Sunday, 28 December 2014

बिल्ली कै घंटी कौण बांधै

बिल्ली  कै घंटी  कौण  बांधै
भेड़ों की  ढालां  बेघर लोगों का शहरां के ख़राब तैं  ख़राब घरां  में बढ़ता जमावड़ा आज के हरयाणा  की एक  कड़वी सच्चाई  सै ।
सारे  सामाजिक नैतिक बन्धनों का तनाव ग्रस्त होना तथा टूटते जाना  गहरे संकट की घंटी बजावण  सैं ।  बेर ना 
हमनै  सुनै   बी सै अक नहीं ? माहरे परिवार के  पितृ स्तात्मक  ढांचे में अधीनता (परतंत्रता ) का तीखा होना साफ  साफ  
देख्या जा  सकै  सै  । जिंघान  देखै  उँघानै पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जाना ।   युवाओं के  साहमी  पढ़ाई  लिखाई अर  रोजगार 
 की गंभीर चुनौतीयाँ  सैं ।   परिवारों में बुजुर्गों की असुरक्षा का बढ़ते जाना  जगहां  जगहाँ  देखन  मैं आवै सै ।  दारू नै रही सही 
कसर पूरी करदी , घर तो गामां  मैं  कोई बच नहीं रह्या  दारू तैं , मानस एकाध घर मैं बचरया  हो तो  न्यारी बात सै । ताश खेलण
तैं  फुरसत  नहीं ।  काम कै  हाथ लाकै  कोए  राज्जी  नहीं । बैलगाड्डी  की जागां  बुग्गी  नै   ले  ली  अर  बुग्गी  चलना  भी महिला 
के सिर  पै  आण  पड़या ।  ऐह्दी पणे  की हद होगी । महिलावाँ  पै और  बालकां  पै काम का बोझ बढ़ता जाण  लागरया  सै  | 
असंगठित क्षेत्र  बधग्या  अर  जन सुविधावां  मैं  घनी  कमी  आंती  जावै  सै |  एक नव धनाढ्य  वर्ग  पैदा होग्या  हरित क्रांति 
पाच्छै  उसकी  चांदी  होरी  सै  ।  उसका  निशाना  सै  पीस्से   कमाना  कुछ  भी  करकै   \ कठिन जीवन होता जा   सै । मजदूर वर्ग 
को पूर्ण रूपेण ठेकेदारी प्रथा में धकेल्या जाना आम बात की  ढा लां  देख्या  जा  सै  ।गरीब लोगों के जीने के आधार  कसूते  ढा ल  
सिकुड़ता  जान  लाग रया  सै \गाँव  तैं शहर को पलायन   का बढ़ना तथा लम्पन तत्वों की बढ़ोतरी होणा   चारों  कान्ही  दीखै  सै 
 | शहरां के विकास में अराजकता  छागी | ठेकेदारों  और प्रापर्टी डीलरों का बोलबाला  होग्या  चा रों तरफ ।
 जमीन की उत्पादकता में खडोत , पानी कि समस्या , सेम कि समस्या  तैं  किसानी का   संकट  गहरा ग्या ।  कीट नाशकां  के  
अंधाधुंध  इस्तेमाल  नै  पानी कसूता प्रदूषित कर दिया अर  कैंसर  जीसी  बीमारियां  के बधण  का   खतरा  पैदा  कर दिया । 
कृषि  तैं  फालतू  उद्योग कि तरफ  अर व्यापार की तरफ जयादा ध्यान  दिया  जावै  सै  इब  । 
स्थाई हालत से अस्थायी हालातों 
पर जिन्दा रहने का दौर आग्या  दीखै  सै ।   अंध विश्वासों को बढ़ावा दिया  जावण  लाग रया  सै  | हर दो किलोमीटर पर मंदिर 
का उपजाया जाना अर टी वी पर भरमार  सै  इसे  मैटर की ।
अन्याय  अर  असुरक्षा का बढ़ते जाण  की  साथ  साथ  कुछ लोगों के प्रिविलिज बढ़ रहे  सैं ।  मारूति से सैंट्रो कार की तरफ रूझान | आसान काला धन काफी इकठ्ठा किया गया सै । उत्पीडन अपनी सीमायें लांघता जा रया  सै  |गोहाना काण्ड  , मिर्चपुर कांड अर  रूचिका कांड ज्वलंत उदाहरण  सैं |
* व्यापार धोखा धडी में बदल  लिया  दीखै  सै । शोषण उत्पीडन और भ्रष्टाचार की तिग्गी भयंकर रूप धार रही  सै । भ्रष्ट नेता , 
भ्रष्ट अफसर और भ्रष्ट पुलिस   का  गठजोड़ पुख्ता हो  लिया  सै । प्रतिस्पर्धा ने दुश्मनी का रूप धार लिया ।  तलवार कि जगह 
सोने ने ले ली । वेश्यावृति दिनोंदिन बढ़ती जा सै  ।  भ्रम  अर  अराजकता का माहौल बढ़रया  सै  | धिगामस्ती बढ़ री  सै ।  
               संस्थानों की स्वायतता पर हमले बढे  पाछले  कुछ सालों  मैं । लोग मुनाफा कमा कर रातों रात करोड़ पति से अरब पति
 बनने के सपने देख रहे सैं  अर  किसी भी हद तक अपने  आप  नै गिराने को तैयार  सैं  । खेती में मशीनीकरण तथा औद्योगिकीकरण मुठ्ठी भर लोगों को मालामाल कर गया तथा लोक  जण को गुलामी व दरिद्रता में धकेलता जारया  सै । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिकंजा कसता जावण  लाग रया  सै 
वैश्वीकरण को जरूरी बताया जारया  सै जो असमानता पूर्ण विश्व व्यवस्था को मजबूत करता जाण  लाग  रहया  सै । पब्लिक सेक्टर
 की मुनाफा कमाने वाली कम्पनीयों को भी बेच्या जा रया   सै ।  हमारी आत्म निर्भरता खत्म करने की भरसक नापाक साजिश 
की जा रही सै । साम्प्रदायिक ताकतें देश के अमन चैन के माहौल को धाराशाई करती जा रही  सैं  जिनतें  हरयाणा  भी  अछूता  
 कोणी   सकता ।  सभी संस्थाओं का जनतांत्रिक माहौल खत्म किया जा रया  है । बाहुबल, पैसे , जान पहचान , मुन्नाभाई , ऊपर
 कि पहुँच वालों के लिए ही नौकरी के थोड़े बहुत अवसर बचे  सैं ।  महिलाओं  में अपनी मांगों के हक़ में खडा  होने  का उभार 
दिखाई देवै  सै | सबसे ज्यादा वलनेरेबल भी समाज का यही हिस्सा दिखाई देसै  मग़र सबसे ज्यादा जनतांत्रिक मुद्दों पर , नागरिक 
समाज के मुद्दों पर , सभ्य समाज के मुद्दों पर संघर्ष करने कि सम्भावना भी यहीं ज्यादा दिखाई देसै ।  वर्तमान विकास प्रक्रिया
भारी सामाजिक व इंसानी कीमत मानगणे  आली   सै  | इसको संघर्ष के जरिये पल ट्या जाना बहुत जरूरी  सै । फेर  बिल्ली  कै 
घंटी  कौण  बांधै ?

गया चौदा आवैगा पन्दरा

गया चौदा  आवैगा पन्दरा 
उठा पटक घनी देखि दो हजार चौदा  के साल मैं । 
दो हजार पन्दरा  मैं देश जान्ता दिखै बुरे हाल मैं । 
कालेधन का बोलबाला पाछले साल बताया देखो 
घोटाले पर घोटाला यो   सबके साहमी आया देखो 
कांग्रेस को सबक सिखाया देखो गेरदी पातळ मैं । 
जिन बातां का साहरा लेकै भाजपा केंद्र मैं आगी 
मोदी जी की लफ्फाजी एकबै पूरी जनता मैं छागी 
मीडिआ भी रोल निभागी मोदी के छवि उछाल मैं । 
महंगाई तैं ध्यान हटावन नै आर एस एस भड़कावै 
क्लेश हिन्दू मुस्लिम का जागां जागां पै भढ़वावै 
नफरत का जहर फैलावै यू पी बिहार बंगाल मैं । 
मेक इन इंडिया का नारा या बोल दई सरकार नै 
नकेल बदेशी कम्पनियाँ की खोल दई सरकार नै 
जहर घोल दई सरकार नै किसानां के खलिहान मैं । 
रणबीर --28 . 12 . 2014