Friday, 17 October 2014

मरीज  का इंसानी पक्ष 


इंसान  मरीज  हो  गया  
मरीज  का  भी  हर्निया  
बस  दिखाई  देता  है  
सर्जन   को  क्या  हुआ  
मायोपिक नजर हो गयी  
इंसानियत और इंसान की  
परिभाषा  ही  खो गयी 

तीन मुँही नागण काली


तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
शरीर हुया काला इंका जनता आज कसूती फंसगी ॥
मुद्रा कोष का फण जहरी इंका काट्या मांगै पाणी ना
दूसरा फण विश्व बैंक का तासीर इसकी पिछाणी ना
डब्ल्यू टी ओ तीजा फण सै बचै इंका डस्या प्राणी ना
नागण के सप्लोटिये कहैं नागण माणस खाणी ना
इसके जहर की छाया समाज की नस नस मैं बसगी ॥
तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
ढांचागत समायोजन सैप नै कसूते गुल खिला दिए
शिक्षा पाई खर्चा कम करो फरमान इसे सुणा दिए
सेहत तैं ना कोए लेना देना मंतर गजब पढ़ा दिए
पब्लिक सैक्टर औने पौने मैं ये इसनै बिका दिए
संकट मोचक बणकै आया संकट की कोळी क्सगी ॥
तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
गरीब देशां का हितेषी वैश्वीकरण बणकै आया रै
तीन मुँही नाग के दम पै हर देश लूट कै खाया रै
अपनी मौज मस्ती की ताहिं नया गुल खिलाया रै
चका चौंध इसी मचा दी अपना दीखै सै पराया रै
ये गरीब तबाह होते आवैं गाळ भीतर नै धंसगी ॥
तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
बाळकां की दुर्गति करदी जवानी आज की बोड़ी होगी
म्हारे डांगर मरण लागरे ठाड्डी रेश  की घोड़ी होगी
अमीर गरीब के बीच की खाई आज और भी चौड़ी होगी
बदेशी तीन मुँही नागण की देशी नागण तैं  जोड़ी होगी
 रणबीर सिंह की कविताई तैं ज्योत अँधेरे मैं चसगी ॥
तीन मुँही नागण काली म्हारे भारत देश  नै डसगी ॥
2001