मैं छोरी सूं जमीदारां की
तेरे लैन लाग री कारां की
मैं खुश सूं जिंदगी मेरी म्ह
मन्नै चाहणा कोण्या याराँ की
इब शुरू होगी लामणी गाम म्ह
सारी दोपाहरी जलूँगी मैं घाम म्ह
उलटे तवे बरगी हो ज्यांगी इब मैं
दिन रात का फर्क आज्या चाम म्ह
तेरे बरगे मजनुआं नै खूब पिछाणु सूं
के रह स मन म्ह थारे सब जाणू सूं
दो चार दिन आगे पाछै हांड कै
लव यू लव यू थाम बांड कै
छोरियाँ नै जाल में फ़ंसाओं सो
शुरू शुरू म्ह खूब हंसाओं सो
पाछै सारी उम्र थम रुवाओ सो
आपणी यादां म्ह तड़पाओ सो
तेरे चक्करां म्ह छोरे आऊँ कोण्या
घर आल्याँ की हवा उड़ाऊँ कोण्या
जा कै आपणा जाल किते और बिछा ले
मैं पडूँ ना इन चक्करां म्ह और नै पटा ले
जिन नै पिछोड़े उन तिलां म्ह तेल कोण्या
बावलीबूच ऊँ बी तेरा मेरा मेल कोण्या
तन्नै खान नै चाहिए रोज पिज्जा बर्गर
आड़े खावाँ बासी रोटी गंठा धर धर
तू बाप की कमाई प मौज उड़ावै स
आड़े खुद कमाते हाणी मजा आवै स
क्यूँ जिंदगी नै खोवै स खोल बता दी सारी
क्यूँ ना माण्दा सुलक्षणा समझा समझा हारी
वे और होंगी जो इन चक्करां म्ह आज्यां सं
माँ बाप की इज्जत नै बेच कै खाज्यां सं
रोज रोज यार बदलें छोरा नै उल्लू बना कै
कदे गिफ्ट लेवैं कदे फोन रिचार्ज कराज्यां सं
छोरे मान ज्या ना इन चक्करां म्ह पड़ती
तेरे जिसे के काना प सुलक्षणा जड़ती
गुरु रणबीर सिंह नै दी सीख आछै बुरे की
सुन सुन कै मजा आज्या इसे छंद घड़ती
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत
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