नींद मैं रुखाळा
लेज्यां म्हारे वोट करै बुरी चोट आवै क्यों नींद रुखाळे नै
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।
जब पाछै सी भैंस खरीदी देखी धार काढ़ कै हो
जब पाछै सी बीज ल्याया देख्या खूब हांड कै हो
जब पाछै सी हैरो खरीद्या देख्या खूब चांड कै हो
जब पाछै सी नारा ल्याया देख्या खूड काढ़ कै हो
वोटां पै रोळ पाटै कोन्या तोल लावां मुंह लूटण आळे नै।
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।
घणे दिनां तैं देख रही म्हारी या दूणी बदहाली होगी
आई बरियां म्हानै भकाज्यां इबकै खुशहाली होगी
क्यों माथे की सैं फूट रही या दूणी कंगाली होगी
गुरु जिसे चुनकै भेजां इसी ए गुरु घंटाली होगी
छाती कै लावै क्यूं ना दूर भगावै इस बिषयर काळे नै।
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।
ये रंग बदलैं और ढंग बदलैं जब पांच साल मैं आवैं सैं
जात गोत की शरम दिखाकै ये वोट मांग कै ले ज्यावैं सैं
उनकै धोरे जिब जाणा होज्या कित का कौण बतावैं सैं
दारु बांटैं पीस्सा बी खरचैं फेर हमने ए लूटैं खावैं सैं
करैं आपा धापी ये छारे पापी थापैं ना किसे साळे नै।
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।
क्यों हांडै सै ठाण बदलता सही ठिकाना मिल्या नहीं
बाही मैं लागू और टिकाऊ ऐसा नारा हिल्या नहीं
म्हारे तन ढांप सकै जो ऐसा कुड़ता सिल्या नहीं
खेतां में नाज उपजावां सां फूल म्हारै खिल्या नहीं
साथी रणबीर बनावै सही तसबीर खींच दे असली पाळे नै।
घेर लिए मकड़ी के जाळे नै ।।