Monday, 9 May 2016

फागन

फागन का महीना आ जता है | फ़ौजी को छुटी नहीं मिलती | तो उसकी घरवाली उसको कैसे संबोधन करती है
मनै पाट्या कोन्या तोल, क्यों करदी तनै बोल
नहीं गेरी चिठ्ठी  खोल, क्यों सै छुट्टी मैं रोळ
मेरा फागण करै मखोल, बाट तेरी सांझ तड़कै।।

या आई फसल पकाई पै, दुनिया जावै  लाई पै
लागै दिल मेरे पै चोट, क्यूकर ल्यूं  इसनै ओट
सोचूं खाट के मैं लोट, तूं कित सोग्या पड़कै।।

खेतां मैं मेहनत करकै, रंज फिकर यो न्यारा धरकै
लुगाइयां नै रोनक लाई, कठ्ठी हो बुलावण आई
मेरी कोन्या पार बसाई, तनै कसक कसूती लाई
पहली दुलहण्डी याद आई, मेरा दिल कसूता धड़कै।।

इसी किसी तेरी नौकरी, कुणसी अड़चन तनै रोकरी
अमीरां के त्योहार घणे सैं, म्हारे तो एकाध बणे सैं
खेलैं रळकै सभी जणे सैं, बाल्टी लेकै मरद ठणे सैं
मेरे रोंगटे खड़े तनै सैं, आज्या अफसर तै लड़कै।।

मारैं कोलड़े आंख मीचकै, खेलैं फागण जाड़ भींचकै
उड़ै आग्या था सारा गाम, पड़ै था थोड़ा घणा घाम
पाणी के भरे खूब ड्राम, दो तीन थे जमा बेलगाम
मनै लिया कोलड़ा थाम, मारया आया जो जड़कै।।

पहल्यां आळी ना धाक रही, ना बीरां की खुराक रही
तनै मैं नई बात बताऊं, डरती सी यो जिकर चलाऊं
रणबीर पै बी लिखवाऊं, होवे पिटाई हर रोज दिखाऊं
कुण कुण सै सारी गिणवाऊं, नहीं खड़ी होती अड़कै।।

एक आश्वासन


निराश मतना होईये बेटी दिखा दे तूं बन कै नै चिंगारी ||
पाछै मतना हटिये जंग तैं छोरी निगाह तेरे पै टिकारी ||
हरयाणा  मैं  महिलावाँ नै आजादी  का  बिगुल  बजा  दिया   
खेलां मैं चमकी दुनिया मैं शिक्षा मैं आगै कदम बढ़ा दिया 
dialectis  का नियम यो  दूजी ताकत पीछे नै धिकारी ||
घबरायीयो मतना होंश राखियो संघर्ष बिना गुजारा ना 
बाहर भी खतरा घर मैं खतरा यो दिल ठुकता म्हारा ना  
दुखती राग पै पां टेक दिया आज दिल तैं जनता पुकारी ||
इंसानियत बचानी सै मिल कै हम सब कसम नयों खावाँ 
गुण दोष के आधार पर परखां  नहीं जात गोत पै जावाँ  
कहना आसान पर करना औखा मुश्किल आज्याँ घनी भारी ||
आज मजबूत संगठन बनाकै  हम अत्याचार मिटावांगे 
नए नव जागरण की हम घर घर मैं अलख जगा वांगे 
कहै रणबीर बरोने आला थारा साथ देवैगा यो प्रचारी ||

कमेरा


मेरी कोए ना  सुनता आज छाया सारै यो लुटेरा ॥ 
भक्षक बनकै रक्षक देखो देरे किसान कै घेरा ॥ 

ट्रेक्टर की बाही मारै  ट्यूबवैल का रेट  सतावै
थ्रेशर की कढ़ाई मारै  भा फसल का ना थ्यावै 
फल सब्जी ढूध  सीत सब ढोलां मैं घल ज्यावै 
माटी गेल्याँ माटी होकै बी सुख का साँस ना आवै 
बैंक मैं सारी धरती जाली दीख्या चारों कूट अँधेरा॥ 

निहाले पै रमलू तीन रूपया सैकड़े पै ल्यावै
वो साँझ नै रमलू धोरे दारू पीवन नै आवै
निहाला कर्ज की दाब मैं बदफेली करना चाहवै
विरोध करया तो रोज पीस्याँ की दाब लगावै
बैंक अल्यां की जीप का बी रोजाना लग्या फेरा॥ 

बेटा बिन ब्याह हाँडै सै घर मैं बैठी बेटी कंवारी
रमली रमलू नयों बतलाये मुशीबत कट्ठी  होगी सारी 
खाद बीज नकली मिलते होगी ख़त्म सब्सिडी  म्हारी
माँ टी बी की बीमार होगी बाबू कै दमे  की बीमारी
रौशनी कितै दीखती कोन्या घर मैं टोटे का डेरा॥ 

माँ अर बाबू म्हारे  नै  यो जहर धुर की नींद सवाग्या
माहरे घर का जो हाल हुआ वो सबके साहमी आग्या  
जहर क्यूं खाया उनने यो सवाल कचौट कै खाग्या   
म्हारी कष्ट कमाई उप्पर कोए दूजा दा क्यों लाग्या
कर्जा बढ़ता गया म्हारा मरग्या रणबीर सिंह कमेरा  ॥