आदमी की औकात कितनी मैं समझना चाहूँ सूँ।
तभी तो कोई ना कोई धोखा मैं हर रोज खाऊँ सूँ।।
राम का नाम व्यापार होग्या , आज कल जाण ले,
इसी कारण मैं डर डर कै ही , मंदिर म्हां जाऊं सूँ।
किस पै यक़ीन करूं मैं , ईब सोच मैं पड़ग्या रैए
अपणा दर्द समझ नी आवै, किस किस पै गाउँ सूँ।।
मैं दिन रात हाड तुड़ा कै ,बता क्यूँ रहग्या भूखा
कोई नी बतारया मनै , मैं सभी तैं पूछता आऊं सूँ।
डांगर ढ़ोर की तरियां ये , मनै हांकते आरे सैं भाई
अर मैं लड़न तैं अपणा, ईब गात बचाणा चाहूँ सूँ।
तेरा नाम तो बीच मैं , न्योंएं आ ग्या भाई
मैं तो ईब अपणी , विपता गाऊं सूँ।
कमाण आला माणस क्यूँ भूखा रहग्या
मैं या बात तो सबकै साहमी ठाउँ सूँ।
ना मनै देख्या पोह का पाला ना दुपहरी देखी
उतना तंग होग्या मैं जितना कमाऊं सूँ।
रामेश्वर दास
हरयाणवी गजल
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