Wednesday, 25 January 2017

श्रम की चोरी


न्यारे न्यारे भ्रम फैला कै जारी करते जो फरमान।
वें करते मेहनत की चोरी सबतैं माड़ा विधि विधान।
कर्म की गेल्याँ धर्म जोड़ कै श्रम का पाठ पढ़ाते जो
काम कर्म हो कर्म धर्म हो न्यूं जंजाल फैलाते जो
धर्म की गेल्याँ घुटै आस्था फेर विश्वास जमाते जो
दिखा पाप का भय माणस की बुद्धि को बिचलाते जो
चालाकी तैं स्याणे बणकै करैं स्याणपत बेईमान ।
धर्म कहै मत बदलो धंधा पुश्तैनी जो काम करो
बाँध देई जो चलती आवै मर्यादा सुबह शाम करो
जात गोत की जकड़न मैं मत परिवर्तन का नाम करो
चक्रव्यूह मैं फंसे रहो मत लिकडण का इंतजाम करो
कोल्हू के बुलधां की ढालां रहो घूमते उम्र तमाम।
बेशक मेहनत करनी चाहिए मेहनत ही रंग ल्यावै सै
मेहनत मैं जब कला मिलै तो सुंदरता कहलावै सै
मेहनत की भट्ठी मैं तप सोना कुण्दन बण ज्यावै सै
लेकिन मेहनत की कीमत पै शोषक मौज उड़ावै सै
मेहनत का महिमा मण्डन हो फेर होगा श्रमिक सम्मान।
जिस दिन काम करणिये सारे मिलकै नै हक माँगैंगे
मेहनतकश सब मर्द लुगाई जब अपनी बांह टाँगेंगे
उस दिन पकड़ी जागी चोरी सारी सीमा लांघेंगे
गेर गाळ मैं मूँधे मुँह फेर जुल्मी चोरां नै छांगैंगे
कहै मंगत राम मिलैगा असली मेहनत का फेर पूरा दाम

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