Wednesday, 8 February 2023

जाल अमरीका का ---180 ----

 2008 की रचना आज और प्रासंगिक हो गयी लगती है 


जाल अमरीका का 


अमरीका तनै जाल बिछाया , 

हिंसा नशा नंगापन फैलाया, 

हरेक देश दबाना चाहया, 

तेरी चाल समझ  मैं आई  सै।।



फीम सुल्फा चरस बिकादी , हथियारों की होड़ बढ़ादी ,


तेरे तै होंगे सही पौ बारा , यो नौजवान फंसग्या म्हारा 

म्हारी तबियत होगी खारया ,करी खूब काली कमाई सै।।



उदारीकरण के नारे लगाए , शिकंजे मैं कई देश फंसाये 


तूफ़ान अश्लीलता का ल्याया , 

गाभरू कै खून मुँह लगाया 

चैनल पै चैनल चलवाया , आतंकवाद कसूत फैलाई सै।। 



पोर्न फिल्मों की बाढ़ सी ल्यादी , 

काली कमाई इसमें भी लगादी 

हिंसा नै रिकार्ड तोड़ दिये , म्हारे छोरा छोरी मरोड़ दिए 

ये हिंसा के घोड़े खुल्ले छोड़ दिए , सोच समझ चाल चलायी सै ।। 



एक हाथ तैं लूटै हमनै देखो , 

दूजे हाथ तैं चूमै हमनै देखो 


म्हारा धयान हटावै सच्चाई तैं , ऐश करता म्हारी कमाई पै,रणबीर सिंह की कविताई पै ,उम्मीद जनता नै लाई सै ।।

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