Tuesday, 7 February 2023

एक पगली सी लड़की थी,

 एक पगली सी लड़की थी, खेलती छांव में बड़ की थी,घर में उसके कड़की थी, मुझे वह लगती थी प्यारी।।

1
रोजाना भेड़ चराने जाती घर का उस पर बोझा था
फिर भी उसने खुश रहने का नया तरीका खोजा था
दूसरे गडरिये थे साथ, डाले फिरती हाथ में हाथ
उधम मचाती दिन रात,उसकी छवि सबसे न्यारी।।
2
फ़टे पुराने कपड़े उसके बाल भी कुछ थे उलझे से
वह बाला चतुर बहोत थी ख्याल भी कुछ सुलझे से
ना सिर पर माता का साया, बूढ़े बाप का हाथ बंटाया,गडरियों ने साथ निभाया, जब भी आई हारी बीमारी।।
3
भेड़ जितनी उस बाड़े की उस बाला को सब चाहती थी
दुख होता था जब उनको वो आकर पास मिमियाती थी
वह हाथ फेर कर सहलाती, जख्म पर मरहम लगाती, वक्त उनके संग बिताती, ये थी उसकी दुनिया सारी।।
4
उसकी सुंदर दुनिया में फिर भेड़िया था आया एक
दो भेड़ खा गया उनकी घायल भी करदी भेड़ अनेक
हुआ था कोमल दिल दुखी, अंदर तक थी हिल उठी,साहस करके जिल उठी, उसकी हिम्मत बड़ी भारी।।

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