जंग की राजनीति
ये जंग क्यों होते दुनिया मैं नहीं पाट्या सै तोल कति ।।दुश्मनी तै ये खूब निभादें यारी का नहीं मोल कति।।
1
नब्बै करोड़ भुखी जनता क्यों दीखै किसे नै देश नहीं
इनकी खातर दिल म्हारे मैं क्योँ प्यार का लेहश नहीं
राजे राजे एकसे बताये क्यों दीखता असली भेष नहीं
जंग के कारण के सैं क्यों मिटता जंग का कलेश नहीं
कुर्सी बचावण का रोला सै या धरदी आज खोल कति।।
2
हथियारां पै जो खर्चा होवै यो खर्चा शिक्षा पै ना होन्ता
बिना बात के खर्चे नै माणस हांडै यो जीवन भर ढोन्ता
मुनाफाखोर औरां नै ना टिकण दे खुद सुख तैं सोन्ता
लूट खसोट रहवै मचान्ता साहमी झूठ मूठ का रोन्ता
मिलावट करै माणस मारै देश प्रेम नै देवै घोल कति।।
3
देश आजाद कराने मैं फांसी का फंदा हम चूम गए
म्हारे होंसले आगै गोरयां की तोपां के मुंह घूम गए
गोरे दिए भजा आड़े तैं काले होकै नशे मैं झूम गए
आजाद देश के सपने म्हारे चाट आज क्यों धूल गए
देश प्रेम का मतलब के सै दीखै खुलगी पोल कति।।
4
देश के भाण भाइयो बूझियो के मकसद कुर्बानी का
देश आजाद रहवै कहते मत करो काम नादानी का
म्हारी खातर देश प्रेम पर खुद का काम शैलानी का
हम आह भरैं बदनाम होज्यां कत्ल माफ खानदानी का
रणबीर सोच कै जवाब दिए मैं करती नहीं मख़ौल कति।।
2004--2005 के दौर में लिखी रागनी
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