Saturday, 15 April 2023

दास्ताँ मजदूर की 


दास्ताँ मजदूर की 

राजी खुसी की मत बूझै ,बंद कर दे जिक्र चलाना हे |

दिन तै पहल्यां रोट बांध कै ,पडै चौंक मैं जाणा  हे |

देखूं बाट बटेऊ ज्यूं , कोए इसा आदमी आज्या 

मनै काम पै ले चालै , ज्या बाज चून का बाजा 

नस नस म्हं खुशी  होवै , जे काम रोज का ठ्याज्या

इसे हाल म्हं मनै बता दे , कौनसा राजी पाज्या  

नहीं दवाई नहीं पढ़ाई , नहीं मिलै टेम पै खाना हे |

देखे ज्याँ सूँ मैं बाट काम की , सदा नहीं मिलता  हे 

एक महीने म्हं कई बार तो ,ना मेरा चूल्हा जलता हे  

बच्चयाँ कानी देख देख कै , मेरा कालजा हिलता हे 

रहै आधा भूखा पेट सदा , न्यूं ना चेहरा खिलता हे 

तीस बरस की बूढ़ी दिखूँ मैं , पड़ग्या फीका बाना हे |

कदे कदे तो हालत बेबे , इस तै भी बदतर होज्या 

दूध बिना मेरे बालक , काली चा पी कै सोज्याँ  

नहीं आवती नींद रात भर , चैन मेरा कति खोज्या

यो सिस्टम का जुल्म मेरी , ज्याँ के झगडे झौज्या

रिश्तेदार घरां आज्यं तो,पद्ज्य सै शरमाना हे |

खाली डिब्बे पड़े घरां , ना एक जून का सामाँ  हे 

निठल्ले लोग लूट लूट कै , कठ्ठा कर रे नामां हे 

वाहे रोज पहर कै जावै , पाट्या पूत  पजामां हे 

"रामफल सिंह" चक्कर खावै, मुश्किल गात थामाँ  हे 

म नै हकीकत पेश करी यो , मत ना समझो गाना हे |

No comments: