Monday, 22 September 2014

doha

पांणी प्रदूषित / हवा प्रदूषित / खाणा प्रदूषित 
दिमाग प्रदूषित / फेर हर घर मैं बीमारी नहीं 
तो के मोर नाचैगा / कितने ए  डाक्टर लियाओ 
बात काबू कोणी  आवै /डाक्टर अर जनता रोज 
आपस मैं मारा मारी पै  आवै / कसूरवार इसका 
51 हजार की माला घलवावै 

सही सोच के संघर्ष बिना इब जनता पिटती जारी हे ॥

समाज व्यवस्था हुई हड़खाई  सबतैं बड्डी बीमारी हे ॥
इसका काट्या मांगै  पाणी  ना कोय नर और नारी हे॥
सीरकी घाल करैं गुजारा देखो जिणनै ताज महल बनाये
उनके बालक भूखे मरते जिणनै खुबै ये खेत कमाये
तन पै उनके लत्ता ना जिणनै कपड़े के मील चलाये
वे बिना दूध सीत रहवैं जिणनै ये डांगर ढोर चराये
भगवन भी अँधा कर दिया नहीं  दिखै भ्रष्टाचारी हे ॥
जितना करड़ा काम म्हारा उतना नहीं सम्मान मिलता
दस नंबरी मानस जितने उनका हुकम सारै पिलता
नकली फूल सजावैं सारे नहीं घर मैं असली खिलता
कहैं उसके बिना दुनिया मैं यो पत्ता तक नहीं हिलता
सबका ख्याल नहीं करता वो किसा सै न्या कारी ॥
डांगर की कदर फालतू मानस बेकदरा संसार मैं
छोरे की कदर घनी सै छोरी पराया धन परिवार मैं
छिना झपटी बढ़ती जावें ये छपती रोज अखबार मैं
मानस खानी म्हारी व्यवस्था लादे बोली सरे बाजार मैं
कति छांट कै चलायी सै महिला भ्रूण पै कटारी हे ॥
इस व्यवस्था मैं मुठ्ठी भर तो हो घने मालामाल रहे
ईसा जाल पूर  दिया इसनै चला अपनी ढाल रहे
सोच समझ कै बढ़ियो आगै माफिया कसूते पाल रहे
फ़ौजी और पुलिशिया रणबीर कर इनकी रूखाल रहे
सही सोच के संघर्ष बिना इब जनता पिटती जारी हे ॥