Friday, 30 March 2018

फांसी कोई इलाज नहीं



फांसी खाने से निजात नहीं मिलेगी बल्कि इस किसान विरोधी सिस्टम को फांसी पर लटकाया जाना चाहिए । क्या बताया रचनाकार ने *****
फांसी कोई इलाज नहीं हँसता हमपै यो लुटेरा ~
मर्ज समझल्याँ एक बै तो दूर नहीं यो सबेरा ~
1
ट्रेक्टर की बाही मारै ट्यूबवैल का रेट सतावै
थ्रेशर की कढ़ाई मारै भा फसल का ना थ्यावै 
फल सब्जी दूध सीत सब ढोलां मैं घल ज्यावै 
माटी गेल्याँ माटी होकै बी सुख का साँस ना आवै 
बैंक मैं सारी धरती जाली दीख्या चारों कूट अँधेरा~
2
निहाले पै रमलू तीन रूपया सैकड़े पै ल्यावै
वो साँझ नै रमलू धोरे दारू पीवन नै आवै
निहाला कर्ज की दाब मैं बदफेली करना चाहवै
विरोध करया तो रोज पीस्याँ की दाब लगावै
बैंक आल्यां की जीप का बी रोजाना लाग्या फेरा~
3
बेटा बिन ब्याह हाँडै सै घर मैं बैठी बेटी कंवारी
रमली रमलू नयों बतलाये मुशीबत कट्ठी होगी सारी 
खाद बीज नकली मिलते होगी ख़त्म सब्सिडी म्हारी
माँ टी बी की बीमार होगी बाबू कै दमे की बीमारी
रौशनी कितै दीखती कोन्या घर मैं टोटे का डेरा~
4
माँ अर बाबू म्हारे नै यो जहर धुर की नींद सवाग्या
माहरे घर का जो हाल हुआ वो सबके साहमी आग्या 
जहर क्यूं खाया उननै यो सवाल कचौट कै खाग्या 
म्हारी कष्ट कमाई उप्पर कोए दूजा दा क्यों लाग्या
कर्जा बढ़ता गया म्हारा मरग्या रणबीर सिंह कमेरा ~

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