2086-87 के वक्त लिखी रागनी
*दसमीं ताहिं का स्कूल आगै क्युकर करूं पढ़ाई मैं।।*
*माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।*
1
माँ बोली आज जमाने मैं बिना पढ़ाई कोये बूझै ना
शहर मैं क्युकर खंदाऊँ बाबू कहै मनै राही सूझै ना
*बोल्या हाथ पीले करने होंगे सुनकै घणी घबराई मैं।।*
माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।
2
बाबू बोल्या बुरा जमाना शहर ठीक नहीं सै जाणा
ऊंच नीच कोये होज्यागी तै यो होज्या मोटा उल्हाणा
*क्युकर मनाऊं मेरे बाबू नै हे इस चिंता नै खाई मैं।।*
माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।
3
माँ बोली माहौल गाम का शहर तैं आज न्यारा कोण्या
डर कै घर मैं दुबके तो होवै कति आज गुजारा कोण्या
*मैं बोली मत ठाओ पढ़ण तैं मरज्यांगी बिन आई मैं।।*
माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।
4
पांच सात दिन पाछै बाबू नै मुँह अपना खोल्या
डर लागै बेटी मनै रणबीर आंख्या पानी ल्या बोल्या
*साच्ची बूझै तो ईब करना चाहूं बेटी तेरी सगाई मैं।।*
माँ तै चाहवै मनै पढ़ाणा पर बाबू नै घरां बिठाई मैं।।
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