Tuesday, 2 August 2016

साम्राज्यवाद के निशाने पै

आज देश के युवकों और युवतियों के सामने बड़े संकट का समय है । क्या बताया भला ---
साम्राज्यवाद के निशाने पै , युवा लड़के और लड़की
बेरोजगारी हिंसा और नशा , घण्टी खतरे की खड़की
सही बातां तैं ध्यान हटाकै, नशे का मन्त्र पकड़ाया
लड़की फिरती मारी मारी , समाज यो पूरा भरमाया
ब्यूटी कम्पीटीशन कराकै, देई लवा देश की दुड़की।
निराशा और दिशा हीनता, देवैं चारोँ तरफ दिखाई
बात बात पै हर घरके म्हां, या माचरी खूब लड़ाई
सल्फाश की गोली खाकै, बन्द करैं जीवन की खिड़की।
युवा लड़की की ज्यान पै, शाका घणा कसूता छाया
रोज हिंसा का शिकार बनै, ना सांस सुख का आया
जात पात इसी फैलाई देखो , जणु जड़ ये फ़ैली बड़की ।
एक तरफ सै चकाचौंध, यो दूजी तरफ सै अँधेरा
सारे कट्ठे होकै ल्यावांगे, सबकी खातर नया सबेरा
रणबीर सिंह प्रण करो ,  आज बाजी लाकै धड़की।

राजा और रानी के किस्से कब तक???


किसे और की कहानी कोन्या, इसमैं राजा रानी कोण्या
अपनी बात सै बिरानी कोण्या, थोड़ा दिल नै थाम लियो।
यारी घोड़े घास की भाई, नहीँ चले दुनिया कहती आई
बाहूँ और बोऊँ खेत मैं, बालक रूलते मेरे रेत मैं
भरतो मरै मेरी सेत मैं ,अन्नदाता का मत नाम लियो ।
जमकै लूटै मण्डी हमनै, बीज खाद महंगा मिलै सबनै, 
मेहनत लुटै मजदूर किसान की,आँख फूटी भगवान की
भरै तिजूरी क्यों शैतान की,देख सभी के काम लियो।
छियासठ साल की आजादी मैं, कसर रही ना बर्बादी मैं
बालक म्हारे सैं बिना पढ़ाई, मरैं बचपन मैं बिना दवाई
कड़ै गई म्हारी कष्ट कमाई , झूठी हो तै लगाम दियो।
शेर बकरी का मेल नहीं, घणी चालै धक्का पेल नहीं
आपा मारें पार पड़ैगी धीरे, मेहनतकश रूपी जितने हीरे
बजावैं जिब मिलकै ढोल मंजीरे, रणबीर का सलाम लियो

कम्प्पणी और कुछ डाक्टरों का मेल

जित बी जाऊं उड़ै घणी लाम्बी लाईन लगी क्यों पावै हे 
सरकारी मैं भीड़ या जेब प्राइवेट खाली क्यों करावै हे 
कुपोषण प्रदूषण मिलावट कारण बड्डे बीमारी के 
इनके बढ़ते जाने से बढे हमले ज्यान हमारी के
इसपै किसे का ध्यान नहीं कसूर बतावैं करतारी के
पौष्टिक खाना साफ पाणी हवा राज सेहत म्हारी के 
इन पै गौर करने नै म्हारी सरकार क्यों नजर चुरावै हे
बीमारी हुये पाछै इलाज का ढांचा जरूरी बतावैं 
कितै स्टाफ कम कितै दवाई मरीज घणे दुःख पावैं
नीति खागी सरकारी ढांचे नै ये प्राइवेट फूलता जावैं
सरकार का हैल्थ बजट ये जान कई नहीं बढ़ावैं
कसूर किसे का होवै बेबे फेर सजा और कौए पावै हे 
मरीज और डॉक्टर आज आहमी साहमी भिड़ा राखे हे 
तीन हजार नर्स जित उड़ै आठ सौ तैं काम चला राखे हे 
उपरल्यां नै अपने चेहते चोखी जागां बिठा राखे हे
बढ़िया डॉक्टर नर्स भी जनता की न्यों गाली खावै हे
डीजीज डॉक्टर और ड्रग का फार्मूला फेल हो लिया हे 
म्हारी सरकारां खातर तो यो जमा खेल हो लिया हे 
बेईमान तो राज करते ईमानदार नै जेल हो लिया हे 
रणबीर कम्प्पणी और कुछ डाक्टरों का मेल हो लिया हे 
थ्री डी का नारा दुनिया मैं शार्ट कट का राह बतावै हे

शरीर मोस्या

इतनी छोरियां का शरीर मोस्या ,पूरे गाम नै भरोसा खोस्या 
कद किसका शरीर जावै मोस्या , यो माहौल बदल्या गाम का 
घर घर मैं दारू आन बड़ी पूरी बोतल रोजाना पीनी जरूरी 
ीकै करते पिटाई घर मैं मिट्ज्या लिहाज शरम की दूरी
नादान छोरी शिकार होज्यां , पियकड़ कंट्रोल जमा खोज्यां
बिन ब्याही रोज दुखड़े ढ़ोज्यां, यो माहौल बदल्या गाम का
गाम की छोरी भान सबकी यो झूठा जुमला कर दिया रै
डाकटर बताते बिन ब्याही पर आज हमला कर दिया रै
बालक गिरवावन आते घरके चुप रहते बेइज्जती तैं डरते
माटी गेरन की बात ये करते , यो माहौल बदल्या गाम का
शादी शुदा गेल्याँ के के हो इसके लिखे जा सकते खाते ना
रिवाल्वर आले बदमाश टोल जबरी ठावण मैं देर लगाते ना
या भृष्ट पुलिश साथ निभाती, उल्टा महिलावां नै धमकाती
बेरा ना क्यूँ आवाज ना ठाती , यो माहौल बदल्या गाम का
महिला के फैशन बारे मैं कई कई फरमान सुनाये जावें रै
दारू पर क्यों चुपी साध रहे नए नए ठेके खुलाये जावैं रै
रणबीर सिंह का दिल भारी, महिला पै संकट बढ़ती जारी
आवाज उठाओ सब नर नारी, यो माहौल बदल्या गाम का

एक फौजी ने 1971 की लड़ाई में शहादत दी थी। सउसके परिवार ने इन सालों में क्या भुगता है यह  ईस परिवार के सदस्य ही जानते हैं । दो तीन बार उसकी विधवा को अपने खुद के इलाज के लिए  सरकारी बड़े अस्पताल के दरवाजे से अपना सा  मुँह लेकर लौटना पड़ा। जब कारगिल की लड़ाई 
की खबर उस महिला तक पहुँचती है तो वह  सिहर उठती है और क्या सोचने लगती है भला- 
टेक - 
ये जंग क्यों होते दुनिया मैं नहीं पाट्या सै तोल कति 
दूश्मणी  तै ये खूब निभा दें या यारी का नहीं मोल  कति
नब्बे करोड़ भूखी जनता क्यों दीखै किसे नै देस  
इनकी खातर दिल म्हारे मैं क्यों प्यार का सै लेश नहीं
राजे राजे एकसे बताये क्यों दीखता इनका फेस नहीं 
जंग के कारण के सैं क्यों यो जंग का मिटता क्लेश  नहीं 
कुर्सी बचावण का रोला सै या धरदी आज खोल कति 
दुश्मनी -------
2
हथियारां पै जो खरचा होवै यो खर्चा  शिक्षा पै ना होंता
बिना बात के खरच नै मानस हांडै जीवन भर ढोंता
मुनाफाखोर न टिकन दे औरां नै ना खुद सुख तैं सोंता
लूट खसोट रहवै मचान्ता साहमी झूठ मूठ का रोन्ता 
मिलावट करै मानस मारै दे देश प्रेम नै घोल कति 
दुश्मनी------
3
देश आजाद कराया हमनै फांसी का फन्दा चूम गये
म्हारे होंसले कै आगै मुँह गोरयां की तोपां के घूम गये
गोरे दिये भजा आड़े तैं ये काले हो नशे मैं झूम गये
आजाद देश के सपने म्हारे आज चाट क्यों धूल गये
देश प्रेम का मतलब के सै दीखै खुलगी पोल कति
दुश्मनी -----
4
मेरे देश के भाईयो बताओ के मकसद कुरबानी का 
देश आजाद रहवै कहते मत करो काम नादानी का 
म्हारी खातर देश प्रेम पर खुद सै काम सैलानी का 
हम आह भरें बदनाम होज्यां माफ़ कत्ल खानदानी का 
रणबीर सुनता हो तै जवाब दिए करती ना मख़ौल कति 
दुश्मनी -----------
(कई साल पहले की रचना है )

जेब कतरे धर्मात्मा

जेब कतरे धर्मात्मा
इब भूरा बण्या भूरसिंह , उसकै मोहर लगी सरकारी।
ना मानस नै मानस थापै, पुलिस की गेल्याँ लाई यारी।
पल  मैं तोला पल मैं माशा, कदे टाडै कदे छेरै खासा  
चित बी मेरी पिट बी मेरी ना पड़ै कदे उल्टा पासा
ठाडे आगै होज्या म्याऊं पर हीने नै धमकावै खासा
घर मैं रहवै गऊ की ढालाँ बाहर करै यो पूरा तमाशा
पहरावे का नहीं ठिकाना हो पेंट कदे हो खद्दर धारी।
पूरा ज्ञानी ध्यानी बनै आरती हनुमान की तारै देखो
पिस्से नै भगवान मानै शेखी दिन रात बघारै देखो
दया धर्म दिखावे ताहिं पराई बीर पै तान्ने मारै देखो
बिना टूम धरें उधार दे ना ब्याज मैं खाल उतारै देखो
चुगली मैं बाप नारद का इनै लोगाँ की अक्कल मारी।
नीत डिगादे एक पैग पै हुया बिन पैंदे का लौटा रै
यार  का बनै यारी बख्त पै बिन बख्त मारै सौटा रै
बात घड़दे तुरत फुरत टोहले कोए बाहणा मौटा रै
अपने मुँह मियाँ मिठू कहै मैं सूँ सिक्का खौटा रै
यारे प्यारे उप्पर चलै उसकी भाई या तलवार दुधारी।
माखी भिंणकैं छिकमा सिनकै जब सत्ता तैं दूरी होज्या
पड़या खाट मैं रहै बाट मैं खत्म सारी गरूरी होज्या
हो बुरा हाल जनों सूने ताल मछली सी मजबूरी होज्या
ना चमक रहे ना दमक रहै झूऱ सिंह तैं यो झूरी होज्या
लिखै रणबीर जब झूरे पै उसकी आंख्यां मैं चिंगारी।

फागन का महीना

  फागन का महीना आ जता है | फ़ौजी को छुटी नहीं मिलती | तो उसकी घरवाली उसको कैसे संबोधन करती है
मनै पाट्या कोन्या तोल, क्यों करदी तनै बोल
नहीं गेरी चिठ्ठी  खोल, क्यों सै छुट्टी मैं रोळ
मेरा फागण करै मखोल, बाट तेरी सांझ तड़कै।।

या आई फसल पकाई पै, दुनिया जावै  लाई पै
लागै दिल मेरे पै चोट, क्यूकर ल्यूं  इसनै ओट
सोचूं खाट के मैं लोट, तूं कित सोग्या पड़कै।।

खेतां मैं मेहनत करकै, रंज फिकर यो न्यारा धरकै
लुगाइयां नै रोनक लाई, कठ्ठी हो बुलावण आई
मेरी कोन्या पार बसाई, तनै कसक कसूती लाई
पहली दुलहण्डी याद आई, मेरा दिल कसूता धड़कै।।

इसी किसी तेरी नौकरी, कुणसी अड़चन तनै रोकरी
अमीरां के त्योहार घणे सैं, म्हारे तो एकाध बणे सैं
खेलैं रळकै सभी जणे सैं, बाल्टी लेकै मरद ठणे सैं
मेरे रोंगटे खड़े तनै सैं, आज्या अफसर तै लड़कै।।

मारैं कोलड़े आंख मीचकै, खेलैं फागण जाड़ भींचकै
उड़ै आग्या था सारा गाम, पड़ै था थोड़ा घणा घाम
पाणी के भरे खूब ड्राम, दो तीन थे जमा बेलगाम
मनै लिया कोलड़ा थाम, मारया आया जो जड़कै।।

पहल्यां आळी ना धाक रही, ना बीरां की खुराक रही
तनै मैं नई बात बताऊं, डरती सी यो जिकर चलाऊं
रणबीर पै बी लिखवाऊं, होवे पिटाई हर रोज दिखाऊं
कुण कुण सै सारी गिणवाऊं, नहीं खड़ी होती अड़कै।।

मुनाफाखोर कम्पनियां

मुनाफाखोर कम्पनियां नै स्वास्थ्य सेवा ढांचा कब्जाया 
पाणी बिकता खाणा महंगा घणा प्रदूषण आज फैलाया 

सरकारी पै लगाम लगावैं प्राइवेट नै आज बढ़ावा देते 
जनता धक्के खा सरकारी मैं प्राइवेट घणे पिस्से लेते 
दवा मशीन करदी महंगी आज मार गरीब घणी खेते 
पीसे आले की ज्यान बचै हम बिना इलाज मौत सेहते 
बीमारियां का औड़ नहीं कदे डेंगू कदे स्वाइन फ्लू आया 

कितै कमी नर्सों की कितै डॉक्टर घणे कम बताये रै 
कितै कमी दवाईयां की कितै औजार कम ल्याए रै 
कितै दिन रात काम करते कितै कामचोर भी पाये रै 
चोर नै तो सजा कोण्या ईमानदार बार बार सताए रै 
घर बेच इलाज पड़ै कराना जै चाहते ज्यान बचाया 

कीट नाशकों करकै देखो जिंदगी मुश्किल होती जारी 
आर एम पी डॉक्टर गामां मैं ये स्टेराइड ख़िलावैं भारी 
ब्लड प्रेस्सर और शूगर की घर घर के माँ बीमारी छारी 
वातावरण प्रदूषण बढ़या बढ़ी कैंसर दमे की बीमारी 
ऊपर तैं जादू टोने टोटके गरीब इणनै घणा भरमाया 

एम्पेनलमेंट पै प्राइवेट इलाज लेते ये कर्मचारी 
इन हस्पतालों मैं जाती म्हारी अफसरशाही सारी 
लाखां मैं इलाज हार्ट अटेक का बचै जिसकी जेब भारी 
कई बीमा कम्पनी देखो ये भ्रष्टाचार का ऊधम मचारी 
रणबीर मुनाफेखोरी नै म्हारी सेहत का धुम्मा ठाया