हर कोई तैयार बैठा है कलम को खरीदने को,
कलम तैयार नहीं है चंद सिक्कों में बिकने को।
कलम मेरी नहीं लिखती झूठी तारीफ सुनने को,
कलम मेरी नहीं लिखती है यहाँ ऊपर उठने को।
दुश्मनी मोल लेती है सच की लड़ाई लड़ने को,
खोने को कुछ नहीं, सारी दुनिया है जीतने को।
जानी जाती है कलम मेरी यहाँ आग उगलने को,
मशहूर है ये झूठ को सरे बाजार नंगा करने को।
तैयार रहती है असहायों की बैशाखी बनने को,
ना नहीं करती है दुःखियों के पक्ष में चलने को।
देशहित में चलती है ये लोगों में जोश भरने को,
मचलती है ये भारत माता की जय लिखने को।
लिखती नहीं कविता ये केवल लोगों के पढ़ने को,
सुलक्षणा की कलम लिखती है दिल में उतरने को।
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