Tuesday, 26 April 2016

क्यों मैं दूसरी भाषा का गुणगान करूँ,

क्यों मैं दूसरी भाषा का गुणगान करूँ, मैं मातृ भाषा हिंदी पर अभिमान करूँ। एकता के सूत्र में बाँधती है ये देश को, इसीलिए हिंदी पर न्यौछावर प्राण करूँ। दिल को सुकून मिलता है हिंदी बोलकर, इसी अपनेपन के लिए मैं सम्मान करूँ। सारी दुनिया जानती है इसकी विशेषता, शब्द नहीं मिल रहे कैसे मैं बखान करूँ। प्रेम की भाषा है हिंदी हर कोई मानता है, हिंदी के बिना कैसे संपूर्ण हिंदुस्तान करूँ। अ अनार से शुरु कर ज्ञ ज्ञानी बनाती है ये, बोलो फिर क्यों ना मैं हिंदी का ध्यान करूँ। दिल ओ दिमाग में बस एक ही सवाल है, दुनिया में कैसे हिंदी को प्रकाशमान करूँ। हिंदी का झंडा अब सुलक्षणा को लहराना है, हिंदी में कर कविताई खुद पर अहसान करूँ। ©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

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