अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून ।
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून।
छाँट रहे थे अब तक बस वे बड़े बड़े कानून ।
नहीं किसी को दीखता था दूधिया वस्त्र पर खून।
अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून।
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून।
मायावी हैं,बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मन्द।
तक्षक ने सिलाए उनको 'सर्प नृत्य' के के छंद।
अजी ,समझ लो उनका अपना नेता था जयचन्द।
हिटलर के तम्बू में अब वे लगा रहे पैबंद।
मायावी हैं, घाघ हैं, उन्हें न समझो मन्द।
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