Tuesday, 13 September 2016

कण कण मैं बसै ......

त्याग तपस्या जनसेवा हरेक धर्म का सार बताया रै।।
कण कण मैं बसै रामजी किसनै पत्थर पूजवाया रै।।
कौनसे धर्म मैं लिख दिया दूजे धर्म तैं लोगो घृणा करो
अपने नै महान बताओ दूजे धर्म के ऊपर नाम धरो
उसको ढूंढ़ो अपने अंदर  मुक्ति का यो राह दिखाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
समाज सुधरै जीवन सुधरै है धर्मों का अंजाम यही
फेर क्यों मारकाट धर्मों पै कबीर नै दी  पैगाम यही
सूफी संतों नै अंधभक्तों को यो रास्ता सही समझाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
प्यार से सब रहते आये हैं गंगा जमुनी संस्कृति म्हारी
अंग्रेजों नै बांटो राज करो करी सोच समझ कै त्यारी
धार्मिक कट्टरता नै मानस दुनिया का आज कँपाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
धार्मिकता के सिद्धान्त सारे  धर्मों के कुछ लोग भूले
एक दूजे तैं नफरत करो की मारा मारी मैं क्यों झूले
धर्म व्यक्तिगत मसला सै पां क्यों राजनीति मैं फंसाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
इंसान पैदा हुया फेर सहज सहज जीवणा सिख्या
आग वायु देवता बनाये जब राह कोए  नहिं दिख्या
कुदरत का खेल यो सारा धर्मां नै अपना खेल रचाया रै।।
कण कण मैं बसै ......
धर्मान्धता और रूढ़िवाद नै कब्जा आज जमा लिया
सहज सहज इसे करकै कुलदीप नास्तिक बना दिया
साम्प्रदायिक दंगो मैं जो मरे उनका ना हिसाब लगाया रै।।

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