली गई ॥ 
आँव देख्या ना तांव भाज लई जोर मारकै नै 
दो नै कमला दो नै बिमला पकड़ी ढाठा धारकै नै 
रूमाल पर गेर कै दवाई सूँघा कै मैं छली गई॥ 
होश आया कमला  नै हम बेहोश पड़ी देखी हे 
अधनंगी हालत म्हारी उनै होकै  खड़ी देखी हे 
बेहाल पड़ी थी दोनों इज्जत म्हारी मली गई ॥ 
कुई मैं तैं पाणी ल्याकै उसनै खुद पीया बेबे 
उसे पाणी का मुंह पै थोड़ा सा छींटा दिया बेबे 
इसा लग्या जणों जख्म पै पड़ नून की डली गई ॥ 
गिरती पड़ती घर नै आगी सोच्ची बात छिपाल्यां
कौण सुनैगा म्हारी किसनै जख्म अपने दिखाल्याँ 
घर मैं पड़ी रही रोंवती छूट म्हारी तो गली गई॥ 
बात खोलण की सोचां फेर चुप होज्यावां डरकै 
नहीं बोली तो सोचां  पैंडा छूटै घुट घुट मरकै 
कौण हो सकैं बलात्कारी सोच्ची तो खुल कली गई ॥ 
बिमला नै बताया एक नै नाम लिया था धारे का 
इस नाम का छोरा नफ़े का दूसरे पान्ने म्हारे का 
दारू पी एकदिन बहके बात टाली ना टली गई॥ 
गाम मैं चर्चा होगी  वे म्हारी चिप्स दिखाते घूमैं 
जो कोए फेटज्या उसे  नै वे जुल्मी बताते घूमें 
मामला टूल पकड़ग्या तीनूं ना कही भली गई ॥ 
दबंगां तैं डरैं दलित वे नजर बचाते  घूमैं थे 
कमला बिमला मनै बी वे धमकाते घूमैं थे 
हम और बी डरगी जण रूक साँस की नली गई॥ 
तीनूआं के मर्द पी दारू उलटा म्हारी करैं पिटाई 
कोए किमै कहवै किसे नै कुल्टा हम बेबे बताई 
इस ढालाँ तीनोँ ए जणी तात्ते तेल मैँ तली गई ॥  
दो दो लाख दिवा घरक्याँ तैं करतूत गई दबाई 
छह लाख मैं पंचात कहै गाम की इज्जत बचाई
रणबीर नै वारी लिखी जब बर्बाद हो फली गई॥