Tuesday, 13 September 2016

जो रुकै नहीं

जो रुकै नहीं, जो झुकै नहीं ,जो दबै नहीं, जो मिटै नहीं
हम वो इंकलाब रै, जुल्म का जवाब रै
हर शहीद का, हर रकीब का,हर गरीब का, हर मुरीद का
हम बनैं ख्वाब रै, हम खुली किताब रै
लड़ते हम इसके लिए प्यार जग मैं जी सकै
आदमी का खून कोय शैतान नहीं पी सकै
मालिक मंजूर के,नौकर हजूर के, रिश्ते गरूर के,जलवे शरूर के
ईब छोडै नवाब रै,शरूर और शराब रै
हम मानैं नहीं हुक्म जुल्मी हुक्मरान का
युद्ध छिड़ लिया आज आदमी शैतान का
सच की ढाल , ले कै मशाल,हों ऊंचे ख्याल, करैं कमाल
खिलै लाल गुलाब रै,सीधा हो जनाब रै
मानते नहीं हम फर्क हिन्दू मुस्लमान का
जानते हम तो रिश्ता इंसान से इंसान का
जो टूटै नहीं, जो छूटे नहीं, जो रुठै नहीं,जो चूकै नहीं
ना चाहवै ख़िताब रै, बरोबर का हिसाब रै।।

No comments: