वैज्ञानिक दृषिट
वैज्ञानिक दृष्टि बिन सृष्टि नहीं समझ मैं आवै।
कुदरत के नियम जाण कै समाज आगै बढ़ पावै।।
किसनै सै संसार बणाया किसनै रच्या समाज यो
म्हारा भाग कहैं माड़ा बांधैं कामचोर कै ताज यो
सरमायेदार क्यों लूट रहया सै मेहनतकशी की लाज यो
क्यों ना समझां बात मोटी कूण म्हारा भूत बणावै।।
कुदरत के नियम जाण कै समाज आगै बढ़ पावै।।
कौण पहाड़ तोड़ कै करता धरती समतल मैदान ये
हल चला खेती उपजावै उसे का नाम किसान ये
कौण कमेरा चीर कै खोदै चांदी सोने की खान ये
ओहे क्यों कंगला घूम रहया चोर बण्या धनवान ये
करमां के फल मिलै सबनै क्यों कैहकै बहकावै।।
कुदरत के नियम जाण कै समाज आगै बढ़ पावै।।
हम उठां अक अनपढ़ता का मिटा सकां अन्धकार यो
हम उठां अक जोर जुलम का मिटा सकां संसार यो
हम उठां अक उंच नीच का मिटा सकां व्यवहार यो
जात पात और भाग भरोसे कोण्या पार बसावै।।
कुदरत के नियम जाण कै समाज आगै बढ़ पावै।।
झूठयां पै ना यकीन करां म्हारी ताकत सै भरपूर
म्हारी छाती तै टकरा कै गोली होज्या चकनाचूर
जागते रहियो मत सोइयो म्हारी मंजिल ना सै दूर
सिरजन होरे हाथ म्हारे सैं घणे अजब रणसूर
नया समाज सुधार का रणबीर रास्ता बतावै।।
कुदरत के नियम जाण कै समाज आगै बढ़ पावै।।
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