कहतें हैं मुसीबतें तन्हाा नहीं आती। 1936 &37 में इस सारे क्षेत्र में गन्ने की सारी फसल पायरिला की बीमारी ने बरबाद कर दी- गन्ने से गुड़ नहीं बना और राला एक से दो रुपये मन के हिसाब सेबेचना पड़ा। इस प्रकार जमींदार बरबाद हो गये। इसी बीमारी के डर से अगले साल गन्ना बहुल कम बोया। इसी समय भयंकर अकाल भी पड़े थे इस इलाके में। प्रथम महायुद्ध में इस क्षेत्र से काफी लोगफौज में गये थे। इसके बाद सन् 35 के आस पास मेहर सिंह पर भी घर के हालात को देखते फौज में भरती होने का दबाव बना। सही सही साल तो नहीं बता पाये लोग मगर 35-37 के बीच ही मेहर सिंहफौज में भरती होता है। मेहरसिंह जब फौज में जाने लगता है तो प्रेम कौर रोने लगती है। मेहरसिंह का दिल भर आता है। वह अपने मन को काबू में करके प्रेम कौर को समझाता है। क्या बताया भला
रागनी
टेक रौवे मतना प्रेम कौर मैं तावल करकै आ ल्यूंगा।।
थोड़े दिन की बात से प्यारी फौज मैं तनै बुला ल्यूंगा।।
1 भेज्या करिये खबर बरोणे की, जरूरत नहीं तनै इब रोेणे की
सोचिये मतना जिन्दगी खोणे की, ना मैं भी फांसी खा ल्यूंगा।।
2 जिले रोहतक मैं खरखोदा सै, बरोणा गाम एक पौधा सै
फौजी ना इतना बोदा सै, घर का बोझ उठा ल्यूंगा।।
3 बीर मरद की रखैल नहीं सै, बराबरी बिन मेल नहीं सै
हो आच्छी धक्का पेल नहीं सै, मैं बाबू नै समझा ल्यूंगा।।
4 मेहनत करकै खाणा चाहिये, फिरंगी मार भजाणा चाहिये
रणबीर सुर मैं गाणा चाहिये, ध्यान देश पै ला ल्यूंगा।।