विभाजन के वक्त मुख्तियार सिंह और प्रीतम कौर का गांव पाकिस्तान में चला जाता है । दो जवान लड़कियां हैं उनकी। दंगे फसाद के डर से वे अपनी दोनों बेटियों को जहर देकर मारने पर मजबूर हो जाते हैं । क्या बताया भला:
दिल लोगों के छेद रही खबर देश के बंटवारे की ।।
चारों कानी खून खराबा थी हालत हिन्द म्हारे की ।।
गांव उन लोगों ने सुन्या यो पाकिस्तान मैं अाग्या दखे
हिंदू सिख जितने गांव के जीवन का भय खाग्या दखॆ
दंगे शुरू हो गए देश मैं चूल हिली हिंद सारे की ।।
प्रीतम कौर का चेहरा सुनकै पीला पडग्या था
दो जवान उनके घर में छोरी उनका पेच एडग्या था
इनकी इज्जत कैसे बचैगी मनै चिंता इस बारे की ।।
पति बोला मनै भी प्रीतम इनकी चिंता घणी खावै
दंगाई इज्जत पर हाथ गेरते ईसा सुनने मैं आवै
शरीर में जान जिब तक आंख फोडूं हत्यारे की ।।
एक अकेला कद ताहीं लडेगा इज्जत लुटज्या म्हारी
जहर देदयां छोरियां नै चाही इजाजत पति मुख्तयारेे की।।
दो-चार दिन सोच सोच कै इस नतीजे पर आए थे
जहर खरीद कै बाजार तैं मजबूरी मैं ल्याए थे
छोरी पड़ी खाटों पै रोवै कलम रणबीर बेचारे की।।
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