Wednesday, 15 February 2023

दिल लोगों के छेद रही खबर देश के बंटवारे की ।।


विभाजन के वक्त मुख्तियार सिंह और प्रीतम कौर का गांव पाकिस्तान में चला जाता है । दो जवान लड़कियां हैं उनकी। दंगे फसाद के डर से वे अपनी दोनों बेटियों को जहर देकर मारने पर मजबूर हो जाते हैं । क्या बताया भला:

 दिल लोगों के छेद रही खबर देश के बंटवारे की ।।

चारों कानी खून खराबा थी हालत हिन्द म्हारे की ।।

गांव उन लोगों ने सुन्या यो पाकिस्तान मैं अाग्या दखे 

हिंदू सिख जितने गांव के जीवन का भय खाग्या दखॆ 

दंगे शुरू हो गए देश मैं चूल हिली हिंद सारे की ।।

प्रीतम कौर का चेहरा सुनकै पीला पडग्या था 

दो जवान उनके घर में छोरी उनका पेच एडग्या था 

इनकी इज्जत कैसे बचैगी मनै चिंता इस बारे की ।।

पति बोला मनै भी प्रीतम इनकी चिंता घणी खावै 

दंगाई इज्जत पर हाथ गेरते ईसा सुनने मैं आवै

शरीर में जान जिब तक आंख फोडूं हत्यारे की ।।

एक अकेला कद ताहीं लडेगा इज्जत लुटज्या म्हारी 

जहर देदयां छोरियां नै चाही इजाजत पति मुख्तयारेे की।।

दो-चार दिन सोच सोच कै इस नतीजे पर आए थे 

जहर खरीद कै बाजार तैं मजबूरी मैं ल्याए थे 

छोरी पड़ी खाटों पै रोवै कलम रणबीर बेचारे की।।

मेहर सिंह हटकै आज्या तनै बरोणा गाम बुलावै सै।।

 हरियाणा के महान कवि एवम स्वतन्त्रता सेनानी बरोणा की पावन धरती के सपूत जाट मेहर सिंह की 100 वीं जयंती पर शत शत नमन।

एक बार जाट मेहर सिंह की भाभी ने बातचीत में आदरणीय Ranbir Singh Dahiya को बताया कि मेहरू में दो अवगुण थे। वहाँ मौजूद सभी लोग ये सुन चकित थे कि ऐसे महापुरुष में भी दो अवगुण।

जब पूछा तो बताया कि:

1. हुक्का बिगाड़ था- मतलब जहाँ भी हुक्का मिलता पी लेते थे, जात धर्म देख कर हुक्का नहीं पीया।

2. मुसलमानों के साथ यारी थी। 

ये अवगुण नहीं बल्कि आज से 100 वर्ष पूर्व भी उनकी दूरगामी सोच को दिखाता हैं।


डॉ रणबीर सिंह दहिया की जाट मेहर सिंह पर लिखी एक कविता आपके समक्ष पेश हैं:


शहीद फ़ौजी कवि किसान मेहर सिंह

मेहर सिंह हटकै आज्या तनै बरोणा गाम बुलावै सै।।

तेरे सौंवे जन्म दिन पै गाम गुहांड खुसी मनावै सै।।

1

हुक्का बिगाड़ पहला अवगुण बहोत घणा भाया दखे

छुआछूत खत्म करने का रस्ता हमको दिखाया दखे

देख आकै जातपात का घेरा रोजाना बढ़ता जावै सै।।

तेरे सौंवे जन्म दिन पै गाम गुहांड खुसी मनावै सै।।

2

दूजा अवगुण मुसलमानों मैं पक्की यारी दोस्ती बताया 

उन बख्तों मैं हिन्दू मुस्लिम का भाईचारा खूब बढ़ाया

ये अवगुण तेरे बताये इनतैं बड्डा गुण के पावै सै।।

तेरे सौंवे जन्म दिन पै गाम गुहांड खुसी मनावै सै।।

3

कवि फ़ौजी किसान शहीद चार चीज नहीं टोही पाती रै

अमर होग्या यो नाम तेरा फूली बरोणा गाम की छाती रै

काला चाँद का किस्सा तेरा कद कई गुणा बढ़ावै सै।।

तेरे सौंवे जन्म दिन पै गाम गुहांड खुसी मनावै सै।।

4

देश आजाद करावण मैं आजाद हिंद फौज लड़ी थी रै

ब्रिटिश आर्मी छोड़ कैै बोस की फ़ौज करी खड़ी थी रै

रणबीर सिंह तेरी याद मैं टूटे फूटे छन्द बणावै सै।।

तेरे सौंवे जन्म दिन पै गाम गुहांड खुसी मनावै सै।।

ब्रूनो नै चर्च में पढ़कै


*ब्रूनो नै चर्च में पढ़कै कहते पादरी बनना चाहया था।।*

*कॉपरनिकस की किताब पढ़कै उसनै पल्टा खाया था।।*

1

सवाल उठाकै वो क्यों  धरती सूरज पै बहस चाहवै

आगै अध्ययन करकै नै क्यों नहीं पता लगाया जावै 

ज्यों ज्यों अध्ययन करै सूरज चौगरदें धरती  घुमती  पावै

चर्च की ताकत और गुस्सा पूरी ढ़ालां समझ मैं आवै

*ब्रूनो नै इसे कारण तैं इटली छोडण का मन बनाया था।।*

2

कुछ विद्वान सहमत होगे फेर साथ कदम नहीं धरया

दिन दूनी रात चौगुनी प्रचार करता ब्रूनो नहीं डरया 

आम जनता का दिल उसनै यो पूरी तरियां दखे हरया

प्रयाग पैरिस इंग्लैंड जर्मनी मैं उसनै  था प्रचार करया

*चर्च की दाब नहीं मानी हारकै चर्च नै भगोड़ा बताया था।।*

3

ज्यों ज्यों प्रचार करया चर्च का गुस्सा बढ़ावै था 

ब्रूनो भी बढ़ता गया आगै ना पाछै कदम हटावै था

चर्च की छलां तैं बताओ कितने दिन बच पावै था 

वैचारिक समझौता ना करूंगा यो सन्देश पहूंचावै था

*चर्च नै पकड़ण की खातर फेर कसूता जाल बिछाया था।।*

4

चर्च मानस तैयार किया वो ब्रूनो धोरै पढ़ना चाहवै सै

फीस तय करदी उसकी फेर एक पते कै ऊपर बुलावै सै

ब्रूनो भी शिष्य एक बनैगा मेरा सोच कै नै सुख पावै सै

चर्च की चाल सोची समझी समझ उसकी ना आवै सै

*गिरफ्तार कर लिया चर्च नै बहोत घणा गया सताया था ।।*

5

अमानवीय यातना दी चर्च नै ब्रूनो अपने मत नै छोड़ दे

पहले आली सोच कांहीं अपनी सोच नै ब्रूनो मोड़ दे

छह साल ताहिं मंड्या रहया चर्च ब्रूनो की कड़ तोड़ दे

लोहे के सन्दूक मैं राख्या ताकि मौसम यो शरीर निचौड़ दे

*यो अत्याचार चर्च का ब्रूनो का मनोबल गिरा ना पाया था ।।*

6

न्यायालय का ड्रामा रच कै घनी भूंडी सजा सुनवाई 

इसी सजा दयो इसनै एक बी खून की बूंद ना दे दिखाई 

ब्रूनो उलट कै बोल्या था सरकार घणी डरी औड़ पाई

रोम के चौंक मैं ब्रूनो खम्भे कै ल्याकै बांध्या था भाई

*रणबीर कपड़ा ठूंसकै मूंह मैं ब्रूनो जिंदा उड़ै जलाया था ।।*

खतरे मैं आजादी म्हारी जिंदगी बणा मखौल दी।


आजादी

खतरे मैं आजादी म्हारी जिंदगी बणा मखौल दी।

इसकी खातर भगत सिंह नै जवानी लूटा निरोल दी।

आजादी पावण की खातर असली उठया तूफ़ान था

लाठी गोली बरस रही थी जेलां मैं नहीं उस्सान था

एक तरफ बापू गांधी दूजी तरफ मजदूर किसान था

कल्पना दत्त भगत सिंह नै किया खुल्ला ऐलान था

इंक़लाब जिंदाबाद की उणनै या ऊंची बोल दी ।

सत्तावन की असल बगावत ग़दर का इसे नाम दिया

करया दमन फिरंगी नै उदमी राम रूख पै टांग दिया

सैंतीस दिन रहया जूझता कोये ना मिलने जाण दिया

हंस हंस देग्या कुर्बानी हरियाणे का रख सम्मान दिया

हिन्दू मुस्लिम एकता नै गौरी फ़ौज या खंगोल दी।

भारतवासी अपने दिलां मैं नए नए सपने लेरे थे

नहीं भूख बीमारी रहने की नेता हमें लारे देरे थे

इस उम्मीद पै हजारों भाई गए जेलों के घेरे थे

दवाई पढ़ाई का हक मिलै ये नेक इरादे भतेरे थे

गौरे गए आगे काले रणबीर की छाती छोल दी।

फुट गेरो और राज करो ये नीति वाहे चाल रहे रै

कितै जात कितै धर्म नै ये बना अपनी ढाल रहे रै

आपस मैं लोग लड़ाए लूट की कर रूखाल रहे रै

वैज्ञानिक नजर जिसकी जी नै कर बबाल रहे रै

इक्कीसवीं की बात करैं राही छटी की खोल दी।

2003.2004

ranbir dahiya