हरि के हरियाणे मैं
एमबीबीएस की फीस बढ़ाई,या चालीस लाख करी बताई,
जनता की करी सै खिंचाई,
हरि के हरियाणे में।।
बॉण्ड पालिसी करड़ी ल्याये ,
जनता कै आज सांस चढ़ाये
करजा चढज्यागा भारी भाई
बैंक का खटका भारी भाई
डूंडी पिटदी म्हारी भाई,
हरि के हरियाणे मैं।।
धरती चढ़ै लाल स्याही मैं,
यो परिवार फ़ँसै तबाही मै
सरकारी घंटी सै खुड़की,
शहर चाहे गाम रूड़की,
फीस करावै म्हारी कुड़की,
हरि के हरियाणे मैं।।
या बढ़ी फीस नाश करैगी,
जनता बिन इलाज मरैगी
देवैगी घरां के मैं बुहारी, ,
सरकार देखो धुम्मा ठारी ,
ईब श्यामतआवैगी भारी,
हरि के हरियाणे मैं।।
महंगी होन्ती जागी पढ़ाई रै,
रणबीर मरैंगे बिना दवाई रै
दुख होज्याग्या भारया रै
मन बी होज्याग्या खारया रै,
नहीं कोये रास्ता पारया रै,
हरि के हरियाणे मैं।।
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