ना टोपी से बैर है, ना रुद्राक्ष से दुश्मनी है,
ना भगवे से प्यार है, ना हरे से मेरी तनी है।
मंदिर में चालीसा, मस्जिद में कुरान पढ़ती हूँ,
सबसे अजीज मुझे भारत माता व जननी है।
इस धर्म मजहब ने ही ये नफरत यहाँ जनी है,
लड़ते हैं बिना सोचे समझे ये गलती अपनी है।
अपनी इस दुश्मनी को देश को क्या मिला है,
अपने ही खून से ये धरती बार बार सनी है।
इसी मिट्टी की खुशबु से पहचान मेरी बनी है,
ऐ सखी! सिर्फ देश के गद्दारों से मेरी ठनी है।
देश के काम आऊँ इससे बड़ा सौभाग्य क्या,
देश पर शहीद होने वाला किस्मत का धनी है।
देख हालत मेरे देश की सीना हुआ छलनी है,
मेरी कलम की धार पैदा करती सनसनी है।
पोल खुलती देख खूब कोशिश करी डराने की,
पर जानते नहीं हैं वो सुलक्षणा भूखी शेरनी है।
डॉ सुलक्षणा अहलावत
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