Friday, 17 February 2023

स्वदेशी का ढोंग

 स्वदेशी का ढोंग

स्वदेशी का ढोंगे रचाकै यो बेच दिया देश सारा क्यूं।

भीतरले में जहर काला यो बाहर सफेद रंग थारा क्यूं।।

1. समाज बिगाड़ण की ठेकेदारी, अपणे नाम छुटाई आज

 नारी दी एक चीज बणा तमनै बीच बाजार बिठाई आज

 चेले चपट्यां ने उसके शरीर परै नजर सै गड़ाई आज

 दे दे कै फतवे थारे बरग्यां नै या क्यों घरां बिठाई आज

 बाजार मैं शरीर इनका बेचो लाओ मातृ शक्ति का नारा क्यूं।।

भीतरले में जहर काला यो बाहर सफेद रंग थारा क्यूं।।

2. औरत ताहिं हक बराबर के नहीं देवणा चाहते हम

 जननी और देवी कैहकै नै इसको खूब भकाते हम

 क्लबां मैं नगा नचाते इसनै जिब क्यूं ना शरमाते हम

 दूजी कान्ही कसूर इसी का बेशरमी से बताते हम

 नैतिकता का नारा लाओ खोल्या अनैतिकता का भंडारा क्यूं।।

भीतरले में जहर काला यो बाहर सफेद रंग थारा क्यूं।।

3. स्वदेशी का नारा उफंचे सुर मैं सब पुकार रहे

 न्योंत न्यौंत के बदेशी क्यों उजाड़ सब कारोबार रहे

 इसी नीति अपणा राखी सब खत्म कर रोजगार रहे

 मुट्ठीभर तै मौज करैं गरीबां कै उपर चला वार रहे

 थारे महल अटारी सारे गरीबां का फुट्या ढारा क्यूं।।

भीतरले में जहर काला यो बाहर सफेद रंग थारा क्यूं।।

4. आपा धापी मचा दई अराजकता का माहौल रचाया सै

 फासीज्म अराजकता के दम पै दुनिया मैं आया सै

 देश जाओ चाहे भाड़ मैं सुखी चाही अपणी काया सै

 अमीरां आग्गै गोड्डे टेक दिये गरीब घणा दबाया सै

 रणबीर की भूख दीखै कोन्या अमीरां के पौ बारा क्यूं।।

भीतरले में जहर काला यो बाहर सफेद रंग थारा क्यूं।।

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