-51-
आया फागण
फागण का म्हिना आग्या चारों कान्हीं हरियाली छाई।।
ईब ना गरमी ना सरदी लागै या रुत खेलण की आई।।
चम्पा चमेली सखी सहेली करी फागण खेलण की तैयारी
बहू नवेली मिलकै खेली पूरा फागण का रंग जमारी
साठे में बुढ़िया होरी रसिया जणूं तै पां मिंडकी ठारी
लाडू बरफी ल्याकै असरफी आंगली चाट चाट खारी
रिस्सालो मार धमोड़ा फेर नई तान खोज कै ल्याई।।
पीले फूल रहे खेत मैं झूल चाला मोटा रूपरया सै
सिरसों की फली लागैं भली पूरा ए पेड़ा झुकरया सै
खुभात करै अर उभाणा फिरै फील गुड हंसरया सै
धरती बांझ होन्ती आवै सै जी बिघण मैं फंसरया सै
या चांद की चांदनी रात मोर नै सुरीली कूक सुनाई।।
बाट दिखा कै हाड़े खवा कै फागण का म्हिना आया
लुगाइयां नै बैठ सांझ कै गीत सही सुर मैं ठाया
लखावै बैठी कोए देहल पै नहीं बालम घर मैं पाया
होली के दिन रैहगे दो नहीं कोए रंग गुलाल ल्याया
बिन बालम किसी होली इसे चिन्ता नै मैं खाई।।
देवर आकै गुलाल लगावै भाभी नै कोलड़ा भांज लिया
इतनै मैं रुक्का पड़ग्या दो ठोल्यां का लाठा बाज लिया
किसे का सिर फूट गया कोए घर कान्ही भाज लिया
देवर कै कोलड़ा लाग्या हो घणा कसूता नाराज लिया
रणबीर बरोने आले नै करी टूटी फूटी सी कविताई।।
-52-
गुडफील
हमनै तो सुननी कोण्या थारी कोए दलील रै
ये सारे गुड फीलते ईब तूं भी गुड फील रै
भूखा मरै कोए बात नहीं छोड़ दे चिन्ता सारी
गुड फील ज्यूकर फीलैं म्हारे अटल बिहारी
या करी तरक्की भारी बोले सभी वकील रै।।
गुड फीलण मैं सूखे जावैं क्यों तेरे प्राण देख
हेमा मालिनी फीलती फील रहे कल्याण देख
हो कितनी अपमान देख मान ले अपील रै।।
म्हंगाई की मार पड़ै पर इसनै भूल जाइये तूं
दारू पी गुड फील हो कति ना शरमाइये तूं
ठप्पा सही लगाइये तूं मत करिये
गुड फीलैं सैं कटियार फीलती उमा भारती
जयपुर मैं सिंधिया जी तारै रणबीर आरती
सुषमा नकल मारती गाड्डे छाती में कील रै।।
-53-
तीन मुंहा नाग
तीन मुंहा नाग काला भारत देश नै डसग्या।
अमीरां की चान्दी होगी गरीब कसूता फंसग्या।।
मुद्राकोष का फण जहरी काट्या मांगै पाणी ना
दूजा फण विश्व बैंक का ईकी शक्ल पिछाणी ना
डब्ल्यू टी ओ तीजा फण बचती कुण्बा घाणी ना
काले नाग तै दूध जो प्यावै उंहतै माड़ा प्राणी ना
इसका जहर समाज की नस नस के मैं बसग्या।।
शिक्षा पै कम खरचा हो हुकम इसे सुणा दिये
सेहत बणै हवण तै मंतर गजब के पढ़ा दिये
कोडियां के दामां पै पब्लिक सैक्टर बिका दिये
भकाये फंदा
इस काले नाग के दम पै देश अमीर घणे छागे
गरीब देशां के बण हितैषी ये भ्रम घणा फैलागे
दुनिया के अमीर कट्ठे होकै चूट-चूट के खागे
अमीरपरस्त नीति बणाकै गरीब नै जमा दबागे
इसे डंक मारे अमीरां नै समाज धरती मैं थंसग्या।।
अमीर गरीब के बीच की खाई और चौड़ी होगी
ये बालक रुलते हांडैं इनकी जवानी बौड़ी होगी
बदेशी नाम की देशी तै घणी जालम जोड़ी होगी
म्हारे डांगर रोज मरैं ठाड्डी इनकी घोड़ी होगी
रणबीर की कविताई तै ज्योत अन्ध्ेारे मैं चसग्या।।
-54-
पीस्सा
माणस आले प्यार रहे ना जग में पीस्सा छाग्या।
माट्टी होगी त्याग भाव की जी घणा दुख पाग्या।।
विज्ञान की नई खोजां नै अनहोनी करकै दिखाई
नियम जाण कुदरत के या जिन्दगी सफल बणाई
गलत इस्तेमाल हो इसका तो घणी करदे तबाही
मुट्ठी भर लोगां नै इसपै अपनी धाक जमाई
नाज सड़ै गोदामां मैं भूखा दुख मैं फांसी खाग्या।।
कुछां के कुते ऐश करैं म्हारे बालक भूखे मरते
हम दिन रात कमावैं वे तै कमाई काली करते
चटनी नहीं नसीब हमनै वे पकवानां तैं डरते
पीस्से के अम्बार लगे इनके पेट कदे ना भरते
बिन पैंदे का लौटा हमनै मूरख बेकूफ बताग्या।।
म्हारी ईज्जत आबरू उतरै ईब खुले बाजार मैं
धेले की ना कदर रही आपस के ब्यौहार मैं
ना सही रिश्ते बनाए हमनै अपने परिवार मैं
औरत दी एक चीज बणा लालच के संसार मैं
बैडरूम सीन टीबी पै खुलकै दिखावण लाग्या।।
खेती खोसी डांगर खोसे ईब करैगा कंगला यो
ना सुहावै म्हारी झूंपड़ी खुदका बढ़िया बंगला यो
म्हारी लूट कमाई देखो हमनै बतावै पगला यो
रहे ताश खेलते तो नहीं समझ पावां हमला यो
बता रणबीर सिंह क्यों पीस्से का नंगापन भाग्या।।
-55-
नया पेटैंट मारैगा
यो पेटैंट के जंजाल बीरा, बतादे करकै ख्याल बीरा
उठती दिल मैं झाल बीरा, यो करै कैसे कंगाल बीरा
सै योहे मेरा सवाल बीरा, मनै जवाब दिये खोल कै।।
समिति नै कर जलसा इसकी सारी कमी बताई रै
सन सैंतालिस तै पहल्यां गोरयां नै लूट मचाई रै
आच्छी कहैं सरकार बीरा, समिति करै इन्कार बीरा
अमरीका की सै मार बीरा, देश बणाया बजार बीरा
किनैं बढ़ाई तकरार बीरा, मनै जवाब दिये तोल कै।।
खोज म्हारी कै झटका नये पेटैंट तै जरूर लागै
भूख गरीबी भारत की इसतै कदे बी कोन्या भागै
कोण्या बढ़या निर्यात बीरा, नहीं घट्या आयात बीरा
क्यूकर बचै औकात बीरा, म्हारी चढ़ी सै श्यात बीरा
क्यों मारग्या सन्पात बीरा, मनै जवाब दिये टटोल कै।।
खाद पानी बिजली खुसगे यो अपना बीज ना होगा
अस्पताल कॉलेज पै कब्जा बदेशी कंम्पनी का होगा
फेरना मिलै दवाई बीरा, या म्हंगी होगी पढ़ाई बीरा
इसनै रोल मचाई बीरा, जनता झूठ भकाई बीरा
क्यूकर बचै तबाही बीरा, मनै जवाब दिये बोल कै।।
चिन्ता रोज सतावै क्यूकर चालैगा यो परिवार मेरा
पेटैंट बढ़िया चीज सै इसतै दिल करै इनकार मेरा
खींच सही तसबीर बीरा, लडा कोए तदबीर बीरा
मसला घणा गम्भीर बीरा लिखै सही रणबीर बीरा
समझा ईकी तासीर बीरा मनै जवाब दिये खंगोल कै।।
-56-
वार्ता: वैश्वीकरण के दौर में देशों के बीच असमानाएं बढ़ती जा रही हैं और देशों के अन्दर भी असमानाएं बढ़ रही हैं। एक तरफ हाईटैक सिटी हैं। मॉल शॉप हैं। दूसरी तरफ कॉलोनियों में बनी दुकानों को सील किया जा रहा है ताकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मॉल शॉप चल निकलें। एयर कन्डीशन्ड घर हैं, कारें हैं और स्कूल हैं। गरमी की दुनिया देख ही नहीं पाते ये बच्चे। वास्तव में हिन्दुस्तान तरक्की पर है। क्या बताया भला:
जमीन जल और जंगल पै अमीर कब्जा बढ़ावै सै।
गरीब लाचार खड़या आसमान तरफ लखावै सै।।
जमीन पै कब्जा करकै हाईटैक सिटी बनाते आज
उजड़ कै जमीन तै कित जावै ना खोल बताते आज
बीस लाख मैं ले कै किल्ला बीस करोड़ कमाते आज
इनके बालक तै ऐश करैं म्हारे ज्यान खपाते आज
आदिवासी नै जंगल मां तै हांगा करकै हटावै सै।।
जंगल काट-काट कै गेरे ये मुनाफा घणा कमागे रै
आदिवासी दिये भजा उड़ै तै बहुत से ज्यान खपागे रै
मान सम्मान खातर लड़े वे ज्यान की बाजी लागे रै
देशी लुटेरे बदेशी डाकुआं तै ये चौड़ै हाथ मिलागे रै
किसान की आज मर आगी यो संकट मैं फांसी लावै सै।।
बिश्लेरी पानी की बोतल बाजार मैं दस की मिलती रै
दूध सस्ता और पानी महंगा बात सही ना जंचती रै
साफ पानी नहीं पीवण नै बढ़ती बीमारी दिखती रै
पानी म्हारा दोहन उनका पीस्से की भूख ना मिटती रै
जमीन जंगल जल गया संकट बढ़ता ए आव सै।।
औरत दी एक चीज बना बाजार बीच या बिकती रै
म्हंगाई बढ़ती जा कीमत एक जगहां ना टिकती रै
घणा लालची माणस होग्या हवस कदे ना मिटती रै
अमीरी गरीबां नै खाकै बी आज जमा ना छिकती रै
रणबीर बरोने आला घणी साची लिखता घबरावै सै।।
-57-
वार्ता: एक मई का दिन दुनिया के इतिहास में एक महत्व पूर्ण दिन है। सन् .............में ...............में मजदूरों ने इकट्ठे हो कर अपने हकों के लिए आवाज उठाई थी। अपने खून की कुर्बानी दी थी। लाल झण्डे की महिमा को स्थापित किया था।क्या बताया भला:
मई दिवस एक मई नै दुनिया मैं मनाया जावै।
दुनिया के मजदूरो एक हो नारा यो लगाया जावै।।
लड़ी मजदूरां नै कट्ठे होकै दुनियां मैं लड़ाई बेबे
लाल झण्डा रहवै सलामत छाती मैं गोली खाई बेबे
पूरी एकता दिखाई बेबे यो एहसास कराया जावै।।
दी शहादत मजदूरां नै अपने हक लेने चाहे थे
कई सौ मजदूर कट्ठे होकै शिकागे के मैं आये थे
एकता के नारे लाये थे म्हारा हक नहीं दबाया जावै।।
समाजवाद की दुनियां मैं नई सी एक लहर चली
चीन साथ वियतनाम या हर गली और शहर चली
दिन रात आठ पहर चली इतिहास मैं बताया जावै।।
उस दिन तै मजदूर दिवस मेहनत कश मणाण लगे
मजदूर एकता जिन्दाबाद सुण मालिक घबराण लगे
रणबीर सिंह गीत बणाण लगे एक मई नै गाया जावै।।
-58-
वार्ता: कमला बैठी बैठी सोच रही है। हमारे गिहूं का भाव हमें कम दिया जाता है। बाहर से गिहूं मंगवाया जाता है वह महंगा है। ऐसा क्यों? उसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं सूझता। वह क्या सोचती है भला:
किसान तै पढ़ण बिठाया गिहूं का आयात करकै हे।
आत्म निर्भर देश बनाया ज्यान हथेली पर धरकै हे।।
किसानां के ये हितैषी नेता आज कड़ै बिलां मैं बड़गे
के मजबूरी सै हमनै क्यों गिहूं आयात करने पड़गे
गिहूं गोदामां मैं सड़गे चुहे खागे बोरी कुतर कै हे।।
पहलमै फांसी खा खाकै किसान मरण लाग रहे सैं
काले पीले हरे रोजाना इनकै लड़ण नाग रहे सैं
म्हारै पड़ण झाग रहे सैं ईब पैंडा छुटैगा मर कै हे।।
बिन किसान ना खेती बताई बिन खेती उद्योग कड़ै
क्यूकर देश बढ़ैगा आगै इतना दुखी किसान जड़ै
मुंह खोलना जरूर पड़ै पानी गया सिर पर कै हे।।
अमरीकी गिहूं पै सब्सिडी आज बी जारी क्यों बताई
भारत की गिहूं की सब्सिडी खत्म करण की अड़ लाई
हांगकांग मैं मोहर लगाई मुश्किल आवां उभर कै हे।।
भारत का किसान दुखी हुया फसल पिटगी चौड़े मैं
चांद तो कदे बी मांग्या ना करया सै गुजर थोड़े मैं
बदेशियां के घमोड़े मैं मरना पड़ैगा पसर के हे।।
बिना एकता ना काम चलै पिट्या किसान न्यारा-न्यारा
जातपात और गोत नात पै बांटया कैहकै यारा प्यारा
रणबीर सिंह नहीं म्हारा गुजारा मतना बैठो डरकै हे।।
-59-
वार्ता: आईटी के क्षेत्र में जहां एक तरफ कुछ लोगों को नौकरियां मिली वहीं पर उनकी मुशीबतें भी बढ़ी हैं। कंपनी में लड़का-लड़की 18 घण्टे बिताते हैं। घर में 6 घण्टे। 6 घण्टे में से पांच घण्टे सोना। एक घण्टा परिवार के साथ यानी पत्नी के साथ तो कौन सा सम्बन्ध ज्यादा महत्वपूर्ण है। 18 घण्टे वाला या एक घण्टे वाला। क्या बताया कवि ने भला: दो शादीशुदा लड़के-लड़की में बच्चा बणाणे की समस्या:
एक जणा दिल्ली मैं दूजा हैदराबाद में बताया।
बालक बणाणा बेड़ी लागै यो किसा जमाना आया।।
आई टी मैं मिली नौकरी औधा उंचा पागी सै
नौकरी मैं पाछे पड़ज्या उनै चिन्ता खागी सै
बहाने करण लागी सै पतिदेव भी समझाया।।
बालक तै घणा तै यो कैरियर प्यारा होग्या आज
किसा जमाना आया बीज बिघन के बोग्या आज
प्यार भावना खोग्या आज माणस रोब्बट बनाया।।
तीस साल की उम्र होगी बालक कोए हुया नहीं
जिन्दगी की तन्हाई एकला जावै रहया नहीं
किसे तै जावै कहया नहीं नहीं कोए रास्ता पाया।।
न्यारी-न्यारी जागां पै उनके नये रिश्ते बणण लगे
बेरा पाटै एक दूजे तै रणबीर सिंह जलण लगे
तलाक त्यारी करण लगे घर मैं संकट छाया।।
-60-
जीन्द जिले के अलेवा खण्ड के गांव डाहौला में किताब सिंह की सुपुत्री मीना की शादी एक महीना पहले लोन गांव के स्वरूप सिंह के लड़के सतबीर सिंह से हो जाती है। लोन गांव जो नरवाना में है नैन गोत्र का गांव है और इसमें 10-15 घर नेहरा गोत्र के रहते हैं। कहते हैं नेहरा और नैन गोत का भाईचारा है। बख्त आ लिया अक यू भाईचारा तोड़ना पड़ैगा ना तै यू तोड़या जागा। बुलधां की खेती क्यूं छोड़ दी इन ंपचातियों नै जो गोतां की परम्परा की कोल्ली भरें हांडैं सै? क्या बताया कवि ने भला:
अलेवा खण्ड का गाम डाहौला उड़ै गोत विवाद बनाया।
नेहरा और नैन ये भिड़गे बिना बात का शोर मचाया।।
लोन गाम मैं नरेश गोत के दस पन्दरा घर बताये
नेहरा छोरी ना ब्याही आवै पंचात नै फरमान सुनाये
पहलम बी ब्याह हुये सैं ईबकै क्यों एतराज जताया।।
मीना बेटी किताब सिंह की सतबीर सिंह के संग ब्याही
लोन गाम के नेहरा कहते इस तरियां मचै तबाही
एक धेले का जुर्माना पंचात नै इस शादी उपर लाया।।
एक बै सोचां सीले मत नै क्यूकर पार पड़ै इस
दिन पै दिन गोत बधते जावैं आपस मैं लड़ैं इस
गोतां की तकरार डबोवै पुराना रिवाज चलता आया।।
किसे की ब्याह शादी ना हो जै इस तरियां रोक रहवै
समचाने मैं गोत पन्दरा कोए किसै नै कुछ ना कहवै
रणबीर घणे गाम जित ना जावै खेड़े का गोत बचाया।।
-61-
बोल बख्त के: पैप्सी जहर
आज शाम को टी.वी. चैनल सहारा समय पर 5.00 बजे खबर सुनी जहर का घूंट। बताया गया कि 24 प्रतिशत से ज्यादा कीटनाशक कोका कोला में पाये गये। दिल दहल गया और एक रागनी के माध्यम से आत्मा पुकारी। क्या बताया भला:
जहर पीवां पैप्सी कोलां मैं, मौत के मुंह मैं जावां रै।
सब्जी दूध भोजन मैं बहोत कीटनाशक खावां रै।।
पाणी मैं जहर घुलग्या इसका हमनै बेरा कोन्या
घणा कसूता घाल दिया टूटता दीखै घेरा कोन्या
हरित क्रांति हरियाणा में खुशी थोड़े लोगां मैं ल्याई
घणे लोगां मैं कीटनाशक नै या घणी रची तबाही
आज पाछै बोतल हम नहीं पैप्सी कोला की ठावां रै।।
अनतोल्या इस्तेमाल हुया सै पाछले दस सालां मैं
शरीर निचोड़ बगा दिया लाली बची नहीं गालां मैं
बदेशी कंपनी लूटैं हमनै ये हजर पिलाकै देखो
मुनाफा कमावैं अरबां का कीटनाशक खिलाकै देखो
कसम खावां आज सारे हाथ नहीं ठण्डे कै लावां रै।।
खाज गात मैं करदी सै आज घर कोए बच्या नहीं
दमा बीमारी बाधू होगी खुलासा म्हारै जंच्या नहीं
गैस पेट की बढ़ती जा महिला हुक्टी पीवण लाग्गी
नामर्दी का शिकार होकै पीढ़ी युवा जीवण लाग्गी
इलाज कितै होन्ता कोन्या बताओ हम कित जावां रै।।
कई साल तै रुक्या नहीं जहर का खेल न्योंए चालै
के बरा किस-किस के जीवन पै हाथ रोजाना घालै
कैंसर बधता जावै आज कई विद्वान बतावैं देखो
जन्म जात बीमारी बधगी आंकड़े ये दिखावैं देखो
कहै रणबीर बरोने आला ईबतैं मोर्चा जमावां रै।।
-62-
भ्रश्टाचार व भय मुक्त हरियाणा
भ्रष्टाचार और भय मुक्त हरियाणा देखण चाल पड़या।
आम आदमी सरकारी आफिस मैं पाया बेहाल खड़या।।
बिना पीस्से फाइल सरकै ना किसे महकमेे मैं जा देखो
ठेकेदारां की ईब चान्दी होरी बेउमाना रहे खा देखो
डीजल पैट्रोल के भा देखो लागै नाग तत्काल लड़या।।
भय छारया चारों कान्ही कद यो एक्सीडैंट होज्या
एक कार मैं हो कुन्बा सारा गहरी नींद मैं सोज्या
भय बीच बिघन के बोज्या माणस देखै फिलहाल खड़या।।
कितै भय पहलवानां का कितै भय थानेदारी का होज्या
कितै भय राजपाट का कितै भय रिश्तेदारी का होज्या
कितै भय भ्रष्टाचारी का होज्या पल मैं बबाल खड़या।।
भ्रष्टाचार की जड़ गहरी यो बड़ पाड़णा आसान कडै
बेकूफ बहादर सै वो जो बिनां जड़ां नै पहचान लड़ै
रणबीर बीच घमासान अडै़ छोड़ डॉक्टरी नाल खड़या।।
-63-
कट्ठे होल्यां
बहोत दिन होगे पिटत्यां नै ईब कट्ठे होकै देख लियो।
बैर भूल कै आपस का प्रेम के बीज बो कै देख लियो।।
करड़ी मार नई नीतियां की या सबपै पड़ती आवै सै
देश नै खरीदण की खातर बदेशी कंपनी बोली लावै सै
या ठेकेदारी प्रथा सारे कै बाहर भीतर छान्ती जावै सै
बदेशी कंपनी पै कमीशन यो नेता अफसर खावै सै
मन्दिर का छोड़ कै पैण्डा भूख गरीबी पै रोकै देख लियो।।
जड़ै जनता की हुई एकता उड़ै की सत्ता घबराई सै
थोड़ा घणा जुगाड़ बिठाकै जनता बहकानी चाही सै
जड़ै अड़कै खड़ी होगी जनता लाठी गोली चलवाई सै
लैक्शनां पाछै कड़ तोड़ैंगे या सबकी समझ मैं आई सै
ये झूठे बरतन जितने पावैं ताम सबनै धोकै देख लियो।।
हालात जटिल हुये दुनिया मैं समझणी होगी बात सारी
ईब ना समझे तो होज्या नुकसान म्हारा बहोतैए भारी
पैनी नजर बिना दीखै दुश्मन हमनै घणा समाज सुधारी
हम सब की सोच पिछड़ी नजर ना नये रास्ते पै जारी
भीतरले मैं अपणे भी दिल दिमाग गोकै देख लियो।।
जात धरम इलाके पै हम न्यारे-न्यारे बांट दिये रै
कुछ की करी पिटाई कुछ लालच देकै छांट लिये रै
म्हारी एकता तोड़ बगादी ये पैर जड़ तै काट दिये रै
ये देशी बदेशी लुटेरे म्हारे हकां नै नाट लिये रै
रणबीर सिंह दुख अपणे के ये छन्द पिरोकै देख लियो।।
-64-
क्यों बैठ्या
चांदकौर : सारी दुनिया मनावै आजादी तों क्यों बैठ्या मुंह नै बाकै।
रणबीर क्यों माथे की फूट रही देख चारों तरफ नजर गडाकै।।
चांदकौर
आजादी पाछै म्हारे देश मैं कहवैं तरक्की हुई सै भारी
खेतां के म्हां फसल लहरावैं देखो हरित क्रांति आरी
बुल्ध गया टैªक्टर आग्या किसान नै जमकै बाजी मारी
टाटा बिड़ला के कारखाने सारे देश मैं देवैं किलकारी
कुएं का मिंडक बण्या बैठ्या देख ले तरक्की तूं जाकै।।
रणबीर
जो जो तनै ये बात बताई इन सबका मनै बेरा सै
म्हारे आजाद देश मैं जमकै खूब कमाया कमेरा सै
मेहनत करकै खान खेत मैं चाहया नया सबेरा सै
धन-दौलत पैदा करकै बी ना हुया दूर अन्धेरा सै
नफा टोटा यो सारा बतादे तों मनै सही सही समझाकै।।
चांदकौर
इतना मनै बेरा ना पर उत्सव मनावै सरकार सै
रूक्के मारती हांडै सै के झूठ कही मनै भरतार सै
शिक्षा का पूरे देश मैं बतावै करया हमनै प्रसार सै
तरां-तरां की भजाई बेमारी इसका करै प्रचार सै
किस्मत का खेल बतावैं झांकी न्यारी न्यारी दिखलाकै।।
रणबीर
मेहनत करी किसान नै पूड़े टाटा बिड़ला पोगे क्यों
कपड़ा बुण्या हजारां गज फेर बालक नंगे सोगे क्यों
त्याग तपस्या और सच्चाई दीन जहान तै खोगे क्यों
मुखबिर बने जो अंग्रेजां के बे शासक म्हारे होगे क्यों
सूत कसूत तै नपै आजादी या नापी रणबीर नै गाकै।।
-65-
हरि के हरियाणे मैं
श्यामत म्हारी आई, कोन्या दीखै राही, चढ़ी सै करड़ाई
हरि के हरियाणे में।।
बोहर और भालोठ बताये, रूड़की किलोई संग दिखाये
कर्जा च
हरि के हरियाणे मैं।
धरती चढ़गी लाल स्याही मैं, कसर नहीं रही तबाही मैं
आज घंटी खुड़की, किलोई चाहे रूड़की, होवैगी म्हारी कुरड़ी
हरि के हरियाणे मैं।।
आमदन या घाट लिकड़ती लागत तो बाधू लानी पड़ती
सब्सिडी खत्म म्हारी, देई घरां मैं बुहारी, श्यामत आगी भारी
हरि के हरियाणे मैं।।
महंगी होन्ती जा सै पढ़ाई रै, रणबीर मरैं बिना दवाई रै
दुख होग्या भार्या, मन बी होग्या खार्या, नहीं रास्ता पार्या
हरि के हरियाणे मैं।।
-66-
जाल अमेरिका का
अमरीका तनै जाल बिछाया हिंसा सैक्स नशा खूब फलाया।
हरेक देश दबाणा चाहया, तेरी चाल समझ मैं आई सै।।
फीम सुलफा चरस बिकादी,हथियारां की सुरंग बिछादी
तेरे होगे सही पौ बारा, यो नौजवान फंसग्या म्हारा
म्हारी तबीयत होगी खारया, थारी सारी काली कमाई सै।।
तूफान अश्लीलता काल्याया, गाभरू कै खून मुंह लाया
चैनल पर चैनल चलाया, अराजकता कसूत फलाई सै।।
ब्लयू फिल्मां की बाढ़ सी ल्यादी,काली कमाई इसमैं बी लादी
हिंसा के रिकार्ड तोड़ दिये, म्हारे छोरा छोरी जोड़ लिये
ये हिंसक घोड़े खुले छोड़ दिये, सोच समझ चाल चलाई सै।।
एक हाथ तै लूटै सै हमनै, दूजे हाथ तै चूटै सै हमनै
न्यांे ध्यान हटावै सचाई तैं, ऐश करै म्हारी कमाई पै
रणबीर की कविताई पै, उम्मीद जनता नै लाई सै।।
-67-
दुख गेरया
दुख अमरीका नै गेरया इसका पटग्या सै बेरा।
नहीं पता संसार नै एक बै सबनै बता दियो।।
आंख्यां पै चरबी चढ़गी
दादागिरी घणी बढ़गी
यो कार करै घणी माड़ी
अमरीकन सूंडी ल्या बाड़ी
खागी या परिवार नै, संदेशा उसपै पहोंचा दियो।।
यो किसे तै नहीं डरै सै
घणी खोटी नीत करै सै
करता घणे यो रंग ठाठ
हम होगे सां बारा बाट
लेग्या खोस बहार नै, या उसतै कोए समझा दियो।।
न्यों कहते जोड़ कै हाथ
कड़ै सै गामां की पंचात
या बात करियो न्याय की
म्हारै काया मैं ना बाकी
छोड़ कै नै तकरार नै, ये मिलकै कदम बढ़ा दियो।।
कसर छोड्डी ना छल की
धोखे मैं
इनै हद करी जुलम की बाढ़ लाई नंगी फिल्म की
इसके झूठे प्रचार नै, रणबीर खोल कै दिखा दियो।।
-68-
सौ के तोड़ की
राजबाला जोगी के इन्तजार में थी। चांद कौर कहती है-जोगी पुरानी बातें सुनाता है, नई बात नहीं। राजबाला बोली यो नया जोगी सै पुराना कोनी। इतने में जोगी आ जाता है तो राजबाला कहती है कोए नई बात सुणाओ। जोगी टी वी संस्कृति पर सुनाता है:
टी वी सीरियल उपर जूता क्यों आपस मैं बाज रहया।
झूठी बात नहीं मैं कहता बता सब साची आज रहया।।
1. बाबू न्यूज सुण्या चाहवै, उस खातर कोए टेम नहीं
बैड रूम सीन कद आज्या यो बच्चा कोए नेम नहीं
बधती जावै इस टी वी की कम क्यूं होन्ती फेम नहीं
फैशन शो के नाम पै हो इसपै जमा नंगा नाच रहया।।
2. म्हारी संस्कृति खतरे मैं कहै दिखाये घणा प्यार रहे सैं
भूंडे चेनलां की रोजाना कर क्यूं आड़ै भरमार रहे सैं
महिला शरीर बेच टी वी पै बढ़ा कूण व्यापार रहे सैं
औरत जिम्मेवार सै इसकी कर यो झूठा प्रचार रहे सैं
चित बी मेरी पिट बी मेरी खुल ना इनका राज रहया।।
3. अंग्रेजी फिल्म जमा उघाड़ी हमनै टी वी पै दिखावैं क्यों
नैतिकता की दुहाई दे कै फेर उल्टा इल्जाम लगावैं क्यों
नशीली दवा मौत माणस की कारखाने मैं बनावैं क्यों
कदे जवान साच समझले उसनै गलत राही लावैं न्यों
म्हारे दिल दिमाग पै हमला जंग कसूता माच रहया।।
4. देश के नौजवानो म्हारे पै कई
दारू सुलफा दवा नशीली करैं जमा खोखला तनै दिखाउं
दे हथियार तनै करावैं अपणी रूखाली तनै मैं जताउं
ईब बी लेल्यो सम्भाला रै, रणबीर रागनी थारी बनाउं
हमला छोटा मोटा कोण्या यो हिल भारत का ताज रहया।।
-69-
आजादी के पचपन साल
पचपन साल की आजादी मैं के खोया के पाया हे।
भगत सिंह से वीरां नै जिस खातिर खून बहाया हे।।
1. किसी आजादी आयी देश मैं गरीबां का यो सवाल सै
बेरोजगारी क्यूं बढ़ी सवाई म्हारा किसनै ख्याल सै
जवानी जाल्याी बाई पास कै पचास साल का कमाल सै
नामर्दी नै जमां गोड्डे तोड़े हाल हुया बेहाल सै
खूनी जोंक चिपट रही सारा खून चूस बगाया हे।।
2. अपणे पाहयां देश खड़या हो पचास साल के थोड़े थे
शुरू-शुरू मैं चाले पाहयां ये उद्योग सरपट दौड़े थे
पब्लिक सैक्टर आया देश मैं भाजे देख कठफोड़े थे
मुनाफा खोर नै लूट मचाई बरसे म्हारे पै कोड़े थे
देश पढ़ण बिठा दिया बेबे लूट-लूट कै खाया हे।।
3. इतने मैं भी ना साधी ये बदेशी कंपनी बुलाई लई
जनता जाओ चाहे भाड़ मैं या तोंद अपनी फुला लई
इनके गलूरे लाल पड़े पर म्हारी कमर तै झुका दई
ऐश करते काले धन पै बहु बेटी म्हारी रूला दई
करजे के म्हां भारत दाब्या यू गरीब घणा सताया हे।।
4. ज्यान काढ़ली घोटाल्यां नै डंकल नै कड़ तोड़ दई
भ्रष्टाचार मैं ये नेता डूबे जनता की नाड़ मरोड़ दई
मुनाफाखोर व्यवस्था नै या म्हारी जवानी निचोड़ दई
हक खोसकै महिलाओं के बीच बजार में छोड़ दई
धार्मिक कट्टरवाद नै कहै रणबीर देश खिंडाया हे।।
-70-
दिल्ली आल्यो
गिणकै दिये बोल तीन सौ साठ दिल्ली आल्यो।
नहीं सुणते बात हम देखैं बाट दिल्ली आल्यो।।
ईब खत्म म्हारी पढ़ाई कति गोलते कोण्या
हम मरते बिना दवाई कति तोलते कोन्या
कति बोलते कोण्या बनरे लाट दिल्ली आल्यो।।
इसी नीति अपनाई किसान यो बरबाद करया
घर उजाड़ कै म्हारा अपणा यो आबाद करया।
घणायो फसाद करया तोल्या घाट दिल्ली आल्यो।।
म्हारे बालक सरहद पै अपनी ज्यान खपावैं
थारे घूमैं जहाज्यां मैं म्हारे खेत खान कमावैं
भूख मैं टेम बितावैं थारे सैं ठाठ दिल्ली आल्यो।।
सात सौ चीजां की रणबीर ये सीम खोल दई
गउ भैंस बकरी म्हारी ये बिकवा बिन मोल दई
मचा रोल दई गया बेरा पाट दिल्ली आल्यो।।
-71-
दहेज
बिना दहेज के ब्याह करां और करवावां हरियाणे मैं।
कट्ठे होकै नै एक न्यारी मिशाल रचावां हरियाणे मैं।।
म्हारे समाज नै दहेज की बीमारी खोखला करगी रै
ईबतै लेल्यां किमै उभारा या पाप की हांडी भरगी रै
मेरे पक्की बात जरगी रै इनै धूल चटावां हरियाणे मैं।।
औरत बी एक इन्सान होसै याबात समझ में आगी
आधी दुनिया समाज के मैं दुख ये बहोत घणे ठागी
ईब या ना सताई जागी अभियान चलावां हरियाणे मैं।।
गलत बात नै छोड़कै पाछे सही बात पै विचार करांगे
दुनिया मैं बिगाड़ आया उसकै खिलाफ प्रचार करांगे
ठीक अपने हम परिवार करांगे कैसे बचावां हरियाणे मैं।।
एक नवजागरण जो चाल रहया इनै और मजबूत करां
इन्सानियत म्हारी मंजिल सै भगत सिंह की
मौत तै हम नहीं डरां रणबीर अलख जगावां हरियाणे मैं।।
-72-
घूंघट तार बगाया हे
यो घूंघट तार बगाया हे, खेतां मैं खूब कमाया हे।
खेलां मैं नाम कमाया हे, हम आगै बढ़ती जारी बेबे।।
लिबासपुर रोहनात के मैं बहादरी खूब दिखाई बेबे
अंग्रेजां तै जीन्द की रानी नै गजब लड़ी लड़ाई बेबे
हमको दबाना चाहया हे, दोयम दरजा बताया हे
जाल मै कसूता फंसाया हे,न्यों म्हारी अक्ल मारी बेबे।।
डांगर
खूब बोल सहे हमनै ये स्कूलां मैं करी सै पढ़ाई बेबे
सब कुछ दा पै लाया देखो, सबनै खवाकै खाया देखो
ना गम चेहरे पै आया देखे, कदे हारी कदे बीमारी बेबे।।
नकल रोकती बहन सुशीला जमा नहीं घबराई सै
दुनिया मैं अदभुत मिशाल अपनी ज्यान खपाई सै
गन्दी राजनीति साहमी आई, औरतां पै श्यामत आई
फेर बी सै अलख जगाई, देकै कुर्बानी भारी बेबे।।
लड़ती मरती पड़ती हम मैदाने जंग मैं डटरी देखो
कायदे कानूनां तै आज म्हारी समाज हटरी देखो
हर महिला मैं लहर उठी, हर गली और शहर उठी
सुबह श्याम दोपहर उठी, रणबीर की कलम पुकारी बेबे।।
73-
किसी आजादी
देश मैं किसी आजादी आई, गरीबां कै और गरीबी छाई।
अमीरां नै सै लूट मचाई, म्हारी पेश कोए ना चलती।।
भगत सिंह नै दी कुर्बानी, जनता नै खपाई जवानी
हैरानी हुई थी गोरयां नै, कमर कसी छोरी छोरयां नै
देश बांट दिया सोहरयां नै, जयां म्हारी काया जलती।।
ये गोरे गये तो आगे काले, हमनै नहीं ये कदे सम्भाले
चाले कर दिये बेईमाना नै, भूल गये हम इन्सानां नै
इन म्हारे देशी हकुमरानां नै, करदी मूल भूत गलती।।
बोवनिया की धरती होगी, सब जात्यां की भरती होगी
सरती होगी नहीं बिरान, खुश होवैंगे मजदूर किसान
भगत सिंह करै ऐलान, अंग्रेजां कै ये बात खलती।।
मुनाफाखोर देश पै छाये, पीस्से पै सब लोग नचाए
लगाये भाव बीच बाजार मैं, आपस की तकरार मैं
किसे बी घर परिवार मैं आस नहीं कोए बी पलती।।
ये मकान सैं परिवार नहीं, माणस तो सैं घरबार नहीं
सरकार नहीं सुनती म्हारी, जाल कसूता बुनती जारी
गरीबां कै आज ठोकर मारी, रणबीर कै आग बलती।।
-74-
झांक कै देखां अपने भीतर
रिश्ते नाते जीवन मूल्य सारे हीतो बदल रहे सैं।
पीस्से हवस के जीवन मैं आज बढ़ दखल रहे सैं।।
मानव सामाजिक प्राणी सै पशु की
दया करुणा त्याग छोड़ ऐशो आराम मैं झूमता जावै
असली प्रेम लैला मजनंू का यो माणस भूलता जावै
खा खा कै मेहनत दूजे की आज घणा फूलता जावै
खाओ पीओ हाथ ना आओ पूरी बदल शकल रहे सैं।।
दुख सुख के हम साथी आज बच्या सरोकार कड़ै सै
मतलबी आज दोस्त होया माड़ी माड़ी बातां पै लड़ै सै
भाग लालसा बढ़ती जा अथाह प्रेम था हुया जड़ै सै
एड्स बीमारी खावै हमनै हालत घणी बिगड़ी अड़ै सै
मानवता सारी भुला दई कर मोटी अकल रहे सैं।।
त्याग तपस्या बलिदान कड़ै आपा धापी माच रही
औरत एक चीज बनाई हवस समाज मैं नाच रही
झूठ अपना राज देश मैं चला बणकै नै साच रही
दौलत सबके जीवन मैं कर या तीन दो पांच रही
राक्षस बन भक्षक आगे बदल ये अमल रहे सैं।।
रोज के जीवन मैं धन काला घर मैं आग्या आज
काला धन यो जीवन काला दिमाग मैं छाग्या आज
धौला धन पिछड़ गया मात काले तै खाग्या आज
धन काला कालस धौले कै समाज के मैं लाग्या आज
कहै रणबीर अमरीका की कर हम नकल रहे सैं।।
-75-
देख लिया जमाना
घूम जमाना देख लिया, म्हारी कितै सुनाई कोन्या।
रोल कड़ै सै जमाने मैं, म्हारी समझ मैं आई कोन्या।।
महंगा लेकै सस्ता देना, कमा-कमा कै मर लिये रै
लूट म्हारी कमाई किसनै, ये घर अपने भर लिये रै
कर्जे सिर पर लिये रै, बचण नै जागां पाई कोन्या।।
दिन-दिन महंगी होती जावै, बालकां की पढ़ाई या
पढ़े पाछै रोजगार नहीं सलॅफास की गोली खाई या
कित जावै कमाई या खोल कै बात बताई कोन्या।।
अपोलो जिसे अस्पताल नये-नये खोले जावैं रै
घणा म्हंगा इलाज उड़ै हम बाहर खड़े लखावैं रै
सरकारी के ताला लावैं रै, देता जमा दिखाई कोन्या।।
अमीरां की खातर ये बदेशी कम्पनी तैयार खड़ी
गरीबां की मर आगी बाजारी नागन आज लड़ी
रणबीर सिंह नै छन्द घड़ी करी जमा अंधाई कोन्या।।
-76-
गुन्डा गरदी
इस गुण्डागर्दी नै बेबे ज्यान काढ़ ली मेरी हे।
सफेद पोश बदमाशां नै इसी घाल दी घेरी है।।
रोज तड़कै होकै त्यार मनै हो कालेज के मैं जाणा
नपूता रोज कूण पै पावै उनै पाछै साइकल लाणा
राह मैं बूढ़े ठेरे बी बोली मारैं हो मुश्कल गात बचाणा
मुंह मैं घालण नै होज्यां मनै चाहवैं साबती खाणा
उस बदमाश जलै नै या चुन्नी तारली मेरी हे।।
मनै सहमी सी नै मां आगै फेर बात बताई सारी
सीधी जाइये सीधी आइये मनै समझावै महतारी
तेरा ए दोष गिनाया जागा जै तनै या बात उभारी
फेर के रहज्यागा बेटी जिब इज्जत लुटज्या म्हारी
मां हाथ जोड़कै बोली तेरे बरगी और भतेरी हे।।
न्यों गात बचा बचाकै पूरे तीन साल गुजार दिये
एच ए यू मैं लिया दाखला पढ़ण के विचार किये
वालीबाल मैं लिकड़ी आगै सबके हमले पार किये
के बताउं किस किसनै मेरे पै जो जो वार किये
मार मार कै तीर कसूते या छाती सालदी मेरी हे।।
कुछ दिन पहलम का जिकरा दूभर जीना होग्या
इन हीरो हान्डा आल्यां का रोज का गमीना होग्या
कई बै रोक मेरी राही खड़या एक कमीना होग्या
उस दिन बी मैं रोक लई घूंट खून का पीना होग्या
रणबीर कई खड़े रहैं साइकिल थाम लें मेरी हे।।
-77-
खुला बाजार
खेती म्हारी जोड़ दई ईब दुनिया के खुले बाजार तै।
बदेशी कम्पनी खुल्ली चरैं ना काबू आवैं सरकार कै।।
गिहूं बाजरा बोणा छोड़कै हम फूल उगावण लागे रै
अपने बिना फूलां के उनके महम सजावण लागे रै
दादी पै माक्खी भिनकैं उनकी टहल बजावण लागे रै
देशी खेती मंूधी मारदी सब किसान कराहवण लागे रै
म्हारा उजड़ना लाजमी सै जो चाल्ले इसे रफतार तै।।
मुंह मांगी कीमत देकै फूल उगावण नै मजबूर करैं
उनके स्वाद तो पूरे होज्यां हमनै रोटियां तै दूर करैं
गिहूं की कीमत पै सब्जी बोवां हम गलती जरूर करैं
कई देशां नै भुगत लिया हम क्यों इसपै गरुर करैं
भूख फैलै बहोत घणी ना मिल पावै भोली भरतार तै।।
कुपोषण म्हारे देश मैं ईब दिन दिन और बढ़ैगा रै
धरती की ताकत मारी जा म्हारा पैदावार घटैगा रै
मन्दी का दौर चाल पड़या म्हंगाई का ताप चढ़ैगा रै
गरीब किसान मारया जागा चौड़े मैं जुलूस क
जनता घणी दुखी सै इन झूठे नारयां की हुंकार तै।।
भारत का किसान मरया तै आजाद बचै हिन्दुस्तान नहीं
देश बेचण की काण कहवै जिब बचै यो इन्सान नहीं
मानवता खतरे मैं गेरदी क्यों बोलै यो भगवान नहीं
अनैतिकता पै खड़े होकै मानवता बचाना आसान नहीं
कहै रणबीर सिंह बरोने आला लड़ै कलम के हथियार तै।।
-78-
म्हारी कुर्बानी
म्हारी कुर्बानी हरियाणा मैं एक दिन रंग लयावैगी।
झूठ की हाण्डी फूटैगी साच खूब्बै सम्मान पावैगी।।
किसान आन्दोलन बढ़ैगा या धरती भीड़ी होज्यागी
किसान के बेटे पुलिस मैं उनकी आत्मा रोज्यागी
सरकार खोखली होज्यागी जवान हजारां खावैगी।।
बन्द एम आई टी सी कई औरों का नम्बर आया सै
पीस्से कोन्या तनखा के कदम ज्यां करड़ा ठाया सै
हरियाणा दां पै लाया सै या वारी समझ मैं आवैगी।।
हमने सोचना बन्द करया या गलती करदी भारी
इस अेहदी पन के कारण गई म्हारी खाल उतारी
विचार की ताकत न्यारी या म्हारी चेतना जगावैगी।।
बढ़िया इन्सान किसा हो सै इसपै विचार करांगे रै
सुन्दर समाज का सपना इसमें पूरे रंग भरांगे रै
आपस में नहीं लड़ांगे रै बात रणबीर की भावैगी।।
-79-
बोल बख्त के
बड़े पैमाने पर किसानों की जमीनें छिन रही हैं। जल पर देशवासियों का अधिकार खत्म होता जा रहा है। कृषि उत्पादों की कीमातें में गिरावट तथा उत्पादन के लिए जरूरी चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है। जंगल में आदिवासियों को खदेड़ा जा रहा है। सरकारी बैंक व्यापारिक बैंक हो गये हैं। खेतों के लिए किसानों को 36 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक सालाना सूद की दर पर कर्जा लेने के लिए स्थानीय महाजनों और साहूकारों के चंगुल में धकेला जा रहा है। स्टॉक मार्किट व अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी का बोल बाला है। सभ्यता का अर्थ आत्मा की सभ्यता और आचरण की सभ्यता होता था। वर्तमान में सभ्यता का अर्थ स्वार्थ और आडम्बर हो गया है। युवा लड़के-लड़कियों, दलितों व महिलाओं को हासिये पर धकेला जा रहा है। जब तक ये तबके बिखरे हुए हैं तब तक ये घाय के टुबड़े हैं, एक होकर ये जहाज खींचने वाले रस्से हो जायंेगे। क्या बताया भराः
आत्म सम्मान बेच देश का धनवान बने हांडैं सैं।
पाखण्ड रचा कै दिन धौली भगवान बने हांडैं सैं।।
लच्छेदार भाषण देकै जनता बेकूफ बनाई किसनै
हमनै लूटैं कामचोर बतावैं या प्रथा चलाई किसनै
खूनी भेड़िया इस समाज मैं इन्सान बने हांडैं सैं।।
बालक इनके बिगड़लिये सब अवगुण पाल रहे रै
सट्टा बाजारी चोरी जारी चाल कसूती चाल रहे रै
पशु भावना के शिकार ये नौजवान बने हांडैं सैं।।
इन्सानियत सारी भूल गये पीस्सा ईष्ट भगवान हुया
सारे परिवार खिंड मिंड होगे रोब्बट यो इन्सान हुया
समाज की ये बढ़ा कै पीड़ा दयावान बने हांडैं सैं।।
परम्परा के घेरे में पहल्यां घर मैं बोच दबाई किसनै
आधुनिकता के नाम पै या बाजार ल्या बिठाई किसनै
रणबीर महिला चीज बनाई खुद दलाल बने हांडैं सैं।।
-80-
किस्स लीला चमन
चमन भाई क्यों रोवै
हिम्मत मतना हारै तूं रोवण की करदे टाल।।
थारे प्रेम उफपर ज्यान अपनी वार देउफं मैं
न्यारे करणियो नै घाट मौत के तार देउफं मैं
जी करता सुधार देउं मैं थारे बिगड़े हाल।।
मनै तो चमन कदे प्यार नहीं करया रै
न्यों सोचू था के इस प्यार मैं धरया रै
आज मेरा कालजा भरया रै घणी कसूती
इसे प्रेम के रोड़ा अटकावै सही धम नहीं
करना चाहिये नीचे करम नहीं कहावैगा चण्डाल।।
तेरा प्रेम सै साच्चा चमन मत उदास हो
सच्चाई की आड़ मैं तपकै कुन्दन खास हो
रणबीर बुराई का नाश हो पक्का सै ख्याल।।
No comments:
Post a Comment