गरीब गुरबे का दुख लहना, कोई सीखे तुमसे, बिना कहे बहुत कुछ कहना कोई सीखे तुमसे। लालच में भोग का बाजार जकड़े हुए है हमको
इस बाजारी दुनिया से फ़हना कोई सीखे तुमसे।इंट के नीचे बीछू बिछाया हमें दिखाई देता है,
बिछुओं के दंश को न सहना कोई सीखे तुमसे। सांप्रदायिकता का जाल फैलाया कदम कदम पे
इस भ्रमजाल को आज दहना कोई सीखे तुमसे।
सोने पर ये रांग का पानी चढ़ा कर बेच रहे देखो, कैसे पहचानें असली गहना कोई सीखे तुमसे। वैश्वीकरण को तूफान बना सब कुछ बहा रहे हैं, इसके झोंके मैं न बहना कोई सीखे तुमसे।
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