Tuesday, 13 September 2016

धरती जागी चिंता खागी

रणसिंह और कमला की बातचीत 1986 -87 , के दौर में -----
रणसिंह : कुड़की आगी जर्दी छागी नाश हों मैं कसर नहीं ।।
कमला  : धरती जागी चिंता खागी डले ढोंण मैं बिसर  नहीं।।
रणसिंह : कोए मखौल उड़ावै म्हारा कसूता मारै कोए तान्ना
कोए घणी दया दिखावै कहै मत दे कोए आन्ना
दारू मैं क्यूँ पीग्या धरती सोध्या नहीं कोए रकान्ना
उल्टी सीधी चर्चा चालै नहीं ख़ाली कोए खान्ना
सुणले कमला आया हमला आज मरण मैं कसर नहीं।।
कमला :
चालीस बरस तैं देखूँ म्हारी खाल उतारी जा सै
मण्डी फेर होज्या ठंडी न्यों कमाई सारी जा सै
म्हारी कीमत दूजा लावै म्हारी अक्कल मारी जा सै
कुआँ झेरा टोहना होज्या कोण्या पार हमारी जा सै
फटे  हालां टुटी चालां होवै दिल मैं सबर नहीं ।।
रणसिंह :
 कारखाने मैं आवै टोट्टा नहीं सरकार नीलम करै
चलावैं दूनी पूंजी लाकै न्यों पूरा इंतजाम करै
चालें पाछै उल्टा देवै मालिक के गोदाम भरै
भा बी थोड़ा कुड़क धरती गेल डिफाल्टर नाम धरै
जीते कोण्या मरते कोण्या यो तो किमै बसर नहीं।।
कमला :
 क्यों माड़ा मन कररया धरती अपनी बचाणी सै
आड़ै हम ऐकले कोण्या मिलकै अलख जगाणी सै
गाम गाम कुड़की आरी सै सही गलजोट बनाणी सै
आप्पा मारें पार पड़ैगी साच्ची बात समझाणी सै
हों किसान करजवान कट्ठे और कोए तो डगर नहीं।।
रणसिंह:
आंसू आरे धीर बंधावै ईब तक हिम्मत हारी ना
कुड़की  नहीं होण दयूं कहै सस्ती लाश हमारी ना
क्यों खामखा पागल होरी जावै आज पार हमारी ना
रणबीरसिंह खड़े  लखावां बरोणा बूझै जात हमारी ना
कित सैं लाल हरियाणे के कानां गई के खबर नहीं ।।

No comments: