830
आवण आले बख्तां मैं उत्थल पुत्थल रहवै जारी।।
अमीर गरीब की बढ़ती खाई ना बसकी रहवै म्हारी।।
1
बेरोजगारी नहीं आवै काबू या ऊधम घणा मचावैगी
शहर गाम घर घर मैं या अपने भूंडे असर दिखावैगी
सही विकास राही ना पकड़ी या सांस चढ़ावै भारी।।
अमीर गरीब की बढ़ती खाई ना बसकी रहवै म्हारी।।
2
मजदूरों की जिंदगी पै हमला ईब घणा जबर करैंगे
दिहाड़ी ऊपर चला चाकू अमीर अपनी तिजौरी भरैंगे
बढ़ैंगे संघर्ष देश के मैं यो इंकलाब नारा लेवैगा उभारी।।
अमीर गरीब की बढ़ती खाई ना बसकी रहवै म्हारी।।
3
किसानों नै देकै बतौले शाशक न्योंये भकाएँ राखैंगे
जीवण देवैं ना ये मरण देवैं बस न्योंये दबाएँ राखैंगे
जात पात भूल कै करनी हो आज बड़े मंच की तैयारी।।
अमीर गरीब की बढ़ती खाई ना बसकी रहवै म्हारी।।
4
यो सत्ता तंत्र लठ तंत्र तैं रणबीर रोजाना फतूर मचावैगा
संघर्ष किसान और मजदूर का लाठी गोली तैं दबावैगा
आज पूरे हिंदुस्तान की जनता सड़कों के ऊपर आरी।।
अमीर गरीब की बढ़ती खाई ना बसकी रहवै म्हारी।।
30.09.2023
831
किसान मजदूर की ऊपरा तली की रागनी
मजदूर-ना गश लावै भाई बिगाड़या तेरा मिजान नहीं ।।
किसान- मजदूरी बाधू मांगें जावै करै म्हारा ध्यान नहीं ।।
1
मजदूर-करकै गाड़ी त्यार राज की दो पहिये इसमैं डाल दिये
किसान-हम जोड़ दिए लागू पूरे मजदूर कर माला माल दिये
मजदूर-असवार हुया सै मोटा दोनों के मरण के हाल किये
किसान- थारे मैं बांट म्हारी कमाई हम उसनै कंगाल किये
मजदूर- बण्या डलेवर पूंजीपति हम करते यो ध्यान नहीं।।
किसान- मजदूरी बाधू मांगें जावै करै म्हारा ध्यान नहीं ।।
2
मजदूर-बैठ्या बैठ्या बंगळ्यां मैं ओ मौज उड़ावै सै
किसान- मेहनत हम करां सां क्यूकर लूट ले जावै सै
मजदूर- कमाई तीस की करवाकै देकै आठ भकावै सै
किसान-ओ क्यूकर लूटै सै जब भा सरकार ठहरावै सै
मजदूर- ये टोटके समझे बिना होवै कति कल्याण नहीं।।
किसान- मजदूरी बाधू मांगें जावै करै म्हारा ध्यान नहीं ।।
3
मजदूर-उठ सवेरे ही हम दोनों अपने अपने काम पै जावैं सैं
किसान-मर पिट कै सांझ ताहिं ये गण्ठा रोटी थ्यावैं सैं
मजदूर-टूट्या फूट्या घर म्हारा मुश्किल गुजारे हो पावैं सैं
किसान-रच दिया संसार उसनै ये थाह किसनै थ्यावैं सैं
मजदूर- रूस लिया कमेरयां तैं म्हारा यो भगवान नहीं ।।
किसान- मजदूरी बाधू मांगें जावै करै म्हारा ध्यान नहीं ।।
4
मजदूर- इतनी मैं ना पार पड़ै हमनै आपस मैं कटवावै यो
किसान-किसान नै मजदूर खाग्या यही हमनै बतलावै यो
मजदूर- एक डाँडी तैं मारै मनै दूजी तैं तनै खावै यो
किसान-मारै क्यूकर मनै बता अन्नदाता मनै बतावै यो
रणबीर बिना म्हारे मेल होवै कोये समाधान नहीं ।।
किसान- मजदूरी बाधू मांगें जावै करै म्हारा ध्यान नहीं ।।
832
रिश्ते
परिवार के रिश्ते सड़ते जावैं कसूता संकट छाया हे।।
म्हारे देश मैं औरत का वजूद गया बहोत दबाया हे।।
अन्याय नै समझन खातर या न्याकारी समझ होवै
न्यायकारी समझ होतै माणस होश हवास नहीं खोवै
औरत भी एक इंसान होसै सच यो गया छिपाया हे।।
किस पापी नै शरीर औरत का बाजार मैं दां पै लाया
शरीर के म्हां कै ऐस करो औरत को किसनै समझाया
उपभोग की वस्तु किनै बनाई किसनै जाल बिछाया हे।।
पितृसत्ता की ताकत भारी पुत्र लालसा इंकी जड़ मैं सै
औरत पुत्र पैदा कर मुक्ति पांवै या वेदों की लड़ मैं सै
पुत्री मार कर पुत्र पैदा सबक जान्ता रोज पढ़ाया हे।।
घर भीतर अन्याय होन्ता किसे तैं छिप्या रह्या कड़ै
घर परिवार सब दिखावा रणबीर किसकै घरां बड़ै
छोरी कै लील गेर दिए जिब धरती का डां ठाया हे ।।
833
कम बच्चों का सवाल
जिब फुर्सत होज्या तम नै ,बात ध्यान तैं सुनियो मेरी
भीडी धरती हो ज्यावै सै उठती नै मने आवें अँधेरी
खेत मजदूर बाप सै मेहनत कर कै करै गुजारा
जितनी ढाल की खेती हो वै उस पै सै ज्ञान का भंडारा
फल सब्जी नाज उगावन मैं किसान कै लाता साहरा
दिहाड़ी पै फेर लठ बा जै संकट होज्या घणा भारया
घुट घुट कै सहन करण सां ये कडवी बात भतेरी ||
सात बालक जन्मे थे माता नै पाँच भान अर दो भाई
ताप मार ग्य एक जाने नै भान मरगीर्गी बिना दवाई
दूजी नै बैरन टी बी चाट्ग्यी घर मैं मची तबाही
बची दस्तों तैं मरण नै तीजी राम जी के घर तैं आई
सात मांह तैं तीन बचे मुश्किल तैं इसी घली राम की घेरी ||
यानी सी मैं ब्याह दी थी पति खेत मजदूर मदीने का
उनका हाल और्व बुरा देख्या ब्योंत नहीं खाने पीने का
चाह गेल्याँ रोटी घूँट कै खा वें हाल नहीं सै जीने का
ठाडे की सै दुनिया हे बेबे के सै म्हारे बरगे हीने का
क्यूकर जी वां सुख चैन तैं चिंता खावै या श्याम सबेरी||
कई बै सोचूँ बालक कम हों ना ठुकता कालजा मेरा
कितने बचें कितने मरेंगे नहीं पाटता इसका बेरा
सारे मिलके करैं कमाई जिब हो वै सै म्हारा बसेरा
मने समझ नहीं आवै क्यूकर केहना मानूं मैं तेरा
रणबीर सिंह धोरै बूझंगे चल मत करिए देरी ||
834
निराश मतना होईये बेटी दिखा दे तूं बन कै नै चिंगारी ||
पाछै मतना हटिये जंग तैं छोरी निगाह तेरे पै टिकारी ||
हरयाणा मैं महिलावाँ नै आजादी का बिगुल बजा दिया ||
खेलां मैं चमकी दुनिया मैं शिक्षा मैं आगै कदम बढ़ा दिया ||
तेरे इस कदम नै पूरा हरयाणा एक बै तो आज डरा दिया ॥
कुछ् दकियानूसों नै विरोध मैं अपना झण्डा आज उठा दिया ॥
नम्बर वैन नहीं सै पर इसनै हम नम्बर वैन बनावेंगे हे ॥
अपने नौजवान भाइयां गैल्यां मिलकै कदम बढ़ावैंगे हे ॥
835
घूंघट
घूंघट प्रतीक गुलामी का न्यों जनवादी सोच समझावै।।
घर की इज्जत बन कै घूंघट महिला नै दाबना चाहवै।।
ज्ञान प्राप्ति के पांच तरीके दुनिया मैं गए बताए री
आंख तैं देख इंसान नै ज्ञान के भंडार खूब बढ़ाए री
देख परख कै दुनिया ज्ञान मैं ये चार चांद लगाए री
आंख सबतैं प्यारी इंद्री संसार को अजूबे दिखाए री
बिना आंख माणस आंधा नहीं दुनिया नै देखण पावै।।
कान तैं सुणकै माणस अपना अधूरा ज्ञान बधावै री
सुणकै बात दुनिया की सुंदर सी तस्वीर बनावै री
बहरा माणस रहवै गूंगा नहीं कुछ सीखन पावै री
कान का कच्चा माणस यो बहोत घणे दुख ठावै री
काम बिना इंसान अधूरा कोण बहरा रहना चाहवै।।
नाक सुआ सा म्हारा दुख सुख मैं साथ निभान्ता यो
खुशबूदार चीज नै सूंघ कै माणस ताहिं बतान्ता यो
बदबू की पहचान करकै कई बीमारियां तैं बचान्ता यो
ज्ञान इंसान का नाक म्हारा चौबीस घंटे बधान्ता यो
नाक बिना क्यूकर काम चलै कोए आकै तो बतावै।।
इस घूंघट नै ये पांचों इंद्री अपने भीतर घोट लई हे
संस्कृति घुंघट करण की नै मार कसूती चोट दई हे
फिल्मों मैं घूंघट दिखा दिखा कर बहोत खोट दई हे
यो घूंघट मनै तार बगाया पूरे गाम की ओट लई हे
कहै रणबीर बरोने आला चाहिए हर महिला तार बग़ावै।।
836
अमरीका
अमरीका तेरी चाल देखकै धरती का दिल
धड़कै रै।।
मेरा जी करै आज समझाऊं तो तेरा कान पकड़कै रै।।
1
इस धरती का हिया तनै अपने कर्मों तैं हिला दिया
अपने सुख की खातर तनै दुनिया तैं जहर पिला दिया
पृथ्वी का संकट बढ़ा दिया बाली मैं तनै अकड़कै रै।।
2
आवाम दुनिया का तनै सबक जरूर सिखावैगा
रै
बंब और बेड़े ना काम आवैं एक दिन पछतावैगा
रै
तेरा सिर झुक जावैगा रै फेर रोवैगा ठेके मैं बड़कै रै।।
3
जनता जागरूक होती आवै सच्चाई सारी जाण रही या
नाटक खेल कै तेरे ऊपर सही निशाना साध रही या
धरती का बैरी पिछाण रही सै या सांझ और
तड़कै रै।।
4
पूरी दुनिया हल्ला बोलै धरती नै जरूर बचावांगे
देखो
नर नारी सारे मिलकै दुनिया मैं अलख जगावांगे
देखो
ईसा माहौल बनावांगे देखो रणबीर रहवैं तेरे तैं भिड़कै रै।।
837
टेक ...लेकै पहला पहला प्यार
आए मंत्री तुम्हारे पास , हमनै पेट भरण की आस , दखे नौकरी जरूर दिवा दे मंत्री जी।।
1
बिगड़ी मैं सगा भाई भी आंख बदलज्या
डरते कोए बला या गल मैं ना घलज्या
मिलज्या आच्छा सा रोजगार,चाहे दिन रात
कराल्यो करार, चोरी ठगी ना मंजूर मंत्री जी।।
2
लेल्यो नै इम्तिहान रण से ना भागैं
मरज्याँ पर कदे प्रण नहीं त्यागैं
लागैं झूठी बात फिजूल , चलते कायदे के अनुकूल, कदे सिख्या ना करना गरूर मंत्री जी।।
3
आपस की रिश्तेदारी जा ना ल्हकोई
बुआना कुल्ताना साथ मैं नांगलोई
कोई चाहे पता निशान , इलाके का पहलवान
चन्दगी राम हुया मशहूर मंत्री जी।।
4
थोड़ी कही नै ज्यादा समझियो हेरा फेरी ऊंच नीच तैं बचियों , सुनियो बरोना मेरा गाम , रणबीर सिंह मेरा नाम, खरखोदा सै थोड़ी दूर मंत्री जी।
838
**साथी राजरानी की शहादत**
गेस्ट टीचर्स के संघर्ष को देखकर एक बात याद आ गयी । शीला बाई पास पर प्रदर्शन पर गोलियां चली । वहां राजरानी भी गोली का शिकार हुई। जीप ड्राइवर राजरानी को लेकर आया और मैं भी इमरजेंसी में पहुंचा। वहां क्या हुआ इस बारे उन्हीं दिनों एक रागनी लिखी थी पेश है :---
बिन आयी मौत साहमी तड़फै सड़क पै पड़ी हुई।
पड़ी जांघ मैं खाकै गोली फेर एक बर खड़ी हुई ।।
1
धड़ाम दे पडी सड़क पै खून फव्वारा ना काबू आरया
साथी तो ठावैं पुलिस रोकै मन होग्या उसका खारया
धक्का स्टार्ट जीप मेरी उन सबनै फेर धक्का मारया
घाल जीप मैं चाल पड़े चेहरां पीला पड़ता जारया
पीली पड़गी राजरानी कितै कितै सांस अड़ी हुई ।।
पड़ी जांघ मैं खाकै गोली फेर एक बर खड़ी हुई ।।
2
ड्रिप लायी ईसीजी मशीन वा सीधी लाइन दिखावै
कई डॉक्टर कट्ठे होगे एक छाती बार बार दबावै
खत्म होली राजरानी कहता डॉक्टर भी घबरावै
चारों कान्ही हाहाकार मच्या गैल भीड़ चढ़ती आवै
देखैं पड़ी खून मैं लतपथ साथिन उड़ै खड़ी हुई ।।
पड़ी जांघ मैं खाकै गोली फेर एक बर खड़ी हुई ।।
3
पड़ी राजरानी बिस्तर पै जनों मेरी तरफ लखावै
इसा दिखाई देवै जनों यो हमनै सन्देश देना चाहवै
आत्म सम्मान बचाल्यो रलकै आज हकूमत दबावै
संघर्ष का रास्ता लेल्यो यो मंजिल तक पहोंचावै
मुठ्ठी भींचगी राजरानी की थी जाड़ी भी कड़ी हुई।।
पड़ी जांघ मैं खाकै गोली फेर एक बर खड़ी हुई ।।
4
गोली मारी सांथल के म्हां करया जुल्मी काम सुणो
राजरानी गेस्ट टीचर नै यो दिया आखरी पैगाम सुणो
नेता अफसर पुलिस की कसनी होगी लगाम सुणो
आख़री सांस मैं उसनै लिया साथिन का नाम सुणो
रणबीर रोवै उड़ै खड़या साच्ची बात ना घड़ी हुई ।।
पड़ी जांघ मैं खाकै गोली फेर एक बर खड़ी हुई ।।
839***** जन स्वास्थ्य अभियान कहै एक अभियान चलावैं रै।
ताजा खाणा पीणा ताजी हवा तैं सेहत बणावैं रै।।
कुदरत साथ संघर्ष म्हारा बहोत पुराणा कहते रै
यो तनाव जब घणा होवै कहैं बीमार घणे रहते रै
बिना कुदरत नै समझैं माणस दुख हजारां सहते रै
इसतै मेल मिलाप होज्या तै सुख के झरने बहते रै
जिब दोहण करैं कुढ़ाला तो उड़ै रोगै पैर जमावैं रै।।
सिन्धु घाटी की जनता नै सेहत के नियम बनाये थे
चौड़ी गाल ढकी नाली ये घर हवादार चिनाये थे
पीवण खातर बणा बावड़ी न्यारे जोहड़ खुदवाये थे
जितनी समझ थी उनकी रल मिल पूरे जोर लगाये थे
जिब पैदावार के ढंग बदलैं बीमारी बी पल्टा खावैं रै।।
माणस मैं लालच बधग्या, कुदरत से खिलवाड़ किया
,बिना सोचें समझें कुदरत का सन्तुलन बिगाड़ दिया
लालची नै बिना काम करें बिठा ऐश का जुगाड़ लिया
माणस माणस मैं भेद होग्या रिवाज न्यारा लिकाड़ लिया
समाज के अमीर गरीब मैं क्यों न्यारी बीमारी पावै रै।।
साफ पाणी खाणा और हवा रोक सकैं अस्सी बीमारी
ना इनका सही बंटवारा सै मनै टोहली दुनिया सारी
जिस धोरै ये चीज थोड़ी सैं उड़ै होवै बीमारी भारी
होयां पाछै इलाज सै म्हंगा न्यू माणस की श्यामत आरी
रणबीर सिंह नै छन्द बनाया मिलकै सारे गावैं रै।।
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