Saturday, 4 June 2011
MERA TERA
मेरा तेरा तेरा मेरा इसमें सारी उम्र गंवाई तनै
गर्व से कहो दहिया सूं न्यारी डफली बजाई तनै
सबते नयारा गोत दहिया याहे बीन सुनायी तनै
दहिया मैं भी सूं मैं सवाया न्यारी तर्ज गाई तनै
मानवता नै भुल्या अहंकार मैं जिन्दगी बिताई तनै
जात गोत का झगडा ठाकै झूठी स्यान बढ़ायी तनै
जाट कौम की ठेकेदारी बी सही नहीं निभायी तनै
गरीब जाट दुद्कारया या जाट कौम बहकाई तनै
वा जाट कौम की छोरी थी बुरी नजर टिकाई तनै
कड़े गई ठेकेदारी कौम की क्यों तार बगाई तनै
ऊपर तै करया दिखावा भीतर तै खिल्ली उडाई तनै
देख देख हरकत ये सारी या ठेकेदारी बिसराई मने
सब कौम के गरीबाँ की करनी चाही भलाई मने
CAN NOT BE SEPARATED
मगर संस्कृति और अर्थ व्यवस्था को अलग नहीं किया जा सकता | कारन यह है की जिस तरह संस्कृतियाँ भिन्न होती हैं उसी तरह अर्थ व्यवस्थाएं भी भिन्न होती हैं और उसके आपसी सम्बन्ध भी विभिन्न प्रकार के होते हैं
PARTIAL AUTONOMY
संस्कृति पूर्णत आर्थिक क्षेत्र पर निर्भर और उसी से निर्धारित नहीं होती ,बल्कि उसकी अपनी एक स्वायतता भी होती है और वह भी आर्थिक विकल्प को प्रभावित करती है
SANSKRITI KA RAJNAITIKARAN
आज हम एक ऐसी अवस्था में पहुँच गए हैं की संस्कृति की दिशा या प्रकृति काया होगी ,इसकी संभावनाएं सिमित होंगी या व्यापक ,वह जनहित में होंगी या अभिजनों के हित में ,वह जीवन को कौनसा अर्थ या परिभाषा देगी,इत्यादि बातों का निर्णय स्वयम संस्कृति क्षेत्र में नहीं हो रहा है, बल्कि आर्थिक राजनैतिक क्षेत्र में किया जा रहा है |
KAHAWAT
एक पुराणी जर्मन कहावत है कि रसोई घर में जो पकता है , उसकी सामग्री ही बहार से नहीं आती ; रसोई घर में क्या पकेगा , यह निर्णय भी बाहर से आता है --पॉल बरान
VIKAS YA VINAS KA RASTA????
हमने जो विकास का रास्ता चुना है
क्या??
वह विनास का रास्ता तो नहीं कहीं ?
क्यों सोचने को मजबूर हूँ मैं पता नहीं
आप भी सोचते हैं हैं कि नहीं मग़र ये
यकिन है मुझे कि एक दिन आपको
जाम और हुस्न के ख्यालों से बाहर
आकर हम सबको मिलकर सोचना तो
होगा !!!
तो फिर देर क्यों??
क्या??
वह विनास का रास्ता तो नहीं कहीं ?
क्यों सोचने को मजबूर हूँ मैं पता नहीं
आप भी सोचते हैं हैं कि नहीं मग़र ये
यकिन है मुझे कि एक दिन आपको
जाम और हुस्न के ख्यालों से बाहर
आकर हम सबको मिलकर सोचना तो
होगा !!!
तो फिर देर क्यों??
JANTA BHI KAM DOSHI NAHIN HAI
मुझे पढाया बताया मेहनत और ईमानदारी
ऊंचे मानवीय गुण हैं हम कहलाते संस्कारी
ठीक उल्टा देख रहा हूँ आज के अपने समाज में
बेईमानी और घोटाले छाये बड़े नए अंदाज में
पांच एकड़ जमीन बिकी रुपये तीन करोड़ मिले
दो भाई दो बहन के रिश्ते बाँट पे बुरी तरह हिले
भाईयों ने दी दोनों बहनों की पांच लाख की सुपारी
भून डाली गोलियों से भूल गए सब दुनियादारी
छोटे ने बड़े को अपने रास्ते से चाहा हटवाना फिर
सोते हुए का काट कर ये फैंक दिया नहर में सिर
तीन करोड़ का मालिक बना खिलाके पैसे बच गया
ईमानदारी का और मेहनत का नया इतिहास रच गया
अपराधीकरण और भ्रष्टाचार हमारे समाज में छाये
इमानदार चुप बैठे देखो इनके सामने सिर छुकाए
ऍम अल ए भी फिर लोगों ने बना ही दिया उसको
किसे दोष दें यहाँ पर रणबीर नहीं पता चला मुझको
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